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बुधवार, 25 जून, 2025
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हरियाणा BJP ने बंसी लाल के परिजनों किरण और श्रुति चौधरी को ‘काले दिवस’ की रैलियों से क्यों हटाया

इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के भरोसेमंद सहयोगी बंसी लाल हरियाणा में आपातकाल का चेहरा थे. किरण और श्रुति चौधरी 2024 के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो गईं.

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गुरुग्राम: हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ को “काला दिवस” के रूप में मना रही है. इसके लिए 54 वरिष्ठ नेताओं की अगुवाई में एक अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इस कार्यक्रम में हरियाणा सरकार की मंत्री श्रुति चौधरी और उनकी मां, राज्यसभा सांसद किरण चौधरी की गैरहाजिरी चर्चा में है.

हरियाणा की राजनीति में एक कद्दावर व्यक्ति और तीन बार मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल हरियाणा में आपातकाल का चेहरा बने हुए हैं, जो राज्य में आपातकाल (1975-1977) की तानाशाही ज्यादतियों का पर्याय है.

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर और राव इंद्रजीत सिंह और प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडोली की अगुवाई में भाजपा के इस बड़े अभियान का उद्देश्य आपातकाल के काले दिनों की यादों को ताज़ा करके कांग्रेस पर निशाना साधना है.

सैनी करनाल में, खट्टर फरीदाबाद में और राव गुरुग्राम में रैली को संबोधित करेंगे, जबकि पूर्व मंत्री राम बिलास शर्मा रेवाड़ी में भाषण देंगे. फिर भी, 2024 के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुईं किरण और श्रुति चौधरी को हांसी, गोहाना, डबवाली, गुरुग्राम ग्रामीण और बल्लभगढ़ सहित 22 जिलों में 27 स्थानों पर रैलियों को संबोधित करने के लिए चुने गए 54 भाजपा नेताओं की सूची में शामिल नहीं किया गया है.

दिप्रिंट ने किरण चौधरी से कॉल के ज़रिए संपर्क किया था. जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

दोनों नेताओं को बाहर रखने से पार्टी की मंशा यह स्पष्ट होती है कि वह बंसीलाल की विवादास्पद विरासत, खास तौर पर जबरन नसबंदी अभियान में उनकी भूमिका, जिसके कारण उन्हें जनता की नाराज़गी झेलनी पड़ी, उससे किसी भी तरह का जुड़ाव नहीं रखना चाहती.

पूर्व आईएएस अधिकारी एम. जी. देवसहायम ने याद किया कि चौधरी बंसीलाल, जो उस समय इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के भरोसेमंद सहयोगी थे, हरियाणा में आपातकाल का प्रमुख चेहरा थे. देवसहायम ने बताया कि उन्होंने 1971 में भिवानी के पहले डिप्टी कमिश्नर के रूप में काम किया था और उस दौरान बंसीलाल की प्रशासनिक शैली और उनकी प्रभावशाली भूमिका को करीब से देखा था.

देवसहायम ने दिप्रिंट से कहा, “बंसीलाल ने संजय की ब्रिगेड के साथ मिलकर आपातकाल की ज्यादतियों को अंजाम दिया, जिसमें वी.सी. शुक्ला, ओम मेहता और आर.के. धवन शामिल थे. हरियाणा में, वे इसके प्रवर्तक थे.”

शुरू में देवसहायम के बंसीलाल के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे, जिन्होंने उन्हें अपने गृह जिले भिवानी के विकास का जिम्मा सौंपा था. हालांकि, आपातकाल के दौरान उनके रिश्ते खराब हो गए, जब देवसहायम चंडीगढ़ के डिप्टी कमिश्नर थे. बंसीलाल ने द ट्रिब्यून के चंडीगढ़ कार्यालय को बंद करने और सेंसरशिप नियमों का उल्लंघन करने के लिए इसके संपादक माधवन नायर की गिरफ्तारी की मांग की.

देवसहायम ने बताया, “अगर मैंने उनका पालन नहीं किया तो उन्होंने हरियाणा पुलिस को भेजने की धमकी दी.” सेंसरशिप का पालन करने के लिए अखबार के प्रबंधन के साथ बातचीत करके, देवसहायम ने कार्रवाई को टाल दिया, लेकिन बंसीलाल की स्थायी नाराज़गी दिखाई.

दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक रक्षा मंत्री के रूप में, बंसीलाल ने विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और संजय गांधी के 5-सूत्री कार्यक्रम, विशेष रूप से विवादास्पद नसबंदी अभियान के कार्यान्वयन की देखरेख करते हुए महत्वपूर्ण प्रभाव डाला.

हरियाणा में, 2 लाख से अधिक नसबंदी को लक्षित किया गया, अक्सर बलपूर्वक निष्पादित किया गया. मीडिया रिपोर्टों में अविवाहित युवाओं और बुजुर्गों, जिनमें से कुछ 70 वर्ष की आयु के थे, उनको जबरन नसबंदी किए जाने के उदाहरणों का हवाला दिया गया है.

हरियाणा के लालो के सबरंग किस्से नामक किताब के लेखक पवन कुमार बंसल ने दिप्रिंट से कहा कि उस समय एक लोकप्रिय नारे ने लोगों का गुस्सा भड़काया था: “नसबंदी के तीन दलाल-इंदिरा, संजय, बंसी लाल”.

उन्होंने कहा कि बंसी लाल को आपातकाल में अपनी भूमिका के कारण लंबे समय तक राजनीतिक रूप से कष्ट सहना पड़ा और दो दशक बाद 1996 के विधानसभा चुनावों में हरियाणा के लोगों ने उन पर भरोसा जताया और वह भी तब जब उन्होंने अपनी लगभग हर रैली में अपनी ज्यादतियों के लिए माफी मांगी.

बंसल ने खुलासा किया, “आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान बंसीलाल भिवानी से चुनाव लड़ रहे थे और जनता पार्टी ने उनके खिलाफ चंद्रावती को मैदान में उतारा था. बंसीलाल की पत्नी विद्या देवी उनके लिए प्रचार करने एक गांव में गईं. उन्हें चंद्रावती समझकर गांव वालों ने उन्हें पूरा समर्थन देने का आश्वासन दिया और कहा कि उन्हें बंसीलाल को सबक सिखाना है. जब विद्या देवी ने अपनी पहचान बताई तो गांव वालों ने बहुत विनम्रता से उनसे कहा कि वे मीठा दूध या लस्सी जो भी वह चाहें, पिलाने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बार वोट नहीं देंगे.”

एक और किस्सा साझा करते हुए बंसल ने याद किया कि जब मोरारजी देसाई को टौरू गेस्ट हाउस में रखा गया था और जयपाल रेड्डी, चंद्रशेखर, लालकृष्ण आडवाणी, देवीलाल और बीजू पटनायक जैसे नेता रोहतक में जेल में बंद थे, तब बंसीलाल अक्सर गर्व के साथ इस बात का बखान करते थे.

बंसल ने कहा, “मैडम (इंदिरा गांधी) ने मुझे बुलाया और जेलों को तैयार रखने के लिए कहा. मैंने उनसे कहा कि चिंता मत करो, मेरी जेलें विपक्षी नेताओं के लिए तैयार हैं.” बंसल ने कहा, “बंसी लाल शेखी बघारते थे.”

किताब में यह भी उल्लेख किया गया है कि कैसे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता ने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए जनता पार्टी सरकार द्वारा गठित शाह आयोग के समक्ष गवाही देते हुए कहा था कि वह सिर्फ एक “डमी” मुख्यमंत्री हैं और असली शक्ति बंसी लाल और उनके बेटे सुरेंद्र सिंह के पास है.


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विपक्ष की स्थिति: देवीलाल और उसके बाद

आपातकाल के दौरान हरियाणा में असहमति का व्यापक दमन हुआ. विपक्ष के दिग्गज चौधरी देवीलाल, जो बाद में उपप्रधानमंत्री बने, सबसे पहले गिरफ्तार किए गए लोगों में से थे, जिन्होंने महेंद्रगढ़ जेल में 19 महीने बिताए. उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला और जगदीश चौटाला ने भी हिसार जेल में सात महीने बिताए, वे महीनों तक पुलिस से बचते रहे, वे ऊंट की पीठ पर सवार होकर या जीप में छिपकर अपने गांव से भागते रहे.

जगदीश के बेटे और डबवाली के विधायक आदित्य देवीलाल ने दिप्रिंट से पारिवारिक अनुभव साझा किए: “जब मेरे दादा और पिता जेल में थे, तब मेरी मां सीमा गर्भवती थीं. देवीलाल के निर्देशानुसार कोई भी महिला उनसे जेल में नहीं मिलती थी.”

तत्कालीन जनसंघ नेता राम बिलास शर्मा ने दिप्रिंट को अपने 19 महीने के कारावास के बारे में बताया.

लाठीचार्ज के बाद गिरफ्तार किए जाने के बाद वे 3 घंटे से अधिक समय तक बेहोश रहे, शर्मा ने कहा कि उन्हें रोहतक, अंबाला और गया जेलों में प्रताड़ित किया गया.

उन्होंने कहा, “बिहार की गया जेल में, मैं, 6 फुट 3 इंच का आदमी, 5 फुट की कोठरी में ठूंस दिया गया था.” शर्मा ने बताया कि हरियाणा से करीब 1,300 लोकतंत्र सेनानियों को जेल में डाला गया था, जिनमें से करीब 600 अभी भी ज़िंदा हैं.

प्रतिशोध और प्रतिद्वंद्विता

1977 में आपातकाल के अंत ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया. आपातकाल के बाद हरियाणा में हुए पहले चुनावों में मुख्यमंत्री चुने गए देवीलाल ने बंसीलाल के प्रति गहरी दुश्मनी रखी, जो व्यक्तिगत और राजनीतिक अपमान से उपजी थी.

हरियाणा की राजनीति में व्यापक रूप से चर्चित एक कुख्यात घटना में बंसीलाल को हरियाणा युवा कांग्रेस के फंड घोटाले में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने उन्हें हथकड़ी लगाकर भिवानी की सड़कों पर पैदल घुमाया, जिसे देवीलाल की प्रतिशोध की भावना से प्रेरित बताया गया.

राजनीतिक विश्लेषक ज्योति मिश्रा, जो दिल्ली स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑन डेमोक्रेटिक सोसाइटीज (सीएसडीएस) की शोधकर्ता हैं, उन्होंने कहा कि किरण और श्रुति चौधरी को अपने “ब्लैक डे” अभियान से बाहर करने का भाजपा का फैसला कांग्रेस को मौका देने से बचने के लिए एक सोची-समझी चाल को दर्शाता है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “बंसीलाल की विरासत, हालांकि एक मजबूत नेता है, जिसकी विरासत का लाभ उठाया जा सकता है, लेकिन आपातकाल के संदर्भ में यह एक बोझ बनी हुई है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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