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Thursday, 26 December, 2024
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अगर इमरान खान पद से हटते हैं तो पाकिस्तान को मिल सकता है 8वां अंतरिम PM, जानिए पहले 7 के बारे में

1990 में गुलाम मुस्तफा जटोई के बाद पाकिस्तान में अगले छह सालों में चार अंतरिम प्रधानमंत्री बने थे. मुशर्रफ के बाद से तीन और अंतरिम प्रधानमंत्री बन चुके हैं, जिसमें आखिर बार यह जिम्मेदारी 2018 में नसीरुल मुल्क को मिली थी.

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नई दिल्ली: 1990 में राष्ट्रपति गुलाम इशहाक खान द्वारा पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सरकार को बर्खास्त किए जाने के बाद कुछ महीनों के लिए देश के अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने वाले पाकिस्तानी राजनेता गुलाम मुस्तफा जटोई ने एक बार टिप्पणी की थी कि ‘शीर्ष नेतृत्व को हटाने से पाकिस्तान की विश्वसनीयता घटेगी नहीं, बल्कि बढ़ेगी ही.’

देश के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान शनिवार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने को तैयार हैं, और यह एक बार फिर जटोई के सिद्धांत को परखने का समय है.

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को डिप्टी स्पीकर—जो इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के ही एक सदस्य हैं—की तरफ से नेशनल असेंबली में इमरान सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव ठुकराने का फैसला और उसके बाद इमरान के पाकिस्तान में चुनाव कराने के आह्वान को खारिज कर दिया है.

कोर्ट के फैसले ने अविश्वास प्रस्ताव का रास्ता साफ कर दिया है. ऐसे में इमरान खान का सत्ता से जाना लगभग तय माना जा रहा है.

अदालती फैसले से पहले ही पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 224(1ए) के अनुरूप कदम उठाते हुए राष्ट्रपति ने इमरान खान और विपक्ष के नेता शाहबाज शरीफ को देश में एक कार्यवाहक या अंतरिम प्रधानमंत्री के चयन के लिए समिति बनाने के लिए एक पत्र भेजा था.

अंतरिम प्रधानमंत्री पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं है. 1990 के दशक के दौरान देश में छह वर्षों में चार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने थे, और उसके बाद से तीन और राजनेताओं ने यह जिम्मेदारी संभाली है. इन सभी ने एक से चार महीने की अवधि के लिए यह पद संभाला. यदि इमरान खान सत्ता से बाहर होते हैं तो पाकिस्तान में एक और अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए रास्ता साफ हो जाएगा. यह देश के आठवें अंतरिम पीएम होंगे.

दिप्रिंट यहां बता रहा है कि पाकिस्तान के पिछले कार्यवाहक प्रधानमंत्री कौन थे और किन राजनीतिक अस्थिरता की वजह से उन्हें यह जिम्मेदारी संभालनी पड़ी थी.

गुलाम मुस्तफा जटोई

अगस्त 1990 में जटोई पाकिस्तान के पहले कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए थे. देश के तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इशहाक खान, जिन्हें स्कॉलर स्टीफन कोहेन ने ‘इस्टैबलिशमेंट पिलर’ बताया था, ने भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के कथित आरोपों को लेकर बेनजीर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया था और जटोई को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त किया था.

1985 में पाकिस्तान के संविधान में हुए आठवें संशोधन ने राष्ट्रपति को सरकार और संसद को बर्खास्त करने का अधिकार प्रदान किया था. तब ‘नेता विपक्ष’ जटोई को सरकार बनाने के लिए कहा गया था.

जटोई ने अगस्त और नवंबर 1990 के बीच पाकिस्तान में सरकार का नेतृत्व किया. लेखक लॉरेंस जिरिंग के मुताबिक, उनका प्रशासन बेनजीर भुट्टो सहित पिछली सरकार और राजनीतिक अभिजात वर्ग को निशाना बनाने के लिए सुर्खियों में रहा था.

राजनीतिक अभिजात वर्ग के खिलाफ जटोई के अभियान के तहत संसद और प्रांतीय विधानसभा (सदस्यता के लिए अयोग्यता) नियमों को लागू करने की कोशिश की गई, जिससे भुट्टो समेत अधिकांश राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर सिद्धांतत: पाबंदी लग सकती थी. हालांकि, वह अपने इस प्रयास में कामयाब नहीं हो पाए.

6 नवंबर 1990 को जटोई ने बतौर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए रास्ता बनाया, उन्होंने सियासी दलों के इस्लामी जम्हूरी इत्तेहाद (आईजेआई) नामक गठबंधन का नेतृत्व किया, जो अक्टूबर 1990 में चुनावों में बहुमत से जीत हासिल करने के बाद सत्ता में आया.


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मीर बलख शेर मजारी

नवाज शरीफ का सत्ता में पहला कार्यकाल नवंबर 1990 से अप्रैल 1993 के बीच चला. 1993 में एक नए सेनाध्यक्ष (सीओएएस) की नियुक्ति के मुद्दे ने राष्ट्रपति गुलाम इशहाक खान और शरीफ के बीच नाजुक रिश्तों को बिगाड़ दिया. सीओएएस की अहमियत को देखते हुए दोनों इस पद पर अपने किसी नजदीकी की नियुक्ति चाहते थे.

जनवरी 1993 में राष्ट्रपति ने जनरल अब्दुल वहीद काकर को इस पद पर नियुक्त किया. जाहिर तौर पर इससे नाखुश शरीफ ने आठवें संशोधन को हटाने की मुद्रा अपनाने के साथ सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रपति पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए.

यह तनातनी जुलाई 1993 में एक अहम मुकाम पर पहुंच गई, और गुलाम इशहाक खान ने भ्रष्टाचार के कथित आरोपों के आधार पर नेशनल असेंबली और सरकार की बर्खास्तगी के लिए फिर से आठवें संशोधन का इस्तेमाल किया.

राष्ट्रपति ने मीर बलख शेर मजारी को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया. उन्हें आमतौर पर ‘सरदार’ कहा जाता था और वह सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान के बीच ट्राइस्टेट क्षेत्र में रहने वाली मजारी जनजाति के प्रमुख थे.

मजारी का कार्यकाल केवल छह सप्ताह तक चला, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मई 1993 में एक ऐतिहासिक फैसले में सरकार और नेशनल असेंबली को भंग करने का फैसला असंवैधानिक घोषित कर दिया और शरीफ को प्रधानमंत्री के पद पर बहाल कर दिया गया.

मोईनुद्दीन अहमद कुरैशी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बल पर शरीफ सत्ता में लौटे, लेकिन राष्ट्रपति के साथ उनके संबंध अब सुधरने के आसार नहीं थे और गर्वनेंस पर इसकी छाया साफ नजर आ रही थी.

राष्ट्रपति खान ने 1993 में पंजाब और सिंध सहित कई प्रांतीय विधानसभाओं को बर्खास्त कर दिया. राजनीति विज्ञानी ताहिर अमीन ने 1994 में एशियन सर्वे जर्नल में उल्लेख किया है कि राष्ट्रपति प्रांतीय विधानसभाओं को बर्खास्त करके संघीय सरकार को अलग-थलग कर रहे थे. जैसे-जैसे स्थिति बिगड़ती गई, सीओएएस काकर ने मामले में दखल दिया और इसके बाद हुए एक सौदे के तहत जुलाई 1993 में खान और शरीफ दोनों ने इस्तीफा दे दिया.

कार्यवाहक राष्ट्रपति वसीम सज्जाद ने अर्थशास्त्री, विश्व बैंक के पूर्व कर्मचारी और सिंगापुर में सलाहकार मोइनुद्दीन कुरैशी को 18 जुलाई 1993 को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया.

कुरैशी के किसी तरह की राजनीतिक निष्ठा न रखने की वजह से उनकी सियासी हलकों में स्वीकार्यता सुनिश्चित हुई.

यद्यपि उनका शासनकाल मुख्य तौर पर एक नई सरकार चुनने के लिए चुनाव कराने तक ही था, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान कुछ अहम राजनीतिक और आर्थिक सुधार किए गए. भूमि आवंटन प्रक्रियाओं में सुधार, कर संग्रह बढ़ाना, राजनेताओं से बकाया भुगतान और ड्रग माफिया पर शिकंजा कसने जैसे कदमों की वजह से कुरैशी का अंतरिम प्रधानमंत्रित्व काल काफी लोकप्रिय रहा.

अक्टूबर 1993 में चुनाव के बाद बेनजीर भुट्टो के फिर से प्रधानमंत्री चुने जाने के साथ ही उनका करीब तीन महीने का कार्यकाल पूरा हो गया.


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मलिक मेराज खालिद

बेनजीर भुट्टो का दूसरा कार्यकाल तीन साल में ही 5 नवंबर 1996 को खत्म हो गया. उन्हें उसी व्यक्ति ने हटा दिया था, जिसे राष्ट्रपति बनाने के लिए 1993 में उन्होंने पैरवी की थी, और ये थे फारूक अहमद खान लेघारी. भुट्टो की बर्खास्तगी के लिए एक बार फिर से भ्रष्टाचार, कदाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों का ही इस्तेमाल किया गया था.

बर्खास्तगी का आदेश जारी करने के तुरंत बाद लेघारी ने मलिक मेराज खालिद को छह साल के अंदर पाकिस्तान का चौथा कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया.

एक वकील, वामपंथी योद्धा, और जुल्फिकार अली भुट्टो के समय के मार्क्सवादी नेता खालिद 1988 में बतौर प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पहले कार्यकाल के दौरान नेशनल असेंबली के स्पीकर भी रह चुके थे.

खालिद ने भुट्टो और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू की. खालिद प्रशासन की तरफ से उस समय जारी एक आदेश में दोषी पाए जाने पर राजनीति में सात साल की पाबंदी का प्रावधान शामिल था.

स्पष्ट है कि कभी स्पीकर के तौर पर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के पटल पर बेनजीर की तरफ से कार्यवाही चलाने वाले स्पीकर ने उन्हें दरकिनार करने की योजना बनाई थी.

बतौर कार्यवाहक प्रधानमंत्री खालिद का कार्यकाल तीन महीने में ही खत्म हो गया, जब नवाज शरीफ ने फरवरी 1997 में हुए चुनावों के बाद दूसरी बार प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता में वापसी की.

नवाज शरीफ की वापसी 1990 के दशक में पाकिस्तानी राजनीति में एक तरह के पैटर्न की प्रतीक थी. या तो भुट्टो या फिर वह एक गठबंधन के साथ सत्ता में आते, फिर राष्ट्रपति उन्हें कार्यकाल पूरा होने से पहले हटा देते, उनकी जगह एक कार्यवाहक नियुक्त किया जाता, और फिर एक नए चुनाव के बाद वह सत्ता में वापसी करते.

आखिरी तीन अंतरिम प्रधानमंत्री

उथल-पुथल भरे 1990 के दशक के बाद पाकिस्तान में सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में करीब एक दशक तक अपेक्षाकृति राजनीतिक स्थिरता नजर आई, जिन्होंने 1999 में तख्तापलट के बाद खुद को राष्ट्रपति पद पर आसीन कर लिया था.

ये सियासी स्थिरता नवंबर 2007 में उस समय बिखर गई, जब मुशर्रफ की तरफ से मुहम्मद मियां सूमरो को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. सूमरो ने मार्च 2008 तक यह प्रभार संभाला, इसके बाद यूसुफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री चुने गए.

पाकिस्तान के अंतरिम प्रधानमंत्री की सूची में अगला नाम मीर हजार खान खोसो का है, जिन्हें रजा परवेश अशरफ के पद छोड़ने के बाद मार्च से जून 2013 के बीच ढाई महीने के लिए इस पद पर नियुक्त किया गया था.

सबसे आखिर में, जून 2018 में नसीरुल मुल्क को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, और वह 18 अगस्त 2018 तक कुर्सी पर रहे. इसके बदा इमरान खान ने प्रधानमंत्री के तौर पर पाकिस्तान की कमान संभाली.

यद्यपि पाकिस्तान में आठवें कार्यवाहक प्रधानमंत्री की नियुक्ति को लेकर तस्वीर तो शनिवार को ही साफ होगी, लेकिन यह माना ही जा सकता है कि कभी सैन्य शासन और कभी हाईब्रिड ‘केयरटेकर’ सिस्टम का परिचायक बना पाकिस्तान का लोकतांत्रिक ढांचा एक बार फिर उथल-पुथल भरे दौर से गुजरने जा रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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