scorecardresearch
Saturday, 2 November, 2024
होमराजनीतिहरियाणा: शहरी नहीं रही भाजपा, 58 फीसदी वोट लाकर बन गई है ग्रामीण पार्टी?

हरियाणा: शहरी नहीं रही भाजपा, 58 फीसदी वोट लाकर बन गई है ग्रामीण पार्टी?

लोकसभा की जीत को देखकर कहा जा रहा है कि भाजपा ने राज्य में जाट राजनीति को खत्म कर दिया है.

Text Size:

नई दिल्ली: हरियाणा 1966 में बना था. उसके बाद से लगातार कांग्रेस इस राज्य में अपनी पैठ जमाए रही है. कभी ताऊ देवीलाल मुख्यमंत्री बने तो कभी भजनलाल तो कभी बंसीलाल. देश की राजनीति में इन तीनों लाल की चर्चा बनी रही. फिर नब्बे के दशक में देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला राजनीति में आए तो 2004 में हुड्डा परिवार के हाथ में मुख्यमंत्री पद की कमान. जाटों को छोड़कर राज्य में भजनलाल ही गैर जाट नेता थे जो मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा कर सके थे. हालांकि उनके बारे में भी कहा जाता है कि शुरू में भजनलाल ने भी जाटों को लुभाने की कोशिश की थी, लेकिन स्वीकार्यता नहीं मिलने पर गैर जाट नेता के रूप में राजनीति करते रहे. भजनलाल के बाद मनोहरलाल खट्टर गैर जाट नेता की छवि बनाकर सफल होने में कामयाब रहे हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा दसों सीटों पर भारी मतों से जीती है. कुछ ही महीनों बाद राज्य में चुनाव होने वाले हैं. 

लोकसभा की जीत को देखकर कहा जा रहा है कि भाजपा ने राज्य में जाट राजनीति को खत्म कर दिया है. लेकिन साल 2016 में ऐसा माहौल नहीं था. 2016 के जाट आंदोलन के बाद खट्टर पर कुर्सी छोड़ने का दबाव बनाया गया. इस दौरान करीब 30 लोगों की मौत हुई और राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ. सबसे ज्यादा नुकसान आपसी भाईचारे का हुआ. प्रदेश में 36 बिरादरी का आंकड़ा 35-1 का हो गया. विपक्षी पार्टियों ने खट्टर सरकार को इस मुद्दे पर घेरा भी, लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई. उल्टा मनोहरलाल खट्टर ने ही अपनी रैलियों में जाट आंदोलन में कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाकर वोट बटोरे और अपने खिलाफ बना माहौल भी अपने पक्ष में कर लिया.

इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को 13 राज्यों में 50 फीसदी से भी ज्यादा वोट हासिल हुए. भाजपा अध्यक्ष अपनी चुनावी रैलियों में इस बात की घोषणा भी कर चुके थे. भाजपा को हिमाचल प्रदेश में 69 प्रतिशत, गुजरात में 62 प्रतिशत, उत्तराखंड में 60 प्रतिशत, राजस्थान में 58.5 प्रतिशत, हरियाणा और मध्यप्रदेश में 58 प्रतिशत और दिल्ली में 57 प्रतिशत वोट मिले हैं. हरियाणा में भाजपा के उम्मीदवार लाखों वोटों से विजयी हुए हैं.

हरियाणा में पिछले चुनावों का वोट शेयर

भाजपा ने इस आम चुनाव में अपना वोट शेयर 58.02 फीसदी कर लिया है जो 2014 में 34.7 फीसदी था जबकि 2009 में 17.21 प्रतिशत था. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है. कांग्रेस का वोट शेयर 2019 लोकसभा चुनाव में 28.42 प्रतिशत पर पहुंच गया है. अगर 2009 में हुए चुनाव में कांग्रेस को मिले वोट शेयर पर नजर डालें तो यह 41.77 फीसदी था. 2014 में कांग्रेस को 10 में से 9 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था और वोट शेयर 22.9 फीसदी पर पहुंच गया था.

राज्य की बड़ी क्षेत्रीय पार्टी इनेलो का वोट शेयर 1.89 फीसदी पर अटक गया है. इनेलो ने 2014 में दो सीटें हासिल की थी. 2014 लोकसभा चुनाव में इनेलो का वोट शेयर बढ़कर 24.4 फीसदी हो गया था जो कि 2009 में महज 15.78 फीसदी था. 2009 में पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती थी. इनेलो और कांग्रेस हरियाणा की दो बड़ी पार्टियां रही हैं. इनेलो में हुई टूट-फूट और घटते वोट शेयर को देखते हुए लोग पार्टी के खत्म होने के कयास लगा रहे हैं.

आम आदमी पार्टी को 2014 के आम चुनावों में 4.2 फीसदी वोट मिले थे. उस वक्त आम आदमी पार्टी ने सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी जेजेपी पार्टी के साथ गठबंधन में थी और पार्टी ने 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन राज्य में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई. आम आदमी पार्टी का वोट शेयर घटकर 0.36 फीसदी हो गया. जबकि नोटा का वोट शेयर 0.33 रहा. 

बसपा को 2014 में 4.6 फीसदी वोट मिले थे तो इस बार बसपा-लसपा गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा. बसपा ने भाजपा से अलग हुए सांसद राजकुमार सैनी की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से फरवरी में गठबंधन किया था. लेकिन अब चुनाव के बाद बसपा ने ये गठबंधन तोड़ लिया है. हरियाणा में यूपी से ज्यादा दलित होने के बावजूद बसपा यहां अपने पैर नहीं जमा सकी है. जबकि यूपी में बसपा एक बड़ी क्षेत्रीय पार्टी रही है. इस बार बसपा को हरियाणा में केवल 3.64 फीसदी वोट हासिल हुए.

इनेलो की फूट का भाजपा को फायदा

वरिष्ठ पत्रकार सत सिंह मानते हैं, ‘पहले इनेलो को ग्रामीण पार्टी माना जाता था, लेकिन इनेलो का बंटाधार हो गया. भाजपा पहले शहरी पार्टी के नाम से जानी जाती रही है. इनेलो की फूट का फायदा भाजपा को हुआ और ये ग्रामीण हरियाणा में भी पहुंच गई है. वैसे लोकसभा का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव को पूरी तरह प्रभावित कर सकेगा, कहना ठीक नहीं है. लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर ने काम किया है तो ये वोट बैंक पूरी तरह हरियाणा भाजपा का नहीं है.’

वहीं, पत्रकार विजेंद्र का कहना है, ‘खट्टर फैक्टर ने मोदी फैक्टर के साथ-साथ काम किया है. एक तो नौकरियों में पारदर्शिता ने किसानों को भाजपा से जोड़ दिया. कृषि संकट के चलते सबको नौकरी दिलाने वाली सरकार चाहिए है. दूसरा भाजपा ने गैर जाट को अपना चेहरा बनाकर जाट-गैर जाट की राजनीति खेली. रोहतक को छोड़ दें तो ज्यादातर जाटों ने भी भाजपा को वोट दिए हैं.’

सत सिंह जोड़ते हैं, ‘खट्टर बिना परिवार वाला आदमी है. इसलिए लोगों में ये भावना रहती है कि ये तो जनता की सेवा करेगा. बाकी नेता कुर्ते-पाजामें पहनकर बड़ी गाड़ियों में पूरी चौधर में घूमते हैं. जनता को ये चीज उस नेता से दूर करती है. जाट आंदोलन के बाद लोग कह रहे थे कि अगर चुनाव हो जाएं तो भाजपा को पांच सीटें भी नहीं मिलेंगी. लेकिन खट्टर ने विरोध वाले माहौल को अपने पक्ष में कर लिया. आज लोग कह रहे हैं कि ये 70 से ऊपर सीटें लाएंगे. ये लोग लगातार जमीन से जुड़े हुए हैं.’

विजेंद्र भी मानते हैं, ‘भाजपा हर व्यक्ति से जुड़ी हुई है. वहीं, विपक्षी पार्टियां अभी तक अपने कार्यकर्ताओं तक से नहीं मिल पाई हैं. जबकि लोकसभा चुनाव के बाद से ही खट्टर तैयारी में है.’

share & View comments