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शुक्रवार, 9 मई, 2025
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जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर ने जिहादियों से भारत के खिलाफ ‘बदला’ लेने की अपील की

अज़हर पाकिस्तान के दक्षिणी पंजाब में शक्तिशाली मौलवी नेटवर्क के केंद्र में है, जिसका गरीब समुदायों, शहरी मध्यम वर्ग के कुछ हिस्सों, सैन्य रैंक के कुछ हिस्सों में गहरा प्रभाव है.

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नई दिल्ली: यह शोक संदेश अजीब तरह से अनचाही भावनाएं व्यक्त करने वाला था, जिसे जिहादी कमांडर मसूद अज़हर अलवी ने अपने भतीजे तल्हा राशिद के लिए लिखा था, जो 2017 में कश्मीर में लड़ाई के दौरान मारा गया था. उसने लिखा, “शहीद के पहले खून की बूंद गिरते ही उसके पाप माफ कर दिए जाते हैं, उसे कब्र की पीड़ा, कयामत के दिन का डर नहीं होता; उसकी शादी 72 हूरों से होती है; उसके परिवार पर खुदा की रहमत होती है. उसके सिर पर सम्मान का ताज सजाया जाता है, जिसके एक-एक रत्न की कीमत इस पूरी दुनिया से अधिक होती है.”

इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस द्वारा मुहैया कराए गए सुरक्षित ठिकाने से, जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख ने अब निर्देश जारी किए हैं, जिसमें उसने अपने जिहादियों से भारत के हवाई हमलों का जवाब तल्हा के रास्ते पर चलकर देने को कहा है. ये शब्द राजनीतिक महत्व रखते हैं: अज़हर पाकिस्तान के दक्षिणी पंजाब में शक्तिशाली धार्मिक नेटवर्क के केंद्र में है, जिसका प्रभाव गरीब समुदायों, शहरी मध्यवर्ग के हिस्सों और सेना की निचली पंक्ति के कुछ वर्गों पर गहरा है.

पाकिस्तान सरकार का दावा है कि अज़हर 2019 में नज़रबंदी से भाग निकला और अफगानिस्तान चला गया. इस्लामी अमीरात अफगानिस्तान ने इन दावों से इनकार किया है. हालांकि, हालिया पत्रों से स्पष्ट है कि वह अपने वतन की घटनाओं से निकट संपर्क में है.

जैश-ए-मोहम्मद के बड़ी संख्या में फिदायीन दस्तों ने पहले भी कश्मीर में, साथ ही भारत के अन्य हिस्सों में हमले किए हैं —अक्षरधाम मंदिर से लेकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा और संसद भवन तक.

दिप्रिंट से बात करने वाले दो भारतीय खुफिया अधिकारियों ने कहा कि अगर युद्ध लंबा चला, तो इन दस्तों को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पठानकोट-जम्मू राजमार्ग और आगे कश्मीर घाटी की ओर भारतीय सैन्य गतिविधियों को बाधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि किसी संभावित युद्धविराम के बाद फिदायीन हमलों के बढ़ने का खतरा भी है.

कारगिल युद्ध के अंत के बाद, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने अपने ऑपरेशंस को तेज़ कर दिया था, जिसमें दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार, 1999 में रिकॉर्ड 763 सैन्य और पुलिसकर्मी मारे गए, 2000 में 788, और 2001 में 883, जो नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम समझौते से एक साल पहले था. ये हताहत संख्या खुद कारगिल युद्ध में भारत की क्षति से कहीं अधिक थीं.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “असल चिंता यह है कि एलओसी पर भारी गोलीबारी से हमारे जवानों को रक्षात्मक स्थिति में जाना पड़ता है, जिससे घुसपैठ और आसान हो जाती है. गुलमर्ग और राजौरी के रास्ते पहले से ही घुसपैठ होने के संकेत मिल रहे हैं, जो चिंताजनक हैं.”

8 मई को लिखे अपने पत्र में मसूद अज़हर ने लिखा, “भारत के कायराना और हत्यारे हमले को 36 घंटे बीत चुके हैं और लोग अब भी जवाबी कार्रवाई का इंतज़ार कर रहे हैं. जो भारतीय लड़ाकू विमान गिराए गए, वह बदला या जवाब नहीं थे. वह विमान जो करने आए थे, वह कर गए. उन्हें रोका नहीं जा सका. आज की तकनीक ने ऐसा कर दिया है. मैं किसी को दोष नहीं देना चाहता. हमला हुआ है. अब जवाबी कार्रवाई ज़रूरी है.”

उसने आगे लिखा कि अगर जवाब नहीं दिया गया, तो इसके विकल्प के रूप में “कहर नाज़िर होगा—ऐसा कहर जो प्रकृति द्वारा बरपाया जाएगा.”

“यह विनाश उन मुसलमानों पर बरपेगा है जो अपने ईमान से मुंह मोड़ लेते हैं. तातारियों का नाश इसी कारण हुआ कि वह डर गए और अंत में मिटा दिए गए. केवल वही बचे जिन्होंने डटकर मुकाबला किया. खुदा के वास्ते, कुरान को समझो और अपने मुल्क को बचाओ. जो कोई भी जवाबी कार्रवाई शुरू करने का फैसला करेगा, वही इस मुल्क का असली हीरो और लीडर होगा और कयामत के दिन उसे दुनिया की इज्ज़त हासिल होगी.”

अज़हर ने आगे लिखा, “हम उस खून का बदला नहीं मांग रहे हैं जो बहाया गया. वह खून बहुत पाक और अनमोल था. वह खून खुद ही अपना बदला लेना शुरू कर चुका है और उस खून के वारिस अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं.”

‘शहीदों’ का आह्वान

7 मई को जारी एक पहले के पत्र में व्यक्तिगत नुकसानों की ओर इशारा किया गया था: “जिस घर में हम रहते थे, उसमें चार बच्चे थे, जिनकी उम्र चार से दस साल के बीच थी और वह सभी एक साथ जन्नत चले गए हैं. उनके माता-पिता अब अकेले रह गए हैं. यह जन्नत की यात्रा केवल उन्हीं के लिए है जिन्हें अल्लाह सबसे ज़्यादा चाहता है. उनके रुख़्सत होने का वक्त तय था, लेकिन उन्हें अब हमेशा की ज़िंदगी मिल गई है. भारत की इस कार्रवाई ने सारी हदें पार कर दी हैं. अब उसकी तरफ से किसी को रहम की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. जामा मस्जिद का जो गुम्बद तबाह किया गया है, वह ऐसी तबाही बरसाएगा जिसे आने वाली कई नस्लें याद रखेंगी.”

हालांकि, अज़हर का जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तानी पंजाब की धार्मिक राजनीति में सीमित जगह रखता है, यह तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान और तब्लीगी जमात जैसे दक्षिणपंथी समूहों के एक बड़े नेटवर्क से जुड़ा हुआ है. इन संगठनों के नेटवर्क अक्सर प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की सरकार और सेना पर दबाव बनाने में कामयाब रहे हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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