रायपुर: मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की नक्सल उन्मूलन नीति और किसानों की आय बढ़ाने वाली पहलों का असर बस्तर में साफ दिखाई दे रहा है. कभी नक्सल प्रभावित और पिछड़े माने जाने वाले इस क्षेत्र में अब खेती-बाड़ी नई पहचान बना रही है. पारंपरिक धान और सरसों के साथ अब यहां बड़े पैमाने पर साग-सब्जी, फल और फूलों की खेती हो रही है. नतीजतन, बस्तर में गोलियों की आवाज़ की जगह अब फलों और फूलों की खुशबू महसूस की जा रही है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2001-02 में बस्तर में सब्जियों की खेती का रकबा 1,839 हेक्टेयर था, जो बढ़कर अब 12,340 हेक्टेयर हो गया है. उत्पादन भी 18,543 मीट्रिक टन से बढ़कर 1.90 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है.
फलों की खेती में भी बड़ा विस्तार देखने को मिला है. फलों का रकबा 643 हेक्टेयर से बढ़कर 14,420 हेक्टेयर हो गया है और उत्पादन 4,457 मीट्रिक टन से बढ़कर 64,712 मीट्रिक टन तक पहुंच चुका है. वहीं, कभी न के बराबर होने वाली फूलों की खेती अब 207 हेक्टेयर में 1,300 मीट्रिक टन उत्पादन दे रही है.
इसके साथ ही मसालों का उत्पादन भी 1,100 हेक्टेयर क्षेत्र में बढ़कर 9,327 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है. औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती से भी किसानों को अतिरिक्त आय मिल रही है.
इस बदलाव के पीछे सरकार की तकनीकी और वित्तीय सहायता की अहम भूमिका रही है. शेडनेट योजना, प्रधानमंत्री सूक्ष्म सिंचाई योजना और राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों को रियायती दरों पर संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं. जिले में 3.80 लाख वर्गमीटर क्षेत्र में शेडनेट हाउस, 19 हजार वर्गमीटर में पॉली हाउस और 1.47 लाख वर्गमीटर में हाईब्रिड बीज उत्पादन की व्यवस्था की गई है. जगदलपुर के आसना में रोग-मुक्त पौध तैयार करने के लिए प्लग टाइप वेजिटेबल सीडलिंग यूनिट भी स्थापित है.
सिंचाई व्यवस्था में भी सुधार हुआ है. लगभग 3,500 हेक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया गया है, जिससे पानी की बचत के साथ उत्पादन बढ़ रहा है. बास्तानार में कॉफी की खेती 58.64 हेक्टेयर में और ड्रैगन फ्रूट की खेती 20 हेक्टेयर में की जा रही है.
बस्तर का यह परिवर्तन केवल आंकड़ों की कहानी नहीं, बल्कि उन किसानों की बदली ज़िंदगी का प्रमाण है, जो कभी असुरक्षा और अनिश्चितता के बीच खेती करते थे. अब वे आधुनिक तकनीक, प्रशिक्षण और सरकारी सहयोग की मदद से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं.
