नई दिल्ली: सीबीआई ने यूपी के हाथरस में, चार अभियुक्तों के खिलाफ एक दलित महिला के कथित गैंगरेप, और हत्या के आरोप में दायर अपनी चार्जशीट में, यूपी पुलिस पर निष्क्रियता, देरी, और पीड़िता का बयान दर्ज करने में, सही प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाया है.
अपराध के आरोपी चार ठाकुर लोगों- संदीप (20), उसके चाचा रवि (35), उनके दोस्त रामू (26) और लवकुश (23)- के खिलाफ पिछले हफ्ते भारतीय दंड संहिता की धाराओं, 376 (बलात्कार), 376 (डी) (गैंगरेप), 302 (हत्या), और एससी-एसटी एक्ट के तहत चार्जशीट दायर की गई.
स्थानीय पुलिस द्वारा सही जांच में ‘देरी’ किए जाने पर रोशनी डालते हुए, सीबीआई ने कहा कि 19 सितंबर को अपने बयान में, महिला के तीन आरोपियों- संदीप, रवि और रामू- का नाम लेने के बाद भी, लिखित वर्जन में केवल एक (संदीप) का उल्लेख किया गया.
दिप्रिंट के हाथ लगी चार्जशीट में कहा गया, ‘हालांकि पीड़िता ने छेड़ख़ानी का आरोप लगाया, लेकिन यौन हमले से जुड़ी मेडिकल जांच नहीं कराई’.
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उसके बयानों की अनदेखी हुई
उसमें ये भी कहा गया, कि जिस समय महिला और उसका परिवार पहली बार घटना की इत्तिला देने आए, चांदपा पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने, महिला का बयान दर्ज नहीं किया, जैसा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 154 के अंतर्गत करना होता है. न तो किसी महिला अधिकारी ने, और न ही स्टेशन हाउस ऑफिसर ने 19 सितंबर तक महिला की जांच की.
सीबीआई ने कहा, ‘अगर सीनियर पुलिस अधिकारी तुरंत ही उसकी जांच करके, उसे यौन हमले से जुड़ी मेडिकल जांच के लिए भेज देते, तो क़ीमती फॉरेंसिक सबूत बचाए जा सकते थे’.
एजेंसी ने महिला के बयान देते हुए, तीन वीडियो क्लिप्स का भी उल्लेख किया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे- जिनमें कई बार ‘ज़बर्दस्ती’ और ‘छेड़ख़ानी’ (यौन उत्पीड़न के लिए कोमल शब्द) का प्रयोग हुआ, लेकिन पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए, एफआईआर में धारा 354 और 376 को शामिल नहीं किया.
चार्जशीट में कहा गया, ‘ये उल्लेख करना ज़रूरी है, कि 14.09.2020 को चांदपा पुलिस थाने में ही, पीड़िता ने ज़बर्दस्ती शब्द प्रयोग किया था, लेकिन वहां मौजूद पुलिस ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया, क्योंकि यौन हमले के मामले में उसकी कोई मेडिकल जांच नहीं कराई गई थी…न तो पुलिस ने जांच कराई न ही दूसरे अधिकारियों ने. इसके अलावा पुलिस ने शुरू में ही, एफआईआर में धारा 354 (एन) या धारा 376 नहीं जोड़ीं’.
उसमें आगे कहा गया, ‘लेकिन, 19 सितंबर 2020 को पुलिस को दिए अपने बयान में, लड़की ने फिर से ‘छेड़ख़ानी’ शब्द इस्तेमाल किया, लेकिन उस समय पुलिस ने केवल धारा 354 जोड़ दी, और एक बार फिर, यौन हमले के मामले में, न तो पुलिस ने उसे मेडिकल जांच के लिए भेजा, न ही अधिकारियों ने मेडिकल जांच की’.
सीबीआई ने कहा कि एक और वीडियो में, जो 21 सितंबर को सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, पीड़िता ने कहा था कि संदीप और रवि ने उसका रेप किया था, जबकि कुछ दूसरे लोग, उसकी मां को आता देखकर, भाग खड़े हुए थे.
जांच एजेंसी ने कहा, ‘उसी वीडियो में उसने ये भी कहा था, कि रवि और संदीप ने पहले भी, उसका रेप करने की कोशिश की थी, लेकिन वो किसी तरह बच गई थी. तभी उसे पता चल गया था कि दोनों मिले हुए हैं’.
चार्जशीट में कहा गया कि 22 सितंबर को, जब लड़की ने खुलकर चार अभियुक्तों द्वारा ‘बलात्कार’ का उल्लेख किया, तब जाकर यौन हमले की मेडिकल जांच कराई गई- तब तक कथित अपराध को हुए, आठ दिन बीत चुके थे.
उसने कहा, ‘केस को हैण्डल करने के दौरान, पुलिस व अन्य संबंधित अधिकारियों की उपरोक्त लापरवाही से, पीड़िता की जांच में देरी हुई’.
दिप्रिंट ने पहले महिला के भाई के इन आरोपों की ख़बर दी थी, कि पुलिस ने शुरू में परिवार की मदद नहीं की, और सोशल मीडिया पर नाराज़गी फैलने के बाद ही, उसने अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की.
जांच में देरी की वजह से नहीं दिखी जननांग की चोट
एक अक्तूबर को, यूपी के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (क़ानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने, आगरा की फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, कि हाथरस की महिला का रेप नहीं हुआ था, क्योंकि वीर्य के कोई निशान नहीं पाए गए थे. ये रिपोर्ट 25 सितंबर को उन सैम्पल्स पर आधारित थी, जो कथित रेप के 11 दिनों के बाद लिए गए थे.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग की ‘अंतिम राय’ में कहा गया था ‘योनि-गुदा संभोग के कोई निशान नहीं मिले थे’ लेकिन ‘फिज़िकल हमले के निशान (गरदन और पीछ पर घाव) ज़रूर हैं’.
लेकिन, सीबीआई के जांच हाथ में लेने के बाद, एम्स के फॉरेंसिक विभाग के अंतर्गत गठित, एक बहु संस्थागत चिकित्सा बोर्ड (एमआईएमबी) ने कहा कि ‘यौन हमले की संभावना को ख़ारिज नहीं किया जा सकता’.
एमआईएमबी ने कहा, ‘इस मामले में, चूंकि यौन हमले की रिपोर्टिंग, प्रलेखन, और फॉरेंसिक जांच में देरी हुई, इसलिए जननांग की चोट के निशान ठीक से न दिखने की वजह, ये चीज़ें भी हो सकती हैं’.
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‘संदीप की कुंठा और उत्तेजित भावनाएं’
20 वर्षीय महिला ने कथित रूप से, क़रीब आने के संदीप के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, और ‘रिश्ते के बदलाव ने…उसकी भावनाओं को उत्तेजित कर दिया, और वो हताश हो गया’.
चार्जशीट के अनुसार, संदीप ने ‘दो-तीन साल पहले पीड़िता से जान पहचान कर ली थी, जो धीरे धीरे प्रेम संबंध में बदल गई’. यूपी पुलिस को लिखे एक पत्र में, संदीप ने दावा किया था कि महिला उसकी ‘मित्र’ थी, और वो फोन पर बात करते थे, और मिलते भी थे.
संदीप के पास तीन फोन नंबर थे, और उनसे पीड़िता के परिवार को कई कॉल हुई भी थीं, लेकिन परिवार के सदस्यों ने ‘अपनी जांच के दौरान पुष्ट किया, कि न तो उन्होंने कभी कॉल किया, और न ही संदीप से कभी फोन पर बात की’.
महिला और संदीप के बीच, अक्तूबर से मार्च 2020 के बीच, कॉल रिकॉर्ड्स के विश्लेषण से ‘पता चलता है कि पीड़िता की ओर से, संदीप को छोटी कॉल्स होती थीं, जिसके बाद संदीप की ओर से पीड़िता के परिवार के नंबर पर लंबी कॉल्स होती थीं. इससे ये स्थापित होता है कि मार्च 2020 तक, पीड़िता और अभियुक्त संदीप के बीच रिश्ता-प्रेम संबंध अच्छा था’.
चार्जशीट में कहा गया है, कि जब पीड़िता के परिजनों को इन कॉल्स के बारे में पता चला, तो ‘उनका संदीप के परिवार के साथ ज़ुबानी झगड़ा हुआ’. रिश्तों में रुकावट आ गई, लेकिन मार्च 2020 के बाद संदीप ने, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के कई नंबरों से, महिला से संपर्क करने की कोशिश की. ऐसे ही एक व्यक्ति की जांच के दौरान पता चला, ‘कि पीड़िता कुछ समय से अभियुक्त संदीप, और उसकी मोबाइल कॉल्स से बच रही थी’.
चार्जशीट में आरोप है कि ‘उसके बदले हुए व्यवहार की वजह से, अभियुक्त संदीप निराश था’. उसमें आगे कहा गया कि संदीप को शक था कि महिला के किसी और से ‘संबंध’ हो गए थे. सीबीआई ने कहा, ‘रिश्तों में इस बदलाव ने अभियुक्त संदीप की भावनाओं को उत्तेजित कर दिया’.
मृत्युकालिक कथन और तीन अन्य अभियुक्तों के ख़िलाफ सबूत
चार्जशीट में कहा गया कि महिला ने ‘स्पष्ट रूप से कहा कि उपरोक्त चाल अभियुक्तों ने उसका गैंगरेप किया था; ‘मरते समय के अपने बयान में’, उसने उपरोक्त चार अभियुक्तों के नाम भी बताए थे, जिसे ‘22 सितंबर 2020 को दर्ज किया गया था’.
चार्जशीट में आगे कहा गया कि ‘जांच में ये भी सामने आया कि सभी चारों अभियुक्त गांव में या आसपास ही मौजूद थे, जो पीड़िता के इल्ज़ाम की पुष्टि करता है’. उसमें ये भी कहा गया कि रामू, रवि, या लवकुश में से कोई भी, नहीं बता सका कि अपराध के समय वो कहां थे.
चार्जशीट में ये भी कहा गया कि जांच के दौरान सभी चारों अभियुक्तों पर, फोरेंसिक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन, और लेयर्ड वॉयस अनैलेसिस टेस्ट किए गए; उनके ब्रेन ऑसिलेशन सिग्नेचर (बीईओएस) और पॉलीग्राफ टेस्ट भी कराए गए.
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