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Saturday, 23 November, 2024
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इमरान खान का लेख- पाकिस्तान के लिए कानून का शासन अर्जेंट चुनौती, भारत में ‘नस्लभेद वाले कानून का राज’

'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' अखबार के ऑप-एड में इमरान खान लिखते हैं कि पाकिस्तान को पैगंबर मुहम्मद द्वारा स्थापित किये गए राज-ए-मदीना (कल्याणकारी राज्य के इस्लामी संस्करण) के पांच मार्गदर्शक सिद्धांतों को साकार करना चाहिए.

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नई दिल्ली: पाकिस्तानी दैनिक ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के लिए सोमवार को लिखे गए एक ऑप-एड (प्रति-सम्पादकीय) में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि उनके देश के सामने मौजूद सबसे जरूरी चुनौती ‘कानून का राज’ स्थापित करने के वास्ते की जा रही जद्दोजहद है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ‘नस्लभेद वाले कानून के शासन’ ने ही भारत में गरीबी और उग्रवाद को पैदा किया है.

इमरान ने लिखा है, ‘फ़िलहाल हमारे मुल्क के सामने मौजूद सभी चुनौतियों में सबसे जरूरी है ‘कानून का राज’ स्थापित करने का संघर्ष. पाकिस्तान के इतिहास के पिछले 75 वर्षों में, हमारा मुल्क एक कुलीनता वाले कब्जे से पीड़ित है, जहां शक्तिशाली और कुटिल राजनेता, कार्टेल और माफिया तत्व भ्रष्ट व्यवस्था के माध्यम से प्राप्त अपने खास हुकूक (विशेषाधिकारों) की हिफाजत के लिए कानून से ऊपर होने के आदी हो गए हैं. उन्होंने अपने विशेषाधिकारों की हिफाजत करते हुए मुल्क के सभी संस्थानों को भी भ्रष्ट कर दिया है.’

खान ने कहा कि पाकिस्तान को पैगंबर मुहम्मद द्वारा स्थापित मदीना राज्य (यानी कल्याणकारी राज्य के इस्लामी संस्करण) के पांच मार्गदर्शक सिद्धांतों – एकता, कानून का राज, मजबूत नैतिकता और सदाचार वाली बुनियाद, समावेशिता और ज्ञान की खोज – को अपनाना चाहिए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नेशनल रहमतुल-लिल-आलमीन अथॉरिटी (एनआरए) – पिछले अक्टूबर में गठित इस्लामिक विद्वानों की एक संस्था जिसे पैगंबर के जीवन से मिले सबकों को आम जनता तक पहुंचाने के तरीके खोजने का काम सौंपा गया है – तीसरे सिद्धांत: – मजबूत नैतिकता और सदाचार वाली बुनियाद – के संबंध में एक अहम भूमिका अदा करेगा.

उन्होंने लिखा, ‘एनआरए हमारे समाज में नैतिकता और सदाचार के स्तर को बढ़ाने की उम्मीद में स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हमारे युवाओं को सीरत-अल-नबी के बारे में सिखाकर उन्हें अमर बिल मरूफ में शामिल करने का प्रयास करेगा.’

अमर बिल मरूफ का मतलब लोगों को भलाई करने के लिए प्रोत्साहित करने से है, और सीरत-अल-नबी पैगंबर की जीवनी को संदर्भित करता है.

भारत का ‘नस्लभेदी कानून वाला शासन’

खान ने जापान, चीन, दक्षिण कोरिया और पश्चिमी देशों का हवाला देते हुए दावा किया कि भारत, पाकिस्तान के साथ-साथ अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों के विपरीत सबसे ज्यादा सफल देशों में कानून के राज को सबसे ‘मजबूत रूप से लागू किया’ जाता है. उन्होंने लिखा है, ‘मुस्लिम दुनिया के कई देशों में, अकूत संसाधनों की व्यापकता के बावजूद, काफी कम प्रगति हुई है, जो कानून के शासन की कमी की वजह से है …आज के भारत में, नस्लभेदी कानून के शासन ने वहां त्वरित गरीबी और अनगिनत विद्रोहों को पैदा किया है जो उनके देश की एकता के लिए खतरा हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘पाकिस्तान में, कानून के शासन का पालन नहीं किये जाने की वजह से अरबों अमेरिकी डॉलर का गबन हुआ है, जिसने हमारी जनता पर सामूहिक रूप से गरीबी थोप दी है. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों में भी राजनीति और विकास का पैटर्न यही कुछ बताता है. तथाकथित ‘बनाना रिपब्लिक’ कानून के राज की कमी के कारण हीं ऐसे हालात में हैं.’

‘नैतिक विकास में तटस्थ नहीं रह सकता है राज्य’

खान ने लोगों के बीच ‘नैतिक विकास’ हासिल करने में राज्य की भूमिका पर जोर दिया, जो कि तीसरे सिद्धांत: मजबूत नैतिकता और सदाचार वाली बुनियाद, के सन्दर्भ में था.

उन्होंने लिखा है, ‘हमारे समाज में ऐसे भी तत्व हैं जो मानते हैं कि लोगों का नैतिक विकास लोगों के वास्ते छोड़ दिया जाना चाहिए, राज्य को मजहब के ख़याल के अनुसार अच्छे और बुरे के बारे में तटस्थ रहना चाहिए.’

वे लिखते हैं, ‘यह नजरिया काफी पुराना और समस्याग्रस्त है क्योंकि यह राज्य को अपने नैतिक और सदाचार वाले कर्तव्यों का पालन करने से रोकता है तथा मुल्क की खिलाफत कर रहे लोगों को काफी सारे पैसे के साथ अंदर घुसने और हमारी अपनी शैक्षिक प्रणालियों और सूचना के चैनलों का उपयोग करके हमारे मूल्यों को बर्बाद कर देने की इजाजत देता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अमर-बिल-मरूफ-वा-नाही-अनिल-मुनकर (भलाई करना, बुराई करने को मना करना) की अवधारणा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि कुरान इसे ‘उम्माह को परिभाषित करने वाला मिशन’ घोषित करता है.’

कल्याणकारी राज्य का पश्चिमी मॉडल न तो ‘संभव है और न हीं वांछनीय’

कल्याणकारी राज्य की स्थापना के माध्यम से समावेशी विकास के सिद्धांत के संबंध में, खान ने एक पूर्व- चेतावनी भी दी: ‘पश्चिम के अनुरूप कल्याणकारी राज्य का मॉडल ‘न तो संभव हैं और न ही वांछनीय’. पश्चिमी देशों के अधिकांश कल्याणकारी राज्य पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ नहीं थे क्योंकि ये बहुत अधिक उपभोग वाले समुदाय थे जो भारी मात्रा में कचरा उत्पन्न करते हैं. यदि सभी गैर-पश्चिमी देश इन ‘कल्याणकारी राज्यों’ की ही नकल करते हैं, तो हमारे उत्पादन, उपभोग एवं कूड़ा-कचरा का पैटर्न उनके ही जैसा होगा और, कुछ अनुमानों के अनुसार, हमें छह और पृथ्वी जैसे ग्रहों की आवश्यकता होगी जो हमारे कचरे को सोखने वाले सिंक के रूप में कार्य करेंगे.

उन्होंने सुझाव दिया कि इसके बजाय सार्वभौमिक स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल और शिक्षा के साथ ‘केवल मध्यम स्तर की समृद्धि और खपत ही आदर्श स्थिति होगी’.

ज्ञान आधारित समाज बनाने की जरूरत के संबंध में, खान ने कहा कि लोगों को ‘साक्षरता’ को ‘ज्ञान’ के रूप में देखने का भ्रम नहीं करना चाहिए’.

उन्होंने लिखा है : ‘एक सुखी समाज के लिए अकेले साक्षरता पर्याप्त नहीं हो सकती है. पालने से कब्र तक रूहानी बदलाव के साथ ज्ञान अहम चीज है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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