नई दिल्ली : चीन ने शुक्रवार को ग्रेफाइट पर नया नियंत्रण लगाया है, यह बैटरियों के लिए एक महत्वपूर्ण खनिज है, जो कि मोबाइल फोन से लेकर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) सभी को पॉवर प्रदान करता है.
यह निर्यात प्रतिबंध 1 दिसंबर 2023 से प्रभाव में आएगा, पश्चिम के साथ चल रहे व्यापार युद्ध में महत्वपूर्ण खनिजों के वैश्विक आपूर्तिकर्ता के तौर पर यह अपनी प्रभावशाली स्थिति का लाभ उठाने की बीजिंग के इरादे को दिखाता है.
चीन को दुनिया अग्रणी ग्रेफाइट का उत्पादक माना जाता है, जो कि लगभग विश्व का दो-तिहाई हिस्सा आपूर्ति करता है, और दुनिया के 90 प्रतिशत से अधिक ग्रेफाइट को रिफाइन करके सामग्री बनाता है, (ईवी) के लिए यह बैटरी के हर उत्पाद को बनाता है.
वजन के लिहाज से, लीथियम आयन बैटरियों (एलआईबी) में सबसे बड़ा घटक होता है- एक औसत बैटरी में 50 किलोग्राम से 100 किलोग्राम ग्रेफाइट होता है- विश्व बैंक का आकलन है कि यह 2050 तक बैटरियों के उत्पादन में खनिज मांग पर यह हावी बना रहेगा.
इस महत्वपूर्ण खनिज पर चीन का निर्यात प्रतिबंध ऐसे समय में आया हैं जब अमेरिका ने एडवांस सेमीकंडक्टर चिप्स के निर्यात पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें एनवीडिया द्वारा निर्मित कुछ उत्पाद शामिल हैं, जो कि बीजिंग की तकनीकी प्रगति को धीमा करने के साफ प्रयास के तौर पर नजर आता है.
ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर और चीन के विदेशी मामलों की जानकार गुंजन सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “चीन चिप वार की वजह से अमेरिका पर लगातार दबाव बना रहा है. यह संकेत है कि अगर अमेरिका उसे व्यापारिक बढ़त बनाए रखने के लिए जरूरी तकनीक का हस्तांतरण नहीं करता है तो वह कच्चे मैटेरियल की सप्लाई रोक देगा.”
सिंह ने कहा, “बीजिंग को पता है कि सप्लाई चेन्स को फिर से व्यवस्थित करने में चार से पांच साल लगेंगे. उस दौरान वह महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात को लेकर प्रक्रियाओं के जरिए दबाव बना रहा है. यह अमेरिका को उसके साथ बातचीत करने को मजबूर करने के लिए जैसे को तैसा के रूप में जवाब है.
बीजिंग ने इस साल, पहली बार इस तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है.
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अगस्त में, जर्मेनियम और गैलियम पर चीन द्वारा निर्यात नियंत्रण लगाना जो कि दोनों खनिज सेमीकंडक्टर ईवी, 5जी टेक्नोलॉजी और रक्षा एप्लीकेशंस उत्पादन के लिए अहम हैं.
ग्रेफाइट, जिसका इस्तेमाल हर कोई करता है, को लेकर चीन ने अपना रुख और सख्त कर लिया है.
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत सरकार ने ग्रेफाइट को “महत्वपूर्ण खनिज” के रूप में पहचान की है, और चीन सबसे बड़ा डेस्टिनेशन है, जहां से भारत ने जनवरी 2022 और दिसंबर 2022 के बीच नेचुरल ग्रेफाइट ($14.31 मिलियन मूल्य) का आयात किया है.
जनवरी और अगस्त 2023 के बीच, नई दिल्ली के 8.88 मिलियन डॉलर मूल्य का नेचुरल ग्रेफाइट आयात करने के साथ चीन ने अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा, हालांकि, आंकड़ों के अनुसार, 2022 की समान अवधि की तुलना में यह 14.86 प्रतिशत कम था.
सिंह ने कहा, “भारत के लिए, यह (निर्यात नियंत्रण) हरित प्रौद्योगिकियों में परिवर्तन में देरी करेगा, क्योंकि यह ग्रेफाइट बैटरियों के लिए एक प्रमुख घटक है. बीजिंग नई दिल्ली के हरित परिवर्तन की कोशिश समझता है और इस तरह के निर्यात नियंत्रण इसे और अधिक महंगा बना देंगे.”
उन्होंने कहा, “समस्या चीन और अमेरिका के बीच है और बाकी दुनिया उनके व्यापार युद्ध के बीच फंसी हुई है.”
उन्होंने कहा कि चीन अपने एजेंडे की रक्षा के लिए और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए आवश्यक घटकों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए वैश्विक स्तर पर हरित प्रौद्योगिकियों में बदलाव को और अधिक महंगा बनाने की तैयारी में है.
सिंह ने कहा, “यह बीजिंग की वैश्विक राजनीति के मानदंडों को चुनौती है. पश्चिम को चीन के बाजार की जरूरत है, लेकिन वे इसको तकनीकी बढ़त देने से इनकार करते हैं.”
उन्होंने कहा, “चीन अपने एजेंडे की रक्षा करना चाहता है. यह कदम, बाइडेन प्रशासन द्वारा तकनीकी प्रतिबंधों के एक नए बैच की घोषणा के बाद आया है. चीन को अपनी घरेलू मंदी के कारण तकनीकी बढ़त की ज़रूरत है – विशेष रूप से रियल एस्टेट में.”
सिंह ने बताया कि घरेलू आर्थिक मंदी ने चीन को वैश्विक बाजारों में ताकत बनाए रखना जरूरी बना दिया है और इस तरह उसे अमेरिका को बातचीत की मेज पर लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में जियो-इकोनॉमिक्स एनालिस्ट और नेटवर्क फॉर एडवांस्ड स्टडी ऑफ चाइना की फेलो रितिका पासी ने बताया कि ये निर्यात नियंत्रण नए या अप्रत्याशित नहीं हैं.
पासी ने दिप्रिंट को बताया, “अमेरिका और चीन प्रौद्योगिकी और व्यापार युद्ध को लेकर जैसे को तैसा की स्थिति में है. जैसा कि अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने एडवांस चिप्स तक चीनी पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया है, बीजिंग संकेत दे रहा है कि वह अपने लाभ को बढ़ाने के लिए तैयार है. यह हालिया कदम एक रणनीतिक संकेत देता है कि बीजिंग इंतजार नहीं करेगा, बल्कि हालात की थाह लगाना जारी रखेगा.”
पासी ने बताया कि तत्काल भविष्य में, ईवी निर्माता प्रतिबंध लागू होने से पहले ग्रेफाइट का भंडारण करने के लिए संघर्ष करेंगे, जिससे कीमतों में अल्पकालिक वृद्धि होगी, साथ ही उन्होंने कहा कि इससे वैश्विक हरित बदलाव लाने में देरी का एक महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करने वाला है.
‘इनोवेट करने का संकेत’
पासी के मुताबिक, चीन के हालिया निर्यात नियंत्रण से कूटनीति और बाजार के संदर्भ में दो स्पष्ट संकेत मिलते हैं.
पासी ने कहा, “कूटनीतिक रूप से, बीजिंग इस बात पर प्रकाश डाल रहा है कि वह चल रहे व्यापार युद्ध में चुप नहीं रहेगा. निहितार्थ यह है कि यह तो बस शुरुआत है.”
पासी ने कहा, “यह बाज़ार का संकेत भी देने वाला है कि दुनिया के देशों को चीन पर महत्वपूर्ण खनिज निर्भरता को कम करना जारी रखना चाहिए. न केवल विविधीकरण में तेजी आएगी, बल्कि इस कदम को अगली पीढ़ी की बैटरी केमिस्ट्री को नया करने के लिए एक संकेत के रूप में भी काम करना चाहिए.”
पासी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सिलिकॉन को ग्रेफाइट के विकल्प के रूप में विकसित किया जा रहा है जबकि टिन एक अन्य खनिज है, जिसे संभावित विकल्प के रूप में पहचाना गया है.
भले ही बीजिंग अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध को बढ़ाने के अपने इरादे का संकेत दे रहा है, लेकिन भारत जैसे हरित ऊर्जा में परिवर्तन की प्रक्रिया में शामिल अन्य देश अंतरिम तौर से प्रभावित होंगे.
पासी ने बताया कि किसी भी निर्यात नियंत्रण से वैश्विक सप्लाई चेन को लेकर जोखिम बढ़ जाएगा, क्योंकि ग्रेफाइट के केवल कुछ ही आपूर्तिकर्ता हैं, जबकि हर कोई इसका उपभोक्ता है.
इसका नतीजा तो दूरगामी तौर पर ही देखेने पर समझ में आएगा.
उदाहरण के लिए, जर्मेनियम और गैलियम पर निर्यात नियंत्रण लागू होने के बाद, चीन ने अगस्त में गढ़ा हुआ जर्मेनियम और गैलियम का जीरो मात्रा में निर्यात किया, जबकि सितम्बर में केवल एक किलोग्राम गढ़ा हुई जर्मेनियम का निर्यात किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार प्रभावी रूप से ठप हो गया, जैसा कि रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है.
(अनुवाद : इन्द्रजीत)
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