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Sunday, 24 November, 2024
होमराजनीतिसोनिया के कैंपेन मैनेजर रहे, बार-बार बदली पार्टी, कौन हैं राहुल के खिलाफ मैदान में उतरे दिनेश प्रताप सिंह

सोनिया के कैंपेन मैनेजर रहे, बार-बार बदली पार्टी, कौन हैं राहुल के खिलाफ मैदान में उतरे दिनेश प्रताप सिंह

योगी कैबिनेट में राज्य मंत्री, दिनेश प्रताप सिंह ने 2019 में रायबरेली से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, 38% से अधिक वोट हासिल किए, जो किसी भी प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा वोट था.

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रायबरेली: उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और भाजपा नेता दिनेश प्रताप सिंह की 2021 में एक फ्लाइट में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ एक दिलचस्प मुलाकात हुई. जैसा कि उन्होंने उस साल अक्टूबर में एक फेसबुक पोस्ट में बताया था, वह इंडिगो पर दिल्ली से लखनऊ की यात्रा कर रहे थे और उस दौरान प्रियंका द्वारा बुक की गई सीट पर वे बैठ गए.

जब प्रियंका गांधी ने दिनेश प्रताप सिंह को अपनी सीट पर बैठे हुए देखा तो उन्होंने कहा कि यह “उनकी सीट” है और वह इतनी जल्दी “उनकी सीट” नहीं ले पाएंगे. सिंह ने जवाब दिया कि उनकी “सीट खतरे में है और इतना काफी है”.

सिंह ने 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट से प्रियंका की मां सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. तब उन्हें कुल वोटों में से 38 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे. यह किसी भी प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार द्वारा तब तक इस सीट से चार बार चुनाव लड़ चुकीं सोनिया के खिलाफ पाया जाने वाला सबसे अधिक वोट था. इसकी तुलना में, उन्हें कुल मतदान का 55 प्रतिशत से अधिक वोट मिला था.

अब 2024 पर आते हैं, और बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली में राहुल गांधी के खिलाफ खड़ा किया गया है.

इस सीट को कांग्रेस के गढ़ के रूप में देखा जाता है, क्योंकि इंदिरा गांधी ने 1971 और 1980 में यहां से चुनाव लड़ा था. राजीव गांधी के चचेरे भाई अरुण नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भाभी शीला कौल ने भी क्रमशः 1984 और 1989 में रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया था.

यूपी बीजेपी के एक नेता ने चुनाव प्रचार के दौरान दिप्रिंट को बताया, “भाजपा ने रायबरेली में कांग्रेस के मुख्य कैंपेन मैनेजर को ही उनसे छीन लिया और उन्हीं के खिलाफ खड़ा कर दिया. वह ठाकुर जाति से हैं और उन्हें ऊंची जातियों का समर्थन प्राप्त है.”

रायबरेली में पांचवे चरण में 20 मई को चुनाव है.


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सिंह परिवार और ‘पंचवटी’

राहुल के पड़ोस की अपनी पारंपरिक सीट अमेठी से रायबरेली स्थानांतरित होने के साथ, भाजपा ने एक बार फिर 56 वर्षीय दिनेश प्रताप सिंह पर भरोसा जताया है, जो चार बार वफादारी बदल चुके हैं और राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों – समाजवादी पार्टी (सपा) से लेकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा), फिर कांग्रेस और अंत में भाजपा – पार्टियों के साथ रहे हैं.

गुनावर कमंगलपुर गांव में एक मिट्टी के घर में रहने से लेकर रायबरेली के मध्य में भव्य ‘पंचवटी’ में रहने तक, दिनेश प्रताप सिंह के परिवार ने पिछले दो दशकों में क्षेत्र की राजनीति पर अपनी पकड़ स्थापित की है.

‘पंचवटी’ रायबरेली में एक शक्ति केंद्र के रूप में उभरा है, जिसमें सिंह के परिवार के कई सदस्य एमएलसी, एमएलए और जिला पंचायत अध्यक्ष सहित प्रमुख पदों पर कार्यरत रहे हैं.

रायबरेली के रहने वाले आलोक सिंह को याद है कि कैसे एक समय सिंह अपनी पुरानी बाइक पर शहर की सड़कों पर घूमते थे. वह पांच भाइयों में दूसरे नंबर पर हैं, उनके अन्य भाई गणेश, अवधेश, ब्रजेश और राकेश प्रताप सिंह हैं. उनके परिवार के कम से कम सात सदस्य रायबरेली में एमएलए, एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे विभिन्न पदों पर रहे हैं.

दिनेश के बड़े बेटे आशीष ने कहा कि सभी पांच भाई अलग-अलग व्यवसायों में लगे होने के बावजूद, वे एक संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं, यही वजह है कि उनके परिवार के घर का नाम ‘पंचवटी’ (बरगद का पेड़) है. उन्होंने कहा, “हमारे परिवार में किसी के पिता और किसी के चाचा के बीच कोई अंतर नहीं है. एकता हमारी ताकत है,”

मुलायम सिंह यादव द्वारा रायबरेली इकाई में महासचिव के पद पर पदोन्नत किए जाने के बाद 2004 में सपा के साथ अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले दिनेश प्रताप सिंह 2007 में बसपा में शामिल हो गए और तिलोई सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, जो बाद में 2008 में अमेठी लोकसभा सीट का हिस्सा बना, लेकिन हार गए.

उनका राजनीतिक उत्थान 2009 में कांग्रेस में शामिल होने के साथ हुआ जब उन्होंने पार्टी से एमएलसी चुनाव जीता. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, उनकी भाभी, भाई ब्रजेश की पत्नी सुमन सिंह, 2010 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं, यह पद 2012 में ब्रजेश के पास गया, जबकि उनके भाई अवधेश 2015 में इस पद के लिए चुने गए.

इस दौरान दिनेश प्रताप सिंह न केवल गांधी परिवार के वफादार के रूप में उभरे, बल्कि जब वह कांग्रेसी थे, तब वह बूथ प्रबंधन और गांधी परिवार के लिए प्रचार में भी शामिल थे. 2016 में वह फिर से कांग्रेस से एमएलसी चुने गए जबकि उनके छोटे भाई राकेश प्रताप सिंह 2017 में हरचंदपुर से विधायक चुने गए.

क्षेत्र में ब्लॉक-स्तरीय चुनावों में परिवार का दबदबा कायम रहा और 2000 में, राकेश की पत्नी सोनिया सिंह हरचंदपुर ब्लॉक प्रमुख बनीं, जबकि 2005 में अवधेश सिंहपुर से ब्लॉक प्रमुख बने.

राज्य मंत्री के बड़े भाई गणेश प्रताप सिंह ने कहा, “जिला पंचायत अध्यक्ष का पद एक दशक से अधिक समय से हमारे परिवार के पास है. जब सीट 2021 में एससी सीट बन गई, तो हमारे परिवार द्वारा समर्थित एक उम्मीदवार अध्यक्ष बन गया,”

साल 2018 में दिनेश प्रताप सिंह के बीजेपी ज्वाइन करने के साथ ही पूरे परिवार ने अपनी वफादारी बदल ली और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वह सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में उतरे.

दिनेश के सबसे छोटे भाई राकेश प्रताप सिंह ने भी 2017 में पार्टी के टिकट पर जीत के तुरंत बाद कांग्रेस से दूरी बना ली. 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले, राकेश भाजपा में शामिल हो गए और उसी सीट से चुनाव लड़े लेकिन सपा के राहुल लोधी से हार गए.

2021 में दिनेश के छोटे बेटे पीयूष हरचंदपुर से ब्लॉक प्रमुख बने.


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BJP ने दिनेश प्रताप सिंह पर क्यों जताया भरोसा?

भाजपा सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने दिनेश प्रताप सिंह को पुरस्कार देते हुए उन्हें बागवानी, कृषि विपणन, कृषि विदेश व्यापार और कृषि निर्यात राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के खिलाफ 38 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए, जो किसी भी अन्य पिछले प्रतिद्वंद्वी की तुलना में सबसे अधिक था.

रायबरेली के एक भाजपा नेता ने कहा, “जब उनके भाई 2022 में हरचंदपुर चुनाव हार गए, तो इसे रायबरेली की राजनीति में ‘पंचवटी’ के घटते प्रभाव के प्रतीक के रूप में देखा गया. दिनेश प्रताप का मंत्री पद एक सांत्वना पुरस्कार के रूप में आया और क्षेत्र में उनका कद बढ़ गया.”

2019 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी से हारने के बावजूद, ठाकुर जाति के दिनेश प्रताप सिंह को “स्थानीय” फैक्टर और निर्वाचन क्षेत्र में उनके परिवार के प्रभाव सहित कई कारणों से राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा द्वारा फिर से मैदान में उतारा गया है.

यूपी बीजेपी के एक नेता ने कहा, ”वह इस क्षेत्र के निवासी हैं और यहां की जनता के बीच उनकी पकड़ है, यही वजह है कि पिछली बार उन्हें अच्छी खासी संख्या में वोट मिले थे.”

नेता ने कहा, “इस बार, वह जीतेंगे. रायबरेली में कांग्रेस का वोट शेयर घट रहा है और हमें इस बार इस अंतर को पाट लेने का भरोसा है. एक मंत्री के रूप में, योगी सरकार में सिंह का प्रतिनिधित्व और यह तथ्य कि एक लोकप्रिय ब्राह्मण चेहरा मनोज पांडेय (सपा विधायक) भाजपा का समर्थन कर रहे हैं, हमें लाभ पहुंचाने में मदद करेंगे.”

रायबरेली में भाजपा सूत्रों के अनुसार, निर्वाचन क्षेत्र में कुल 17,65,460 मतदाता हैं, जिनमें 1.40 लाख क्षत्रिय, 1.35 लाख ब्राह्मण, 6.70 लाख ओबीसी, 4 लाख एससी, 1.20 लाख मुस्लिम और 7,000 वैश्य शामिल हैं.

राहुल गांधी का मुकाबला सिर्फ सिंह से ही नहीं बल्कि बसपा के ठाकुर प्रसाद यादव से भी होगा.

इसके अलावा, ऐसा पता चला है कि मार्च में हुए राज्यसभा चुनावों में उनकी भूमिका से भी उनको मदद मिली. क्रॉस वोटिंग करने वाले या मतदान से अनुपस्थित रहने वाले सपा के 8 विधायकों में से तीन अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां कांग्रेस सपा के साथ सीट-शेयरिंग व्यवस्था के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ रही है.

फरवरी में दिप्रिंट की खबर के मुताबिक सपा के जलालपुर से विधायक राकेश पांडेय, गोसाईंगंज विधायक अभय सिंह, गौरीगंज विधायक राकेश प्रताप सिंह, ऊंचाहार विधायक मनोज पांडेय, कालपी विधायक विनोद चतुर्वेदी, चायल विधायक पूजा पाल और बिसौली विधायक आशुतोष मौर्य ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करके आठवें भाजपा उम्मीदवार संजय सेठ को जिताने में मदद की.

अमेठी से सपा विधायक महराजी प्रजापति के मतदान से अनुपस्थित रहने से भी सपा को नुकसान हुआ. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह दिनेश प्रताप सिंह ही थे जिन्होंने सपा विधायकों को अपने साथ लाने में भूमिका निभाई. पहले उद्धृत किए गए भाजपा नेता ने कहा, “सपा के दो विधायक जिन्होंने क्रॉस वोटिंग की, वे हैं अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह, दोनों ठाकुर हैं, और दिनेश प्रताप सिंह की जाति के हैं.”

अभय और राकेश प्रताप सिंह दोनों के परिवार के सदस्य पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं.

हालांकि, सिंह की उम्मीदवारी आसान नहीं थी क्योंकि उन्होंने टिकट पाने के लिए भाजपा के भीतर कई दावेदारों को हराया था, जिनमें रायबरेली की विधायक अदिति सिंह और सपा विधायक मनोज पांडेय भी शामिल थे.

डैमेज कंट्रोल के लिए साफ तौर पर की गई कोशिश में, सिंह ने शुक्रवार को अपना नामांकन दाखिल करने से पहले पांडेय से मुलाकात की और उन्हें गले लगाया. दोनों को एक दशक से अधिक समय से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता रहा है.

पांडेय, जो अभी तक आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, सपा विधायक बने हुए हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले आरोप लगाया था कि पांडेय ने राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग की और भाजपा की मदद की क्योंकि भाजपा ने उन्हें लोकसभा टिकट देने का वादा किया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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