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Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीतिआखिर कौन होते हैं मोदी? राहुल गांधी द्वारा ‘बदनाम’ खानाबदोश समुदाय जो 600 साल पहले गुजरात आया था

आखिर कौन होते हैं मोदी? राहुल गांधी द्वारा ‘बदनाम’ खानाबदोश समुदाय जो 600 साल पहले गुजरात आया था

राहुल गांधी को गुरुवार को उनके एक पुराने बयान के लिए मानहानि का दोषी ठहराया गया, जिसमें उन्होंने नीरव मोदी और ललित मोदी के साथ पीएम मोदी का नाम लिया था और पूछा था कि ‘इन सभी चोरों’ का यह सरनेम क्यों है.

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नई दिल्ली: आखिर मोदी हैं कौन? कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को गुरुवार को 2019 के एक चुनाव प्रचार के दौरान उनके बयान के लिए मानहानि का दोषी ठहराया गया था, जहां उन्होंने भगोड़े ललित मोदी और नीरव मोदी के साथ पीएम नरेंद्र मोदी का नाम लिया था और सवाल किया था कि ‘इन सभी चोरों’ का सरनेम मोदी क्यों है.

इस मामले में शिकायत भी एक मोदी भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने की थी.

दरअसल, ‘मोदी’ एक ऐसे समुदाय का नाम है जिसकी जड़े खानाबदोश जनजाति से मिलती हैं और जिसके सदस्य तेल बनाने के व्यवसाय में आ गए और पूरे गुजरात में बस गए थे.

मोदी सरनेम वाले लोग राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और झारखंड सहित कई अन्य राज्यों में भी पाए जा सकते हैं.

जानकारी के मुताबिक, कहा जाता है कि मोदी 15वीं या 16वीं शताब्दी के आसपास खानाबदोश जनजाति के रूप में उत्तर भारत से गुजरात आए थे. इस समुदाय को 1994 में राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का टैग दिया गया.

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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के एक रिटायर्ड प्रोफेसर और समाजशास्त्र के शोधकर्ता प्रोफेसर घनश्याम शाह ने कहा, “परंपरागत रूप से, यह एक खानाबदोश व्यापारी समुदाय है, जो 15वीं-16वीं शताब्दी में राज्य में बस गया था. वो लोग राज्य के कुछ हिस्सों में बस गए और मूंगफली और तिल को तेल में पीसने और फिर उसी में व्यापार करने के पेशे को अपना लिया.’’

तेली-घांची (तेल-निर्माता) समुदाय होने के नाते उन्हें राज्य में ‘मोध वणिक’ या ‘वानिया (बनिया)’ की जाति के तहत वर्गीकृत किया गया.

हालांकि, शाह ने कहा, मोदियों को हमेशा एक व्यापारी समुदाय के रूप में देखा जाता था और उन्हें किसी भी जाति-संबंधी प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ा है – जैसा कि, उन्हें उच्च जातियों द्वारा कभी भी मुफ्त में अपना माल देने के लिए मजबूर नहीं किया गया – जिससे उन्हें आर्थिक स्थिति में वृद्धि करने में मदद मिली.

मोदियों के दो उपसमूह

गुजरात स्थित लेखक अच्युत याग्निक ने आगे विस्तार से बताया कि मोदी समुदाय के दो उपसमूह हैं.

उन्होंने कहा, “एक बनिया व्यापारी समुदाय था और दूसरा तेली-घांची खानाबदोश जनजाति थी. घांची वो थे जिन्हें ओबीसी का दर्जा दिया गया, लेकिन बनिया मोदी की आर्थिक स्थिति के कारण कुछ सामाजिक प्रतिष्ठा थी.’’

चूंकि, तेल का उत्पादन स्थानीय और मैन्युअल रूप से होता था, इसलिए हर गांव में तिल पीसने और उसका तेल बेचने के काम में शामिल लोगों का एक समूह शामिल होता था.

याग्निक ने कहा, “बनिया मोदी व्यापारों में फैले हुए थे, लेकिन मुख्य रूप से घरेलू सामान बेचने या धन उधार देने में शामिल थे.’’

गुजरात के व्यापार की दुनिया में मोदी के उदय के बारे में बोलते हुए अहमदाबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता, जतिन शेठ ने कहा, “आज के नीरव मोदी सबसे पुराने जमाने के बनिया मोदी के वंशज हैं. उन्होंने अपने व्यवसाय को छोटे माल से अधिक महंगे, आला उत्पादों में स्थानांतरित कर दिया है.’’

हालांकि, तीनों ने कहा कि समुदाय के पास इतनी आर्थिक ताकत नहीं थी कि वो स्थानीय राजनीति में अपनी बात रख सके.

शाह ने कहा, “19वीं शताब्दी के ग्रंथों से पता चलता है कि तेली-घांची समुदाय को कभी भी तेल की बिक्री के लिए उच्च जातियों के किसी दबाव का सामना नहीं करना पड़ा. हालांकि, उन्हें इसे कभी भी ब्राह्मणों को मुफ्त में सामान नहीं देना पड़ा, समुदाय ने सामाजिक रूप से भी कोई महत्वपूर्ण स्थिति नहीं बनाई थी.’’

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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