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Sunday, 22 December, 2024
होमडिफेंसजल्दी अदला-बदली, 24 घंटे की मेडिकल सहायता- लद्दाख की सर्दियों में मौसम से कैसे निपट रही है सेना

जल्दी अदला-बदली, 24 घंटे की मेडिकल सहायता- लद्दाख की सर्दियों में मौसम से कैसे निपट रही है सेना

भारतीय सेना के पास ऊंचाइयों पर रहने का, चीनियों से कहीं अधिक अनुभव है, और लद्दाख़ में सर्दियां बढ़ने के साथ ही, पूरी तैयारियां हो चुकी हैं, कि सैनिक पूरी तरह फिट रहें.

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नई दिल्ली: सैनिकों की तेज़ी से अदला-बदली 24 घंटे की चिकित्सा सहायता और अधिक ऊंचाईयों पर तैनाती के बरसों के अनुभव पर आधारित स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स- यही वो चीज़ें हैं जो सुनिश्चित कर रही हैं कि भारतीय सैनिक पूर्वी लद्दाख़ की कड़कड़ाती ठंड में लड़ने के लिए फिट रहें.

रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि देपसांग के मैदानों और पैंगोन्ग त्सो के ऊपर की पहाड़ियों पर, हल्की से मध्यम बर्फबारी हुई है. कुछ समय से तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चला गया है, जिसके और नीचे जाने का अनुमान है और संभावना है कि जनवरी आते आते पैंगोंग झील पूरी तरह जम सकती है.

एक सूत्र ने कहा, ‘पूर्वी लद्दाख में समस्या बर्फबारी या तापमान में गिरावट नहीं है. समस्या ठंडी हवाएं और बर्फानी तूफान हैं. ये हवाएं बहुत तेज़ रफ्तार से चलती हैं.’

सूत्रों ने कहा कि टेम्प्रेचर्स के गिरने के साथ ही भारत और चीन दोनों ओर ग़ैर-घातक हताहतों की संख्या भी बढ़ गई है, लेकिन उन्होंने ये भी कहा, कि भारतीय सैनिकों में ये संख्या अपेक्षित सीमा के अंदर है और बिल्कुल भी चिंताजनक नहीं है.

कठोर परिस्थितियों का अनुभव

सेना ने पहले ही अपने सैनिकों के लिए, गर्म आवासीय सुविधाएं स्थापित कर दी हैं, और सुनिश्चित किया है कि अमेरिका से ख़रीदी गईं, विशेष पोशाकें सभी सैनिकों को मिल जाएं.

इसके अलावा, सेना ने अग्रिम स्थानों पर तैनात सैनिकों के लिए आर्कटिक टैंट्स भी लगाए हैं.

लेकिन, चीन के साथ तनावपूर्ण गतिरोध के चलते, सैनिकों को उन गर्म आवासों से बाहर समय बिताना होगा, जो उनके लिए बनाए गए हैं.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘भारत और चीन दोनों के लिए, मौसम एक आम चुनौती है. हमारे सैनिक ख़ासकर सियाचिन में, और नियंत्रण रेखा पर कुछ जगहों पर, इससे कहीं ज़्यादा कठोर तैनातियां देख चुके हैं. इसलिए वो क़ुदरत की ऐसी अनिश्तितताओं से निपटने के लिए, मानसिक रूप से ज़्यादा तैयार हैं’.

इस सूत्र ने कहा, ‘उसके इलावा, बरसों की तैनाती से व्यक्तिगत स्तर पर ये समझ आ गई है कि ऐसे कठोर मौसम में, तैनाती के दौरान अपनी देखभाल किस तरह करनी चाहिए’.

सूत्रों ने कहा, कि सियाचिन में बरसों की तैनाती से, सेना ने बहुत कुछ सीखा है.

एक सूत्र ने कहा, ‘इसके कोई शक नहीं कि सर्दियों में, हताहतों की संख्या बढ़ेगी. जब हम पहली बार सियाचिन पर गए थे, तो संघर्षण दर काफी ऊंची थी. समय के साथ ये कम हो गई है, और सेना अब कहीं बेहतर स्थिति में है, कि संघर्षण दर को कम से कम रखे. लेकिन, कभी कभी किसी की व्यक्तिगत शारीरिक बाधाएं आड़े आ जाती हैं’.

सूत्र ने कहा कि लद्दाख़ में फ्रंट पर तैनात सैनिकों ने देखा है, कि चीनी सैनिकों को अग्रिम तैनाती से ज़्यादा परेशानी हो रही है, क्योंकि वो इसके आदी नहीं हैं.

लद्दाख़ में ऑल्टीट्यूड्स ‘ऊंचे’ (समुद्र तल से 8,000-12,000 फीट ऊपर) से लेकर, ‘बेहद ऊंचे’ (15,000 फीट या उससे ऊंची) के बीच होते हैं. यहां तापमान माइनस 30-40 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है. उसके अलावा, थोड़े समय के लिए सड़क मार्ग भी प्रभावित हो जाता है.

ऊंचे ऑल्टीट्यूड का मतलब है, कि हवा में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जिससे इंसानी शरीर की गतिशीलता पर असर पड़ता है, जैसे तेज़ चलना या वज़न उठाना.

पूर्वी लद्दाख़ में एक बटालियन के पूर्व कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) ने, जो अपनी पहचान छिपाना चाहते थे, कहा कि किसी भी सीओ का पहला उद्देश्य ये होता है, कि उसे लोग सुरक्षित रहें.

पूर्व सीओ ने कहा, ‘आपके सामने अभी भी मौसम से जुड़े मेडिकल केस आएंगे, लेकिन वो सब अपेक्षित होते हैं, और उनका हिसाब रखा जाता है. पूर्वी लद्दाख़ में चीज़ें थोड़ी अलग होंगी, चूंकि कुछ जगहों पर सैनिक पहली बार तैनात किए गए हैं. लेकिन एक चीज़ जो नहीं भूलनी चाहिए, वो ये कि एलएसी (14 कोर) का कोर इंचार्ज, सियाचिन ग्लेशियर का इंचार्ज भी होता है’.

चौबीसों घंटे चिकित्सा सुविधाएं

ऐसी जगहों में सर्दियों के सबसे बड़े साइड-इफेक्ट्स बिवाई (त्वचा की रक्त धमनियों में सूजन), फ्रॉस्टबाइट्स, हाइपोथर्मिया, और दिल व फेफड़ों की बीमारियां होती हैं.

सूत्रों ने कहा कि ये सुनिश्चित करने पर बहुत ध्यान दिया गया है, कि चिकित्सा टीमें अपने आदर्श स्तर पर काम कर सकें.


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अक्तूबर में, भारतीय सेना ने एक नई उपलब्धि हासिल की, जब उसने पूर्वी लद्दाख़ में 16,000 फीट की ऊंचाई पर, खोद कर बनाए गए एक फॉर्वर्ड सर्जिकल सेंटर में, कामयाबी के साथ एक सैनिक का एपेंडिक्स निकाल दिया. मौसम की वजह से सैनिक को चॉपर से लेह नहीं लाया जा सकता था, इसलिए ऑपरेशन को फॉर्वर्ड सर्जिकल सेंटर पर ही करना था.

सूत्रों ने कहा कि हर डिवीज़न के पास, दो मुकम्मल चिकित्सा टीमें हैं, जबकि हर ब्रिगेड के पास एक चिकित्सा टीम है. बटालियन के स्तर पर, एक डॉक्टर और दो या तीन नर्सिंग सहायक जुड़े होते हैं. एक सूत्र ने कहा कि ये टीमें अपने अटैंचमेंट्स के साथ गई हैं. उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर सैनिकों की तैनाती को देखते हुए, अतिरिक्त चिकित्सा टीमें और इनफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराए गए हैं.

फील्ड अस्पताल सभी तरह के कैजुअल्टी इलाज में सक्षम रहते हैं, जिनमें मामूली सर्जरी और घायल सैनिक को स्थिर करना शामिल हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘इसके अलावा, लेह में आर्मी अस्पताल भी है, जिसमें क़रीब 300 बिस्तर और विशेष टीमें हैं’. उन्होंने आगे कहा कि ज़रूरत पड़ने पर, घायल या बीमार सैनिक को, चॉपर से वहां पहुंचाया जा सकता है.

ठंड का उपकरणों पर असर

रक्षा सूत्रों ने बताया, कि सेना के सामने एक मसला ये होगा, कि ठंड से उपकरणों पर असर पड़ सकता है- जैसे कि इंजिनों का सीज़ होना, और रख-रखाव मुश्किल हो जाना. हालांकि मरम्मत आदि के लिए, ‘पीछे के इलाक़ों’ में फील्ड डिपो स्थापित किए गए हैं, लेकिन सूत्रों ने माना कि इसमें मुश्किलें पेश आती हैं.

उपकरण काम करता रहे, ये सुनिश्चित करने के लिए, विशेष फ्यूल और लुब्रिकेंट्स की ज़रूरत पड़ती है. और अगर उपकरण अग्रिम इलाक़ों में तैनात हों, तो उनकी मरम्मत आदि में समय लगता है.

भारत ने पूर्वी लद्दाख़ में, 50,000 सैनिक और उपकरण भेज दिए हैं, जिनमें टैंक, तोपख़ाने, वाहन, बख़्तरबंद कार्मिक वाहन, तथा और बहुत कुछ शामिल है.

सैनिकों की अदला-बदली पर विशेष ध्यान

सूत्रों ने कहा कि सैनिकों की जल्दी जल्दी अदला-बदली की जा रही है, ताकि वो लड़ने के लिए बिल्कुल फिट रहें.

आमतौर पर, बटालियनें पूर्वी लद्दाख़ में दो-दो साल के लिए तैनात की जाती हैं. ये सियाचिन के उलट है जहां किसी चौकी पर तैनाती की सामान्य अवधि, क़रीब तीन महीने होती है, और एक सैनिक कुल मिलाकर छह महीने के लिए तैनात होता है, जिसमें पर्युनुकूलन अवधि और चौकियों तक ट्रेक करने का समय शामिल होता है.

सूत्रों ने कहा कि अग्रिम इलाक़ों में तैनात सैनिकों की, तेज़ी से अदला-बदली की जा रही है, चूंकि उन्हें लड़ाई के लिए फिट रहना है. लेकिन भारतीयों के मुक़ाबले चीनी अपने सैनिकों की, ज़्यादा तेज़ी से अदला-बदली कर रहे हैं, जिसकी वजह सूत्र ने ये बताई, कि भारतीयों के उलट चीनियों को, इतनी अधिक ऊंचाई पर तैनाती का, पहले से कोई अनुभव नहीं है.

एक सूत्र ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं कि सर्दियों में, इतनी अधिक ऊंचाइयों में तैनाती बहुत सख़्त होती है. लेकिन ये चुनौती भारत और चीन दोनों के लिए है. हमारे साथ फायदा ये है कि हमारे पास बरसों का अनुभव है, और हमारे सैनिक ऐसी तैनातियों के लिए प्रशिक्षित हैं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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