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सोमवार, 7 जुलाई, 2025
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BRICS नेताओं ने ट्रंप के टैरिफ और एकतरफा प्रतिबंधों की निंदा की, ट्रंप ने दी टैरिफ बढ़ाने की धमकी

BRICS नेताओं के बयान में भारत की विदेश नीति में कई बदलाव देखे गए. नई दिल्ली इस समूह की इस बात से सहमत है कि ईरान पर किए गए हमले अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन थे.

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नई दिल्ली: अमेरिका द्वारा लगाए गए ‘एकतरफा’ प्रतिबंधों की आलोचना से लेकर टैरिफ्स पर नाराजगी, युद्ध के तरीके के रूप में ‘भुखमरी’ के इस्तेमाल की निंदा और ईरान पर हवाई हमलों को ‘अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन’ कहने तक, BRICS नेताओं के बयान (जिसमें भारत भी शामिल है) ने कई मौजूदा वैश्विक चुनौतियों पर निशाना साधा है.

इसके जवाब में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी और घोषणा की कि वे “ऐसे किसी भी देश पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाएंगे जो एंटी-अमेरिकन नीतियों वाले इस समूह के साथ खड़ा होगा.”

BRICS नेताओं के बयान में कहा गया, “हम ऐसे एकतरफा जबरदस्ती वाले उपायों की निंदा करते हैं जो अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ हैं, और दोहराते हैं कि इस तरह के उपाय—जैसे कि एकतरफा आर्थिक प्रतिबंध और द्वितीयक प्रतिबंध—लक्षित देशों की आम जनता के मानवाधिकारों, खासकर विकास, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के अधिकारों पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. ये खासकर गरीबों और कमजोर वर्गों को प्रभावित करते हैं, डिजिटल असमानता को गहरा करते हैं और पर्यावरणीय चुनौतियों को बढ़ाते हैं.”

“हम ऐसे अवैध उपायों को खत्म करने की मांग करते हैं जो अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और  सिद्धांतों को कमजोर करते हैं. हम फिर दोहराते हैं कि BRICS सदस्य देश ऐसे प्रतिबंध नहीं लगाते और न ही समर्थन करते हैं जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अधिकृत न हों.”

नेताओं का यह बयान ब्राजील के रियो डी जनेरियो शहर में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन के पहले दिन प्रकाशित हुआ. यह पहला शिखर सम्मेलन है जिसमें इंडोनेशिया भी समूह का हिस्सा है. समूह में अब ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया, मिस्र, ईरान और यूएई शामिल हैं.

इस बयान में 10 सदस्य देशों की सहमति है और इसमें पश्चिम एशिया की मौजूदा स्थिति, दुनिया भर में जारी संघर्षों और आर्थिक मुद्दों पर टिप्पणी की गई है.

प्रतिबंधों के उपयोग की निंदा ऐसे समय पर आई है जब रूस और ईरान—BRICS के सदस्य—दुनिया के सबसे ज्यादा प्रतिबंधित देशों में शामिल हैं. पश्चिमी शक्तियों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस के यूक्रेन पर युद्ध के बाद कई प्रतिबंध लगाए हैं. जहां पश्चिमी देश रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता कम कर रहे हैं, वहीं भारत रूस से ऊर्जा खरीदने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है.

2024-2025 के वित्तीय वर्ष में भारत ने लगभग 56 अरब डॉलर की रूसी ऊर्जा खरीदी, जबकि पश्चिमी देशों द्वारा मास्को पर प्रतिबंध लगे हुए थे. नई दिल्ली ने रूस के साथ अपने आर्थिक संबंध मजबूत बनाए रखे, भले ही अमेरिका और ईयू का दबाव रहा कि वह मास्को की अर्थव्यवस्था से खुद को अलग कर ले.

इसी तरह चीन का रूस के साथ व्यापार भी 2022 के बाद से बढ़ा है। ईरान, जिस पर पहले कई यूएन प्रतिबंध लगे थे, ने जब संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) पर साइन किए, तो आर्थिक प्रतिबंध हटा दिए गए. लेकिन 2018 में अमेरिका इस समझौते से बाहर हो गया और ईरान पर एकतरफा प्रतिबंध लगा दिए.

हाल ही में अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु स्थलों—फोर्दो, नतांज और इस्फहान—पर बमबारी की. यह हमला 13 जून को शुरू हुए पश्चिम एशिया में 12 दिन के संघर्ष में हुआ, जिसमें अमेरिका और इज़राइल दोनों शामिल हैं. भारत ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की लेकिन अमेरिका या इज़राइल की आलोचना नहीं की. भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के उस बयान से खुद को अलग किया जिसने इन हमलों की निंदा की, लेकिन BRICS के बयान पर साइन किए और उसमें इस्तेमाल हुई तीखी भाषा को स्वीकार किया.

बयान में कहा गया, “हम 13 जून 2025 से इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान पर किए गए सैन्य हमलों की निंदा करते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन हैं, और इस क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति के बिगड़ने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं.”

“हम शांतिपूर्ण परमाणु स्थलों और नागरिक बुनियादी ढांचे पर किए गए जानबूझकर हमलों पर भी गंभीर चिंता जताते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और IAEA के प्रासंगिक प्रस्तावों का उल्लंघन हैं. परमाणु सुरक्षा और सुरक्षा उपायों का हमेशा पालन होना चाहिए, खासकर युद्ध के समय में, ताकि लोगों और पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके.”

ब्रिक्स का इजरायल पर हमला और पहलगाम हमले की निंदा 

BRICS नेताओं के बयान में एक और मुद्दा जिस पर कड़ी आपत्ति जताई गई, वह है गाजा पट्टी की मानवीय स्थिति. इज़राइल और हमास के बीच लगभग 20 महीने से चल रही जंग में भारत ने जहां तेल अवीव के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है, वहीं वह दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन भी करता रहा है.

हालांकि, भारत ने मानवीय स्थिति पर शायद ही कोई ठोस टिप्पणी की हो, सिवाय इसके कि वह इस पर “गंभीर चिंता” जाहिर करता रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिखर सम्मेलन के दौरान अपने भाषण में गाजा की स्थिति को उजागर किया.

BRICS नेताओं के बयान में कहा गया, “हम कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं, जिसमें गाजा पर इज़राइली हमलों की पुनरावृत्ति और वहां मानवीय सहायता पहुंचाने में रुकावट शामिल है. हम अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून और मानवाधिकार कानून का पालन करने का आह्वान करते हैं, और सभी उल्लंघनों की निंदा करते हैं, जिसमें भूख को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना भी शामिल है. हम मानवीय सहायता के राजनीतिकरण और सैन्यकरण के प्रयासों की भी निंदा करते हैं.”

इस साल की शुरुआत में इज़राइल ने लगभग 11 हफ्तों तक गाजा में मानवीय सहायता को प्रवेश करने से रोक दिया था, फिर उसने गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF) के जरिए अपनी खुद की सहायता योजना शुरू करने की कोशिश की. GHF के ज़रिए सहायता भेजने की कोशिश तब शुरू हुई जब इज़राइल ने आरोप लगाया कि संयुक्त राष्ट्र की रिलीफ और वर्क्स एजेंसी (UNRWA) हमास का समर्थन कर रही है—वही संगठन जिसने 7 अक्टूबर 2023 को हमला किया था.

हमास के इस हमले में 1,150 से अधिक इज़राइली मारे गए और 250 को बंधक बना लिया गया था, जबकि जवाबी कार्रवाई में इज़राइल ने अब तक की रिपोर्टों के अनुसार लगभग 56,000 फ़िलिस्तीनियों को मार दिया है. BRICS के संस्थापक सदस्यों में से एक दक्षिण अफ्रीका ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में ले जाकर इज़राइल पर गाजा में जनसंहार करने का आरोप लगाया है.

BRICS नेताओं ने गाजा में “बिना शर्त युद्धविराम” की मांग की है, जो भारत की अब तक की स्थिति से थोड़ा अलग है क्योंकि भारत ने पहले यूएन प्रस्तावों के खिलाफ मतदान किया था, जिनमें हमास द्वारा बंधकों की रिहाई का ज़िक्र नहीं था.

10-सदस्यीय समूह ने 22 अप्रैल को भारत के जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की भी “कड़े शब्दों में निंदा” की, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। इस हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच 87 घंटे लंबा संघर्ष हुआ. भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कई सख्त राजनयिक कदम उठाए. 7 मई को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसके तहत पाकिस्तान के बहावलपुर और मुरिदके में आतंकी ठिकानों पर निशाना साधा गया.

इस समूह ने अप्रैल में अमेरिका द्वारा लगाए गए एकतरफा टैरिफ पर भी “गंभीर चिंता” व्यक्त की. ये टैरिफ अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने के प्रयास का हिस्सा थे. ट्रंप और उनकी सरकार ने BRICS पर कई आपत्तियां जताई हैं और धमकी दी है कि अगर BRICS सदस्य देश ‘डॉलर से दूरी’ की कोशिश करते हैं, तो उन पर भारी शुल्क लगाए जाएंगे. हालांकि अप्रैल में लगाए गए ये टैरिफ बाद में रोक दिए गए, लेकिन ये BRICS देशों—खासकर चीन—पर अब तक के सबसे ज्यादा शुल्कों में से एक थे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)



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