नई दिल्ली: पाकिस्तानी सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल के दौरान कथित तौर पर अथाह शक्तियां रखने वाले ‘गैंग ऑफ फोर’ जनरलों में से दो सदस्यों ने स्विस बैंक खातों में लाखों डॉलर जमा कर रखे थे. यह खुलासा पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय संघ की तरफ से जारी किए गए लीक दस्तावेजों में हुआ है.
ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) के तहत लीक दस्तावेज ये सवाल खड़े करते हैं कि क्या जनरलों को अफगान जिहाद और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बदले में कोई वित्तीय लाभ मिला था.
जनरल जिया के ‘गैंग ऑफ फोर’ में खुद उनके अलावा जनरल रहीमुद्दीन खान भी शामिल थे, जिनका नाम इन दस्तावेजों में नहीं है. अन्य दो जनरल अख्तर अब्दुल रहमान खान और लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद अली अकबर हैं, जिनके बारे में दस्तावेजों में बताया गया है कि इनके गोपनीय खातों में 29 मिलियन से अधिक स्विस फ्रैंक (सीएचएफ, एक सीएचएफ = 81.04 रुपये) जमा होने का खुलासा हुआ है.
गैंग ऑफ फोर के चारों सदस्य मूलत: पंजाब के जालंधर के रहने वाले थे और शादी-ब्याह के रिश्तों के कारण एक-दूसरे के नजदीकी रिश्तेदार भी थे. जनरल अख्तर और जनरल जिया के बेटों की शादी जनरल रहीमुद्दीन की बेटियों से हुई थी. जनरल अख्तर के एक और बेटे की शादी लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद की बेटी से हुई थी.
जनरल अख्तर—अफगान जिहाद के मास्टरमाइंड थे
जनरल अख्तर ने 1979 से 1987 तक इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस निदेशालय का नेतृत्व संभाला था, जो अपने में एक रिकॉर्ड है और इसके जरिये ही उन्होंने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया. संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के मुताबिक, उन्होंने 1985 में स्विस बैंक में एक खाता खोला था जिसमें 2010 में 9 मिलियन सीएचएफ से ज्यादा रकम जमा थी.
1924 में पंजाब के रामपुर में जन्मे जनरल अख्तर के पिता एक जाने-माने चिकित्सक थे और उनकी मृत्यु तभी हो गई थी जब अख्तर चार वर्ष से भी कम उम्र के थे. उनका पालन-पोषण परिवार के अन्य सदस्यों ने किया था.
दस्तावेजों के मुताबिक, जनरल के बेटों, हारून, अकबर और गाजी—जो तीनों ही कनाडाई नागरिक हैं—का एक अलग ज्वाइंट अकाउंट भी था जो 1986 में खोला गया था और 2003 में इसमें पांच मिलियन सीएचएफ से ज्यादा रकम जमा थी.
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लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद पर था कहूता की निगरानी का जिम्मा, भ्रष्टाचार की जांच का सामना किया
लीक दस्तावेजों में लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद का भी नाम है जिन्हें जनरल जिया ने ब्रिगेडियर के तौर पर कहूता स्थित पाकिस्तानी परमाणु केंद्र की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी थी और बाद में वह परमाणु अनुसंधान संस्थान इंजीनियरिंग रिसर्च लैबोरेटरी में बतौर महानिदेशक कार्यरत रहे.
जनरल जाहिद वाटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख भी रहे.
दस्तावेजों के मुताबिक, लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद के 2004 में खोले गए क्रेडिट स्विस खाते में 15,535,435 सीएचएफ जमा थे और 2006 में इस खाते को बंद कर दिया गया था जब स्विट्जरलैंड के चर्चित बैंकिंग गोपनीयता कानूनों को खत्म करने वाले नए नियम लागू होने लगे थे.
इससे पूर्व, लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद को एक अन्य सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ की तरफ से शुरू कराई गई भ्रष्टाचार की जांच में आरोपित किया गया था.
भ्रष्टाचार विरोधी नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो ने आरोप लगाया कि उनके पास 77 बैंक खाते और अवैध ढंग से अर्जित कई संपत्तियां है. हालांकि, उस समय जांचकर्ताओं को क्रेडिट स्विस खाते का पता नहीं लग पाया था.
2016 में मामला निपटाने के लिए हुए सौदे के तहत लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद—जो उस समय 91 वर्ष के थे—को 200 मिलियन पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना भरने की अनुमति दी गई थी. अपने खिलाफ किसी कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए जनरल जाहिद ने जो रकम भरी थी, वो अकेले क्रेडिट स्विस खाते में जमा रकम का एक बहुत छोटा-सा हिस्सा थी.
जनरल के खिलाफ वारंट पाकिस्तान में जारी किए जाने के कारण उन्हें यूके—जहां उन्होंने नागरिकता ले रखी है—प्रत्यावर्तित किए जाने से पहले कुछ समय के लिए क्रोएशिया में रखा गया था.
लेफ्टिनेंट जनरल जाहिद के परिवार से परिचित एक पाकिस्तानी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, उनके दादा को 7 हरियाणा लांसर्स रेजिमेंट में कमीशन मिला था जो भारत में वायसराय के एड-डी-कैंप के रूप में सेवारत थी. वहीं, उनके पिता जालंधर के जाने-माने वकील थे, जो विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए थे.
अफगान जिहाद में भ्रष्टाचार
इन खुलासों के बाद काफी पहले से लगने वाले इन आरोपों को बल मिला है कि पाकिस्तानी सेना ने अफगान जिहाद से फायदा उठाया था.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि सीधे तौर पर यह तत्कालीन सोवियत संघ के साथ टकराव में न बदले, अमेरिकी खुफिया एजेंसी (सीआईए) ने पाकिस्तान के माध्यम से वित्तीय मदद और हथियारों की आपूर्ति का रास्ता खोला. इन संसाधनों का आवंटन एक समिति करती जिसमें जनरल अख्तर और जनरल रहीमुद्दीन सहित पांच सदस्य शामिल थे.
1987 की वाशिंगटन पोस्ट की एक सनसनीखेज रिपोर्ट कहती है कि ‘सीआईए की वियतनाम के बाद इस सबसे बड़ी गुप्त कार्रवाई ने पाकिस्तान के जनरलों के बीच कई रिच शुगर-डैडी तैयार कर दिए हैं.’
अपने संस्मरण में पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर मुहम्मद यूसुफ ने आरोप लगाया था कि जनरल अख्तर को आईएसआई से हटाया गया था और सीआईए के दबाव में उन्हें पदोन्नत करके संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष के औपचारिक पद से नवाजा गया.
उन्होंने लिखा है, सीआईए का मानना था कि आईएसआई प्रमुख अफगान मुजाहिदीन के ज्यादा कट्टरपंथी गुटों को धन मुहैया करा रहे थे. इसके अलावा ब्रिगेडियर यूसुफ का यह भी दावा था कि जनरल जिया उन्हें अफगान जीत का श्रेय नहीं लेने देना चाहते थे.
हालांकि, जनरल अख्तर के गोपनीय क्रेडिट स्विस खातों के खुलासे ने इन अटकलों को बल दिया है कि इस धन के दुरुपयोग को लेकर अमेरिका की नाराजगी भी उसके दबाव का कारण थी.
इसी तरह, इस्लामाबाद के परमाणु कार्यक्रम के जुड़े वित्तीय लेन-देन में भी पारदर्शिता का अभाव था, क्योंकि देश ग्रे मार्केट से महत्वपूर्ण उपकरणों की खरीद के लिए आपूर्तिकर्ताओं को खोजने में लगा था.
उदाहरण के तौर पर विशेषज्ञ क्लॉस पीटर-रिक ने बताया कि कैसे परमाणु-संबंधी प्रौद्योगिकी पर कानूनी प्रतिबंधों से बचने के बदले में जर्मन कंपनियों के साथ लुभावने करार किए गए थे.
जाहिद के बॉस रहे परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान को भी जनरल मुशर्रफ के शासनकाल में दौरान ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को परमाणु प्रौद्योगिकी बेचने का दोषी ठहराया गया था, और इसी कलंक के साथ उनकी मृत्यु भी हुई.
‘सेना भी पाक-साफ नहीं’
देश में सेना के नियंत्रण वाले व्यवसायों के संबंध में व्यापक अध्ययन कार्य से जुड़ी रहीं आयशा सिद्दीकी ने कहा, ‘पाकिस्तानी सेना हमेशा यह दावा करती रही है कि राजनेता भ्रष्ट हैं. लेकिन ऐसा नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘ये दस्तावेज साबित करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सेना खुद भी पाक-साफ नहीं है.’ उन्होंने कहा, हालांकि दस्तावेज यह नहीं बताते हैं कि इस धन का स्रोत क्या था, लेकिन इतना साफ है कि अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं दी गई थी.
दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि प्रमुख पाकिस्तानी कारोबारी परिवारों और राजनेताओं के भी क्रेडिट स्विस बैंक में खाते थे.
ओसीसीआरपी के एक करीबी सूत्र ने कहा कि लीक दस्तावेजों में भारतीय मूल के लगभग 40 लोगों के भी नाम हैं, लेकिन अधिकांश विदेशों में रहते हैं और सार्वजनिक तौर पर उनकी भूमिका कोई बहुत अहम नहीं है.
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