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Wednesday, 26 June, 2024
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भारतीय राजदूत तिरुमूर्ति ने कहा- UN को एंटी-हिंदू, एंटी-बुद्धिस्ट और एंटी-सिख फोबिया पर ध्यान देने की जरूरत

संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत और 2022 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की काउंटर टेररिज्म कमेटी के अध्यक्ष टी.एस. तिरुमूर्ति का यह भी कहना है, ‘आतंकवादी तो आतंकवादी होते हैं, उनमें अच्छे या बुरे का कोई भेद नहीं होता है.’

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नई दिल्ली: इस महीने के शुरू में ही 2022 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की काउंटर-टेररिज्म कमेटी की अध्यक्षता संभालने वाले भारत का मानना है कि दुनिया को यह स्वीकार करना चाहिए कि ‘हिंदूफोबिया’ जैसा कुछ है और यह भी मानना चाहिए कि बौद्ध और सिख धर्म को लेकर भी नफरत की भावना है.

संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत टी.एस. तिरुमूर्ति ने इस हफ्ते के शुरू में कहा था कि ‘हमें इस लड़ाई में दोहरा मापदंड नहीं अपनाना चाहिए…’

दिल्ली स्थित ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘आतंकवादी तो बस आतंकवादी होते हैं, उनमें अच्छे या बुरे का कोई भेद नहीं होता. जो इस भेद की बात करते हैं वो दरअसल उनका सिर्फ एक एजेंडा होता है. और जो लोग उनका बचाव करते हैं, वे भी बराबर के दोषी हैं.’

तिरुमूर्ति ने इस महीने की शुरुआत में ही संयुक्त राष्ट्र की काउंटर टेररिज्म काउंसिल (सीटीसी) की अध्यक्षता संभाली है, जिसका गठन 2001 में अमेरिका में 9/11 के ट्विन टावर हमलों के बाद किया गया था.

तिरुमूर्ति ने इस कार्यक्रम के दौरान स्पष्ट किया कि वह संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत के तौर पर संबोधित कर रहे हैं, न कि सीटीसी अध्यक्ष के रूप में. लेकिन साथ ही इस पर जोर दिया कि सुरक्षा परिषद को ‘नई शब्दावली और अनावश्यक प्राथमिकताओं से सावधान रहने की जरूरत है जो हमारा ध्यान भंग कर सकती हैं.’


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‘अच्छे या बुरे आतंकी जैसा कुछ नहीं होता’

दिसंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव– ‘अंतर्धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को प्रोत्साहन, शांति के लिए समझ एवं सहयोग बढ़ाना’ को मंजूरी दी थी, जिसमें इस्लामोफोबिया, यहूदी-विरोध और क्रिश्चियनोफोबिया पर बात की गई है, जो अब्राहम और गैर-अब्राहम धर्मों के बारे में बहस को आगे बढ़ाता है.

जून 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की तरफ से पारित ग्लोबल काउंटर टेररिज्म स्ट्रेटजी (जीसीटीएस) की सातवीं समीक्षा का उल्लेख करते हुए तिरुमूर्ति ने कहा, ‘धर्म-विरोधी खासकर एंटी-हिंदू, एंटी-बौद्ध और एंटी-सिख फोबिया का जन्म लेना एक गंभीर चिंता का विषय है और इस खतरे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र और सभी सदस्य देशों को ध्यान देने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘आतंकवादी तो बस आतंकवादी होते हैं. उनमें अच्छे और बुरे का कोई भेद नहीं होता है. जो इस भेद की बात करते हैं, दरअसल वो उनका एक एजेंडा होता है. और, जो उनका बचाव करते हैं, वे भी उतने ही दोषी होते हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले दो सालों से कई सदस्य राष्ट्र अपनी राजनीतिक, धार्मिक और अन्य बातों से प्रेरित होकर आतंकवाद को नस्लीय और जातीय रूप से प्रेरित हिंसा, हिंसक राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथी उग्रवाद आदि श्रेणियों में बांटने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन यह प्रवृत्ति कई कारणों से खतरनाक है.’


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‘हिंदुओं, बौद्धों, सिखों के खिलाफ हिंसा को स्वीकारा जाए’

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की काउंटर टेररिज्म स्ट्रेटजी (यूएनजीसीटीएस) शब्दावली में 2019 के अंत और 2020 के शुरू में इस्लामोफोबिया और क्रिश्चियनोफोबिया जैसे शब्द शामिल होने के बाद से भारत भी हिंदुओं, बौद्धों और सिखों के खिलाफ हिंसा को मान्यता देने पर जोर देने लगा है.

तिरुमूर्ति ने कहा, ‘अल-कायदा के सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संस्थाओं के साथ संबंध मजबूत होते रहे हैं. अफ्रीका में क्षेत्रीय स्तर पर इसके सहयोगी समूहों का विस्तार हो रहा है.’ साथ ही जोड़ा कि यही वजह है कि अगस्त 2021 में भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 2593 (2021) को अपनाया गया था, जिसमें अफगानिस्तान पर ‘सामूहिक चिंता’ की बात करने के साथ तालिबान के कब्जे के मद्देनज़र वहां आतंकवाद पनपने का खतरा और ज्यादा बढ़ने पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

भारत ने जून 2021 के बाद से संयुक्त राष्ट्र में हिंदुओं, सिखों और बौद्धों के खिलाफ हिंसा का मुद्दा नहीं उठाया है. उस समय विदेश मामलों के राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ‘पीस बिल्डिंग एंड संस्टेनिंग पीस: डायवर्सिटी, स्टेट बिल्डिंग एंड सर्च फॉर पीस ’ विषय पर शीर्ष स्तर की बहस के दौरान आखिरी बार यह मसला उठाया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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