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Thursday, 9 January, 2025
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2019 में वोट शेयर बढ़ने के बावजूद ममता के बंगाल में एक करोड़ सदस्य जोड़ने में BJP की क्या हैं मुश्किलें

बंगाल भाजपा के एक पूर्व प्रमुख का कहना है कि पूर्णकालिक राज्य अध्यक्ष की कमी एक कारक हो सकती है, लेकिन सदस्यता अभियान की देखरेख कर रहे समिक भट्टाचार्य का कहना है कि पार्टी को इस हफ्ते के अंत तक 50 लाख की संख्या तक पहुंचने का भरोसा है.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इकाई ममता बनर्जी के राज्य में 1 करोड़ सदस्य बनाने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने में जुटी है. पार्टी सूत्रों के अनुसार, नवंबर से अब तक करीब 43 लाख प्राथमिक सदस्य बनाए जा चुके हैं. सदस्यता अभियान की देखरेख कर रहे भाजपा सांसद समिक भट्टाचार्य ने दिप्रिंट से बातचीत में भरोसा जताया कि कैंपेन तेज़ होने के साथ ही पार्टी इस हफ्ते के अंत तक 50 लाख का आंकड़ा पार कर लेगी. भट्टाचार्य ने सुस्त अभियान के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि देरी की वजह दुर्गा पूजा उत्सव और कोलकाता में आरजी कर बलात्कार और हत्या मामले को लेकर सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हैं, जिसने कुछ समय के लिए राज्य को जकड़ लिया था.

उन्होंने कहा, “दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने के नाते हमें यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि हमारे कितने सदस्य हैं. भले ही मीडिया दावा करे कि हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए हैं, लेकिन यह गलत है. भाजपा आधिकारिक तौर पर सदस्यता संख्या जारी नहीं करती है, लेकिन हम इस हफ्ते आसानी से 50 लाख का आंकड़ा पार कर लेंगे.”

पिछले साल अक्टूबर में सदस्यता अभियान की शुरुआत करते हुए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बंगाल भाजपा इकाई के लिए 1 करोड़ का लक्ष्य रखा था.

हालांकि, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है, क्योंकि मिथुन चक्रवर्ती और लॉकेट चटर्जी जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता कोलकाता में गली-मोहल्लों में लोगों से भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का आग्रह करते देखे गए हैं.

कोलकाता भाजपा मुख्यालय में एक भाजपा पदाधिकारी ने बताया, “फिलहाल हम भाजपा के सक्रिय सदस्यों को रजिस्टर्ड करने की प्रक्रिया में हैं. केवल एक सक्रिय सदस्य ही पार्टी के पदों के लिए चुनाव लड़ने के योग्य है. अगर कोई प्राथमिक सदस्य पार्टी में 50 नए सदस्यों को शामिल करता है, तो उसे सक्रिय सदस्य के रूप में पदोन्नत किया जाता है.”

हर छह साल में आयोजित होने वाले भाजपा के सदस्यता अभियान में 2019 में पश्चिम बंगाल में उछाल देखा गया. रिपोर्ट बताती हैं कि पार्टी की सदस्यता में 140 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें 35 लाख नए सदस्य शामिल हुए, जिससे कुल सदस्यता 60 लाख हो गई. इस उछाल ने 2019 के लोकसभा चुनावों में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की, जहां भाजपा ने राज्य की 42 सीटों में से 18 पर जीत हासिल की, जो पश्चिम बंगाल में इसके बढ़ते प्रभाव और संगठनात्मक ताकत का संकेत था.

हालांकि, 6 साल बाद, परिदृश्य बदल गया है, कथित तौर पर पार्टी की सदस्यता में लगभग 40 प्रतिशत की तीव्र गिरावट आई है.

पूर्व बंगाल भाजपा प्रमुख तथागत रॉय के अनुसार, पूर्णकालिक राज्य अध्यक्ष की अनुपस्थिति एक कारक हो सकती है.

रॉय ने दिप्रिंट से बात करते हुए समझाया, “डॉ सुकांत मजूमदार केंद्र सरकार में एक जूनियर मंत्री और राज्य प्रमुख हैं. इसका पार्टी पर असर पड़ता है क्योंकि कोई दो बड़े पदों को नहीं संभाल सकता. राज्य इकाई को पूर्णकालिक राज्य प्रमुख की ज़रूरत है.”

बंगाल भाजपा सदस्यता अभियान के पूरा होने के बाद संगठनात्मक चुनाव करेगी और 2026 की शुरुआत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए तैयार होने के साथ ही एक राज्य अध्यक्ष का चुनाव करेगी.


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बंगाल में भाजपा का प्रभाव पड़ा कमज़ोर

अभिनेता से नेता बने मिथुन चक्रवर्ती ने पिछले महीने कोलकाता में भाजपा सदस्यता अभियान का नेतृत्व करते हुए मीडिया से बात करते हुए दावा किया कि पार्टी ने जानबूझकर अपने वास्तविक लक्ष्य से ज़्यादा लोगों को जोड़ने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है. हालांकि, उन्होंने विशिष्ट संख्याएं बताने से परहेज़ किया. पिछले महीने शहर में पूर्व भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी के नेतृत्व में सदस्यता अभियान के दौरान, निवासी सदस्यता लेने में हिचकिचाते दिखे. टीवी न्यूज़ कवरेज में दिखाया गया कि पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा नए सदस्यों की अपील किए जाने पर लोग सदस्यता लेने से मना कर रहे थे और दूर जा रहे थे.

यह ट्रेंड पिछले साल के लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन में स्पष्ट थी. भाजपा 42 में से 12 सीटें जीतने में सफल रही, जो 2019 की तुलना में छह कम थी. इस बीच, टीएमसी ने अपनी सीटों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की, जो 22 से बढ़कर 29 हो गई. वोट शेयर के मामले में, भाजपा ने 2019 में 42 प्रतिशत से 38 प्रतिशत तक की गिरावट देखी, जो 4 प्रतिशत अंकों की गिरावट है. इसके विपरीत, टीएमसी ने 2019 में अपने वोट शेयर को 43 प्रतिशत से बढ़ाकर 46 प्रतिशत कर लिया, जो 3 प्रतिशत अंकों की वृद्धि दर्शाता है.

राजनीतिक वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की गति मुख्य रूप से इसलिए कम हुई है क्योंकि इसकी वैचारिक दृष्टि पूर्वी राज्य के मतदाताओं को पसंद नहीं आई. इसके अलावा, इसके कथित मुस्लिम विरोधी रुख ने मतदाताओं के एक वर्ग को और भी अलग-थलग कर दिया है.

कोलकाता के बंगबासी कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और विश्लेषक उदयन बंद्योपाध्याय ने दिप्रिंट से कहा, “भाजपा ने अपनी गति इसलिए खो दी है क्योंकि यह संगठनात्मक अभियान वैचारिक से ज़्यादा सत्ता-संचालित होने की संभावना है. चुनावी वादों से भरे शीर्ष नेताओं ने संख्या बढ़ाने की कोशिश की है. 2019 में यह सत्ता-विरोधी भावनाओं को आकर्षित करने के बारे में ज़्यादा था. सदस्य ऐसे सपने लेकर आए थे जो झूठे साबित हुए.”

जाधवपुर यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग की प्रोफेसर इशानी नस्कर ने भी टीएमसी की कल्याणकारी योजनाओं पर प्रकाश डाला, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में अटूट समर्थन हासिल किया है, जिससे विपक्ष कमज़ोर दिखाई देता है.

उन्होंने समझाया, “अधिकांश ग्रामीण मतदाता डायरेक्ट कैस ट्रांसफर की कल्याणकारी योजनाओं से संतुष्ट हैं. हालांकि, कोई नहीं जानता कि कर्ज़ में डूबी राज्य सरकार इस तरह के दान को कितने समय तक झेल पाएगी, लेकिन मतदाता अन्य राजनीतिक विकल्पों पर विचार नहीं करते हैं, क्योंकि भाजपा जैसी पार्टी ऐसी नई योजनाओं के बारे में बात नहीं करती है, जिनसे लोगों को फायदा हो सकता है.”

ममता बनर्जी सरकार की “लक्ष्मीर भंडार”, 2.18 करोड़ महिलाओं को लाभ पहुंचाने वाली योजना विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एक सफल वोट हासिल करने वाली कारक साबित हुई और इसने पार्टी की 2024 के लोकसभा चुनाव की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

प्रोफेसर नस्कर ने कहा, “भले ही केंद्र सरकार के पास सभी राज्यों के लिए कल्याणकारी योजनाएं हैं, लेकिन यहां की भाजपा इकाई ने कभी भी उस संदेश को लोगों तक नहीं पहुंचाया. टीएमसी ने उस अवसर का उपयोग बंगाल में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा धन की कमी को उजागर करने के लिए किया है, लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा एक कैडर-आधारित पार्टी है, जो एक मजबूत हिंदुत्व विचारधारा के लिए जानी जाती है, जिससे बंगाल के मतदाता जुड़ते नहीं हैं, क्योंकि यहां पूर्ववर्ती कांग्रेस और वामपंथी सरकारें बहुलवाद का पालन करती थीं.”

नस्कर ने यह भी कहा कि भाजपा की मुस्लिम विरोधी छवि ने बंगाल में उसकी राज्य इकाई को नुकसान पहुंचाया है, जहां अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी है.

उन्होंने कहा, “अगर आप बंगाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के लिए भाजपा के प्रयास को देखें, जिसे उसने राज्य चुनावों के दौरान एक अभियान के रूप में इस्तेमाल किया, तो यह पड़ोसी देशों से हाशिए पर पड़ी आबादी को नागरिकता देने के संदेश को बनाए रखने में विफल रहा. इसके बजाय, इसे अल्पसंख्यक विरोधी कदम के रूप में देखा गया जिसका टीएमसी ने फायदा उठाया.”

नस्कर का कहना है कि ये सभी कारक बंगाल के लोगों को पसंद नहीं आए, जिससे भाजपा टीएमसी के लिए एक कमजोर चुनौती बन गई और राज्य में इसका समर्थन काफी कम हो गया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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