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Tuesday, 18 February, 2025
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SGPC अध्यक्ष के इस्तीफे ने धार्मिक संस्था और अकाल तख्त को परेशानी में क्यों डाल दिया है

धामी का इस्तीफा अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह द्वारा दमदमा साहिब के जत्थेदार के रूप में ज्ञानी हरप्रीत सिंह को बर्खास्त करने के लिए एसजीपीसी की आलोचना करने के 3 दिन बाद आया है.

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चंडीगढ़: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने सोमवार को “नैतिक आधार” पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे सिखों की दो शीर्ष धार्मिक संस्थाएं एसजीपीसी और अकाल तख्त अभूतपूर्व संकट में फंस गई हैं.

धामी का इस्तीफा अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह द्वारा दमदमा साहिब के जत्थेदार के रूप में ज्ञानी हरप्रीत सिंह को बर्खास्त करने के लिए एसजीपीसी की आलोचना करने के तीन दिन बाद आया है.

अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च लौकिक संस्था है, जबकि एसजीपीसी पंजाब, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश के सभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों के कामकाज को नियंत्रित करती है. दोनों संस्थाएं सिख ‘मर्यादा’ के पालनकर्ता हैं.

तख्त दमदमा साहिब सिखों की लौकिक सत्ता की चार अन्य सीटों में से एक है, जिनमें से प्रत्येक का नेतृत्व एसजीपीसी द्वारा नियुक्त जत्थेदार करता है.

धामी का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब एसजीपीसी की कार्यकारी समिति के अधिकांश सदस्य हरप्रीत सिंह को जत्थेदार पद से हटाने के पक्ष में हैं. सिख प्राधिकरण की पांचों सीटें इस मामले पर बंटी हुई हैं, पटना साहिब में तख्त की अगुआई कर रहे जत्थेदार रंजीत सिंह ज्ञानी हरप्रीत सिंह के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं.

इसका एक नतीजा सात सदस्यीय समिति के कामकाज में गड़बड़ी है, जिसका गठन एसजीपीसी ने 2 दिसंबर को शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के मामलों का संचालन करने और पार्टी के नए सदस्यता अभियान की निगरानी के लिए किया था.

इस समिति ने फरवरी में दो बैठकें की थीं. अगली बैठक मंगलवार को होनी थी, लेकिन अब इसका भविष्य अनिश्चित है. एसजीपीसी की कार्यकारी समिति को भेजे अपने इस्तीफे में धामी ने अनुरोध किया है कि उन्हें इस समिति से मुक्त किया जाए.

अमृतसर में मीडिया को संबोधित करते हुए धामी ने गुरुवार को ज्ञानी रघबीर सिंह के वीडियो बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि हरप्रीत सिंह को “अपमानजनक” तरीके से हटाया गया.

धामी ने घोषणा की कि वे इस्तीफा इसलिए दे रहे हैं क्योंकि वे एसजीपीसी के अध्यक्ष हैं और हरप्रीत सिंह को हटाने के फैसले की नैतिक जिम्मेदारी ले रहे हैं. “मेरा इस्तीफा अकाल तख्त के जत्थेदार के सम्मान में है.”

उन्होंने कहा कि हरप्रीत सिंह को हटाने का फैसला एसजीपीसी की पूरी कार्यकारिणी ने डेढ़ घंटे से अधिक समय तक चली चर्चा के बाद लिया. उन्होंने कहा कि सभी को अपने विचार व्यक्त करने की पूरी आज़ादी और वक्त मिला.

फेसबुक पोस्ट के ज़रिए धामी के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए हरप्रीत सिंह ने कहा कि यह कदम “दुर्भाग्यपूर्ण” है और कहा कि एसजीपीसी अध्यक्ष के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.


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अंदरूनी कलह

10 फरवरी को एसजीपीसी ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह को उनके पद से हटा दिया, जब इसकी कार्यकारी समिति ने उनके खिलाफ कई आरोपों की जांच करने वाली जांच समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर ली.

रिपोर्ट में हरप्रीत सिंह पर 18 दिसंबर को दमदमा साहिब में कीर्तन रोकने और एक ऐसे मामले में सभा को संबोधित करने का आरोप लगाया गया, जो पूरी तरह से उनसे संबंधित था; आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा और अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा की सगाई में शामिल होना और पंजाब के पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के बेटे की शादी में भी शामिल होना.

इसमें पाया गया कि ये दोनों ही कार्य जत्थेदार के अपेक्षित नैतिक व्यवहार के अनुरूप नहीं थे और हरप्रीत सिंह ने जत्थेदार की स्थिति को कमतर किया.

एसजीपीसी सचिव प्रताप सिंह ने हरप्रीत सिंह को हटाए जाने के संबंध में एक बयान में कहा, “केवल तीन सदस्यों ने इस संबंध में अपनी असहमति दर्ज कराई थी, जबकि बैठक में शामिल एसजीपीसी कार्यकारी समिति के शेष सदस्य रिपोर्ट के आधार पर जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को बर्खास्त करने पर सहमत हुए.”

अपनी ओर से हरप्रीत सिंह ने जांच में शामिल होने और जांच समिति के समक्ष अपना बयान देने से इनकार कर दिया था.

दो दिसंबर को जब अकाल तख्त ने अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल और अन्य वरिष्ठ अकाली नेताओं को तनखाह या धार्मिक दंड की घोषणा के लिए बुलाया था, तब हरप्रीत सिंह ही अकाली नेताओं से पूछताछ करने में सबसे आगे थे.

उन्होंने बादल परिवार की आलोचना करते हुए कहा था कि उनके नेतृत्व में अकाली दल ने 1980 के दशक (पंजाब में उग्रवाद का दौर) के ‘सिख आंदोलन’ के खिलाफ सक्रिय रूप से काम किया था.

बर्खास्त जत्थेदार ने अकाली दल के खिलाफ अपना तीखा हमला जारी रखा, जैसा कि पिछले हफ्ते बठिंडा में ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट फेडरेशन द्वारा आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए देखा जा सकता है. उन्होंने अकाली दल को ‘भगोड़ा दल’ करार दिया, क्योंकि वे अकाल तख्त के आदेशों को लागू करने से भाग गए थे.

अकाल तख्त ने अकाली दल से बादल का इस्तीफा स्वीकार करने और सदस्यता अभियान तथा शिअद अध्यक्ष पद के चुनावों की देखरेख के लिए धामी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय पैनल गठित करने को कहा था.

पिछले महीने अकाली दल ने सुखबीर बादल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था, लेकिन अकाल तख्त द्वारा गठित समिति के गठन की शर्त को मानने से इनकार कर दिया था. इस आधार पर कि धार्मिक संस्था को राजनीतिक पार्टी चलाने के तौर पर नहीं देखा जा सकता.

हरप्रीत सिंह को हटाए जाने के तुरंत बाद पंजाब में कई कट्टरपंथी सिख संगठन उनके समर्थन में सामने आए. अमृतपाल सिंह के शिरोमणि अकाली दल (वारिस पंजाब दे) के कार्यकारी अध्यक्ष तरसेम सिंह ने उन्हें नई पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया.

पिछले हफ्ते खालिस्तान समर्थक संगठन दल खालसा ने सुखबीर बादल पर एसजीपीसी के जरिए हरप्रीत सिंह को हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाया था.

पिछले गुरुवार को ज्ञानी रघबीर सिंह द्वारा हरप्रीत सिंह को हटाए जाने के तरीके की आलोचना किए जाने के बाद पटना साहिब के प्रमुख ज्ञानी रंजीत सिंह ने अकाल तख्त जत्थेदार को पत्र लिखकर कहा कि ऐसा लगता है कि वह क्लीन चिट देने की “बहुत जल्दी” में हैं.

उन्होंने कहा कि जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट देने से पहले करीब दो महीने तक हरप्रीत सिंह के खिलाफ आरोपों की जांच की थी. उन्होंने अकाल तख्त के जत्थेदार को हरप्रीत सिंह द्वारा किए गए पापों में भागीदार न बनने का सुझाव दिया.

पिछले साल वरिष्ठ अकाली नेता विरसा सिंह वल्टोहा ने हरप्रीत सिंह पर भाजपा नेताओं के साथ सांठगांठ करने और उनके इशारे पर काम करने, सुखबीर बादल के पतन और अकाली दल के राजनीतिक अस्तित्व को खत्म करने का आरोप लगाया था.

इसके बाद हरप्रीत सिंह ने आरोप लगाया कि उन्हें और उनके परिवार को अकाली नेता से धमकियां मिल रही हैं, जिसके बाद वोहता को पार्टी से निकाल दिया गया.

दिल्ली में राजौरी सीट जीतने के एक दिन बाद 9 फरवरी को भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा को हरप्रीत सिंह ने ‘सिरोपा’ देकर सम्मानित किया. बाद में, शिअद के दिल्ली प्रमुख परमजीत सिंह सरना ने सुझाव दिया कि चूंकि यह स्पष्ट है कि हरप्रीत सिंह अकाली विरोधी ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं, इसलिए “उन्हें अकाली दल का अपना गुट बनाकर उनके खिलाफ खुलकर सामने आना चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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