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Wednesday, 26 June, 2024
होमखेल‘वर्ल्ड बेस्ट ड्रैग-फ्लिकर’ से लेकर मिस्टर फोर्थ क्वार्टर तक—कुछ ऐसी है भारत की वर्ल्ड कप हॉकी टीम

‘वर्ल्ड बेस्ट ड्रैग-फ्लिकर’ से लेकर मिस्टर फोर्थ क्वार्टर तक—कुछ ऐसी है भारत की वर्ल्ड कप हॉकी टीम

1975 के बाद से यह खिताब हासिल नहीं कर पाया भारत टोक्यो ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेलों और एशिया कप में मिली सफलताओं को और आगे बढ़ाना चाहेगा जो कि एफआईएस पुरुष हॉकी वर्ल्ड कप की मेजबानी करने वाला है.

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नई दिल्ली: 5 अगस्त 2021 को मिडफील्डर सिमरनजीत सिंह ने जर्मन गोलकीपर अलेक्जेंडर स्टैडलर के डिफेंस को तोड़कर ब्रेस स्कोर किया. खेल के 34वें मिनट में इस शॉट की बदौलत भारत ने टोक्यो ओलंपिक में जर्मनी के खिलाफ 5-4 से जीत दर्ज करने में सफलता हासिल की, जिससे पुरुष हॉकी टीम के लिए 41 साल का ओलंपिक पदक का सूखा खत्म हो गया.

अब, करीब 18 महीने बाद भारत का लक्ष्य राउरकेला और भुवनेश्वर में अपने घरेलू मैदान पर इतिहास रचना और एक अन्य नाकामी के बोझ को अपने ऊपर से उतारना है, और यह है पुरुष हॉकी वर्ल्ड कप में पोडियम फिनिश तक न पहुंच पाना. भारत ने 1975 के बाद कभी भी हॉकी वर्ल्ड कप में खिताबी जीत हासिल नहीं की है.

डिफेंडर हरमनप्रीत सिंह की कप्तानी में भारत के स्पेन के खिलाफ पहले वर्ल्ड कप मैच में उतरने की तैयारियों के बीच हॉकी इंडिया के सहयोग के साथ दिप्रिंट यहां आपको बता रहा है कि आखिरकार 18-सदस्यीय भारतीय टीम कैसी है.

वरिष्ठ खिलाड़ी

हरमनप्रीत सिंह (उम्र 26, डिफेंडर, कप्तान)

हॉकी इंडिया की तरफ से ‘दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग-फ्लिकर्स में से एक’ कहे जाने वाले और अमृतसर में जन्मे डिफेंडर हरमनप्रीत सिंह अक्टूबर 2022 से भारत की कप्तानी संभाल रहे हैं—उन्हें यह जिम्मेदारी जापान के खिलाफ द्विपक्षीय सीरिज के लिए राष्ट्रीय टीम में शामिल किए जाने करीब सात साल बाद मिली थी. सुरजीत हॉकी अकादमी की तरफ से तैयार किए गए टीम के दो सदस्यों में से एक हरमनप्रीत पेनल्टी कॉर्नर से भारत के प्राइमरी गोलस्कोरर हैं, जिन्होंने 164 मैचों में डिफेंस को 126 बार हराया है.

अमित रोहिदास (उम्र 29, डिफेंडर, उप-कप्तान)

भारत के कप्तान जहां गोल के सामने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं, उनके साथी डिफेंडर और उप-कप्तान अमित रोहिदास फर्स्ट रशर की प्राथमिक भूमिका निभाते हैं जो पेनल्टी कॉर्नर के दौरान गेंद को ब्लॉक करने के लिए अपने ‘आक्रामक और जुनूनी अंदाज’ से विरोधी टीम के ड्रैग फ्लिकर को रक्षात्मक खेल पर विवश कर देते हैं. ओडिशा के हॉकी-प्रेमी सुंदरगढ़ जिले में जन्मे रोहिदास की 2017 में टीम में वापसी हुई और उसके बाद से ही उनके खेल में जबर्दस्त सुधार आया है.

पीआर श्रीजेश (उम्र 34, गोलकीपर)

कोच्चि उपनगर के रहने वाले गोलकीपर श्रीजेश खुद को आधुनिक भारतीय हॉकी के ग्रैंड ओल्ड मैन के तौर पर पाते हैं, जिन्हें 2006 में सीनियर टीम में थर्ड-च्वाइस वाले युवा खिलाड़ी के तौर पर चुना गया. उन्होंने मैदान के एक सिरे पर खड़े होकर भारतीय टीम में खेल के तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं.

एड्रियन डिसूजा और भरत छेत्री के एक अंडरस्टडी के तौर पर हॉकी वर्ल्ड कप और ओलंपिक डेब्यू के दौरान क्रमश: 2010 और 2012 में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद श्रीजेश अपने शानदार खेल की वजह से 2012 के बाद निर्विवाद रूप से पहली पसंद के तौर पर उभरे. श्रीजेश 274 मैचों में भारत के गोलकीपर रहे हैं और हर हाल में टीम शीट पर उनका नाम ही सबसे पहले आता है.

मनप्रीत सिंह (उम्र 30, मिडफील्डर)

मीठापुर के मनप्रीत सिंह टोक्यो में भारत को कांस्य पदक दिलाने वाले कप्तान रहे हैं और 314 कैप (मैच में शामिल होने) के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ी हैं, जो 2012 लंदन ओलंपिक के बाद से लगातार सीनियर टीम का हिस्सा रहे हैं. टीम के करिश्माई आउटफील्ड खिलाड़ी के तौर पर मनप्रीत आधुनिक हॉकी से सबसे ज्यादा पदक हासिल करने वाले भारतीय कप्तान भी हैं, जिन्होंने 2017 में यह जिम्मेदारी संभाली और बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक के साथ कप्तानी का समापन किया.

आकाशदीप सिंह (उम्र 28, मिडफील्डर)

हालिया वर्षों में विश्व स्तर पर भारतीय हॉकी के एक खास मुकाम हासिल करने में अहम भूमिका निभाने वाले एक वरिष्ठ खिलाड़ी आकाशदीप सिंह ओलंपिक टीम में जगह बनाने से चूक गए थे, क्योंकि उस समय प्रदर्शन खराब चलने और स्ट्राइकर पोजीशन को लेकर जबर्दस्त प्रतिस्पर्द्धा की वजह से वह मुख्य कोच ग्राहम रीड की प्राथमिकता में शामिल नहीं रहे. हालांकि, ओलंपिक डॉट कॉम के अली असगर नसवाला के मुताबिक, तरनतारन के इस शानदार गोलस्कोरर ने खुद को बाहर किए जाने का जवाब अपने खेल के जरिये ही दिया और मिडफील्डर के तौर पर उभरकर अपनी जगह बनाई.

मनदीप सिंह (उम्र 27, फॉरवर्ड प्लेयर)

हालांकि, मनदीप सिंह वैसे तो आकाशदीप के साथ ही टीम में आए थे लेकिन करियल गोल की बात करें तो उन्होंने थोड़े ही समय में अपने साथी खिलाड़ी को पीछे छोड़ दिया. मनदीप सिंह ने 194 प्रदर्शनों में 96 स्कोर किए हैं, जबकि आकाशदीप ने 218 में 85 का स्कोर हासिल किया है. ओलंपिक के बाद अपेक्षाकृत शांत रहे मनदीप के लिए यह टूर्नामेंट भारत के लिए कुछ कर दिखाने का एक उपयुक्त मौका हो सकता है. जालंधर में जन्मे फॉरवर्ड प्लेयर ने पिछले वर्ष आखिरी क्षणों के गोल के साथ मैच ड्रॉ करानेर या भारत को जीत दिलाने की अपनी काबिलियत के बूते ही ‘मिस्टर फोर्थ क्वार्टर’ का तमगा हासिल किया है.

ललित उपाध्याय (उम्र 29, फॉरवर्ड)

इस वर्ल्ड कप में भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के एकमात्र प्रतिनिधि वाराणसी में जन्मे ललित उपाध्याय संभवत: इस युवा टीम में सबसे देरी से उभरने वाले खिलाड़ी रहे हैं, जो खुद को उम्र के लिहाज से बीस के दशक के मध्य में स्थापित कर पाए. पहले 11 खिलाड़ियों में न चुने जाने के बावजूद उपाध्याय का योगदान कम महत्वपूर्ण नहीं है, उन्होंने अपने 133 प्रदर्शनों में 31 गोल किए हैं, जिसमें पिछले वर्ल्ड कप के दौरान किए गए 3 गोल भी शामिल हैं.

सुरेंद्र कुमार (उम्र 29, डिफेंडर)

टीम की डिफेंसिव बैकलाइन में एक ‘महत्वपूर्ण कड़ी’ माने जाने वाले सुरेंद्र कुमार ने हरमनप्रीत जैसे अपने डिफेंसिव पार्टनर की तुलना में 172 कैप (मैच में मौजूदगी) के साथ अपना 10 साल का पूरा कैरियर प्रशंसकों, मीडिया और पुरस्कार समारोहों के इर्द-गिर्द सुर्खियों में बिताया है. हालांकि, संशोधित नियमों के तहत गोल-फेस्ट का वर्चस्व बढ़ने के बीच करनाल में जन्मे इस खिलाड़ी ने प्रतिद्वंद्वी के बिल्डअप प्ले को तोड़ने और पिच के रक्षात्मक क्षेत्रों में पलटवार करने की अपनी काबिलियत की वजह से टीम में अपनी स्थिति काफी मजबूत बना रखी है.

वरुण कुमार (उम्र 27, डिफेंडर)

2017 में अपने अंतरराष्ट्रीय डेब्यू के बाद से अच्छे-खासे अनुभव के बावजूद डलहौजी निवासी वरुण कुमार को टोक्यो ओलंपिक की मूल टीम में शामिल नहीं किया गया था. लेकिन खेलों के कोविड-19 महामारी के कारण प्रभावित होने के बीच ‘वैकल्पिक’ चयन उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ.

जब उन्हें अर्जेंटीना के खिलाफ भारत के मस्ट-विन पूल मैच के दौरान मैदान में उतरने का मौका मिला तो देश की जीत सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उनकी स्कोरिंग की बदौलत ही भारत 3-1 से जीत हासिल कर पोडियम की तरफ एक और कदम बढ़ा पाया.


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सब-100 कैप्स और अगली पीढ़ी

सालों तक पदक के लिए तरसती रही भारतीय पुरुष हॉकी टीम की हालिया निरंतर सफलताओं के पीछे सबसे बड़ा ऑफ-फील्ड योगदान यकीनन हेड कोच ग्राहम रीड का रहा है, जो ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय हॉकी टीम के पूर्व डिफेंडर और मिडफील्डर हैं.

रीड के सहयोगी स्टाफ में दक्षिण अफ्रीका के विश्लेषणात्मक कोच ग्रेग क्लार्क और भारत के पूर्व खिलाड़ी शिवेंद्र सिंह शामिल हैं.

यद्यपि भारतीय हॉकी टीम में प्रतिभाशाली खिलाड़ी हमेशा रहे हैं लेकिन 2019 के बाद से रीड की देखरेख में यह नया सेट-अप बना है जिसमें न केवल फर्स्ट च्वाइस वाले खिलाड़ी शामिल हैं, बल्कि युवा खिलाड़ियों को लेकर टीम की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ एफआईएच प्रो लीग, एशिया कप और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में अपनी काबिलियत दिखाने वाले कुछ अनजाने से खिलाड़ियों को भी मौका दिया गया है.

नतीजतन, इस वर्ल्ड कप में भारतीय टीम की औसत आयु 26.7 साल है, जो अर्जेंटीना और नीदरलैंड जैसी शीर्ष हॉकी टीमों के समान है, और मौजूदा चैंपियन बेल्जियम और प्रतिद्वंद्वी ऑस्ट्रेलिया से कम है.

इसके अलावा, इनमें से कई युवा खिलाड़ी तेजी से 100-कैप क्लब में शामिल हो रहे हैं, जो मुकाम हासिल करने में टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों को कई साल लगे थे और टीम महामारी के कारण आए बुरे दौर से उबरने और अधूरे सपनों को पूरा करने की तरफ बढ़ रही है.

उदाहरण के तौर पर, 25 वर्षीय बैकअप गोलकीपर कृष्ण पाठक पहले ही भारत के लिए 80 बार मैदान में उतर चुके हैं, आने वाले समय में धीरे-धीरे श्रीजेश की जगह बागडोर संभालने के लिए तैयार हैं. मिडफ़ील्डर हार्दिक सिंह (24), और विवेक प्रसाद (22) भी 80 से अधिक बार मैदान में उतर चुके है, जबकि 23 वर्षीय स्ट्राइकर अभिषेक और 24 वर्षीय डिफेंडर निलम संदीप जेस जल्द ही 50वीं कैप हिट करेंगे.

अपने वरिष्ठ साथी खिलाड़ी रोहिदास की तरह जेस भी देश में हॉकी को आगे बढ़ाने के लिए ओडिशा के निवेश और सुविधाओं के आधुनिकीकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं और कभी अविकसित रहे सुंदरगढ़ जिले के एक गांव में पले-बढ़े हैं.

टीम टोक्यो में जीत के साथ ओलंपिक पदक को लेकर अपना सूखा पहले ही खत्म कर चुकी है और रीड और क्लार्क के कार्यकाल में आगे बढ़ती जा रही है. लेकिन इस वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल की जीत से कम कुछ भी मेजबान देश के लिए अच्छा प्रदर्शन नहीं माना जाएगा.

(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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