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Saturday, 21 December, 2024
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युवा, एकांतप्रेमी, प्रतिभाशील – मिलिए BJP का साथ छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए ‘एक और प्रशांत किशोर’ से

सुनील कनुगोलू, जो अभी 40 वर्ष के भी नहीं हैं, भाजपा के प्रचार अभियान से जुड़े संगठन 'एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स' के संस्थापकों में से एक हैं. वह अब तक 14 चुनावों में शामिल हो चुके हैं और सार्वजानिक चकाचौंध से दूर रहते हैं.

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बेंगलुरु: देश में बहुत सारे लोगों ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बारे में सुना होगा, लेकिन उनके ही जैसे एक और व्यक्ति है सुनील कनुगोलु, जिन्हें कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले कर्नाटक में पार्टी के लिए रणनीति बनाने के लिए चुना है, इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.

कनुगोलु भाजपा के लिए खास तौर पर बनाये गए प्रचार अभियान संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स (एबीएम)’ के पूर्व प्रमुख रहे हैं और अब माइंडशेयर एनालिटिक्स का नेतृत्व कर रहे हैं.

कर्नाटक कांग्रेस में अगर कोई उन्हें ‘बाहरी’ कहने की कोशिश करता है तो उनके पास इसका कड़ा जवाब तैयार है. वह राज्य के बल्लारी जिले में पैदा हुए थे और मिडिल स्कूल (माध्यमिक विद्यालय) के स्तर तक वहीँ पढ़े थे.

कनुगोलू अभी 40 साल के भी नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अब तक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के लिए एक दर्जन से अधिक चुनावों की रणनीति बनाई है. करीब एक दशक के लंबे करियर में उन्होंने एक दर्जन से ज्यादा मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया है.

भाजपा से लेकर द्रमुक और अब कर्नाटक में कांग्रेस तक, कनुगोलू प्रशांत किशोर की तरह सदैव मांग में रहने वाले चुनाव प्रचारक हैं.

हालांकि कनुगोलू और किशोर की राहें कई बार एक दूसरे से मिल चुकी हैं, मगर उन दोनों में जो अलग है वह है उनका सार्वजनिक व्यक्तित्व. एक ओर जहां किशोर की जिंदगी और उनके काम को हर किसी ने देख रखा है और वह सार्वजानिक चकाचौंध से नहीं कतराते, वहीं कनुगोलू के मामले में ऐसा लगता है कि वह स्वयं तक ही सीमित रहना पसंद करते हैं.

सोशल मीडिया पर बिना किसी कोई आधिकारिक उपस्थिति के, मीडियाकर्मियों के साथ कोई बातचीत नहीं करने वाले, और अपने काम का कोई प्रचार नहीं करने के कारण, कनुगोलू ने अपनी छवि एक ऐसे आसानी से हाथ न आने वाले और बड़े चुनावी रणनीतिकार के रूप में बनायीं है जो सुर्खियों से दूर रहता है.

उनकी सार्वजनिक पहचान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंटरनेट पर उनकी कोई भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है. उनके भाई सुशील की एक तस्वीर को ही कई लोग कनुगोलू के रूप में पेश करते रहते हैं.

किशोर द्वारा श्रेय का दावा करने की शैली की वजह से उनके ग्राहकों के असंतुष्ट होने की तरफ इशारा करते हुए कनुगोलू के एक पूर्व सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सार्वजनिक चकाचौंध से दूर रहने का विकल्प शायद दो कारणों की वजह से है. एक, तो वह मैकिन्से जैसी संस्था से जुड़े थे और यह एक ऐसी फर्म है जो अपने कर्मचारियों को, फर्म और इसके क्लाइंट या राजनीति पर बात करने के प्रति  हतोत्साहित करती है. ‘

‘दूसरा, बैकरूम स्ट्रैटेजिस्ट (पृष्ठ्भूमि में काम कर रहे रणनीतिकारों) के रूप में, हमारा काम क्लाइंट को श्रेय लेने देना और उसे ही चर्चा में रहने देना है, हमें खुद को केंद्र में नहीं रखना है.’

एक अन्य सूत्र ने बताया कि इसी गुमनामी ने कनुगोलू को बिना किसी रुकावट के स्वतंत्र रूप से सर्वेक्षण करने की आजादी दी हुई है.

सूत्र ने कहा, ‘यहां तक कि अगर वह उम्मदीवारों के चयन के लिए सर्वेक्षण करते समय इच्छुक उम्मीदवारों के साथ किसी एक कमरे में चले जाते हैं, तो भी शायद ही कोई उन्हें पहचान पाता है. इसका मतलब होता है कम हस्तक्षेप और परिणामों को प्रभावित करने का कम प्रयास.’

मोदी के चुनाव विशेषज्ञ से लेकर कांग्रेस के रणनीतिकार तक

उनके बारे में जानकारी रखने वाले लोगों ने दिप्रिंट को बताया, मैकिन्से के साथ एक पूर्व सलाहकार के रूप में जुड़े कनुगोलू का चुनाव परामर्श और रणनीति से जुड़ा पहला मौका सीधे नरेंद्र मोदी के साथ आया – उनके प्रधान मंत्री बनने से बहुत पहले ही.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘उन्होंने आउटरीच (जनसंपर्क) बढ़ाने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करने पर एक प्रस्तुति के साथ मोदी से संपर्क किया और उन्हें एक पोल्स्टर (चुनाव विशेषज्ञ) के रूप में रख लिया गया.’

उनके साथ काम करने वालों के अनुसार, प्रशांत किशोर की उस समय की संस्था ‘सिटीजन्स फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस’ द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए आधिकारिक तौर पर भाजपा के प्रचार अभियान की कमान संभालने से बहुत पहले ही कनुगोलू मोदी के लिए उनके एक व्यक्तिगत पोल्स्टर के रूप में अपनी शुरुआत कर चुके थे. इस प्रचार अभियान के दौरान कनुगोलू और किशोर ने साथ मिलकर काम किया.

2014 के चुनाव के बाद, किशोर ने कई चुनावी रणनीतिकारों, जिन्होंने भाजपा के अभियान पर काम किया था,  को एक साथ लाते हुए सीएजी को इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमिटी (आई-पीएसी) में परिवर्तित कर दिया और फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ चले गए.

अक्टूबर 2016 में, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले, कनुगोलू को भाजपा ने एक ऐसी चुनाव सलाहकार फर्म बनाने का काम सौंपा, जो किशोर को टक्कर दे सके. कनुगोलू ने तब एबीएम का नेतृत्व किया, जिसे उनके साथी चुनावी रणनीतिकार हिमांशु सिंह और गुजराती व्यवसायी दीपक पटेल ने स्थापित किया था.

साल 2018 में कनुगोलू के इस संस्था से बाहर चले जाने के बावजूद, एबीएम ने चुनाव-दर-चुनाव भाजपा के लिए रणनीति बनाना जारी रखा है.

जिन लोगों ने कनुगोलू के साथ काम किया है, वे इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि जहां किशोर का भाजपा, विशेष रूप से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ, गहरा मनमुटाव था, वहीं कनुगोलू का पार्टी के साथ एक सहज कामकाजी संबंध था. यही वह कारक है जिसकी वजह से भाजपा ने उन्हें एबीएम का नेतृत्व करने का जिम्मा सौंपा.

कानुगोलु के 14 चुनावों में से नौ भाजपा के लिए, दो द्रमुक के लिए और अन्य दो अकाली दल तथा अन्नाद्रमुक से साथ रहे है और अब वे कांग्रेस के लिए काम कर रहें हैं.

अगर इससे हमें मदद मिलती हैतो क्यों नहीं?’

कर्नाटक में जन्मे कनुगोलू चेन्नई में रह चुके हैं और वे कुछ साल पहले बेंगलुरु में स्थानांतरित हो गए थे.

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, कनुगोलू ने तीन कंपनियों – एसआर इंडिपेंडेंट फिशरीज प्राइवेट लिमिटेड, एसआर नेचुरो फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और ब्रेनस्टॉर्म इनोवेशन एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड (बीएसआईआर) –  में निदेशक का पद संभाला है, जिनमें से सभी फ़िलहाल बंद हो गए हैं.

बीएसआईआर की अब बंद हो चुकी वेबसाइट पर दी गई एक ब्लर्ब (आवरण परिचय) भी कनुगोलू को इन दो स्टार्ट-अप के सीईओ के रूप में कार्य करने की बात स्वीकार करती है.  इसमें यह भी कहा गया है कि वह चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग स्नातक हैं, और उन्होंने  न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से फाइनांस (वित्त) में मास्टर डिग्री के साथ-साथ  मैनेजमेंट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी प्रबंधन) में मास्टर डिग्री भी प्राप्त की है.

हालांकि बे फ़िलहाल कर्नाटक कांग्रेस के लिए रणनीति बना रहे हैं फिर भी यह कहा जाता है कि कनुगोलू की निगाहें पार्टी के लिए तेलंगाना विधानसभा चुनावों पर भी टिकी हैं.

ऊपर उद्धृत कनुगोलू के पूर्व सहयोगी ने कहा, ‘2017 का उत्तर प्रदेश चुनाव, जिसमें भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की थी,  कनुगोलू के लिए सबसे सफल चुनाव अभियान था.  उन्होंने जिन अन्य चुनावों की रणनीति बनाई, उनमें भले ही उनके क्लाइंट्स की जीत न हुई हो, लेकिन उसके प्रदर्शन पर अच्छा प्रभाव पड़ा.’

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए,  (तमिलनाडु में) डीएमके के लिए उनके 2016 के चुनाव अभियान को लें. हालांकि पार्टी वह चुनाव हार गई, लेकिन उसके द्वारा जीती गई सीटों की संख्या में 66 की वृद्धि हुई.‘

बीजेपी के साथ उनके इतिहास के बारे में कर्नाटक के एक पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि ‘निश्चित रूप से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की इस बारे में चिंताएं थीं’, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ‘उनकी भूमिका स्पष्ट रूप से परिभाषित है.’

इस नेता ने कहा, ‘उन्हें उनकी टीम द्वारा एकत्र किए गए डेटा के चीड्-फाड्/विश्लेषण से जुटाई गई अंतर्दृष्टि (इनसाइट्स) को इस डेटा का उपयोग करने के तरीके पर अनुमानों और सुझावों के साथ पार्टी को प्रदान करना है. वह हमारे फायदे के लिए जो कुछ भी कर रहें हैं उसे कर सकने के लिए अकादमिक विशेषज्ञता का दावा पार्टी के भीतर तो कोई भी नहीं कर सकता है.  अगर यह हमारी मदद करने वाला है, तो क्यों नहीं?’

हालांकि, कनुगोलू के करीबी लोग इस बात पर जोर देकर कहते हैं कि वह 2018 से ही कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के साथ बातचीत कर रहे हैं और उन्हें पूरे विश्वास के साथ पार्टी के खेमे में लाया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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