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Tuesday, 23 April, 2024
होमविदेश‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ से नाराज भारत ने कनाडा को डिमार्श भेजा, कनिष्क बमबारी की दिलाई याद

‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ से नाराज भारत ने कनाडा को डिमार्श भेजा, कनिष्क बमबारी की दिलाई याद

दिल्ली की आपत्ति पर कनाडा ने अब तक कोई ध्यान नहीं दिया था. नाराजगी इस बात को लेकर और भी ज्यादा है कि जहां जस्टिन ट्रूडो यूक्रेन में रूसी जनमत संग्रह की आलोचना करते हैं, वहीं उनके सहयोगी भारत के खिलाफ जनमत संग्रह का समर्थन कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: प्रतिबंधित सिख चरमपंथी समूह की तरफ से हालिया समय में खालिस्तान पर दूसरा जनमत संग्रह कराने की तैयारियों के बीच भारत ने कनाडा को एक और डिमार्श भेजा है. जनमत संग्रह अलग खालिस्तान की मांग को लेकर कराया जाना है.

नई दिल्ली की तरफ से ओटावा को 1985 में कनिष्क विमान (एयर इंडिया की उड़ान 182) बमबारी की भी याद दिलाई गई जिसे अटलांटिक महासागर के ऊपर उड़ा दिया था. इस घटना में 268 कनाडाई नागरिकों सहित सभी 329 विमान यात्री मारे गए थे. बम कनाडा के सिख आतंकवादियों ने लगाया था.

भारत की तरफ से यह डिमार्श यानी सरकारों के बीच विरोध जताने वाला एक औपचारिक नोट, ये जानकारी सामने आने के बाद भेजा गया है कि दूसरा जनमत संग्रह 6 नवंबर को पॉल कॉफी एरिना, मिसिसॉगा में होने वाला है.

पिछली बार जनमत संग्रह 19 सितंबर को ब्रैम्पटन, ओंटारियो में आयोजित किया गया था. इसके बाद भारत ने बढ़ती भारत विरोधी घटनाओं और हेट क्राइम के मद्देनजर कनाडा की यात्रा न करने की एडवाइजरी जारी की थी, जो कदम आम तौर पर नहीं उठाया जाता है.

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, भारत द्वारा राजनयिक चैनलों के जरिये एक और डिमार्श जारी किया जाना काफी अहम है क्योंकि नई दिल्ली की तरफ से बार-बार अनुरोध के बावजूद ओटावा ‘कोई कार्रवाई नहीं कर रहा था.’

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सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि कनाडा ‘अच्छी तरह जानता है’ कि भारत ‘नाखुश और परेशान’ था, फिर भी खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ ‘कोई प्रभावी कदम’ नहीं उठाया जा रहा था, जो सिखों के लिए एक नया देश बनाने के उद्देश्य से जनमत संग्रह करना जारी रखे हैं.

सूत्रों ने कहा कि सरकार ने अब सार्वजनिक रूप से जस्टिन ट्रूडो सरकार पर ‘सिख फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) जैसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए ‘दबाव डालने’ के लिए कनिष्क आतंकी हमले का जिक्र किया है. गौरतलब है कि भारत ने एसएफजे को 2019 में प्रतिबंधित किया था.

पिछले हफ्ते, विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने मीडिया से कहा, ‘हमने स्पष्ट तौर पर कनाडा सरकार को विभिन्न स्तरों पर (भारत की चिंताओं) से अवगत कराया है. हम उम्मीद करते हैं कि इस तरह के घटनाक्रम या इस तरह की गतिविधियां नहीं होनी चाहिए… हमने एक एडवाइजरी भी जारी की है कि किस तरह उस देश में भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं और ऐसी चीजें से हम भारतीयों के लिए कितना खतरा हो सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘जैसा आप जानते ही होंगे, हमें नहीं भूलना चाहिए कि हिंसा कैसे हुई है, कनिष्क बम विस्फोट…बमबारी भी ऐसी ही गतिविधियों से जुड़ी हो सकती है और ऐसी और भी घटनाएं हो चुकी है और आप जानते हैं कि संगठन (एसएफजे) पर यहां प्रतिबंध है.’

गुरपतवंत सिंह पन्नून द्वारा प्रोमोट किए जाने वाले एसएफजे ने 2020 में भी जनमत संग्रह का आह्वान किया था.

अगले माह प्रस्तावित जनमत संग्रह पर पन्नून ने कथित तौर पर कहा है, ‘6 नवंबर की वोटिंग सिख समुदाय के हिंसा पीड़ित होने से खालिस्तान जनमत संग्रह के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल करने की एक यात्रा है.’

कुछ मीडिया रिपोर्टों की मानें तो एसएफजे को ट्रूडो प्रशासन के मुख्य सहयोगियों में से एक नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन भी हासिल है.

प्रमुख एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने शनिवार को जनमत संग्रह का समर्थन किया और कहा, ‘कुछ लोग जनता को बांटने, ध्यान भटकाने और दुष्प्रचार के लिए झूठी सूचनाएं फैला रहे हैं. सीधी बात यह है कि जनमत संग्रह के माध्यम से खुलकर अपनी मांग रखना सभी का अधिकार है…जनमत संग्रह के माध्यम से अलग राष्ट्र और आजादी की मांग करना कोई अपराध नहीं है.’

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दोनों देशों के बीच तनाव तब शुरू हुआ जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2020 में किसानों के आंदोलन को लेकर चिंता जताई. भारत ने उस समय इस सबके पीछे खालिस्तानी तत्वों के भी शामिल होने से इंकार नहीं किया था.

हालांकि, ट्रूडो ने यूक्रेन पर रूस के जनमत संग्रह की निंदा की है और कहा है कि उनका देश उसे ‘कभी मान्यता नहीं देगा.’

ट्रूडो ने पिछले महीने एक ट्वीट करके कहा था, ‘कनाडा यूक्रेन में कब्जाए गए क्षेत्रों में रूस के प्रस्तावित ‘जनमत संग्रह’ की निंदा करता है. हम उन्हें कभी मान्यता नहीं देंगे. यह अंतरराष्ट्रीय कानून का खुला उल्लंघन है. यह युद्ध का एक और विस्तार है. और पूरी तरह अस्वीकार्य है.’

भारत ने हाल में टोरंटो में एक मंदिर में तोड़फोड़ को लेकर भी कनाडा के अधिकारियों के समक्ष कड़ी शिकायत दर्ज कराई थी, जिसकी कनाडा पुलिस अभी भी जांच कर रही है. बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में भारत विरोधी ग्रेफिटी पेंट कर दी गई थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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