प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण में हिस्सा लेंगे. 2011 के बाद ये भारत के पहले राष्ट्रध्यक्ष हैं जो मालदीव गए हैं.
मालदीव की राजनीति में भारी उलटफेर में सितंबर में हुए आम चुनावों में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन चुनाव हार गए थे. यामीन को चीन समर्थक माना जाता है और उनके कार्यकाल में चीन का इस देश पर भारी प्रभाव रहा.
विश्लेषक कहते हैं कि मालदीव में आए सत्ता परिवर्तन से भारत राहत की सांस लेगा क्योंकि पिछले कुछ सालों से मालदीव सरकार चीन पर आश्रित होती दिख रही थी और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस द्वीप पर भारत का प्रभाव घट रहा था.
इसकी बानगी विदेश मंत्रालय के चुनाव के बाद के वक्तव्य से साफ झलकती है जिसमें उसने कहा था कि ‘भारत सोलिह की जीत के लिए दिल से मुबारकबाद देते हैं और आशा करते हैं कि चुनाव आयोग नतीजों को जल्द कंफर्म करेगा.’
दुनिया भर की निगाहें यामीन पर थी जिन्होंने चुनाव के नतीजों को अदालत में चुनौती दी थी. यामीन ने इससे पहले भी जिस तरह से विपक्ष को नियंत्रण में किया था, उसके नेता जेल में या निष्कासित जीवन जी रहे थे उससे भी शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण को लेकर शक हो रहा था.
भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया था- मालदीव में हालिया चुनाव लोकतंत्र, कानून व्यवस्था और समृद्ध भविष्य के लिए लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. हम एक स्थिर, लोकतांत्रिक, समृद्ध और शांतिपूर्ण मालदीव गणतंत्र देखना चाहते हैं. राष्ट्रपति सोलिह को विकास की प्राथमिकताओं को साकार करने के लिए साथ काम करने की भारत सरकार की मंशा से अवगत कराऊंगा.
Recent elections in The Maldives represent the collective aspirations of the people for democracy, rule of law and a prosperous future. We in India strongly desire to see a stable, democratic, prosperous and peaceful Republic of Maldives.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 16, 2018
इस शपथ ग्रहण में 46 देश अपने प्रतिनिधि भेज रहे हैं पर भारतीय प्रधानमंत्री सबसे उच्च स्तरीय प्रतिनिधि होंगे जो इस शपथ ग्रहण में हिस्सा लेंगे. बाद में उनकी सोलिह से मुलाकात होगी. चीन और जापान भी अपने प्रतिनिधि भेज रहे हैं लेकिन माना जा रहा है कि पूर्व राष्ट्रपति यामीन इस शपथ ग्रहण में भाग नहीं लेंगे.
चुनाव परिणामों के बाद भारत ने कहा था कि ‘ये चुनाव लोकतांत्रिक ताकतों की विजय हैं लेकिन साथ ही ये मालदीव की लोकतंत्र के प्रति आस्था और विधि शासन के प्रति प्रतिबद्धता दिखाता है. हमारी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के तहत भारत मालदीव के साथ नज़दीक से काम करना चाहता है और अपनी पार्टनरशिप को और गहरा करना चाहता है.’
यामीन प्रशासन का चीन के प्रति झुकाव साफ था. उनके प्रशासन ने चीन से कई लोन लिए और देश को कर्ज में डुबाया, कुछ वैसे ही जैसे पाकिस्तान और श्रीलंका सरकारों ने किया था. वहीं, नए राष्ट्रपति सोलिह ने चीन के निवेश की आलोचना की थी और अब देखा जाना है कि चीन से किए समझौतों पर क्या पुनर्विचार होता है.
इस बीच इन चुनावी नतीजों ने मालदीव के विपक्ष को भी राहत पहुंचाई है.
लंदन में दो वर्षों तक स्वघोषित निर्वासन में रहने वाले मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद भी स्वदेश लौट आए हैं. उनके वापस आने पर सैकड़ों समर्थकों और राजनेताओं ने उनका स्वागत किया था. मालदीव की सर्वोच्च अदालत ने उन्हें गिरफ्तार करने और 13 वर्ष की जेल की सज़ा के आदेश पर रोक लगा दी है. नशीद को 2015 में यह सज़ा सुनाई गई थी.
मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के प्रमुख कोलंबो के रास्ते अपनी पत्नी लैला अली के साथ देश लौटे थे. उनके साथ एमडीपी के सदस्य व नव निर्वाचित-राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह भी थे.
लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति नशीद को 2012 में जबरन इस्तीफा देना पड़ा था और तीन वर्ष बाद एक विवादास्पद मुकदमे में उन्हें उनके कार्यकाल के दौरान अवैध रूप से एक न्यायाधीश को हिरासत में लेने के लिए 13 वर्ष की सज़ा सुनाई गई थी. इस मुकदमे की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आलोचना हुई थी.
पर सोलिह ने राष्ट्रपति चुनाव में अब्दुल्ला यामीन को हरा दिया था, जिसके बाद नशीद के यहां आने का रास्ता साफ हो गया था.
भारत के लिए मालदीव का सत्ता परिवर्तन इस द्वीप राष्ट्र के सामरिक महत्व से कहीं ज़्यादा है क्योंकि हाल के सालों में पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान तथा कुछ हद तक भूटान में भी चीन का हस्तक्षेप भी बढ़ा है.
नेपाल की केपी ओली सरकार जिस तरह से चीन के साथ परियोजनाओं को हरी झंडी दिखा रहे हैं और सड़क से लेकर ढ़ाचागत परियोजनाओं में जिस तरह से वहां चीन की सहायता बढ़ रही है और भारत के प्रति जो नेपाल के मौजूदा प्रशासन का रवैया है वो चिंता का विषय बना हुआ है.
यही हाल श्रीलंका का भी है जहां मैत्रीपाला सिरिसेना सरकार है, का चीन प्रेम जग जाहिर है. बंदरगाहों से लेकर वहां भी बड़ी परियोजनाएं चीनी कंपनियों के हाथ हैं. हाल में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को पद से हटा दिया गया था, जिसे वहां की शीर्ष अदालत ने असंवैधानिक करार दिया है. उनकी जगह सिरिसेना महिंद राजपक्षे को प्रधानमंत्री बना के लाए, जिन्हें हालांकि संसद का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ है. वे भी चीन समर्थक माने जाते हैं और श्रीलंका में रानिल विक्रमसिंधे को हटाने के कारणों में ये आरोप भी लगाए गए थे कि वे भारत के एजेंट हैं.
पाकिस्तान और चीन तो अपने को हर मौसम के दोस्त बताते ही हैं और विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान अब चीन के पैसे के बिना चल भी नहीं पायेगा. अमेरिका और भारत में बढ़ी प्रगाढ़ता के बीच चीन का भारत के खिलाफ पाकिस्तान में दखल उसकी सामरिक नीति का हिस्सा है.
हाल में भूटान में भी चीनी दखल बढ़ा है. ऐसे में भारत के लिए मालदीव से अपने रिश्ते मज़बूत करना एक ज़रूरत है. भारत की कोशिश रहेगी कि चीन की स्टरिंग औफ पर्ल नीति यानि भारत के आसपास के सभी देशों में अपनी पहुंच बढ़ा कर भारत की घेरेबंदी करने की कोशिशों को नाकाम किया जाए और फिलहाल पड़ोसी देशों से आ रही नकारात्मक खबरों के बीच ये भारत के लिए हाल के दिनों में पहली सकारात्मक खबर दिखाई दे रही है.
400,000 की आबादी वाले इस छोटे से देश का सामरिक महत्व उसके साइज़ से कहीं ज़्यादा है और भारत को आशा है कि सोलिह की इंडिया फर्स्ट की नीति का वादा पूरा होगा, सोलिह को भी चीन का दबाव झेलने के लिए एक बड़े पड़ोसी की पूरी ज़रूरत होगी.