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Tuesday, 31 December, 2024
होमरिपोर्टकोड़े मारना, नंगे पांव चलना — अन्नामलाई दर्द सहने को तैयार हैं क्योंकि मोदी-शाह की तमिलनाडु में प्राथमिकताएं बदल रही हैं

कोड़े मारना, नंगे पांव चलना — अन्नामलाई दर्द सहने को तैयार हैं क्योंकि मोदी-शाह की तमिलनाडु में प्राथमिकताएं बदल रही हैं

तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष ने एक छात्रा के यौन उत्पीड़न के विरोध में सार्वजनिक रूप से खुद को कोड़े मारे. हालांकि, उन्हें इस बात से दुख हुआ होगा कि न तो मोदी-शाह-नड्डा और न ही राष्ट्रीय भाजपा ने सार्वजनिक रूप से उन्हें सराहा है.

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शुक्रवार को कोयंबटूर में अपने घर के बाहर बिना शर्ट के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने खुद को छह बार कोड़े मारे, जो राष्ट्रीय सुर्खियों में रहा. यह चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी में एक छात्रा के साथ हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ उनके पश्चाताप और विरोध का प्रतीक था. राज्य में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के सत्ता से बेदखल होने तक अन्नामलाई ने पांव में जूते या चप्पल नहीं पहनने की कसम खाई है, जिसे निभाना भी चुनौतीपूर्ण होगा.

हालांकि, उन्हें यह देखकर अधिक दुख हो सकता है कि पार्टी हाईकमान से कोई अभीस्वीकृति नहीं मिली — कम से कम सार्वजनिक रूप से तो नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अन्नामलाई की पीड़ा के बारे में एक्स पर भी कोई पोस्ट नहीं किया. न ही राष्ट्रीय भाजपा इकाई ने कुछ कहा.

यह बात पूर्व आईपीएस अधिकारी को और भी चुभ रही होगी. मई 2019 में जब उन्होंने पुलिस सेवा छोड़ी थी, तब 2011 बैच के कर्नाटक कैडर के अधिकारी की उम्र बमुश्किल 35 साल थी. कैलाश मानसरोवर की यात्रा ने ज़ाहिर तौर पर उन्हें अपनी ज़िंदगी की प्राथमिकताएं तय करने में मदद की.


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सपनों से भरी उड़ान

बतौर आईपीएस अधिकारी उन्होंने सिंघम की ख्याति अर्जित की. कुछ महीने बाद, अन्नामलाई भाजपा में शामिल हो गए. कोई नहीं जानता कि किसने या किस चीज़ ने उन्हें राजनीति में उतरने के लिए प्रेरित किया. बेशक, सिंघम के किरदार ने नहीं. क्योंकि सिंघम फिल्म में मुख्य खलनायक, राजनेता-अपराधी जयकांत शिकरे (प्रकाश राज) को खत्म करने में सफल रहे. अशोक सराफ, जो फिल्म में एक निराश, मोहभंग हुए कांस्टेबल की भूमिका में हैं, फिल्म में कहते हैं: “इस देश की राजनीति में सिस्टम हो न हो…यहां के सिस्टम में राजनीति ज़रूर चलती है.” क्या यह तत्कालीन पुलिस उपायुक्त, बेंगलुरु (दक्षिण) के लिए एक रहस्योद्घाटन के रूप में आया था? कहना मुश्किल है या, शायद, अन्नामलाई ने शिकरे को गंभीरता से लिया: “मिनिस्टर लोग मेरे पीछे और पुलिस लोग मेरी जेब में रहते हैं.”

जो भी हो, अन्नामलाई ने एक राजनेता के रूप में सपनों की उड़ान भरी. राजनीति में आने के बमुश्किल एक साल बाद, वे जुलाई 2021 में भाजपा के तमिलनाडु अध्यक्ष बन गए और जल्द ही राज्य में विपक्ष की प्रमुख आवाज़ के रूप में उभरे, जो कि द्रविड़ भूमि में भाजपा के राजनीतिक वज़न को देखते हुए बहुत बड़ा था. ऐसा लगता था कि हिंदुत्व, पीएम मोदी की लोकप्रिय अपील के बल पर, तमिलनाडु की राजनीति में एक नई ताकत बन सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 2024 के लोकसभा चुनाव एक बड़ी निराशा के रूप में आए. अन्नामलाई जल्द ही तीन महीने के लिए तमिलनाडु छोड़कर यूके में शेवनिंग फेलोशिप पर चले गए.

पिछले शुक्रवार को, अन्नामलाई ने सार्वजनिक रूप से खुद को कोड़े मारकर अपनी वापसी की घोषणा की. तो, उनके लिए क्या होने वाला है? निश्चित रूप से आगे वक्त मुश्किल है.

सबसे पहले, उन्हें जनवरी में होने वाले संगठनात्मक चुनावों में तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल मिलने की उम्मीद करनी चाहिए. इसके लिए उन्हें हाईकमान का आशीर्वाद चाहिए होगा, लेकिन मोदी और शाह इस समय तमिलनाडु में पार्टी को लेकर उत्सुक नहीं दिख रहे हैं. लोकसभा चुनाव तक, मोदी ने 2024 में सात बार राज्य का दौरा किया. शाह ने भी कई बार दौरा किया. चुनाव के बाद वे वापस नहीं लौटे हैं.

निराश मोदी-शाह

तो क्या मोदी और शाह ने तमिलनाडु में भाजपा के विस्तार की उम्मीद छोड़ दी है? संसदीय चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से निराशाजनक थे, खासकर अन्नामलाई से जुड़ी उच्च उम्मीदों को देखते हुए. भाजपा ने पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) और जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार) सहित आठ सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ा था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को एक भी सीट नहीं मिली. भाजपा ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा — जिनमें से चार सीटों पर सहयोगी दलों ने भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा. हालांकि उसे 11.38 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली.

2024 में इस दोहरे अंकों के वोटशेयर से भाजपा समर्थकों को एक बल मिला. इसकी तुलना में 2019 में भाजपा का वोटशेयर केवल 3.62 प्रतिशत था, जब एनडीए एक बहुत मजबूत छत्र था, जिसमें तत्कालीन सत्तारूढ़ अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके), पीएमके, देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कषगम (डीएमडीके) और तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) शामिल थे.

2014 में, AIADMK NDA का हिस्सा नहीं थी. भाजपा ने PMK, DMDK और मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कषगम (MDMK) के साथ गठबंधन किया था. भाजपा ने 8 सीटों पर चुनाव लड़कर 5.56 प्रतिशत वोट हासिल किए. इसलिए, पिछले तीन लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन को उसके द्वारा लड़ी गई सीटों की संख्या के संदर्भ में देखा जाना चाहिए — 2014 में 5.56 प्रतिशत वोट (8 सीटें), 2019 में 3.62 प्रतिशत (5 सीटें), और 2024 में 11.38 प्रतिशत (23 सीटें).

ये संख्याएं निश्चित रूप से तमिलनाडु में भाजपा के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के बारे में बहुत अधिक विश्वास नहीं जगाती हैं. कोयंबटूर में अन्नामलाई हार गए, लेकिन उन्हें 32.79 प्रतिशत वोट मिले. तुलना के लिए, भाजपा उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को 2019 में 31.47 प्रतिशत और 2014 में 33.62 प्रतिशत वोट मिले. यहां यह मत भूलिए कि कोयंबटूर लंबे समय से भाजपा का गढ़ रहा है — राधाकृष्णन ने 1999 में वहां जीत हासिल की और 2004 में 39 प्रतिशत वोटशेयर के साथ दूसरे स्थान पर रहे.

तो, हां, अगर आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो मोदी और शाह के पास 2024 के लोकसभा नतीजों से निराश होने के कारण हो सकते हैं क्योंकि पार्टी द्रविड़ भूमि पर अपनी छाप छोड़ने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में दिखाई दे रही थी.


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अन्नामलाई युद्ध के लिए तैयार

कोई हैरानी नहीं कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले AIADMK के साथ फिर से जुड़ना चाह रहा है. इसने अन्नामलाई को AIADMK के खिलाफ अपनी तीखी टिप्पणियों को त्यागने और विपक्षी दलों के साथ हाथ मिलाने की इच्छा व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया है, जहां तक AIADMK महासचिव पलानीस्वामी की भाजपा के खिलाफ आपत्ति का सवाल है, अन्नामलाई ने कहा, “लेट्स वेट एंड वॉच”.

अन्नामलाई थोड़े बदले हुए व्यक्ति लग रहे हैं — एक ऐसे व्यक्ति से जो एक वक्त पर सभी द्रविड़ दलों से मुकाबला करना चाहता था. वे जानते हैं कि पार्टी आलाकमान के पास दीर्घकालिक विस्तार की योजनाएं हो सकती हैं, लेकिन 2026 के विधानसभा चुनावों के बाद सत्तारूढ़ पक्ष में रहना प्राथमिकता है. अगर इसका मतलब विस्तार की योजनाओं को टालना है, तो क्यों नहीं.

लेकिन यह तात्कालिक लक्ष्य भी कठिन होता जा रहा है. अभिनेता विजय राजनीति में प्रवेश करने के बाद तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं और वे भाजपा को अपना “वैचारिक दुश्मन” मानते हैं. पलानीस्वामी और विजय को डीएमके के खिलाफ अपनी लड़ाई में भाजपा को बाहर रखने में एक साझा कारण मिल सकता है.

बीजेपी के लिए मामले को बदतर बनाने के लिए, पीएमके — पिछले तीन लोकसभा चुनावों और 2021 के विधानसभा चुनाव में एनडीए की सहयोगी रही है — पार्टी के संस्थापक एस रामदास और उनके बेटे और पार्टी अध्यक्ष अंबुमणि रामदास के रविवार को टकराव की राह पर जाने से संकट में दिख रही है. अगर वे अलग होने का फैसला करते हैं, तो यह सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए किसी न किसी तरह से मददगार साबित होगा. वैसे ऐसा लगता नहीं.

जैसा कि है, राजनीति में चार साल के सुनहरे दौर के बाद अन्नामलाई बहुत मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं. तमिलनाडु में मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए, उनके लिए सबसे अच्छा परिदृश्य यह हो सकता है कि अगर 2026 में डीएमके सत्ता खो देती है, तो वे फिर से अपने जूते औप चप्पल को पहन सकते हैं, लेकिन, जिसने द्रविड़ राजनीति के युग को खत्म होने की बात की हो, उसके लिए यह शायद ही कोई सांत्वना होगी.

हालांकि, अगला विधानसभा चुनाव 15 महीने दूर है. राजनीति में परिदृश्य बदलने के लिए यह बहुत समय है. और अन्नामलाई को एक शाश्वत आशावादी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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