पिछले कुछ दिनों के भीतर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों से ज़बरन इस्लाम कबूल कराए जाने के तीन प्रमुख मामले सामने आए हैं. सिख, हिंदू और ईसाई परिवारों की इन लड़कियों के मामलों ने देश में, खास कर सिंध और पंजाब सूबों में, दशकों से जारी इस गंभीर समस्या की ओर लोगों का ध्यान खींचा है. हालांकि ज़ाहिर तौर पर ये समस्या इमरान ख़ान सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पाकिस्तान को एक बहुलवादी समाज बनाने के अपने चुनावी वायदे को पूरा करने में नाकाम साबित हो रहे हैं. ज़बरिया धर्म परिवर्तन को ‘गैर-इस्लामी’ कहना भर ही काफी है या मुसीबतजदा अल्पसंख्यकों को अपने प्रधानमंत्री से और अधिक की उम्मीद करनी चाहिए?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इन दिनों भारत में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर, खास कर जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ एक तरह का नैतिक युद्ध छेड़ रखा है.
भारत को दोषी ठहराने के साथ-साथ इमरान ख़ान अपने देश के अल्पसंख्यकों के समर्थन में आवाज़ उठाने पर भी विचार कर सकते हैं – इसे एक अच्छी नीति के तौर पर भी देखा जाएगा. ख़ान ने कहा था कि वह मोदी को दिखाएंगे कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है.
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धर्मांतरण का पुराना ढर्रा
पिछले कुछ दिनों के भीतर, एक सिख लड़की को कथित रूप से अगवा कर एक मुसलमान युवक से शादी करने के लिए बाध्य किया गया और फिर उसे उसके मां-बाप के पास भेज दिया गया; 15 साल की एक ईसाई लड़की से ज़बरन इस्लाम कबूल कराया गया; और बीबीए की पढ़ाई कर रही एक हिंदू लड़की को पीटीआई पार्टी के एक कारकून के घर पर ले जाया गया और ज़बरन इस्लाम कबूल कराने के बाद उसकी शादी एक मुसलमान से करा दी गई.
पाकिस्तान में, ज़बरिया धर्मांतरण पर रोक का कोई कानून नहीं है. ये एक ऐसा धार्मिक मामला है जिस पर कोई भी पार्टी कानून बनाने की इच्छुक नहीं है, जो कि सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है.
लाहौर के ननकाना साहब की 16 वर्षीया सिख लड़की जगजीत कौर के पिछले महीने घर वापस लौटने पर उसके परिजनों ने राहत की सांस ली.
धर्मांतरण के अधिकतर मामलों के समान ही जगजीत कौर को बंदूक की नोक पर उठाया गया, उससे ज़बरन इस्लाम कबूल कराया गया और फिर एक मुसलमान से उसकी शादी करा दी गई. जब उसके परिजनों ने अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो दबाव में आकर लड़की को अदालत में ‘झूठा’ बयान देना पड़ा.
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जगजीत के अपहरण पर पाकिस्तान सरकार को काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी क्योंकि भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टर अमरिंदर सिंह ने इस मामले को सार्वजनिक रूप से उठाया था. इसके बाद पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुज़दार ने मामले की पड़ताल के लिए एक जांच कमेटी का गठन किया. किसी को नहीं पता कि जांच में क्या सामने आया या किस को दोषी पाया गया.
पंजाब के गवर्नर चौधरी मोहम्मद सरवर ने लड़की के परिवार और कथित अपहर्ता के बीच तथाकथित ‘सौहार्दपूर्ण’ सुलह करा दी, जिसके बाद एक वीडियो में अपहर्ता के पिता ने ऐलान किया कि वह लड़की को अपने संरक्षण में लेने पर ज़ोर नहीं देंगे. पाकिस्तान के अलावा भला और किस देश में बंदूक की नोंक पर एक लड़की का धर्मांतरण कराने वाले को इस तरह झूठा बड़प्पन दिखाने दिया जाएगा.
न्याय का इंतजार
पर, ‘न्याय’ का ये कोई पहला उदाहरण नहीं है और निश्चय ही आखिरी भी नहीं होगा. जहां अल्पसंख्यक समुदाय की एक लड़की के माता-पिता को अपनी बेटी को वापस पाने का संतोष है, वहीं बाकियों के लिए और भी मामले हैं.
सिंध में सक्कर से कथित रूप से अगवा कर अपने एक मुसलमान सहपाठी द्वारा ज़बरन इस्लाम में धर्मांतरित की गई हिंदू लड़की रेणुका कुमारी को तब उनके माता-पिता को सौंप दिया गया जब उसने अदालत के समक्ष मां-बाप के साथ घर जाने की इच्छा व्यक्त की. इस मामले में भी, कथित अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.
इसी तरह के एक अन्य मामले में, पंजाब में शेखूपुरा की 15 वर्षीया ईसाई लड़की फ़ैज़ा मुख्तार के मां-बाप को न्याय का इंतजार है. उनकी बेटी को अगवा कर, एक मदरसे में ज़बरन इस्लाम कबूल करा दिया गया. स्थानीय इस्लामी संगठन फ़ैज़ा के परिवार पर धर्म परिवर्तन करने या अपनी बच्ची से हाथ धोने की धमकी दे रहे हैं.
कसूरवार कौन?
पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई लड़कियों को ज़बरन इस्लाम में धर्मांतरित करने का मसला दशकों से मौजूद है.
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार सिंध सूबे में ये एक बड़ी समस्या है जहां हज़ारों की संख्या में हिंदू लड़कियों को बिना किसी रोकटोक के धर्मांतरित किया जाता रहा है. ये किसी से छुपा नहीं है कि इस क्षेत्र के दरगाह और मदरसे धर्मांतरण के केंद्र के रूप में काम करते हैं. ज़बरन धर्मांतरण की घटनाओं में शामिल अपराधियों और इस्लामी पीरों को हमेशा ही राजनीतिक समर्थन प्राप्त रहता है.
इस मामले में निश्चय ही सरकार कसूरवार है क्योंकि ज़बरन धर्मांतरण के खिलाफ कोई कानून मौजूद नहीं है.
सिंध की सरकार नवंबर 2016 में सूबे की एसेंबली द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी विधेयक को कानून बनाने से मुकर गई थी. विधेयक में 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति के धर्मांतरण को दंडणीय अपराध बनाया गया है, भले ही कोई अपनी मर्ज़ी से धर्म परिवर्तन करता हो. मजहबी पार्टियों ने ‘गैर-इस्लामी’ बताते हुए विधेयक का विरोध किया था. उनकी दलील थी कि ऐसे किसी विधेयक को कानून का रूप देने से पहले उस पर काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी की राय ली जानी चाहिए.
इसी साल मार्च में, सिंध एसेंबली के सदस्य नंद कुमार ने धर्मांतरण के खिलाफ़ एक नया विधेयक – फौजदारी कानून (अल्पसंख्यकों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 – पेश किया. तत्काल ही मजहबी संगठन विधेयक के खिलाफ आंदोलन की धमकी देने लगे. विरोध की अगुआई भरचूंदी शरीफ दरगाह के कुख्यात पीर मियां अब्दुल खालिक़ ने की. धर्मांतरण के कई मामलों से जुड़ा ये मौलवी मियां मिट्ठू के नाम से भी जाना जाता है.
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सिंध के विवाह कानून के मुताबिक शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष तय की गई है, पर हिंदू लड़कियों की शादी के मामले में कभी भी इस कानून का पालन नहीं किया जाता है. इसका एक उदाहरण दो बहनों रवीना और रीना मेघवार के धर्मांतरण का बहुचर्चित मामला है. 12 और 15 साल की इन अवयस्क लड़कियों की शादियों को कानूनी प्रावधानों की अनदेखी करते हुए वैध माना गया. मार्च में, इमरान ख़ान ने रवीना-रीना मामले में जांच का आदेश देते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा की थी, पर अभी तक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है.
नाबालिग लड़कियों का ज़बरन धर्मांतरण हाशिए पर पड़े पाकिस्तानी अल्पसंख्यक समुदायों के ऊपर सबसे क्रूर अत्याचार है.
कल्पना करें कि एक दिन अचानक आपकी बेटी को अगवा कर लिया जाता है, अगले दिन आपको पता चलता है कि उसे नया नाम दे दिया गया है, और आप उससे मिल भी नहीं सकते, वह आपके लिए मर चुकी है. मौत में भी पटाक्षेप होता है, लेकिन ज़बरिया धर्मांतरण के मामलों में ऐसा नहीं होता. सौभाग्य से जो लड़कियां वापस अपने परिवारों में लौटने में कामयाब होती हैं, उन्हें भी बलात्कार की पीड़ा और अपमान के साथ जीना पड़ता है.
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(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)