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Friday, 26 April, 2024
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भारत के सबसे छोटे राज्य गोवा में जीत के लिए BJP और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत क्यों झोंक रखी है?

गोवा की स्थिति कुछ ऐसी है जो राजनीतिक तौर पर दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के लिए काफी ज्यादा मायने रखती है.

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मुंबई/नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी और दर्शन जरदोश और महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस 2022 के विधानसभा चुनाव की रणनीति तय करने के उद्देश्य से सोमवार को गोवा के दौरे पर पहुंचे.

अगस्त और इस माह की शुरू में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम भी इसी इरादे के साथ गोवा पहुंचे थे और उन्होंने बुनियादी स्तर यानी ब्लॉक इकाइयों से पार्टी कैडर को मजूबत करने की योजना बनाई.

भारत का यह सबसे छोटा और तटीय राज्य 3,702 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इसकी आबादी करीब 14.85 लाख (2011 की जनगणना के मुताबिक) है, जो मुंबई और दिल्ली का लगभग दसवां हिस्सा है. फिर भी, गोवा की स्थिति कुछ ऐसी है जो राजनीतिक तौर पर दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा के लिए काफी ज्यादा मायने रखती है.

राजनीतिक रूप से दो महत्वपूर्ण राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक का पड़ोसी होने और सीमावर्ती क्षेत्रों के मतदाताओं के एक समान संस्कृति साझा करने के कारण रणनीतिक तौर पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी इस राज्य की अहमियत खासी बढ़ जाती है.

गोवा के एक राजनीतिक विश्लेषक क्लियोफेटो कॉटिन्हो ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कहा, ‘इन दलों के खाते में जुड़ने वाले एक अन्य राज्य के अलावा एक तथ्य यह भी है कि गोवा एक शोपीस की तरह है जिसे हर कोई अपने पास रखना चाहता है, यह अपने रियल एस्टेट सेक्टर के कारण पूरे देश को और व्यापक कॉरपोरेट हितों के साथ पर्यटन और खनन जैसे उद्योगों को भी काफी आकर्षित करता है.’

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उन्होंने कहा कि इसके अलावा गोवा में छोटे-छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी आधारित राजनीति के बजाय व्यक्ति विशेष पर केंद्रित राजनीति हावी होने और जीत का अंतर बहुत मामूली रहने के कारण राजनीतिक पार्टियों को यहां जीत के लिए अपनी पूरी ताकत लगानी पड़ती है.

गोवा की राजनीति

गोवा के हर विधानसभा क्षेत्र में करीब 25,000 से 30,000 मतदाता हैं. इसका मतलब यह हुआ कि सीधे मुकाबले में किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए मात्र 12,000 वोटों की जरूरत होती है. त्रिकोणीय मुकाबले में जीत हासिल करने के लिए 3,000-4,000 वोट भी काफी होते हैं. इसलिए पार्टियों के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी होता है कि उनका उम्मीदवार सबसे मजबूत हो.

निर्वाचन क्षेत्रों के छोटे आकार से जनप्रतिनिधियों को निजी तौर पर ऐसा संपर्क कायम करने में मदद मिलती है, जिससे वह किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ें, उन्हें अपने बलबूते पर जीत हासिल करने का भरोसा होता है.

यही वजह है कि 40 विधानसभा सीटों वाले गोवा में दलबदल का एक लंबा इतिहास रहा है. भाजपा नीत मौजूदा विधानमंडल में भी 17 सीटें ऐसी है जहां 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. अब, पार्टी के पास केवल पांच विधायक बचे हैं, और उसके अधिकांश विधायक सत्ताधारी दल में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह, क्षेत्रीय महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के पास अब सिर्फ एक विधायक है, जबकि दो अन्य भाजपा में शामिल हो गए थे. एमजीपी उन पार्टियों में शामिल थी, जिसने 2017 में मात्र 13 सीटें हासिल करने वाली भाजपा को सरकार बनाने में मदद की थी.

इसका मतलब है कि चुनाव के करीब आने के साथ पार्टियों के लिए अपने खेमों पर पैनी नजर बनाए रखने की जरूरत है.

गोवा भाजपा के अध्यक्ष सदानंद शेत तनवडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘देवेंद्र फडणवीस एक बहुत ही कुशल और अनुभवी राजनेता हैं, जिन्होंने 2007 और 2012 के गोवा चुनावों के लिए काम किया था और 2017 में कई चुनावी रैलियों को संबोधित किया. इसलिए उन्हें पता है कि यहां क्या कारगर रहता है. वह जानते हैं कि दलबदल के मसले को कैसे संभालना है.’

तनवड़े ने बताया, ‘फडणवीस ने अपने पहले दौरे के दौरान ही सभी भाजपा विधायकों, मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों से मुलाकात की. मंगलवार को उन्होंने विधायक और मंत्री माइकल लोबो के साथ ब्रेकफास्ट किया, डिप्टी सीएम चंद्रकांत कावलेकर के साथ लंच किया और (कांग्रेस विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री) प्रताप सिंह राणे के साथ डिनर किया.

कलंगुट से विधायक और प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली गोवा सरकार में बंदरगाह मंत्री लोबो ने भाजपा में नाखुश होने के संकेत दिए हैं और चुनाव से पहले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ से उनके साथ जुड़ने के लिए मिले प्रस्तावों के बारे में भी बात की है.

कावलेकर कांग्रेस के एक पूर्व विधायक हैं, जो जुलाई 2019 में भाजपा में शामिल हुए थे, जब पार्टी के 10 विधायक सत्तारूढ़ दल के खेमे में आ गए थे.

कांग्रेस विधायक राणे के आवास पर फडणवीस की डिनर डिप्लोमेसी भी खास मायने रखते है, क्योंकि उनके बेटे विश्वजीत राणे 2017 में चुनाव के तुरंत बाद भाजपा में शामिल हो गए थे और सीएम सावंत के साथ उनकी कुछ अनबन चल रही है.

तनवडे ने कहा, ‘प्रतापसिंह राणे गोवा के वरिष्ठ, अनुभवी पूर्व सीएम हैं और राजनीतिक जीवन में 50 साल पूरे कर चुके हैं. उन्होंने अपने अनुभव साझा किए. लेकिन उनके भाजपा में शामिल होने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई.’


यह भी पढ़ेंः जानिए क्यों भाजपा को आगामी यूपी चुनावों में 2017 से भी बड़ी जीत करनी होगी हासिल


पर्रिकर के बिना राज्य में भाजपा का पहला चुनाव

भाजपा के लिए 2022 का गोवा चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि यह पूर्व सीएम मनोहर पर्रिकर के बिना राज्य में पहला चुनाव होगा, जिनका मार्च 2019 में निधन हो गया था. 2017 में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा को सरकार बनाने के लिए तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री पर्रिकर को राज्य में वापस लाना पड़ा था.

2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के श्रीपद नाइक ने उत्तरी गोवा सीट को बरकरार रखा था, लेकिन पार्टी दक्षिण गोवा—जहां कैथोलिक आबादी काफी ज्यादा है—की सीट पर कांग्रेस से हार गई थी.

राज्य में पर्रिकर की छवि बहुत ही ज्यादा असरदार थी और गोवा के कैथोलिकों के बीच भी उनकी एक अपील थी, भाजपा को अब सीएम सावंत के नेतृत्व में इन वोटों को पार्टी के पक्ष में लाने की दिशा में काम करने की जरूरत है.

कॉटिन्हो ने कहा, ‘बाहरी लोगों के बीच गोवा अपने चर्च और कैथोलिक आबादी वाली पहचान रखता है, हालांकि, वास्तव में यहां अल्पसंख्यक वोट महज 38 फीसदी ही है. लेकिन, इस छवि के कारण गोवा जीतने से भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर यह धारणा बनाने में मदद मिलती है कि उसे अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन भी हासिल है.’

पार्टी नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी गोवा की खास अहमियत है.

2002 में गोधरा के बाद दंगों के कारण जब गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से मोदी की बर्खास्तगी की तैयारी जैसी स्थितियां आ गई थीं तब गोवा में हुई एक बैठक का ही नतीजा था कि उन्होंने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्यों का समर्थन जुटाया.

2013 में गोवा में ही एक अन्य सम्मेलन में 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के मुख्य चुनाव प्रचारक बनने के साथ प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की दावेदारी पर मुहर लगी थी.

गोवा की जीत कांग्रेस के लिए भी बेहद अहम

कांग्रेस, जिसका पिछले एक दशक के दौरान देशभर में दबदबा काफी घटा है और जो वित्तीय तौर पर भी उसकी स्थिति पर असर डाल रहा है, के लिए गोवा में जीत का मतलब उन राज्यों की संख्या में वृद्धि होना है जहां पार्टी सत्ता में है.

इससे पार्टी को उस क्षेत्र पर फिर से नियंत्रण हासिल करने में भी मदद मिलेगी जहां भाजपा के मजबूत होकर उभरने से पहले उसका ही बोलबाला रहा है.

पिछले चार वर्षों में गोवा कांग्रेस ‘जबरन सत्ता हासिल करने’ को लेकर भाजपा पर निशाना साधती रही है, क्योंकि वह (कांग्रेस) 2017 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी—सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़े से सिर्फ तीन सीटें कम—बनकर उभरी थी और भाजपा ने सरकार बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर लिया था.

कांग्रेस के लिए 2022 का चुनाव यह साबित करने के लिए बेहद अहम है कि उसे गोवा में बहुसंख्यक का समर्थन हासिल है.

भाजपा ने जहां दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को अपने खेमे में मजबूती से टिकाए रखने के लिए पार्टी के बड़े नेताओं को भेजा, वहीं कांग्रेस की कोशिश गुटबाजी और असंतोष से जूझ रही पार्टी को फिर से मुकाबले की स्थिति में लाने की है.

अभी तक दो बार गोवा का दौरा किए जाने के दौरान चिदंबरम ने कांग्रेस पदाधिकारियों और ब्लॉक स्तर के नेताओं से मुलाकात की और उनकी चिंताओं को समझा, और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक यानी 40 ब्लॉकों के नेतृत्व पुनर्गठन की प्रक्रिया भी शुरू की है.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने कहा, ‘इस समय एक केंद्रीय नेता के यहां आने और पार्टी के ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद किए जाने से पार्टी में उत्साह की लहर है.’

हालांकि, पार्टी की राज्य इकाई जबर्दस्त गुटबाजी से जूझ रही और पार्टी के कई वरिष्ठ नेता गोवा कांग्रेस के नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं. लेकिन, चिदंबरम और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का नेतृत्व दोनों ही अभी इस पर कुछ तय नहीं कर रहे हैं.

गुटबाजी की खबरों के बारे में पूछे जाने पर चोडनकर ने कोई जवाब नहीं दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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