नई दिल्ली: नई दिल्ली में एक चमकीली रविवार की सुबह ड्रम की आवाज़ के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के परिसर में प्रवेश किया, और हाथ में सेंगोल– सोने की परत चढ़े चांदी के राजदंड – को हाथ में लेकर प्रतिष्ठित भवन का उद्घाटन किया.
हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर की जयंती के मौके पर, उद्घाटन की शुरुआत मोदी ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए की.
इसके तुरंत बाद, प्रधानमंत्री ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के साथ, एक हवन में भाग लिया.
पांच फुट लंबे राजदंड को तब संतों द्वारा – जो तमिलनाडु के बाहर स्थित विभिन्न मठों से आए थे – प्रधानमंत्री को सौंप दिया गया जो धीरे-धीरे नए लोकसभा कक्ष की ओर चले गए ताकि इसे स्पीकर की सीट के बगल में रखा जा सके.
नए लोकसभा कक्ष को राष्ट्रीय पक्षी मोर और नए राज्यसभा कक्ष को राष्ट्रीय फूल कमल के थीम पर बनाया गया है.
‘सेंगोल’ एक नए शासक के हाथों में राजदंड देकर एक नए शासक का अभिषेक करने की तमिल चोल साम्राज्य परंपरा है. चेन्नई के जौहरी वुम्मिदी बंगारू द्वारा बनाए गए औपचारिक राजदंड पर अंतिम नज़र डालने के बाद पीएम मोदी एक प्रार्थना सभा में भाग लेने के लिए आगे बढ़े, जिसमें सरकार के अनुसार, सभी धर्मों के प्रतिनिधि मौजूद थे.
‘सेंगोल’ को लेकर विवाद
प्रार्थना सभा से पहले, मोदी ने नए भवन के निर्माण में शामिल श्रमिकों का अभिवादन किया, जिसमें झारखंड के मुज़फ़्फ़र खान (मशीनों की निगरानी और मरम्मत कार्य करने वाले मैकेनिक) और दिल्ली के धर्मेंद्र, जो गैस वेल्डिंग का काम करते थे, शामिल थे .
पीएम ने एक स्मारक पट्टिका का भी अनावरण किया और नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया.
शुक्रवार को, पीएम ने अपने आधिकारिक आवास पर तमिलनाडु स्थित अधीनम के साधुओं से मुलाकात की थी, जिन्होंने धार्मिक मंत्रोच्चारण के बीच मोदी को पवित्र राजदंड सौंप दिया था. देश भर के विभिन्न अधीनमों से साठ संतों को दिल्ली लाया गया है. इनमें ज्यादातर तमिलनाडु के हैं.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेताओं के यह कहने के बाद ‘सेंगोल’ विवादों में घिर गया था, कि यह पहले माउंटबेटन द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करते वक्त यह राजदंड 14 अगस्त, 1947 को नेहरू को सौंपा गया था. हालांकि, कांग्रेस ने इस दावे को विवादित बताया है.
कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि शाह के बयान के समर्थन में कोई सबूत नहीं है और आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार तमिलनाडु में अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए राजदंड का इस्तेमाल कर रही है.
इस बीच, पीएम के अलावा, समारोह में भाग लेने वालों में शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और शिवसेना (शिंदे गुट) के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शामिल थे.
हालांकि, भाजपा पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को कार्यक्रम के लिए आमंत्रित न करके उनका अपमान करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सहित 20 विपक्षी दलों ने उद्घाटन का बहिष्कार किया.
चार दिन पहले एक संयुक्त बयान में, 19 विपक्षी दलों ने कहा था: “जब संसद से लोकतंत्र की आत्मा को बाहर निकाल लिया गया, तो हमें इस नई इमारत का कोई मूल्य नहीं लगता है.”
समारोह में मोदी की अग्रणी भूमिका को भारत के लोकतंत्र पर “सीधा हमला” बताते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के बिना संसद “काम नहीं कर सकती.”
नई संसद संरचना
लोकसभा और राज्यसभा में क्रमशः बढ़ी हुई सीटों – 552 से 888 और 245 से 384 सीटें – के अलावा दोनों हॉलों को हाथ से बुने हुए कालीनों से सुसज्जित किया गया है, जो उत्तर प्रदेश के करीब 900 कारीगरों द्वारा बुने गए थे.
नए भवन का शिलान्यास 2020 के अंत में किया गया था और इसे लगभग 971 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था.
नए संसद भवन में उपयोग के लिए देश भर से सामग्री मंगवाई गई थी, जिसमें फर्श के लिए त्रिपुरा से बांस, राजस्थान के सरमथुरा से लाल-सफेद बलुआ पत्थर और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से कालीन शामिल थे.
नए संसद भवन के लिए सेंट्रल विस्टा वेबसाइट के अनुसार, 65,000 वर्ग मीटर के निर्मित क्षेत्र के साथ, पुराने भवन में पर्याप्त बैठने की कमी के साथ-साथ संरचनात्मक और अन्य मुद्दों के कारण नए भवन की आवश्यकता उत्पन्न हुई.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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