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Tuesday, 5 November, 2024
होमराजनीति‘इससे हमें नुकसान हो सकता है’- बिहार में ओवैसी की AIMIM के कदमों की आहट से क्यों चिंतित हैं नीतीश

‘इससे हमें नुकसान हो सकता है’- बिहार में ओवैसी की AIMIM के कदमों की आहट से क्यों चिंतित हैं नीतीश

2020 के विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीमांचल में पांच सीटें जीतकर और तीन अन्य सीटों पर दूसरा स्थान हासिल करके अपनी छाप छोड़ी थी. नीतीश का दावा है कि वह भाजपा के इशारे पर काम कर रही है.

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पटना: बिहार में ऐसा लगता है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन की चिंताएं बढ़ा दी हैं. शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को विधानसभा भवन में अपने कक्ष में कुछ पत्रकारों की मौजूदगी में ही महागठबंधन के कुछ विधायकों को ओवैसी से सतर्क रहने की नसीहत दे डाली.

उन्होंने कहा, ‘एआईएमआईएम भाजपा के इशारे पर काम कर रही है और इसके लिए उसे फंड भी मिलता है. यदि हमने इसके जवाब में उपयुक्त कदम न उठाए तो हमें नुकसान हो सकता है.’

असल में नीतीश की चिंता पिछले माह के उपचुनाव में एआईएमआईएम के प्रदर्शन को लेकर है. हालांकि, मोकामा में पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था, वहीं गोपालगंज में एआईएमआईएम उम्मीदवार को 12,000 से अधिक वोट मिले. हालांकि भाजपा उम्मीदवार को जीत हासिल हुई लेकिन जीत का अंतर 2,000 वोटों से कम था. राजद प्रत्याशी दूसरे नंबर पर आया.

कुढ़नी उपचुनाव में एआईएमआईएम प्रत्याशी को 3,000 से कुछ अधिक वोट मिले, लेकिन वह नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के उम्मीदवार की भाजपा प्रत्याशी के हाथों 3,600 वोटों से हार का एक बड़ा कारण बना.

गोपालगंज और कुढ़नी दोनों ही निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 10 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है.

अपना नाम न छापने की शर्त पर जदयू के एक मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन दोनों सीटों पर मुसलमानों ने यह जानते हुए भी एआईएमआईएम को वोट दिया कि उसके उम्मीदवारों के जीतने के कोई आसार नहीं है और इससे परोक्ष रूप से भाजपा को फायदा पहुंचेगा. यदि यही पैटर्न जारी रहा और एआईएमआईएम प्रत्याशी 3,000-5,000 वोट पाते रहे तो यह उन तमाम सीटों पर समीकरण बिगाड़ देगा जहां हार-जीत का अंतर काफी कम होता है. यह हमारे लिए बहुत नुकसानदेह होगा.’

बहरहाल, एआईएमआईएम नीतीश के इस आरोप पर खासी नाराज है कि उसे भाजपा की तरफ से फंड मिलता है. राज्य में एआईएमआईएम के अध्यक्ष अख्तरुल इमाम ने दिप्रिंट से कहा, ‘आरोप एक ऐसा व्यक्ति लगा रहा है जिसने करीब दो दशक भाजपा के साथ दोस्ती निभाई है और उसे बिहार में स्थापित करने में मदद भी की है. उन्हें चिंता करनी भी चाहिए क्योंकि उन्होंने खुद मुसलमानों के लिए कुछ भी नहीं किया है, और यहां तक कि उर्दू शिक्षण को भी बाधित कर दिया है.’


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सीमांचल और उससे आगे

2020 के विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीमांचल में पांच सीटें जीतकर और तीन अन्य सीटों पर दूसरा स्थान हासिल करके अपनी छाप छोड़ी थी. उसके बाद से एआईएमआईएम के चार विधायक राजद में शामिल हो चुके हैं.

25 सीटों वाले सीमांचल की तकरीबन सभी सीटों पर मुस्लिम आबादी 35 फीसदी से ज्यादा है. पूर्व में उद्धृत जदयू मंत्री ने कहा कि गोपालगंज और कुढ़नी में अपने प्रदर्शन की तरह एआईएमआईएम सीमांचल के बाहर भी 40 से अधिक सीटों पर उलटफेर कर सकती है, जहां मुसलिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

एआईएमआईएम प्रमुख इमाम के मुताबिक, उनकी पार्टी सीमांचल से बाहर अपने आधार का विस्तार कर रही है क्योंकि वह ‘न केवल मुसलमानों बल्कि समाज के हर वंचित वर्ग के लिए’ आवाज उठाना चाहती है.

उन्होंने कहा कि भाजपा और ‘तथाकथित’ धर्मनिरपेक्ष दलों में कोई अंतर नहीं है. उनके मुताबिक, ‘राजद और नीतीश कुमार ने दलबदल के जरिये एक उभरती मुस्लिम ताकत को कमजोर करने की कोशिश की है.’

इमाम ने आगे कहा कि युवा पीढ़ी के मुसलमान एआईएमआईएम की ओर आकृष्ट हो रहे हैं, क्योंकि ‘यह किसी पक्षी के पिंजरे से मुक्त होने जैसा है.’

नीतीश, राजद के प्रति बढ़ रही उदासीनता

मुस्लिम नेताओं का कहना है कि मुसलमानों में नीतीश कुमार और यहां तक कि राजद के प्रति भी उदासीनता बढ़ रही है.

पूर्व विधायक अखलाक अहमद ने कहा, ‘राजद और जदयू को यह समझना चाहिए कि उन्हें मुस्लिम वोट मजबूरी से ज्यादा मिलते रहे हैं. जदयू के भाजपा के साथ रहने के बावजूद पार्टी को अपना सांप्रदायिक कार्ड न खेलने देने के लिए मुसलमानों में नीतीश के प्रति सम्मान हो सकता है. लेकिन एनआरसी (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) के खिलाफ जब विरोध जताने मुसलमान सड़कों पर उतरे तो उन्होंने देखा कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के नेता अपने घरों से बाहर नहीं निकले.’

अखलाख अहमद ने कहा, ‘उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को हल्के में लिया है, मुसलमानों के बीच नेतृत्व का एक खालीपन है जो दिन-ब-दिन बड़ा ही होता जा रहा है. इस खालीपन की वजह से ही ओवैसी बिहार में घुसने में कामयाब रहे हैं.’

बिहार में मुसलमानों की अनुमानित आबादी करीब 18 फीसदी है. 1980 के दशक तक वे कांग्रेस का वोटबैंक रहे. लेकिन 1989 में भागलपुर दंगों और अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद मुस्लिम मतदाता लालू प्रसाद यादव के साथ चले गए.

हालांकि, 2005 के विधानसभा चुनावों में मुसलमानों ने कई सीटों पर रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को वोट दिया, जिससे वह 29 सीटें जीतने में सफल रही और लालू के सत्ता में आने की संभावनाएं धूमिल हो गईं.

2010 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों का एक वर्ग राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर खिसक गया और लालू यादव की पार्टी का प्रदर्शन सबसे खराब रहा, उस समय राजद ने 243 विधानसभा सीटों में से केवल 22 पर जीत दर्ज की थी.

लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के सबसे प्रभावशाली पार्टी के तौर पर उदय के साथ राजद अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में सफल रहा. लेकिन अब बिहार में ओवैसी के कदमों की आहट से महागठबंधन को मुस्लिम वोटों के बंट जाने का खतरा सता रहा है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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