कोलंबो: चिकित्सा उपकरणों, एंटीबायोटिक दवाओं और एनेस्थेटिक्स की गंभीर कमी का सामना कर रहे प्रमुख अस्पतालों, खासतौर पर सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों ने नॉन-इमरजेंसी सर्जरी करना बंद कर दिया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
मेडिकल सेक्टर पर देश के चल रहे आर्थिक संकट के विनाशकारी प्रभाव का यह सिर्फ एक पहलू है. ये वही स्वास्थ्य क्षेत्र है जिसे कभी दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों की तुलना में बेहतर चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए सराहा जाता था.
सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि फंड इतना कम है कि मरीजों को खाना उपलब्ध कराना भी एक चुनौती बन गया है.
श्रीलंका अपनी फर्मास्युटिकल सप्लाई का लगभग 86 फीसदी आयात करता है. देश में विदेशी मुद्रा की कमी है, जिसके चलते मेडिकल सप्लाई पर असर पड़ा और सभी जेनेरिक दवाओं की कीमतें लगभग 30 प्रतिशत तक बढ़ गईं.
डॉक्टरों की ट्रेड यूनियन ‘गवर्नमेंट मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन’ की सचिव डॉ हरिथा अलुथगे ने कहा कि छह महीने पहले जिन मरीजों को सर्जरी और अन्य चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए डेट दी गई थी, उन्हें वापस भेजा जा रहा है.
उन्होंने बताया कि ब्लड ग्लूकोज स्ट्रिप्स, ब्लड गैस मशीन, कैथेटर ट्यूब, कार्डियक स्टेंट और अल्ट्रासाउंड स्कैन पेपर जैसी लगातार इस्तेमाल में आने वाली चीजों की कमी के कारण लाइफ-सेविंग टेस्ट भी नहीं किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो स्टॉक है, उसे इमरजेंसी सर्जरी के लिए रखा गया है.
सरकारी अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि बुनियादी इस्तेमाल में आने वाली चीजों की कमी की बड़ी वजह इन्हें खरीदने के लिए फंड का न होना है.
दवाएं और यहां तक कि अस्पतालों में मिलने वाला खाना भी अब सरकारी सुविधाओं में विलासिता की वस्तुएं बन गया है. बहुत से मरीज उन लोगों की उदारता पर निर्भर हैं जो आर्थिक रूप से बेहतर हैं और लोगों की मदद कर रहे हैं. इनमें विदेशों में रहने वाले श्रीलंकाई भी शामिल हैं.
बाल रोग विशेषज्ञ ने कहा कि जिस अस्पताल में वह काम करते हैं उनका डाक्यूमेंट रूम अब दूध, अंडे और सूखे राशन के साथ एक स्टोर रूम में तब्दील हो गया है. उन्होंने कहा, ‘ इन खाने की चीजों को लोगों ने दान में दिया है. क्योंकि हमारे पास बच्चों को खिलाने के लिए पौष्टिक भोजन नहीं हैं. यह काफी बुरा समय है. हमारे पास सिर्फ दूध और अंडे का फंड है.’
दवाओं के मामले में भी ज्यादातर मरीज लोगों की दया पर निर्भर हैं. कोलंबो के लेडी रिजवे जनरल अस्पताल से जुड़े बाल रोग विशेषज्ञ ने कहा, ‘आमतौर पर कुछ मरीज़ एक साथ मिलकर अस्पताल से बाहर की फ़ार्मेसियों से (दवाएं) खरीदते हैं और उन लोगों को देते हैं जो दवा का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं.’
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खत्म हो रही दवा
देश के स्वास्थ्य मंत्रालय में चिकित्सा तकनीकी सेवाओं के निदेशक डॉ अनवर हमदानी के अनुसार, श्रीलंका में स्वास्थ्य क्षेत्र की दुर्दशा इस साल मार्च में विदेशी मुद्रा संकट के साथ-साथ शुरू हुई थी.
उन्होंने कहा कि उस समय 300 जरूरी वस्तुओं के साथ 14 महत्वपूर्ण मेडिकल आइटम की सप्लाई कम थी. वह बताते हैं‘ मौजूदा समय में लगभग 112 तरह की दवाओं की अभी भी किल्लत हैं. अस्पताल इनकी कमी से जूझ रहे हैं.’ इसके साथ ही उन्होंने बताया कि रिजेन्ट की भी काफी कमी है. रिजेन्ट एक ऐसा पदार्थ या यौगिक होते हैं जो केमिकल रिएक्शन को आसान बनाते देते हैं. व्यापक रूप इनका इस्तेमाल टेस्ट करने में किया जाता है.
दवा की कमी से सबसे ज्यादा असर बीमार बच्चों और कैंसर के मरीजों पर पड़ा है.
सरकारी डॉक्टरों ने कहा कि मेरोपेनेम – एक एंटीबायोटिक जिसका इस्तेमाल अक्सर शिशुओं के इलाज के लिए किया जाता है – अब सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है और न ही मेनिंगोकोकल वैक्सीन है. कीमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवा जेमिसिटाबाइन भी स्टॉक से बाहर है.
फार्मासिस्टों का संगठन ऑल-आइलैंड फार्मेसी ओनर्स एसोसिएशन प्राइवेट लिमिटेड (AIPOA) कैंसर की दवा की सप्लाई और उसकी बढ़ती मांग से जूझ रहा है.
एआईपीओए के चेयरपर्सन जीएमसीडी गंकंडा ने कहा, ‘सरकारी अस्पतालों में समस्या इतनी गंभीर है कि 95 प्रतिशत स्टेट फार्मास्युटिकल कॉर्पोरेशन (एसपीसी) में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. एसपीसी हमेशा से कैंसर की दवाएं विदेशों से मंगाता था. लेकिन अब शायद ही कोई ऐसा कर पाता हो.’
एक 44 वर्षीय व्यवसायी थिलानी विजेसिंघे ने बताया कि उन्हें अपनी मां के लिए कैंसर की दवा खोजना किसी चुनौती जैसा हो गया है. वह कोलंबो के केंद्र में स्थित मुलेरियावा में रहते हैं.
विजेसिंघे ने कहा, ‘उनका (सरकारी स्वामित्व वाले) नेविल फर्नांडो अस्पताल में इलाज चल रहा है और हमें कितनी बार दवाइयों की तलाश में यहां से वहां भागना पड़ता है. अक्सर हमें इसे अस्पताल के बाहर से खरीदना पड़ता है.’
कैंसर के कितने ऐसे मरीज हैं, जो बड़ी मुश्किल से इन दवाओं का खर्च उठा पाते हैं. फार्मेसी चला रहे लोगों ने कहा, पहले से महंगी कैंसर की कई दवाओं की कीमत में चार गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है.
25 वर्षीय ऑफिस असिस्टेंट चमत अमरसिरी ने बताया कि श्रीलंका हाइलैंड्स के नेशनल हॉस्पिटल-कैंडी में उनके पिता का ब्लड कैंसर का इलाज चल रहा है. वहां के डॉक्टरों ने उनसे कीमोथेरेपी करने के लिए एक निजी फार्मेसी से दवाएं खरीदने का अनुरोध किया.
अमरसिरी ने कहा, ‘मैं सिर्फ दो डोज ही खरीद पाया हूं. मुझे पांच और चाहिए. मुझे बताया गया है कि यह यहां उपलब्ध नहीं है. यह काफी महंगी है. हम शायद ही इसका खर्च उठा पाएं’
विदेशों से मदद
स्वास्थ्य संकट से निपटने में मदद करने के लिए कई प्रवासी श्रीलंकाई डोनेशन के लिए आगे आए हैं.
पहले उद्धृत बाल रोग विशेषज्ञ ने कहा, ‘हम इस संकट के समय में दवाओं का प्रबंधन कॉलेज ऑफ पीडियाट्रिशियन फंड के जरिए कर पा रहे हैं. इसे एक क्राइसिस टीम चला रही है और विदेशी श्रीलंकाई इसके लिए पैसा मुहैया कराते हैं.’
इस तरह की ओवरसीज डोनेशन एयर फ्रेट और शिपिंग कंटेनरों द्वारा भेजे जाती है. सरकारी अस्पताल इसकी लगातार मांग करते रहते हैं.
एक सरकारी डॉक्टर ने कहा, ‘हमें प्रवासियों से डोनेशन मिल रही है. अब तक हमें सबसे ज्यादा दान ऑस्ट्रेलिया से मिला है. कुछ शुभचिंतक इसे सीधे विदेशों से लाते हैं और इसे अस्पताल को सौंप देते हैं. कोई भी स्वास्थ्य मंत्रालय को कैश नहीं देना चाहता है.’
1,200 स्वास्थ्य संस्थानों की देखरेख करने वाले श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा, ‘अलग-अलग देशों ने मार्च के बाद से दवाओं और आपूर्ति में लगभग 9 मिलियन अमेरिकी डॉलर का दान दिया है. इसके अलावा प्रवासी संगठनों और समूहों ने लगभग 1.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर की दवाएं दी हैं.’
डॉ हमदानी ने दावा किया कि यूएई में प्रवासी समुदाय ने सबसे पहले चंदा भेजना शुरू किया था. उन्होंने कहा, ‘हम पहल शुरू करने के लिए उनके बहुत आभारी हैं.’
संयुक्त अरब अमीरात में श्रीलंकाई कल्याण संघ, सहाना के अध्यक्ष इस्तियाक रज़ीक ने कहा कि देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ कोर्डिनेशन के काफी प्रयासों के बाद ही श्रीलंका को दवाएं भेजीं सकीं.
डॉ. हमदानी के मुताबिक, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, भारत, फ्रांस, वियतनाम, चीन और नेपाल जैसे देशों में रह रहे प्रवासी समुदाय से भी दान आया है.
अंतरराष्ट्रीय डोनर एजेंसियां ने भी कुछ राहत पहुंचाई है. उदाहरण के लिए, दुनिया के प्रमुख गैर-लाभकारी संगठनों में से एक, अमेरिकारेस ने पिछले महीने वाशिंगटन, डीसी में श्रीलंकाई दूतावास के अनुरोध पर श्रीलंका को 773,000 अमेरिकी डॉलर की चिकित्सा आपूर्ति का दान दिया था.
डॉ. हमदानी ने कहा कि पिछले हफ्ते भी मंत्रालय ने उधार देने वाली एजेंसियों के साथ चर्चा की थी. उन्होंने बड़े पैमाने पर दान देने का वादा किया है.
पिछले महीने, श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने घोषणा की कि वह श्रीलंका में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र के सेंट्रल इमरजेंसी रेस्पॉन्स फंड (सीईआरएफ) के वित्तीय समर्थन के साथ मिलकर देश के लिए महत्वपूर्ण और जरूरी दवाएं एवं चिकित्सा आपूर्ति की खरीद और वितरण करेगा.
डॉ हमदानी के अनुसार, मंत्रालय डोनर एजेंसियों के सॉफ्ट लोन के जरिए तीन महीने के लिए मेडिकल आइटम खरीदने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने आगे बताया, ‘हमने अगले छह महीनों के लिए चिकित्सा दवाओं की कमी न होने देने और डोनर एजेंसियों के जरिए अगले साल दवाओं की खरीद के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए एक योजना भी शुरू की है.’
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