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Thursday, 19 December, 2024
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कांग्रेस नेता क्यों राम मंदिर चंदा अभियान में जुटे हैं और इससे क्यों पार्टी को कोई मदद नहीं मिलने वाली

मप्र, केरल, राजस्थान में कई नेताओं ने राम मंदिर के लिए दान दिया है या दूसरों से ऐसा करने का आग्रह किया है लेकिन 'विश्वास व्यक्तिगत है' कहते हुए पार्टी ने खुद को इससे दूर रखा है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी की छात्र इकाई नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए इस मंगलवार को राजस्थान में एक चंदा अभियान शुरू किया.

कुछ दिन पहले, केरल में एक कांग्रेस नेता ने अलप्पुझा जिले में आरएसएस के चंदा जुटाने के अभियान का उद्घाटन किया था.

जयपुर में ‘1 रुपये राम के नाम’ से चंदा अभियान का शुभारंभ करने वाले एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी ने दावा किया कि भाजपा और आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी की तरफ से मंदिर के लिए धन जुटाने के नाम पर लोगों को ‘लूटा जा रहा था’ और इसी वजह ने उन्हें यह निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया.

एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान राजस्थान इकाई के कदम का बचाव किया. उन्होंने कहा, ‘विचार दरअसल इस वजह से आया कि हमें पता चला कि कुछ लोग एक निश्चित राशि दान करने के लिए लोगों को मजबूर कर रहे हैं… इसलिए हमें लगता है कि यदि कोई व्यक्ति 1 रुपये भी देने को तैयार है तो इसका सम्मान किया जाना चाहिए.’

अलप्पुझा में कांग्रेस के उपाध्यक्ष टी.जी. रघुनाथ पिल्लई, जिन्होंने आरएसएस के चंदा अभियान का उद्घाटन किया था, ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं की तरफ से आलोचना किए जाने के बाद अपने कदम का बचाव किया. पिल्लई ने जोर देकर कहा कि उन्होंने तो इस अभियान में पल्लीपुरम कदाविल महालक्ष्मी मंदिर के अध्यक्ष की हैसियत से हिस्सा लिया था और साथ ही कहा कि ‘मंदिर मामले में राजनीति की कोई भूमिका नहीं होती है.’

हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इन कदमों से दूरी बनाने की कोशिश की है. पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पवन बंसल ने कहा कि उनसे इस अभियान के लिए संपर्क किया गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मौजूदगी में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए बंसल ने कहा, ‘मुझे नहीं पता था कि राजस्थान में एनएसयूआई राम मंदिर के लिए धन एकत्र करेगी. लेकिन यह कांग्रेस का स्टैंड नहीं है. कांग्रेस की राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने की कोई योजना नहीं है. मुझसे इस अभियान के लिए संपर्क किया गया था लेकिन मैंने मना कर दिया था क्योंकि मेरे लिए धर्म मेरी व्यक्तिगत आस्था और व्यक्तिगत मामला है. कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष है.’


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पहली बार नहीं

यह कोई पहला मौका नहीं है जब राजस्थान और केरल में कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर को लेकर चंदे की राजनीति की है.

राज्यसभा सांसद और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जनवरी में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को 1,11,111 रुपये का दान दिया था. राम मंदिर निर्माण के समर्थन को लेकर कांग्रेस के भीतर सबसे मुखर दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी भेजा था जिसमें उन्होंने आग्रह किया कि चंदा अभियान शांतिपूर्ण और ‘सौहार्दपूर्ण वातावरण’ में चलाया जाना सुनिश्चित करें. उन्होंने यह पत्र चंदा अभियान के दौरान सांप्रदायिक नारेबाजी और उत्पीड़न जैसी रिपोर्टें सामने आने के बाद लिखा था.

इससे कुछ हफ्ते पहले ही मध्य प्रदेश कांग्रेस के सचिव विवेक खंडेलवाल ने मंदिर निर्माण के लिए एक चंदा अभियान शुरू किया था. हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि यह ‘निजी स्तर’ पर किया गया था.

इसके बाद भोपाल दक्षिण-पश्चिम से विधायक और राज्य के पूर्व मंत्री पी.सी. शर्मा ने एक ‘जागरूकता अभियान’ शुरू किया, जिसमें लोगों से कहा गया कि राम मंदिर ट्रस्ट को सीधे धनराशि दान करें और इसके लिए किसी अन्य पर भरोसा न करें. जागरूकता अभियान में हनुमान चालीसा का पाठ शामिल था, जिसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने 1989 में अयोध्या में मंदिर की आधारशिला रखने वाले राजीव गांधी की तस्वीर के साथ पर्चे बांटे.

उत्तराखंड के पूर्व मंत्री नवप्रभात ने भी मंदिर को ‘भारत की एकता का प्रतीक’ करार देते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं से राम मंदिर ट्रस्ट को पैसे दान करने की अपील की.

पिछले वर्ष अगस्त में अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन समारोह की पूर्व संध्या पर गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने ट्रस्ट को 21,000 रुपये दान करने की घोषणा की थी और साथ ही उम्मीद जताई थी कि मंदिर ‘राम राज्य‘ की शुरुआत करेगा.

‘इसे भाजपा की जीत नहीं बना सकते’

हालांकि, कांग्रेस नेता इस पर जोर देते हैं कि इन अभियानों के संचालन या कोई धनराशि दान करने के लिए हाईकमान की ओर से कोई ‘आधिकारिक निर्देश’ नहीं है.

नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘पार्टी की ओर से इस बारे में न तो कोई निर्देश दिया गया और न ही कोई सुगबुगाहट ही हुई है. यह सब ऐसे मामलों में कुछ ज्यादा ही उत्साही रहने वाले लोगों की तरफ से किया जाता है. यही वजह है कि पवन बंसल ने तुरंत ही खुद को और पार्टी को इस मामले से अलग कर लिया.’

हालांकि, पार्टी के अन्य सदस्यों का कहना है कि मंदिर के लिए दान करने के प्रति उत्सुक होना दरअसल इस प्रयास का नतीजा है कि कहीं यह ‘भाजपा की जीत’ जैसा मामला न लगने लगे.

दूसरे नेता ने कहा, ‘हमने इस पूरे मामले में देर कर दी, लेकिन हम यह धारणा बढ़ने नहीं दे सकते कि राम मंदिर भाजपा की जीत है. यह सर्वोच्च न्यायालय का फैसला था. इसके अलावा, इस पर जोर देना और मतदाताओं को यह याद दिलाना जरूरी है कि वह कांग्रेस ही थी जिसने बाबरी मस्जिद के दरवाजे खुलवाए और इसमें हमेशा नेताओं का एक ऐसा वर्ग रहा है जो आस्थावान हिंदू है.’

दूसरे नेता ने कहा, ‘धर्म के मुद्दे पर किसी भी पार्टी को भाजपा के आगे आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए. निश्चित तौर पर कांग्रेस को नहीं.’

मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा ने इससे सहमति जताई की कि राम मंदिर निर्माण का पूरा श्रेय भाजपा न ले पाए इसलिए कांग्रेस नेताओं के चंदा अभियान महत्वपूर्ण हैं, और यह इसे सामान्य तौर पर ‘एक विशुद्ध धर्मस्थल’ बनाने की कोशिश भी है.

शर्मा ने कहा, ‘अगर ट्रस्ट के लोग मुझसे चंदा लेने आते हैं, तो मैं भी व्यक्तिगत स्तर पर यह दूंगा. राम मंदिर सभी लोगों के लिए भावनात्मक रूप से बहुत महत्व रखता है; यह राजनीति से ऊपर है. लेकिन भाजपा ने इस विषय को सांप्रदायिक रंग दे दिया है, यही वजह है कि इसे सामान्य तौर पर धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित करना महत्वपूर्ण है, जो आम लोगों की आस्था से जुड़ा है.’

‘इस मुद्दे पर बेवजह कवायद का कोई मतलब नहीं’

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह का चंदा अभियान चलाकर कांग्रेस को कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है.

राजनीति विज्ञानी सुहास पल्सीकर ने कहा, ‘इस मोर्चे पर बेवजह उछल-कूद का कोई मतलब नहीं है. राम मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं है; इसके साथ राजनीतिक विवाद का एक लंबा इतिहास है, जिसे भाजपा ने बोया है और यह फसल काटकर फायदा भी उठाया है. जब आप कभी इसकी बराबरी नहीं कर पाए तो अब ऐसा करने के प्रयासों का कोई मतलब नहीं है. यह केवल पार्टी की लक्ष्यहीनता को दर्शाता है.’

राजनीति विज्ञानी जोया हसन ने कहा कि यह राम मंदिर पर राजनीति करने का कांग्रेस का कोई पहला प्रयास नहीं है.

उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘कांग्रेस ने अब तक हर बार सॉफ्ट-हिंदुत्व कार्ड खेला है. वह अक्सर ही राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश करती रही है, आखिरकार, वह कांग्रेस सरकार ही थी जिसने विहिप को शिलान्यास की अनुमति दी और राम जन्मभूमि को लेकर बहुसंख्यवादी राजनीति तेज होने की शुरुआत की.’

बहरहाल, हसन का आकलन कहता है कि अगर कांग्रेस ने ऐसे अभियानों के साथ खुद को जोड़ने की कोशिश की तो उसकी ‘टार्गेट ऑडियंस’ ही इसे खारिज कर देगी.

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने राम मंदिर मुद्दे से उपजी हिंदू भावनाओं को भुनाने की कोशिश की है, लेकिन इससे कांग्रेस को भाजपा के हिंदू जनाधार में सेंध लगाने में मदद नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि अपनी हिंदू साख दिखाने के अलावा यह कुछ हद तक अल्पसंख्यकों को लेकर कांग्रेस के रुख पर धारणा बदलने की कोशिश के तहत भी किया जाता है, जो बहुसंख्यक समुदाय को पार्टी से दूर कर देता है.’

हसन ने आगे कहा, ‘लेकिन यह एक निरर्थक कवायद है. धार्मिक भावनाओं पर प्रतिस्पर्द्धा करके कांग्रेस को कुछ हासिल होने वाला नहीं है क्योंकि राम मंदिर भाजपा का मुद्दा है—जिसने मूलत: हिंदूवादी के रूप में प्रचारित करके इससे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा दिया. भाजपा से उसके मैदान पर मोर्चा लेने का नतीजा यह होगा कि उसकी टार्गेट ऑडियंस को ही संदेह होगा और वह उसे (कांग्रेस को) दिखावा कर रही मानकर खारिज कर देगी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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