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Friday, 3 May, 2024
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इजरायली राजनयिक ने ‘राष्ट्र-निर्माण’ के लिए RSS की प्रशंसा की – हिंदुत्व समर्थक प्रेस ने क्या कुछ कहा

पिछले कुछ दिनों में हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने किस तरह से समाचारों और सामयिक मुद्दों को कवर किया और टिप्पणी की, इसका दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: मुंबई में इज़राइल के महावाणिज्यदूत कोबी शोशनी ने इस हफ्ते संघ से जुड़े एक अंग्रेजी भाषा की मैग्जीन ऑर्गनाइज़र में प्रकाशित एक इंटरव्यू में कहा, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक ‘राष्ट्रवादी संगठन है और राष्ट्र-निर्माण के काम में जुटा है’.

शोशानी ने मानव के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में दृढ़ विश्वास रखने वाले संगठन के तौर पर इसकी प्रशंसा करते हुए कहा कि वह आरएसएस से ‘बेहद प्रभावित’ हैं.

इसके अलावा, कर्नाटक में हलाल मांस पर विवाद और उसे ‘आर्थिक जिहाद’ बताए जाने, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की फिल्म द कश्मीर फाइल्स पर टिप्पणी और बेरोजगारी को लेकर चिंता – ये कुछ ऐसा खबरें थीं जिन पर पिछले हफ्ते बहस होती रही. ये मुद्दे हिंदुत्व समर्थक प्रकाशनों और कुछ दक्षिणपंथी लेखकों के लेखों की सुर्खियों में भी छाए रहे.

आरएसएस और शोशनी

ऑर्गनाइज़र को दिए गए एक इंटरव्यू में शोशानी ने भारत-इज़राइल सांस्कृतिक संबंधों, दोनों देशों के बीच समानता और द्विपक्षीय संबंधों पर टिप्पणी की. साथ ही उन्होंने विशेष रूप से आरएसएस में बहुत रुचि और घनिष्ठता भी जाहिर की.

शोशनी पिछले साल आरएसएस के नागपुर मुख्यालय में आयोजित विजयादशमी समारोह में भी बतौर अतिथि उपस्थित हुए थे. कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘अपनी पिछली भारत यात्राओं के दौरान, मैंने आरएसएस के काम के बारे में काफी कुछ सुना था. मुझे आरएसएस कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे कुछ कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिला.’

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उन्होंने आगे कहा, ‘मैं इस संगठन से काफी प्रभावित था और संगठन के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्राप्त करना चाहता था, इसलिए नागपुर में समारोह में भाग लेने का फैसला किया. मैंने ये महसूस किया कि आरएसएस एक राष्ट्रवादी संगठन है और राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुटा हुआ है.’


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केजरीवाल के लिए ‘सार्वजनिक जीवन का अंत निकट’

1990 के दशक में घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर बनी हिंदी फिल्म, द कश्मीर फाइल्स पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की टिप्पणियों को कथित रूप से हिंदू भावनाओं का मजाक उड़ाने वाला माना गया और इसके लिए उनकी आलोचना भी की गई. बीजेपी शासित कई राज्यों में फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया था. दिल्ली में भी फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग कर रहे भाजपा के नेताओं पर हमला बोलते हुए केजरीवाल ने सुझाव देते हुए कहा था कि फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री को इस फिल्म को यूटयूब पर अपलोड कर देना चाहिए ताकि हर कोई इसे देख सके.

अमर उजाला के एक लेख में ऑर्गनाइज़र के पूर्व संपादक तरुण विजय ने लिखा- ‘रावण एक उपासक था लेकिन उसने राम के दर्द का मज़ाक उड़ाया और वह नष्ट हो गया. मुग़लों द्वारा बंदा सिंह बहादुर के छह साल के बेटे की हत्या किए जाने पर औरंगज़ेब हंसा था लेकिन आज उसे भी भुला दिया गया है’ औरंगजेब की मौत के नौ साल बाद, 18वीं सदी के सिख सैन्य नेता बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके बेटे को 1716 में सम्राट फर्रुखसियर ने यातना देकर मार डाला था.

कश्मीरी अलगाववादी नेताओं का जिक्र करते हुए विजय ने कहा, ‘मैंने यासीन मलिक और (स्वर्गीय सैयद अली शाह) गिलानी जैसे लोगों को कश्मीरी पंडितों के दर्द पर हंसते हुए नहीं देखा लेकिन कुछ दिनों पहले दिल्ली विधानसभा में ऐसा देखा गया. इन पर हंसने वालों के सार्वजनिक जीवन का अंत शुरू हो गया है.’


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पाकिस्तान एक ‘विफल देश’

संघ से जुड़े हिंदी प्रकाशन पांचजन्य ने पाकिस्तान के मौजूदा संवैधानिक संकट को लेकर अपने संपादकीय में पाकिस्तान को एक ‘विफल’ देश और लोकतंत्र बताया है.

रविवार को नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ विपक्ष के एक अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया. इसके बाद खान की सलाह पर राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने विधानसभा को भंग कर दिया था. फिलहाल देश की शीर्ष अदालत इन कार्यों की संवैधानिकता पर विचार कर रही है.

साप्ताहिक पत्रिका पांचजन्य के कवर पर इमरान खान के चेहरे को शतरंज के मोहरे के रूप में छापा गया और लिखा – ‘पाकिस्तान में बदलते घटनाक्रम से स्तब्ध कप्तान इमरान खान, आखिरी ओवर में अपनी सरकार की अंतिम विदाई के लिए मर्सिया (मृतकों के लिए एक विलाप) पढ़ा. उन्होंने इस आखिरी ओवर में इस्लाम के नाम पर छक्का मारने की भी कोशिश की.’

पत्रिका के संपादक हितेश शंकर ने लिखा, ‘पाकिस्तान को खुद को सुधारना था, लेकिन वह बाहर उसने बाहर से अधिक जोखिम लिया और देश के भीतर असंतुलन पैदा कर दिया. पाकिस्तान की सोच भारत से दुश्मनी की रही है. इसने भारत को सबक सिखाने के चक्कर में खुद को ही बरबाद कर लिया. वे हिंदुओं को काफिर और क्रूर लोगों के रूप में दिखाते हैं.’

आठवीं शताब्दी में उमय्यद कमांडर मुहम्मद इब्न कासिम की सिंध पर विजय का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा, ‘लेकिन वास्तविकता यह है कि 711 ईस्वी तक, हिंदू राजपूत शासकों ने पश्चिमी पाकिस्तान में शासन किया था. पूर्वज और सांस्कृतिक विरासत, जो उनके लिए प्रेरणा का एक सकारात्मक स्रोत हो सकती थी,  उसे उन्होंने दुश्मन के रूप में देखा. और इस तरह से इस देश ने अपनी जड़ें खुद ही काट लीं.’

हिजाब के बाद हलाल

कर्नाटक में शिक्षा संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के बाद, राज्य में और भी कई विवाद शुरू हो गए हैं. कुछ हिन्दुवादी समूहों ने मुस्लिम व्यापारियों को मंदिर मेलों से ‘पाबंदी’ लगाने का प्रयास किया है और उगादी नववर्ष उत्सव के दौरान हलाल मांस के बहिष्कार का आह्वान भी किया.

उन्होंने बेंगलुरु स्थित आयुर्वेदिक फर्म हिमालय को हैशटैग #BoycottHimalaya  के साथ ट्रॉल किया और ‘आर्थिक जिहाद’ का आरोप लगाते हुए, उनसे अपने साइनबोर्ड से ‘हलाल प्रमाणित’ शब्द को हटाने के लिए कहा. कंपनी ने कहा है कि उसके किसी भी उत्पाद में मांस नहीं है और जिन देशों में इस उत्पाद को आयात किया जाता है, उनकी मांगों को पूरा करने के लिए ‘हलाल-प्रमाणित’ लिखा गया है.

पांचजन्य के समाचार संपादक अरुण कुमार सिंह ने ‘हलाल के साथ सतर्क रहें’ शीर्षक वाले लेख में लिखा है, ‘ कई मुस्लिम संगठन करोड़ों रुपये लेकर हलाल प्रमाणपत्र जारी करते हैं और देश और दुनिया में एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो इस प्रमाणपत्र को देखकर ही कोई वस्तु खरीदता है.’

सिंह ने भाजपा महासचिव की टिप्पणी का जिक्र करते हुए लिखा, ‘इसलिए कई कंपनियां उनसे हलाल सर्टिफिकेट लेकर अपने कई उत्पाद बाजार में उतार रही हैं. यह अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी हो गई है. इसका फायदा सिर्फ मुसलमानों को मिल रहा है. शायद इसीलिए सी.टी. रवि इसे आर्थिक जिहाद मानते हैं.’

पूर्व आईपीएस अधिकारी एम. नागेश्वर राव का कहना है कि उनका मिशन ‘हिंदुओं के लिए समान अधिकारों’ को सुरक्षित करना है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि आरएसएस और भाजपा कर्नाटक के समाज का ‘छद्म-हिंदुत्व’ पर ध्रुवीकरण कर रहे हैं.

मंदिर परिसर के पास गैर-हिंदुओं को अनुमति नहीं दिए जाने की घटनाओं पर ऑर्गेनाइजर ने कर्नाटक से एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की.

उन्होंने लिखा, ‘हिंदू कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि बेंगलुरू में मैजेस्टिक के मध्य क्षेत्र में उप्परपेट में श्री हनुमान मंदिर के परिसर में कई गैर-हिंदू चप्पल (जूते) की दुकानों के मालिक हैं. हालांकि पट्टे की अवधि 2014 में खत्म हो गई थी. लेकिन इन दुकानदारों ने आज तक अनधिकृत तरीके से अपना कारोबार जारी रखा हुआ है.’

राज्य-स्तर पर काम कर रहे एक हिंदू कार्यकर्ता ने कहा, ‘हम संविधान में विश्वास रखते हैं लेकिन मुसलमानों को इस पर विश्वास नहीं है. जब हाई कोर्ट ने हिजाब पहनने पर रोक लगा दी है, उसके बाद भी मुसलमानों ने बंद में हिस्सा लिया और हाईकोर्ट के आदेशों का उल्लंघन किया. जब वे संविधान का सम्मान नहीं करते हैं, तो हम उनसे सामान क्यों खरीदें. इसलिए हमने तय किया है कि मुसलमानों को हिंदू समारोह में व्यवसाय करने की अनुमति नहीं देंगे.’


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‘प्रतिभाओं का इस्तेमाल नहीं किया तो देश की युवा आबादी का फायदा नहीं उठा पाएंगे’

हिंदुवादी समर्थक संगठन बेरोजगारी जैसी समस्या पर अपनी तरह से पड़ताल कर रहे हैं. स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने इन चुनौतियों के समाधान पर एक लेख लिखा है.

महाजन ने लिखा, ‘इस समस्या को एक या सरकार की नीतियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. यह आजादी के बाद से सत्ता में रही सरकारों की गलत आर्थिक नीतियों की वजह से है. पहले समाजवाद और वैश्वीकरण और फिर 1991 के बाद निजीकरण की गलत निर्देशित नीति के नाम पर देश को चलाते रहे. आज आवश्यकता इस समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में आगे बढ़ने की है, न कि इस मुद्दे पर राजनीति करने की.’

उन्होंने लिखा, ‘दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी, हमारे पास है और इसे ‘यंगिस्तान’ कहा जाता है और यह सही भी है. ऐसा माना जाता है कि हमारे देश में यह स्थिति 2042 तक रहने वाली है. आज 15 साल से 29 साल की उम्र के युवाओं की जनसंख्या, कुल जनसंख्या का 28 प्रतिशत है. लेकिन अगर हम इन युवाओं की प्रतिभा और कौशल का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाए, तो इस युवा आबादी से मिलने वाला फायदा बेकार चला जाएगा.’

महाजन ने कहा कि रोजगार के अवसर घटे हैं क्योंकि छोटे व्यापारियों, कारीगरों और कृषि और छोटे उद्यमों में लगे पारंपरिक व्यवसायों को ‘वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के दौरान पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था.’

उन्होंने आगे कहा कि स्वदेशी जागरण मंच और आरएसएस से जुड़े अन्य संगठनों द्वारा शुरू किया गया एक नया अभियान ‘नौकरियों की तलाश के बजाय युवाओं में उद्यमिता विकास की भावना पैदा करने की कोशिश करेगा’

‘आप’ बीजेपी-कांग्रेस का विकल्प नहीं

पांचजन्य में महान उर्दू कवि गालिब के शेर ‘बड़े बे-आबरू होकर, हर कूचे से ये निकले’ वाले नामक एक लेख में, दक्षिणपंथी लेखक और पत्रकार प्रदीप सरदाना ने आम आदमी पार्टी (आप) पर निशाना साधा है.

पिछले महीने पंजाब विधानसभा चुनाव में आप को मिली मिली जीत पर उन्होंने कहा, ‘आप के कुछ नेता दावा कर रहे हैं कि पूरे देश ने ‘केजरीवाल मॉडल’ को स्वीकार कर लिया है. यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि आप देश की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बन गई है. कुछ लोग आप को कांग्रेस का विकल्प बताने लगे हैं तो कुछ ने आप को भाजपा का विकल्प कहना शुरू कर दिया है.’

यह बताने का प्रयास करते हुए कि आप ने पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में खराब प्रदर्शन किया है, सरदाना ने लिखा, ‘सवाल यह है कि इन दावों का आधार क्या है? चूंकि ये दावे हाल के विधानसभा चुनावों के बाद किए गए हैं, इसलिए उनके परिणामों का इस तरह से आकलन करना सही नहीं है. पंजाब के अलावा जहां भी चुनाव हुए केजरीवाल और उनकी आप पार्टी को अन्य राज्यों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है.’

एक अन्य दक्षिणपंथी स्तंभकार गोविंद राज शेनॉय भी केजरीवाल और उनके शासन मॉडल की आलोचना करने वाले सुरों में सुर मिलाते नजर आए.

शेनॉय ने ऑर्गनाइज़र में लिखा, ‘केजरीवाल को ‘अन्ना आंदोलन’  से लोकप्रियता मिली थी. उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था, ‘मुझे लगता है कि सभी समस्याओं की जड़ ये कुर्सी (पॉवर) है. जो भी उस पर बैठता है भ्रष्ट हो जाता है. आज भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाला, अगर कुर्सी पर बैठ जाए तो हो सकता है कि वो भी आगे चलकर भ्रष्ट हो जाए.’ वह लिखते हैं, ‘ये उनकी भविष्यवाणी थी! आम आदमी पार्टी ने रॉबर्ट वाड्रा की मदद करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों को टिकट दिया है. उन पर सबसे अधिक बोली लगाने वालों को टिकट और राज्यसभा की सीटें बेचने का आरोप भी लगाया गया है.’

उन्होंने बग्गा के खिलाफ कथित तौर पर सांप्रदायिक दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों का जिक्र करते हुए लिखा है, ‘ट्विटर पर पीएम मोदी को ‘कायर और मनोरोगी‘ बताने के बाद, केजरीवाल इन दिनों शायद कुछ ज्यादा ही भावुक हो गए हैं. उनकी आलोचना करने के आरोप में भाजपा के युवा नेता तजिंदर बग्गा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. व्यावहारिक रूप से, केजरीवाल ने वह सब कुछ किया है जिसका उन्होंने 2013 से पहले विरोध किया था. ‘कुर्सी’ ने ‘आम आदमी’ को ‘खास आदमी’ में बदल दिया है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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