नई दिल्ली: एक ऐसा देश जहां नागरिक सत्ता और सैन्य ताकत के बीच की रेखाएं पहले से ही धुंधली थीं, वहां लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद असीम मलिक की नई नियुक्ति ने इन रेखाओं को पूरी तरह मिटा दिया है. पाकिस्तान के नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) मलिक कई मायनों में पहले व्यक्ति हैं.
59 वर्षीय असीम मलिक इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले सक्रिय इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) प्रमुख हैं, जिसे पारंपरिक रूप से नागरिकों के लिए आरक्षित माना जाता रहा है. यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार है जब एक व्यक्ति दोनों पदों को एक साथ संभाल रहा है. तीन-स्टार जनरल मलिक आईएसआई प्रमुख बनने वाले पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास डॉक्टरेट की डिग्री है, और पहले ऐसे प्रमुख हैं जिन्होंने कभी कोर की कमान नहीं संभाली—जो कि पाकिस्तान में किसी जनरल के भविष्य की महत्वाकांक्षाओं के लिए एक पारंपरिक चरण माना जाता है.
जब मलिक ने 1989 में पाकिस्तान मिलिट्री एकेडमी से ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ के साथ स्नातक किया था, तब किसी ने शायद ही यह अनुमान लगाया होगा कि एक दिन वह पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था का प्रमुख केंद्र बन जाएंगे. उनकी नियुक्ति केवल एक नौकरशाही बदलाव नहीं है—यह रणनीतिक है, जो बढ़ते क्षेत्रीय तनावों के बीच सैन्य प्रतिष्ठान के भीतर शक्ति के स्पष्ट समेकन को दर्शाती है.
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था, उनकी नियुक्ति इस्लामाबाद की ओर से भारत के साथ बैकचैनल बातचीत को फिर से शुरू करने के प्रयास का संकेत देती है, और यह घोषणा उस समय की गई जब अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से फोन पर बात कर पहलगाम आतंकी हमले के बाद नई दिल्ली के साथ सीधी बातचीत करने का आग्रह किया.
मलिक की नियुक्ति से पहले, पाकिस्तान में एनएसए का पद दो वर्षों से खाली था, और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल के दौरान यह पद धीरे-धीरे अप्रासंगिक होता गया था. 2019 में तो इस पद को खत्म भी कर दिया गया था क्योंकि खान सरकार में विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इसका विरोध किया था.
लेकिन कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों ने एनएसए के पद को पुनर्जीवित करने का रास्ता तैयार किया है. मलिक की नियुक्ति एक स्पष्ट संदेश देती है: पाकिस्तान की सेना अब सिर्फ परदे के पीछे नहीं है—वह पूरी स्क्रिप्ट लिख रही है.
जनरल असीम मुनीर का आदमी
पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था में मलिक के तेजी से उदय के पीछे जो व्यक्ति हैं, वह हैं जनरल असीम मुनीर—जो वर्तमान में पाकिस्तान के सेना प्रमुख हैं और स्वयं भी पूर्व आईएसआई प्रमुख रह चुके हैं. मलिक को मुनीर का सबसे विश्वसनीय शिष्य माना जाता है. सितंबर 2024 में उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम के स्थान पर आईएसआई प्रमुख नियुक्त किया गया, जबकि उनके सीनियर अधिकारी भी इस दौड़ में थे.
“वह मुनीर का सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट है,” भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया. उन्होंने आगे कहा, “उसे (मलिक) अपने साथियों से दो साल पहले प्रमोशन मिला, लेकिन दो समस्याएं हैं—उसने कभी किसी कोर की कमान नहीं संभाली, इसलिए वह अगला सेना प्रमुख नहीं बन सकता.”
मलिक के पिता, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुलाम मोहम्मद मलिक, ने 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान के बीच राजनीतिक टकराव के दौरान रावलपिंडी स्थित शक्तिशाली एक्स कोर की कमान संभाली थी. ‘जनरल जीएम’ के नाम से जाने जाने वाले मलिक ने नवाज शरीफ को राष्ट्रपति के खिलाफ अपने बयानों को संयमित करने की सलाह दी थी, जब शरीफ ने इस्तीफा दिया था.
जहां तक मलिक की बात है, उनकी जनरल के रूप में सेवा अवधि सितंबर 2025 में समाप्त हो रही है. आईएसआई प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल को बढ़ाने के लिए तकनीकी रूप से नागरिक स्वीकृति की आवश्यकता होगी. लेकिन एनएसए के रूप में उनकी नियुक्ति पहले ही आगे का संकेत दे चुकी है.
पाकिस्तान के पत्रकार हामिद मीर ने भी इसी आकलन को दोहराया.
“एनएसए की नौकरी कोई सैन्य पद नहीं है, यह एक नागरिक पद है. कुछ सेवानिवृत्त जनरल्स ने पहले इस पद पर काम किया है. यह पहली बार है जब एक सेवा में कार्यरत जनरल को इस पद पर नियुक्त किया गया है—शायद यह वर्तमान स्थिति की मांग है. वे नहीं चाहते कि बहुत अधिक लोगों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए,” मीर ने दिप्रिंट को बताया.
लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मलिक का उदय
मलिक का उभार केवल व्यक्तिगत वफादारी को नहीं दर्शाता, बल्कि यह एक संस्थागत परिवर्तन को भी दर्शाता है. एक बलूच रेजीमेंट अधिकारी, वह वज़ीरिस्तान और बलूचिस्तान में काउंटर-इंसर्जेंसी अभियानों का हिस्सा रहे हैं, मिलिट्री ऑपरेशंस डायरेक्टरेट में काम किया है, और आर्मी हेडक्वार्टर में एडीजुटेंट जनरल थे—जहां उन्होंने 9 मई, 2023 को इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद हुई अशांति पर कड़ी कार्रवाई में एक गुप्त लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मलिक पहले आईएसआई प्रमुख हैं जिनके पास डॉक्टरेट की डिग्री है. इस्लामाबाद के नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी से उनकी पीएचडी पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों और पर्वतीय युद्धकला पर थी, खासकर कश्मीर के संदर्भ में.
फोर्ट लेवनवर्थ (अमेरिका) और लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ डिफेंस स्टडीज़ में प्रशिक्षण प्राप्त मलिक पश्चिमी सैन्य कूटनीति की भाषा में माहिर हैं—जो पाकिस्तान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच एक दुर्लभ गुण है. “वह सिर्फ एक जनरल नहीं हैं,” मीर ने कहा. “वह एक पढ़े-लिखे जनरल हैं.”
इसके अलावा, पाकिस्तान में एनएसए कार्यालय हमेशा लचीला रहा है—यह आंशिक रूप से कागज पर और आंशिक रूप से एक कूटनीतिक बैकचैनल के रूप में अस्तित्व में रहा है. इमरान खान के तहत, यह महत्वहीन हो गया था. मलिक की नियुक्ति ने स्थिति पलट दी है.
अब वह प्रधानमंत्री सचिवालय में नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के प्रमुख हैं और नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NSC) की अध्यक्षता करते हैं—यह एक ऐसा निकाय है जो 2023 और 2024 के बीच सिर्फ दो बार मिला. इस बीच, सेना प्रमुख सदस्य के रूप में विशेष निवेश सुविधा परिषद (SIFC) बार-बार मिली.
मलिक की एनएसए और आईएलआई प्रमुख के रूप में भूमिका पाकिस्तान की सुरक्षा और विदेशी नीति तंत्र में सेना की प्रभुत्व को औपचारिक रूप देती है. व्यावहारिक रूप से, वह कैबिनेट की बैठकों में भाग लेंगे, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को जानकारी देंगे, और मंत्रालयों के साथ समन्वय करेंगे—जिससे वह राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में नागरिक मंत्रियों से ऊपर होंगे.
यह संरचना वाशिंगटन या नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सेटअप की तरह है. लेकिन एक अहम अंतर है: पाकिस्तान के मामले में, उस कुर्सी पर बैठा आदमी वर्दी में है, सूट में नहीं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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