लखनऊ: शनिवार को आगरा के दौरे पर पहुंचे समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी सांसद रामजी लाल सुमन के घर के बाहर हुई हिंसा के लिए योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को जिम्मेदार ठहराया. सुमन ने राजपूत योद्धा राजा राणा सांगा के बारे में बयान दिया था.
अखिलेश ने करणी सेना को ‘योगी सेना’ करार दिया और आरोप लगाया कि दलित सांसद के घर पर हमले को उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रायोजित किया. सपा प्रमुख ने मीडिया से कहा, “इतिहास में जिस तरह हिटलर ने आवाज़ को दबाने के लिए अपनी सेना बनाई थी, उसी तरह योगी सेना भी इस समय ऐसा कर रही है. योगी सरकार इस सेना को फंड दे रही है, जिसमें सीएम की जाति के लोग इस तरह के हमलों की योजना बना रहे हैं.”
गौरतलब है कि बतौर अजय मोहन सिंह बिष्ट जन्मे योगी आदित्यनाथ गढ़वाली राजपूत हैं. करणी सेना क्षत्रियों के हितों की वकालत करती है, जिस जाति से राजपूत आते हैं. पिछले महीने सुमन ने आरोप लगाया था कि मेवाड़ के शासक राणा सांगा ने लोधी शासन को खत्म करने के लिए मुगल वंश के संस्थापक बाबर की भारत आने में मदद की थी.
26 मार्च को करणी सेना से जुड़े कुछ अज्ञात लोगों ने आगरा में राज्यसभा सांसद के घर के बाहर पथराव किया, खिड़कियों के शीशे तोड़े और खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ की. इससे पहले अलीगढ़ में एक हिंदू संगठन के नेता ने राणा सांगा पर अपमानजनक टिप्पणी करने वाले समाजवादी पार्टी के सांसद की हत्या करने वाले को 25 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी.
अखिलेश ने कहा कि यह हमला मुख्यमंत्री की पीडीए यानी पिछड़े (पिछड़े वर्ग), दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत को दर्शाता है.
हाल के दिनों में सुमन और पहले सपा विधायक इंद्रजीत सरोज के बयानों ने उत्तर प्रदेश में दलित बनाम ऊंची जाति की राजनीति के नैरेटिव को और तेज़ कर दिया है. सरोज ने अपने बयान से लोगों का गुस्सा भड़काया था कि अगर मंदिरों में ताकत होती तो मुहम्मद गौरी जैसे आक्रमणकारी नहीं होते. सुमन की तरह सरोज भी दलित विधायक हैं.
हालांकि, कहा जा रहा है कि सपा ने इस रणनीति को दोगुना करने का फैसला किया है और दलितों को लुभाने के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में अभियान शुरू करने का फैसला किया है. इसके अलावा, इसके प्रवक्ताओं को इस मुद्दे पर टेलीविजन बहस के दौरान ‘दलित समर्थक’ रुख अपनाने का निर्देश दिया गया है.
इस बीच, भाजपा ने आरोप लगाया है कि समाजवादी पार्टी के दलित नेता अखिलेश के इशारे पर इस तरह के विवादित बयान दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता अवनीश त्यागी ने दिप्रिंट से कहा, “सपा नेता जिस तरह के बयान दे रहे हैं, उससे समाज में नफरत फैल रही है. हम सभी जानते हैं कि वे पार्टी हाईकमान के इशारे पर इस तरह के बयान दे रहे हैं, क्योंकि उनका नेतृत्व औरंगजेब को पालता है. जनता भी इन बयानों को ‘हिंदू विरोधी’ मानती है.”
अखिलेश से सीख लेते हुए, सपा के पदाधिकारी अब उत्तर प्रदेश में राजपूत बनाम दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नैरेटिव को आगे बढ़ा रहे हैं.
सपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “रामजी लाल सुमन के घर पर हमले और फिर हमारे नेता अखिलेश यादव के खिलाफ वायरल वीडियो के बाद से, पार्टी ने सार्वजनिक बैठकों में इस मुद्दे को ‘राजपूत बनाम निचली जाति’ के रूप में उठाने का फैसला किया है क्योंकि मुख्यमंत्री भी राजपूत समुदाय से हैं.”
पदाधिकारी ने आगे कहा, “उन्होंने (योगी) दलित सांसद के घर पर हुए हमले की आलोचना नहीं की है. भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे के नैरेटिव का मुकाबला करने का एकमात्र तरीका इसे जाति के आधार पर मोड़ना है. 2024 में, भाजपा को यूपी में झटका लगा क्योंकि चुनाव जाति के आधार पर हुए थे जहां बड़ी संख्या में दलितों और ओबीसी ने इंडिया ब्लॉक को वोट दिया था, लेकिन भाजपा ने अपनी गलतियों से सीखा और फिर से हिंदुत्व की कहानी पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि आदित्यनाथ जैसे नेताओं ने ‘बटोगे तो कटोगे’ बयान दिया. इस विवाद ने हमें एक मौका दिया है; हमें इसे रणनीतिक रूप से संभालने की ज़रूरत है.”
यह पहली बार नहीं है जब सपा नेताओं के बयान सुर्खियों में आए हैं. 2024 के आम चुनावों से काफी पहले, पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने जनवरी 2023 में रामचरितमानस पर सवाल उठाए थे. बाद में उनके खिलाफ लखनऊ में मामला दर्ज किया गया था.
उसके बाद, अखिलेश ने फैजाबाद (अवधेश प्रसाद) और मेरठ (सुनीता वर्मा) जैसी अनारक्षित सीटों पर दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. कुल मिलाकर, सपा ने यूपी में 28 ओबीसी और 14 दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 37 सीटें जीतीं.
अवधेश प्रसाद ने खुद एक रिकॉर्ड बनाया क्योंकि वह यूपी में गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले एकमात्र दलित उम्मीदवार बन गए. एक प्रतीकात्मक इशारे में, अखिलेश ने तब फैज़ाबाद के सांसद को लोकसभा में अपने बगल में बैठाया, जब प्रसाद ने फैज़ाबाद लोकसभा क्षेत्र, जिसमें अयोध्या भी शामिल है, को भाजपा से छीन लिया.
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दलितों के महत्वपूर्ण वोटों की लड़ाई
दलितों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए समाजवादी पार्टी ने आंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) के उपलक्ष्य में एक हफ्ते तक चलने वाला कार्यक्रम आयोजित किया. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कई पूर्व नेता इंद्रजीत सरोज और बसपा के सह-संस्थापक दद्दू प्रसाद पिछले कुछ वर्षों में सपा में शामिल हो गए हैं.
इससे संबंधित घटनाक्रम में बसपा प्रमुख मायावती ने दलित नेताओं को गुमराह करने के लिए अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा है. बसपा सुप्रीमो ने रविवार को एक्स पर सिलसिलेवार पोस्ट करके दलितों को चेतावनी दी कि सपा उनके वोट पाने के लिए “किसी भी हद तक जा सकती है”.
उन्होंने मूल रूप से हिंदी में पोस्ट किया, “कांग्रेस, भाजपा आदि की तरह सपा भी बहुजनों में से ख़ासकर दलितों को इनका संवैधानिक हक देकर इनका वास्तविक हित, कल्याण व उत्थान करना तो दूर, इनकी गरीबी, जातिवादी शोषण व अन्याय-अत्याचार आदि खत्म करने के प्रति कोई सहानुभूति/इच्छाशक्ति नहीं, जिस कारण वे लोग मुख्यधारा से कोसों दूर हैं.”
1. कांग्रेस, भाजपा आदि की तरह सपा भी बहुजनों में से ख़ासकर दलितों को इनका संवैधानिक हक देकर इनका वास्तविक हित, कल्याण व उत्थान करना तो दूर, इनकी गरीबी, जातिवादी शोषण व अन्याय-अत्याचार आदि खत्म करने के प्रति कोई सहानुभूति/इच्छाशक्ति नहीं, जिस कारण वे लोग मुख्यधारा से कोसों दूर।
— Mayawati (@Mayawati) April 20, 2025
“जबकि बीएसपी अपने अनवरत प्रयासों से यहां जातिवादी व्यवस्था को खत्म करके समतामूलक समाज अर्थात् सर्वसमाज में भाईचारा बनाने के अपने मिशन में काफी हद तक सफल रही है, उसको सपा अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए बिगाड़ने में हर प्रकार से लगी हुई है. लोग जरूर सावधान रहें.”
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में दलितों की संख्या 21.1 प्रतिशत है. जाटव और पासी उत्तरी राज्य में दलित आबादी के दो मुख्य हिस्से हैं.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज काका ने कहा कि सपा नेताओं के बयानों को उजागर करके भाजपा ने ही विवाद पैदा किया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “यह विवाद अब भाजपा को और अधिक प्रभावित करेगा क्योंकि सभी जानते हैं कि करणी सेना उनकी पार्टी के करीब है। अगर वे हमारे दलित और ओबीसी नेताओं को धमकाते हैं, तो वे जनता की भावनाओं को हमारे पक्ष में ला रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “बहनजी (मायावती) के खिलाफ हमारे मन में कुछ नहीं है, लेकिन उनके कैडर भी जानते हैं कि पीडीए के बैनर तले दलितों की आवाज़ सिर्फ समाजवादी पार्टी ही उठा रही है. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में बीएसपी के ज्यादातर नेता एसपी में चले गए.”
राजनीतिक विश्लेषक शिल्प शिखा सिंह ने कहा कि अखिलेश अपने पार्टी नेताओं का समर्थन कर रहे हैं, जो दलित वोट बैंक को लुभाने की रणनीति का हिस्सा है.
लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर ने दिप्रिंट से कहा, “एसपी प्रमुख समझते हैं कि गैर-यादव और दलित वोट यूपी में सफलता की कुंजी हैं, क्योंकि दोनों मिलकर कुल वोटों का 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा बनाते हैं. ऐसे समय में जब बीएसपी इस हिस्से को ज्यादा लुभाने में सक्षम नहीं है, एसपी इसे एक अवसर के रूप में देख रही है. इसलिए, यह स्पष्ट है कि पार्टी अपने दलित नेताओं के लिए एक स्टैंड लेगी क्योंकि उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं को एक संदेश देना है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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