नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के अपना दल (सोनीलाल) के मंत्री आशीष पटेल द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी अधिकारियों पर उनके खिलाफ ‘झूठी कहानियां गढ़ने’ का सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने के कुछ दिनों बाद, एक अन्य राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सहयोगी ने राज्य की नौकरशाही पर निशाना साधकर एक नया मोर्चा खोल दिया है.
सोमवार को संजय निषाद ने 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए सत्तारूढ़ भाजपा में ‘विभीषणों’ को जिम्मेदार ठहराकर माहौल गर्म कर दिया. निषाद, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दल निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
यह कटाक्ष भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह सहित अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के एक दिन बाद किया गया है.
जबकि सीएमओ के अधिकारी इसे योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार की छवि को धूमिल करने की कोशिश के रूप में देखते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों और राजनीतिक विश्लेषकों ने आगाह किया है कि सत्तारूढ़ पार्टी तीन ओबीसी नेताओं — आशीष पटेल, नंद किशोर गुर्जर और संजय निषाद द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है.
उदाहरण के लिए लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान फैकल्टी के सदस्य प्रोफेसर कविराज ने इसे “दबाव की राजनीति” करार दिया.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “लेकिन अगर इन ओबीसी नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों को नहीं सुलझाया जाता है, तो यह सत्तारूढ़ पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है क्योंकि इससे विपक्ष को इन मुद्दों को उठाने और समुदाय का पक्ष लेने का मौका मिलेगा.”
हालांकि, उन्होंने कहा, “सहयोगी तभी तक वफादार होते हैं जब तक उन्हें लगता है कि आपके पास सत्ता है.”
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संजय निषाद की चेतावनी
सोमवार को गोरखपुर में मीडिया को संबोधित करते हुए संजय निषाद ने कहा कि 2024 के आम चुनाव में यूपी में पार्टी के प्रदर्शन के लिए भाजपा के भीतर मौजूद “विभीषण” जिम्मेदार हैं. उन्होंने कहा, “लोकसभा में मेरे बेटे की हार भी उन्हीं की वजह से हुई…अगर इन विभीषणों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो हम 2027 (विधानसभा चुनाव) में भी हार सकते हैं.”
यूपी विधान परिषद के सदस्य निषाद ने कहा, “मैं पहले भी भाजपा के साथ था, आज भी उनके साथ हूं और कल भी उनके साथ रहूंगा, लेकिन एक दोस्त के तौर पर सच बोलना ज़रूरी है.”
उनके बेटे प्रवीण निषाद ने 2024 का लोकसभा चुनाव संत कबीर नगर से भाजपा के टिकट पर लड़ा और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार से हार गए.
यह पूछे जाने पर कि जब उन्होंने विभीषणों की ओर इशारा किया तो उनका इशारा किसकी ओर था, निषाद ने स्पष्ट नहीं किया और जवाब में कहा कि उनका मतलब उन लोगों से था, जो 2019 में यूपी में भाजपा की लोकसभा सीटों की संख्या 62 से गिरकर 2024 में 33 पर आ जाने के लिए जिम्मेदार हैं.
मत्स्य पालन राज्य मंत्री ने कहा, “जब सपा और बसपा साथ थे, तब मैंने भाजपा को जीतने में मदद की थी. निषाद समुदाय पहले सपा-बसपा के साथ था. हमने उन्हें जागरूक किया और उन्हें एनडीए के पक्ष में लाया, लेकिन तब से हमारे मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. अगर भाजपा नहीं जागी तो उसे 2027 में इसके परिणाम भुगतने होंगे. निषाद अनुसूचित जाति वर्ग में आरक्षण चाहते हैं. ‘विभीषण’ इस फीडबैक को (पार्टी) आलाकमान तक नहीं पहुंचा रहे हैं.”
निषाद पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि संजय निषाद समुदाय के लिए अनुसूचित जाति कोटे को लेकर चिंतित हैं और सरकारी अधिकारियों के व्यवहार से भी नाराज़ हैं, जो उन्हें लगता है कि जनप्रतिनिधियों की चिंताओं पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. “हम हर दिन देखते हैं कि ये अधिकारी महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों पर मंत्रियों को जानकारी नहीं देते हैं. हालांकि, आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक है, लेकिन वह हाईकमान को यह फीडबैक नहीं देते कि यह हमारे समुदाय के लिए कितना महत्वपूर्ण है.”
पदाधिकारी ने कहा कि आशीष पटेल के विपरीत, संजय निषाद ने किसी भी अधिकारी का नाम नहीं लिया और इसके बजाय उन्हें “विभीषण” कहा.
तकनीकी शिक्षा मंत्री पटेल ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक शिशिर सिंह और मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार सिंह पर “झूठी खबरें” फैलाकर उनकी छवि खराब करने का आरोप लगाया था, साथ ही अमिताभ यश के नेतृत्व वाली स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को चुनौती दी थी कि “अगर हिम्मत है तो उनके सीने पर गोली मार दें”.
तीनों अधिकारियों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है.
दिप्रिंट ने मृत्युंजय कुमार सिंह और अमिताभ यश से संपर्क किया, जिन्होंने इसे ‘राजनीतिक मुद्दा’ बताकर कमतर आंका और टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
पटेल ने यह टिप्पणी अपनी भाभी पल्लवी पटेल, जो सिराथू से समाजवादी पार्टी की विधायक हैं, द्वारा उनके विभाग में गड़बड़ियों का आरोप लगाए जाने के कुछ दिनों बाद की थी.
शुक्रवार को सीएम योगी आदित्यनाथ ने आशीष पटेल से मुलाकात की. अगले दिन पटेल ने नई दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की और ऐसा लगा कि मतभेद दूर हो गए हैं. हालांकि, लखनऊ लौटने के बाद पटेल ने फेसबुक और ‘एक्स’ पर राज्य सरकार के अधिकारियों को निशाना बनाना जारी रखा।
‘अधिकारी CM की भी नहीं सुन रहे’
संजय निषाद की टिप्पणी से एक दिन पहले गाजियाबाद के लोनी से भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर ने यूपी सरकार के अधिकारियों पर ‘जनप्रतिनिधियों की बात नहीं सुनने’ का आरोप लगाया.
उन्होंने रविवार को आरोप लगाया कि गाजियाबाद पुलिस में भ्रष्टाचार चरम पर है. उन्होंने कहा कि जब वह अन्य विधायकों के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ से मिले थे, तो उन्हें गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर को हटाने का तीन बार आश्वासन दिया गया था. उन्होंने कहा, “लेकिन ऐसा लगता है कि ये अधिकारी मुख्यमंत्री की भी नहीं सुन रहे हैं.”
गुर्जर ने कहा, “मुख्यमंत्री अच्छे इंसान हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उनके अधीन अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं. अगर हम जनता की बात नहीं करेंगे, तो चुनाव में हमारी ज़मानत जब्त हो जाएगी. कुछ अधिकारी सपा-कांग्रेस की मिलीभगत से वही काम कर रहे हैं, जो उन्होंने लोकसभा चुनाव में किया था.”
उन्होंने कहा, “अगर बेईमान अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई, तो 2027 के चुनाव में भाजपा को 350 सीटें मिलेंगी.”
2019 में गुर्जर कम से कम 70 भाजपा विधायकों के प्रदर्शन के केंद्र में थे, जो उनके समर्थन में और ‘अधिकारियों के दुर्व्यवहार’ का विरोध करने के लिए सामने आए थे.
OBC बनाम ‘उच्च जाति’ का मुद्दा
यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के सूत्रों ने दावा किया कि आशीष पटेल, संजय निषाद और नंद किशोर गुर्जर द्वारा लगाए गए आरोप योगी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने की एक सुनियोजित कोशिश का हिस्सा थे.
सीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “अगर आप गौर करें कि ये मुद्दे कौन उठा रहा है, तो क्या वे नेता महाराज जी (योगी) के करीबी हैं या संगठन में बहुत वरिष्ठ हैं? नहीं. उन सभी का इस्तेमाल एक ऐसे मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जा रहा है जिसका ग्राफ बढ़ रहा है. वे कुछ महीनों के लिए चुप हो जाएंगे और फिर इसी तरह के मुद्दे उठाना शुरू कर देंगे. यह महाराज जी के खिलाफ एक सुनियोजित विवाद है. वे जैसा उचित समझेंगे, वैसा जवाब देंगे.”
एक दूसरे सीएमओ अधिकारी ने कहा, “जब भी महाराज जी की छवि को बढ़ावा मिलता है, तो कोई न कोई विवाद सामने आ ही जाता है. इस बार, हमने उपचुनाव में 9 में से 7 सीटें जीती हैं. हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी उनके नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ ने चर्चा बटोरी, लेकिन शीर्ष स्तर के कुछ लोग विवाद पैदा करने के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं. वे (योगी) इन छोटी-छोटी बातों से दबाव में नहीं आएंगे. जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता है.”
इस बीच, दिप्रिंट से बातचीत में यूपी बीजेपी के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि पटेल, निषाद और गुर्जर अधिकारियों को निशाना बना रहे हैं, जबकि उनका निशाना सीएम आदित्यनाथ हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि उनकी चिंताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
यूपी बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमें इन मुद्दों का समाधान निकालना चाहिए, नहीं तो यह ओबीसी बनाम ‘उच्च जाति’ का मुद्दा बन जाएगा. इन सभी नेताओं की ओबीसी समुदाय में अपनी बात है.”
उन्होंने कहा, “वह उन अधिकारियों को निशाना बना रहे हैं जो ‘उच्च जाति’ के हैं. हमने पहले ही लोकसभा चुनावों में इसके नतीजों का सामना किया है, जहां गैर-यादव ओबीसी के एक बड़े हिस्से ने इंडिया ब्लॉक को वोट दिया था. यूपी में गैर-यादव ओबीसी आबादी 35 प्रतिशत से अधिक है, सरकार उनकी समस्याओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती.”
यूपी में एनडीए के भीतर टकराव के बारे में पूछे जाने पर, राज्य भाजपा प्रवक्ता हरीश चंद्र श्रीवास्तव ने दिप्रिंट से कहा, “यह हमारा आंतरिक मामला है.” उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सीएम योगी आदित्यनाथ पहले ही आशीष पटेल से मिल चुके हैं और पार्टी आलाकमान अगले कदम पर फैसला करेगा.
हाल ही में हुए उपचुनावों में भाजपा के प्रदर्शन का हवाला देते हुए श्रीवास्तव ने जोर देकर कहा, “हमारा गठबंधन मजबूत है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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