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Tuesday, 3 December, 2024
होमरिपोर्टराजकोषीय संघवाद पर चर्चा के लिए सिद्धारमैया ने क्यों 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया?

राजकोषीय संघवाद पर चर्चा के लिए सिद्धारमैया ने क्यों 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया?

उच्च राजस्व वाले राज्यों पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, केरल के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने लंबे समय से मोदी सरकार द्वारा राज्य के साथ किए गए ‘अन्याय’ का हवाला दिया है.

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बेंगलुरु: विश्लेषकों का कहना है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा उच्च राजस्व वाले राज्यों के अपने समकक्षों को “केंद्र द्वारा करों के अनुचित हस्तांतरण” के संबंध में बेंगलुरु में एक सम्मेलन के लिए आमंत्रित करने का कदम, खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक प्रमुख राज्य प्रमुख के रूप में पेश करने की एक बड़ी चाल का हिस्सा है।

वे यह भी दावा करते हैं कि इस कदम से कर्नाटक के भीतर सिद्धारमैया की स्थिति को मजबूत करने और उन्हें किसी भी आंतरिक खतरे से बचाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

सिद्धारमैया ने पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा और केरल के अपने समकक्षों को एक सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है, जिसमें “वित्त आयोग को दिशा बदलने और विकास तथा बेहतर कर संग्रहण के लिए इन्सेंटिव बनाने की आवश्यकता होने पर राजकोषीय संघवाद के मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा”, जैसा कि सीएम ने बुधवार को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया।

कर्नाटक के सीएम का मोदी सरकार के खिलाफ तर्क यह रहा है कि परफॉर्मेंस और प्रोग्रेस को दंडित किया जा रहा है और उच्च जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) वाले राज्यों से एकत्र धन को राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अधिक आबादी वाले राज्यों को दिया जा रहा है।

सीएम ने कहा, “कर्नाटक और अन्य जैसे उच्च जीएसडीपी प्रति व्यक्ति वाले राज्यों को उनके आर्थिक प्रदर्शन के लिए दंडित किया जा रहा है, उन्हें अनुपातहीन तरीके से कम कर प्राप्त हो रहा है.”

मुख्यमंत्री ने कहा, “कर्नाटक और इसके जैसे अन्य उच्च प्रति व्यक्ति जीएसडीपी वाले राज्यों को उनके इकोनॉमिक परफॉर्मेंस के लिए दंडित किया जा रहा है, उन्हें अनुपातहीन रूप से कम कर आवंटन प्राप्त हो रहा है।” भोपाल स्थित जागरण लेकसिटी विश्वविद्यालय के चुनाव विश्लेषक और कुलपति संदीप शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया कि सिद्धारमैया ने उच्च राजस्व उत्पन्न करने वाले और राजस्व योगदान देने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया था, लेकिन उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़ें राज्यों को धन के पुनर्वितरण की आवश्यकता पर कोई समझौता नहीं किया।

उन्होंने कहा, “सिद्धारमैया राजस्व में राज्यों के हिस्से के सवाल को उठाने की कोशिश कर रहे हैं।”

बेंगलुरु के एक अर्थशास्त्री ने कहा, “ऐसा माना जाता है कि दक्षिणी राज्यों को ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है।”

कर्नाटक में सिद्धारमैया की कांग्रेस पार्टी के सदस्य भी मानते हैं कि यह तर्क अर्थशास्त्र से परे है क्योंकि यह सिर्फ़ “राजकोषीय संघवाद” से ज़्यादा है बल्कि “राजनीतिक संघवाद” से भी जुड़ा है।

गुरुवार को केरल के तिरुवनंतपुरम में पांच राज्यों के वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में कर्नाटक के राजस्व मंत्री और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद में राज्य के प्रतिनिधि कृष्ण बायरे गौड़ा ने कहा कि राजनीतिक संघवाद पर चर्चा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

गौड़ा ने कहा, “अगर आगामी जनगणना के अनुसार परिसीमन होता है, तो यह बहुत संभव है कि हम सभी संसद में अपना प्रतिनिधित्व खो देंगे।” इस कार्यक्रम का उद्देश्य 16वें वित्त आयोग में उचित हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एकजुट मोर्चे की आवश्यकता पर प्रकाश डालना था।

सिद्धारमैया दो बार कर्नाटक के सीएम रह चुके हैं (2013 से 2018 और 2023-वर्तमान) और दोनों कार्यकालों में, 77 वर्षीय सिद्धारमैया ने 2023 के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों में अपने चुनावी रथ को पटरी से उतारने के लिए मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा कर्नाटक की आबादी के साथ किए गए “अन्याय” पर जोर दिया है।

जनता दल (सेक्युलर) या जेडीएस के भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद, सिद्धारमैया ने यह रुख अपनाया है कि केवल वे ही केंद्र से कर्नाटक के उचित हिस्से की मांग कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री के कॉन्फ्रेंस कॉल पर प्रतिक्रिया देते हुए, भाजपा के आईटी प्रमुख अमित एफ. मालवीय ने गुरुवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा: “करों के कर्नाटक में हस्तांतरण पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का गुस्सा गुमराह करने वाला है. वे ‘मुफ्त चीजों’ पर बिना सोचे-समझे पैसे खर्च करने के बाद, धन की कमी के लिए अपनी सरकार को छोड़कर बाकी सभी को दोषी ठहराने की व्यर्थ कोशिश कर रहे हैं।”

‘वही समय फिर आ गया है’

सिद्धारमैया कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं जिन्होंने दक्षिणी राज्य के मामलों को लेकर केंद्र से लड़ाई लड़ी है।

शास्त्री याद करते हैं कि कैसे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने 1980 के दशक की शुरुआत में ‘केंद्र-राज्य संबंधों’ पर कई सम्मेलन आयोजित किए थे, जिसमें मुख्य रूप से गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को तत्कालीन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ एकजुट किया गया था।

अगस्त 1983 में, हेगड़े ने केंद्र-राज्य संबंधों पर एक सम्मेलन को संबोधित किया था, जिसे उन्होंने राज्यपालों के कार्यालय के माध्यम से केंद्र सरकार के हस्तक्षेप को उजागर करने के लिए आयोजित किया था।

फ्रंटलाइन पत्रिका में दिवंगत न्यायविद ए.जी. नूरानी के 2021 के लेख के अनुसार, सितंबर में उन्होंने राज्य विधानसभा में एक आधिकारिक दस्तावेज पेश किया, जिसका नाम था ‘राज्यपाल के कार्यालय पर श्वेत पत्र’।

इसके बाद ये सभी सम्मेलन 1983 में केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग की स्थापना के आधार बन गए।

सिद्धारमैया द्वारा अपने पूर्ववर्ती से सीख लेने के बारे में शास्त्री ने कहा, “वही समय फिर से आ गया है।”

सिद्धारमैया हिंदी थोपे जाने और हिंदी दिवस मनाने का विरोध करने, “तीन-भाषा नीति” का विरोध करने, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की जगह राज्य शिक्षा नीति लाने, कर्नाटक की डेयरी सहकारी संस्था नंदिनी को गुजरात स्थित अमूल के साथ विलय करने के प्रयासों की निंदा करने और मोदी सरकार पर कर्नाटक की पहचान मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाने में भी सबसे आगे रहे हैं।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि भाजपा कर्नाटक या उसके लोगों, भाषा या संस्कृति के अधिकारों के लिए खड़ी नहीं होगी और उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत को “एक राष्ट्र, एक भाषा” के साथ एक समरूप अखंड बनाने के पार्टी के प्रयासों का समर्थन नहीं करेंगे।

कर्नाटक में भाजपा ने राज्य कांग्रेस इकाई के भीतर दरार का फायदा उठाने की कोशिश की है, MUDA घोटाले के खिलाफ पदयात्रा निकाली है और राज्य द्वारा संचालित कर्नाटक महर्षि वाल्मीकि अनुसूचित जनजाति निगम से कथित तौर पर धन के दुरुपयोग को लेकर सरकार को घेरा है।

हालांकि, इससे कांग्रेस और सिद्धारमैया को मजबूत होने में मदद मिली है, क्योंकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी डी.के. शिवकुमार ने भी सीएम का समर्थन किया है और यहां तक ​​कहा है कि वह पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे।

कांग्रेस सिद्धारमैया की जगह आसानी से नहीं ले सकती, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे पिछड़े वर्ग के लोग नाराज हो सकते हैं, जिसका प्रतिनिधित्व वे करते हैं और पिछले साल राज्य चुनावों में पार्टी की जीत के बाद विपक्ष को सरकार को अस्थिर करने का मौका मिल सकता है।

‘राज्य का नुकसान’

कर्नाटक भारत की सबसे तेजी से बढ़ती और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

शास्त्री के अनुसार, भारत के विकास का श्रेय, जो पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है, केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी जाता है। लेकिन इसका बहुत कुछ श्रेय 2014 में मोदी के केंद्र में आने के बाद “भारत के उत्थान” को जाता है।

हालांकि, देश में हर प्रशासनिक इकाई- तालुक, जिला और राज्य के भीतर स्पष्ट असमानताएं हैं।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कर्नाटक, विशेष रूप से बेंगलुरु, देश के सॉफ्टवेयर निर्यात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन यह पैसा केंद्र के खाते में जाता है। जीएसटी के बाद के दौर में, राज्यों के पास उत्पाद शुल्क, स्टांप और रजिस्ट्रेशन, पेट्रोल-डीज़ल पर सेस, परिवहन और कुछ अन्य जैसे राजस्व के कुछ स्रोत बचे हैं।

हालांकि कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्य अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनमें से कुछ इस बात की शिकायत करते हैं कि उन्हें क्या वापस मिलता है।

अपने 2024 के बजट भाषण में सिद्धारमैया ने कहा कि जीएसटी के “अवैज्ञानिक कार्यान्वयन” के कारण कर्नाटक को 59,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है और 15वें वित्त आयोग के तहत नई गणना के कारण केंद्रीय करों के हस्तांतरण के तहत 62,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।

15वें वित्त आयोग के अनुसार, केंद्रीय करों में कर्नाटक का हिस्सा लगभग 4.7 प्रतिशत से घटकर लगभग 3.6 प्रतिशत हो गया है।

हालांकि, भाजपा के मालवीय ने कहा कि यह कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार थी जिसने इस कटौती का सुझाव दिया था।

उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, “सिद्धारमैया को अपनी गलत नाराजगी राहुल गांधी या फिर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर निकालनी चाहिए, जिन्होंने संभवतः सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली एनएसी (राष्ट्रीय सलाहकार परिषद) के निर्देश पर दक्षिणी राज्यों के लिए आवंटन तय किए थे। इसके बजाय, वह अपनी हताशा को भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए पर निकाल रहे हैं, जिसकी इन बदलावों में कोई भूमिका नहीं है।”

मालवीय ने कहा, “सिद्धारमैया गलत तरस से राजनीति कर रहे हैं, जिससे किसी को कोई लाभ नहीं हो रहा है, सिवाय उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार अनिवार्य रूप से अपने ही फैसलों का विरोध कर रही है, जिससे यह साबित होता है कि यह तथ्यों पर विचार किए बिना भावनाओं को भड़काने के लिए खाली बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है।”

इस बात की भी स्पष्ट आशंका है कि प्रवासियों की बढ़ती संख्या कन्नड़ लोगों से और अधिक नौकरियां छीनती रहेगी, जिसके कारण “स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण” विधेयक पर विचार किया जा रहा है। लेकिन उद्योगों और इसके अगुवा लोगों के आक्रोश के कारण सिद्धारमैया सरकार को इसे वापस लेना पड़ा।

पहले उद्धृत बेंगलुरु स्थित अर्थशास्त्री ने बताया कि जब अल्पकालिक प्रवास होता है, तो इससे संसाधनों का बहिर्गमन होता है।

अर्थशास्त्री ने कहा कि जीएसटी युग में, आय इस बात पर आधारित है कि पैसा कहां खर्च किया जाता है, न कि यह कि इसे कहां कमाया जाता है, यह दर्शाता है कि प्रवासी बेंगलुरु में कमाते हैं, लेकिन इसे अपने गृह राज्यों में भेजते हैं या निवेश करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि कर्नाटक राज्य में वापस आने वाले राजस्व के अनुपातहीन हिस्से पर केंद्र का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है। सिद्धारमैया के अनुसार, कर्नाटक को केंद्र के खजाने में योगदान देने वाले प्रत्येक रुपये के लिए केवल 15 पैसे वापस मिलते हैं।

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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