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Tuesday, 12 August, 2025
होमरिपोर्टतीन दिवसीय कैथी लिपि प्रशिक्षण एवं कार्यशाला का शुभारंभ

तीन दिवसीय कैथी लिपि प्रशिक्षण एवं कार्यशाला का शुभारंभ

बुद्ध स्मृति पार्क संग्रहालय के सहायक संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिवकुमार मिश्र ने कहा कि कैथी लिपि से अनभिज्ञता के कारण बिहार के कई पाषाण लेखों को विद्वानों ने ‘प्रोटो नागरी’ कहा या उन्हें सिर्फ शिलालेख मानकर छोड़ दिया.

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पटना: मैथिली साहित्य संस्थान, अनरियल टेक और कौंसिल फॉर डायवर्सिटी एंड इनोवेशन के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को विद्यापति भवन में तीन दिवसीय कैथी लिपि प्रशिक्षण एवं कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. कार्यक्रम में इतिहासकार एवं कैथी लिपि विशेषज्ञ भैरव लाल दास ने कहा कि कैथी लिपि में बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत दर्ज है और इसे संरक्षित रखना सामूहिक जिम्मेदारी है. उन्होंने बताया कि इस लिपि में नौ भाषाएं लिखी जाती थीं और सैकड़ों शिलालेख, पांडुलिपियां, धार्मिक ग्रंथ, डायरी और महाजनी दस्तावेज आज भी उपलब्ध हैं. बाबू वीर कुंवर सिंह, पं. राजकुमार शुक्ल, भिखारी ठाकुर, रघुवीर नारायण और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे महापुरुष भी इस लिपि का उपयोग करते थे.

दास ने कहा कि भोजपुरी को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करने के लिए कैथी लिपि के ऐतिहासिक संदर्भों को प्रस्तुत करना जरूरी है. उन्होंने बताया कि शेरशाह के शासनकाल से पहले ही जमीन के दस्तावेज कैथी में लिखे जाने लगे थे और इस लिपि की जानकारी के अभाव में न्यायालयों में जमीन विवाद अधिक समय तक लंबित रहते हैं.

बुद्ध स्मृति पार्क संग्रहालय के सहायक संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिवकुमार मिश्र ने कहा कि कैथी लिपि से अनभिज्ञता के कारण बिहार के कई पाषाण लेखों को विद्वानों ने ‘प्रोटो नागरी’ कहा या उन्हें सिर्फ शिलालेख मानकर छोड़ दिया. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैमूर जिले के बैजनाथ मंदिर, भागलपुर के बटेश्वरस्थान मंदिर, अंधरा ठाढ़ी के विष्णु मंदिर और मधेपुरा के श्रीनगर मंदिर के शिलालेख कैथी लिपि में हैं. मिश्र ने संस्कृत के प्रति झुकाव और कैथी की उपेक्षा का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘मगरधज जोगी’ को विद्वानों ने ‘मकरध्वज योगी’ बना दिया, जबकि ज्योतिरीश्वर ने अपने वर्णरत्नाकर में ‘मगरधज जोगी’ का ही उल्लेख किया है.

कार्यशाला में सोनपुर कॉलेज के प्रो. ध्रुव कुमार ने भी विचार रखे. शुभारंभ समारोह का संयोजन मोहित कुमार ने किया, जबकि स्वागत, विषय प्रवेश और धन्यवाद ज्ञापन रीतेश कुमार ने किया.

कार्यशाला में बीएचयू में कैथी लिपि पर शोध कर रहे प्रीतम कुमार रिसोर्स पर्सन के रूप में मौजूद रहे. उन्होंने भक्ति काल के मलूक दास की पांडुलिपि और बटेश्वरस्थान मंदिर के शिलालेख सहित कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों की खोज और अनुवाद किया है. दूसरे रिसोर्स पर्सन वकार अहमद ने कैथी में जमीन के दस्तावेज पढ़ने के साथ उर्दू और फारसी भाषा में भी दक्षता हासिल की है.

प्रशिक्षण में शामिल 40 प्रतिभागियों में इतिहासकार, शोधकर्ता, पुरातत्वविद, अमीन और अधिवक्ता शामिल हैं, जिनमें डॉ. विनय कर्ण, अमृता शांभवी, सुमित कुमार, रंजीत, वंदना और आयुशी रॉय प्रमुख हैं.

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