मुंबई: अगले साल होने वाले लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) राज्य में नई एंट्री करने वाली पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से सावधान है, जो 2014 और 2019 के मुख्य चुनाव में कुछ अन्य दलों की तरह ही खेल बिगाड़ रहा है.
पिछले हफ्ते कांग्रेस और राकांपा नेताओं ने कार्यकर्ताओं और मीडिया के साथ बातचीत में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के बीआरएस के बारे में चिंता जताई. उनका मानना था कि इससे संभवतः विपक्षी वोट विभाजित हो रहे हैं और परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मदद मिल रही है.
केसीआर के सोमवार को दो दिवसीय महाराष्ट्र दौरे पर जाने से कांग्रेस और राकांपा में सुगबुगाहट तेज हो गई है. केसीआर की यात्रा में उनके सभी कैबिनेट सहयोगी, बीआरएस विधायक और पार्टी के वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं. ये सभी नेता पंढरपुर का दौरा करेंगे जहां लाखों वारकरी, जो जाति संरचनाओं से रहित भक्ति परंपरा का पालन करते हैं, इस सप्ताह के अंत में अपनी वारी (वार्षिक तीर्थयात्रा) का समापन करने वाले हैं.
तेलंगाना से परे अपने पदचिह्न का विस्तार करने के लिए बीआरएस पड़ोसी महाराष्ट्र में अपना आधार बनाने के लिए आक्रामक प्रयास कर रही है.
कांग्रेस और एनसीपी, दोनों के नेताओं का कहना है कि, हालांकि इस प्रयास से महाराष्ट्र में पार्टी को कोई अच्छा परिणाम नहीं मिल सकता है, लेकिन केसीआर का राज्य में प्रवेश 2014 और 2019 के आम चुनावों की तरह नुकसान पहुंचा सकता है.
2014 में, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने कथित तौर पर महाराष्ट्र की कुछ सीटों पर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई थी, जबकि माना जाता है कि 2019 में डॉ. बी. आर. अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने कुछ सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी को नुकसान पहुंचाया था.
दिप्रिंट ने औरंगाबाद के कन्नड़ के पूर्व विधायक, जो मार्च में बीआरएस में समन्वयक के रूप में शामिल हुए थे, हर्षवर्धन जाधव से फोन और टेक्स्ट के माध्यम से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उनकी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला. प्रतिक्रिया मिलने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.
जाधव केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रावसाहेब दानवे के दामाद भी हैं.
क्या बीआरएस की एंट्री 2014, 2019 की पुनरावृत्ति है?
पिछले हफ्ते मुंबई में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राकांपा नेता अजीत पवार ने कहा, “आगे के चुनाव में हम बीआरएस और वंचित को नजरअंदाज नहीं कर सकते. यह याद रखना. पिछली बार सिर्फ वंचित था, लेकिन इसका असर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन पर पड़ा. कुछ हजार के मामूली अंतर से निर्वाचित होने वाले विधायकों को समस्या का सामना करना पड़ा. सांसदों को परेशानी का सामना करना पड़ा.”
उन्होंने कहा, ”चुनाव में हम कितना भी अपने अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करें लेकिन हमें इन चीजों के बारे में भी सोचना चाहिए. हमें समान विचारधारा वाले वोटों को बंटने से रोकने पर ध्यान देना होगा.”
वह एनसीपी के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
2014 में, AIMIM ने महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से 24 पर चुनाव लड़ा और दो में जीत हासिल की, जिसके बाद मुस्लिम आबादी का एक हिस्सा उनकी ओर आकर्षित हुआ. इसमे वो लोग शामिल थे जिसका कांग्रेस से मोहभंग हो गया था. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पार्टी ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, वहां उसे 13.16 प्रतिशत वोट शेयर मिले थे.
2014 में कांग्रेस और एनसीपी के मतभेद और अलग-अलग चुनाव लड़ने के फैसले के कारण विपक्षी वोट भी विभाजित हो गए थे.
माना जाता है कि एआईएमआईएम की उपस्थिति ने कांग्रेस को कम से कम तीन सीटें, नांदेड़ दक्षिण, औरंगाबाद पूर्व और भिवंडी पश्चिम पर हरा दिया था.
उस चुनाव में कांग्रेस ने 42 सीटें जीतीं और वोटों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर उसे एआईएमआईएम के हिस्से के वोट मिले होते तो वह ये तीनों सीटें भी जीत सकती थी.
उदाहरण के लिए, भिवंडी पश्चिम में कांग्रेस को 39,157 वोट मिले, जबकि भाजपा को 42,483 वोट मिले. एआईएमआईएम को 4,686 वोट मिले, जो अगर कांग्रेस के पास जाते तो पार्टी के लिए सीट सुरक्षित हो जाती.
इसी तरह नांदेड़ दक्षिण में, कांग्रेस और एआईएमआईएम के संयुक्त वोट 66,352 थे, जो जीतने वाली पार्टी के वोटों से काफी अधिक थे. तत्कालीन अविभाजित शिवसेना ने 45,836 वोटों के साथ यह सीट जीती थी. औरंगाबाद पूर्व में, कांग्रेस और एआईएमआईएम के वोट बढ़कर 81,471 हो गए, जो कि जीतने वाली पार्टी भाजपा के 64,528 से बहुत अधिक है.
2019 के लोकसभा चुनाव में, AIMIM ने प्रकाश अंबेडकर की VBA के साथ गठबंधन किया था, जिसके बारे में माना जाता है कि राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस और NCP को सात सीटों का नुकसान हुआ था. वीबीए ने एक सीट – औरंगाबाद, पर जीत दर्ज की, जहां एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील ने शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट के नेता चंद्रकांत खैरे के खिलाफ जीत हासिल की.
उस चुनाव में कांग्रेस केवल एक सीट- चंद्रपुर- जीतने में सफल रही थी. राकांपा ने चार सीटें जीतीं, बारामती, रायगढ़, शिरूर और सतारा.
2019 के विधानसभा चुनावों में, जिसमें एआईएमआईएम और वीबीए ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, एआईएमआईएम और वीबीए ने जिन 44 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से दो पर जीत हासिल की, जबकि एआईएमआईएम ने 236 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सके.
हालांकि, कांग्रेस और राकांपा नेताओं का दावा है कि दोनों पार्टियों ने 20 से अधिक सीटों पर उनकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया. उस चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीटें जीतीं, जबकि एनसीपी ने 54 सीटें जीतीं थी.
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‘बीजेपी की बी टीम’
कांग्रेस, जो तेलंगाना में बीआरएस के साथ सीधी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में है, ने महाराष्ट्र में कथित तौर पर भाजपा की “बी-टीम” बनकर मदद करने के लिए तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी की आलोचना की है.
सोमवार को मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए, महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा, “तेलंगाना की बीआरएस भाजपा की बी-टीम है और इसका महाराष्ट्र की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. हर कोई जानता है कि वोटों के इस तरह के बंटवारे से किसे फायदा होता है. तेलंगाना में कई बीआरएस नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं. तेलंगाना पैटर्न गुजरात पैटर्न जितना ही धोखेबाज है.”
इसी तरह, पिछले हफ्ते, वरिष्ठ कांग्रेस विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने हिंगोली में संवाददाताओं से कहा कि बीआरएस को अपना राजनीतिक रुख स्पष्ट करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा था, “एक संदेह मन में आता है कि क्या पार्टी भाजपा की मदद कर रही है. वे कहते हैं कि हम तेलंगाना में मुफ्त पानी और बिजली दे रहे हैं, निवेश ला रहे हैं. लेकिन क्या बीआरएस के पास महाराष्ट्र में सरकार बनाने की ताकत है? ज्यादा से ज्यादा उसे एक या दो विधायक मिल जाएंगे तो वह इन सभी योजनाओं को महाराष्ट्र में कैसे लागू करेगी? तो क्या यह लोगों से झूठ बोलने जैसा नहीं है?”
चव्हाण ने कहा कि पार्टी का रुख स्पष्ट होता अगर उसने अपनी राजनीतिक पहचान बरकरार रखते हुए गैर-भाजपा दलों से हाथ मिलाने का फैसला किया होता.
बीआरएस ने चव्हाण के गृह क्षेत्र नांदेड़ में रैलियां आयोजित की हैं.
(संपादन: ऋषभ राज)
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