नई दिल्ली: गेहूं की खरीद में कटौती के लिए सरकार के खिलाफ पाकिस्तान भर में किसानों द्वारा व्यापक विरोध प्रदर्शन के एक महीने बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिलती दिख रही है. निर्यातकों द्वारा वैश्विक बाज़ार में अतिरिक्त अनाज बेचने के लिए आगे आने के बावजूद, सरकार अभी तक अपना मन नहीं बना पाई है और एक समिति अभी भी देश में गेहूं के स्टॉक का आकलन कर रही है.
एक जलवायु कार्यकर्ता द्वारा एक्स पर की गई एक पोस्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे गेहूं संकट के कारण अभी भी किसान परेशान हैं और नुकसान झेल रहे हैं — अनाज को ब्रेक-ईवन मूल्य पर भी नहीं बेचा जा रहा है और किसान कर्ज, उच्च ब्याज दरों, कम फसलों और अधिक नुकसान का सामना कर रहे हैं.
कार्यकर्ता, मरियम जे ने पाकिस्तानियों के सामने ऐसे समाधान भी सुझाए जो किसानों की मदद कर सकते हैं. और यह चावल से आया. उन्होंने कहा, “चावल की फसल के लिए बीज खरीदने में किसानों को दान दें और उनका समर्थन करें ताकि उन्हें अपने परिवारों को खिलाने के लिए एक और वित्तीय संकट न झेलना पड़े. कृषि प्रधान अर्थव्यवस्थाओं में हर मौसम मायने रखता है और भूमिहीन किसानों के लिए तो और भी अधिक.”
इस बीच, निर्यातकों ने सरकार से 3.9 मिलियन टन अनाज निर्यात करने की अनुमति मांगी है, लेकिन पाकिस्तान ने वित्त वर्ष 2020 से गेहूं का निर्यात नहीं किया है.
एक्स पर एक यूज़र ने लिखा, “सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और सैन्य प्रतिष्ठान के निहित व्यापारिक हित पाकिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों के शोषण और कुप्रबंधन का प्रत्यक्ष कारण हैं. कृपया गेहूं संकट के बारे में बात करते रहें क्योंकि किसान पीड़ित हैं और उन्हें जनता की मदद की ज़रूरत है.”
निरंतर संकट
2024 के पाकिस्तान गेहूं आयात घोटाले में मौजूदा अधिशेष स्टॉक के बावजूद कार्यवाहक सरकार ने पर्याप्त मात्रा में गेहूं का आयात किया. इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय खजाने को 300 बिलियन पाकिस्तानी रुपये से अधिक का कथित नुकसान हुआ.
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि देश की सरकार को अब “गेहूं की कीमतें तय करने के धंधे से बाहर निकल जाना चाहिए”.
उन्होंने कहा, “सरकार को इस समय यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि किसानों के पास अगली फसल के लिए पर्याप्त पैसा हो, उन्हें छोटे-छोटे टर्म लोन, ट्रैक्टर सब्सिडी के ज़रिए मदद की जाए, उन्हें इनपुट मुहैया कराए जाएं, लेकिन बाज़ार को ही कीमतें तय करने दी जाएं ताकि किसान बेसहारा न रह जाएं.”
पाकिस्तानी सरकार किसानों से सीधे गेहूं खरीदती है, आपूर्ति के स्तर पर नज़र रखती है और गेहूं को सीधे आटा मिलों और सार्वजनिक उपयोगिता स्टोर के ज़रिए उपभोक्ताओं तक पहुंचाकर बाज़ार की स्थिरता सुनिश्चित करती है. हालांकि, इस साल कुछ अलग रहा है.
पाकिस्तान की गेहूं की कहानी — संकट, सरप्लस, दुविधा
2020 की बाढ़ के बाद सरकार ने कम उत्पादन के कारण निजी क्षेत्र को गेहूं के आयात की अनुमति दी. इससे एक समस्या पैदा हुई — सितंबर 2023 से मार्च 2024 के बीच, पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों से कम कीमतों पर 3.5 मिलियन टन से अधिक गेहूं का आयात किया.
शहबाज़ शरीफ सरकार के पहले दो महीनों में लगभग 778,000 मीट्रिक टन गेहूं का आयात किया गया. हालांकि, किसानों को इसकी जानकारी नहीं दी गई.
गेहूं की इस आमद ने बाज़ार को भर दिया, जिससे कीमतें गिर गईं और किसानों के बीच संकट पैदा हो गया, जो अपनी उपज को 3,900 रुपये प्रति 40 किलोग्राम के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बेचने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
नतीजतन, पाकिस्तानी शहरों में बड़े पैमाने पर किसानों के विरोध प्रदर्शन हुए.
किसान सरकार पर निर्भरता के इस चक्र में फंस गए हैं — अगर सरकार एक निश्चित दर पर गेहूं खरीदती है, तो ही वे कुछ लाभ कमा पाएंगे और कटाई के लिए अधिक बीज भी खरीद पाएंगे.
पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान करीब 23 प्रतिशत है और गेहूं का योगदान कुल सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत है. आलोचनाओं के बीच, मरियम नवाज़ ने मई में किसी भी भ्रष्टाचार और गेहूं संकट से इनकार किया था, जबकि शहबाज़ शरीफ ने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का आश्वासन दिया था.
विडंबना यह है कि पाकिस्तान सरकार ने अब किसानों से गेहूं खरीदने से इनकार कर दिया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भ्रष्टाचार न हो. एक एक्स यूज़र ने उन्हें “एक ऐसी सीएम कहा जो अंततः खाद्यान्न की कमी का कारण बनेंगी’’. दूसरे ने बस एक ही बात कही: ‘ज़िया (उल हक) का दौर लौटा’.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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