आतंकवादी समूह अल-कायदा ने पाकिस्तान में ट्रांसजेंडर लोगों को सुरक्षा देने वाले कानून को ‘कयामत का संकेत’ बताया है. उसका कहना है कि होमोसेक्शुअलिटी (समलैंकिगता) इस्लाम के खिलाफ है.
अल-कायदा ने उर्दू भाषा की अपनी पत्रिका गजवा-ए-हिंद के अपने अगस्त-सितंबर के अंक के एक लेख में यह सब लिखा है, जिसे जिहादी सोशल मीडिया पर ऑनलाइन जारी किया गया था.
इस कानून को बनाने वाली चार महिला सीनेटर्स के बारे में मैग्जीन ने लिखा, ‘अगर यह महिलाएं पश्चिम एजेंडे के लिए काम नहीं कर रहीं हैं तो ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि फिर वे शैतान के एजेंडे के लिए काम कर रही हैं.’
लेख में आगे कहा गया है, ‘अल्लाह की सच्ची किताब कहती है कि पुरुष से पुरुष का यौन संबंध सबसे पहले सदोम के लोगों ने बनाया था.’ इसमें आगे लिखा है, ‘एडल्ट्री फैल जाएगी’. अल कायदा ने लिखा, ‘यह कयामत के दिन की निशानी है.’
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली, वर्ष 2018 में ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट लेकर आई थी जिसमें ट्रांसजेंडर्स को बुनियादी अधिकार मुहैया कराए गए थे. कई राजनीतिक दलों का मानना है कि इस कानून से होमोसेक्सुअलिटी बढ़ेगी और गे मैरिज में इजाफा होगा जो इस्लाम के खिलाफ हैं.
सत्तारूढ़ पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के साथ गठबंधन पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (फजल) ने इस कानून के खिलाफ फेडरल शरिया कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इसे खारिज करने की मांग की है.
वहीं, पाकिस्तान के कानून मंत्री आजम नजीर का कहना है कि ‘कुछ दोस्तों’ ने गलत धारणा फैलाई हुई है कि यह कानून होमोसेक्शुअलिटी के लिए दरवाजे खोलता है इस्लाम के खिलाफ है.
अल-कायदा ने इस कानून को शरिया अदालत में चुनौती के बारे में लिखा कि फेडरल शरिया कोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट (पाकिस्तान) के अधीन है और इसने सूदखोरी के मुद्दे पर भी फैसला देते हुए इसे सिर्फ इस्लाम के खिलाफ बताया और कुछ भी करने में असहाय रही.
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‘कुछ डॉलर्स के लिए बिक गए’
गजवा-ए-हिंद ने अपने मुखपत्र में 9/11 घटना का भी जिक्र किया है जिसमें उसने इसे ‘यौम-ए-तफ़रीक़’ यानी ‘बंटवारे का दिन’ बताया है.
उसने अपने संपादकीय में लिखा, ‘दो दशक पीछे की चलते हैं, जब अमेरिका के मिलिट्री सेंटर पेंटागन और ट्विन टावर्स पर 9/11 के जिहादी हमले के बाद दुनिया दो हिस्सों में बंट गई थी, जॉर्ज डब्ल्यू बुश (तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति) ने घोषणा की थी कि हमारा साथ दो या फिर दहशतगर्दों का साथ दो. ‘
उसने आगे लिखा, ‘उस समय बहुसंख्यक सत्ता के साथ खड़े थे और कतार में सबसे आगे खड़े होने का तमगा परवेज मुशर्रफ (पूर्व पाकिस्तान राष्ट्रपति) और पाकिस्तान की सेना के सीने पर सजाया गया था.’
संपादकीय में अल कायदा ने आगे आरोप लगाया, ‘पाकिस्तान सेना के जनरल कर्नल्स और अन्य अधिकारियों ने अपना ईमान और देश कुछ डॉलर्स के लिए बेच दिया है.’
संपादकीय में आगे इस बात की भी तस्दीक की गई है कि भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के मुजाहिद्दीन कबायली (ट्राइब्स) ने उसकी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कब्जा कराने में मदद की थी.
अल-कायदा के अनुसार, ‘पाकिस्तान के निर्माण के समय कबाइलियों ने एक समझौते के तहत पाकिस्तान में प्रवेश किया था और जनजातियों की स्वतंत्र स्थिति को पाकिस्तान के संस्थापक (मुहम्मद अली जिन्ना) द्वारा मान्यता दी गई थी.’
लेख में कहा गया है, ‘आदिवासी लोग पाकिस्तान के विलय के बाद से अब तक शरिया कानून को लागू करने की मांग कर रहे हैं और कबायली की यह सही मांग स्वीकार नहीं की गई, तो कबायली लोगों पर बमबारी की गई और सैन्य अभियान चलाया गया.’
अल कायदा ने आगे लिखा, ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि 1948 में उसी कबाइली मुजाहिदीन ने कश्मीर के मोर्चे पर भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आज आजाद जम्मू-कश्मीर कहे जाने वाले इलाके को इन अंतर-आदिवासी मुजाहिदीन ने आजाद कराया था. (पाकिस्तानी) उस समय के सैन्य और नागरिक प्रतिष्ठान कश्मीर मुद्दे को एक ‘मुद्दा’ के रूप में रखना चाहते थे.’
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