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Thursday, 27 June, 2024
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बाइडन के व्हाइट हाउस पहुंचने का भारत, दक्षिण एशिया के लिए आगे क्या मायने हैं

नई दिल्ली ने नए अमेरिकी प्रशासन से भारत और अमेरिका को ‘दुनिया के दो सबसे करीबी देश’ बनाने का 2020 का बाइडन का सपना साकार करने की उम्मीदें लगा रखी हैं.

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नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति चुने गए जो बाइडन की ‘शानदार जीत’ निश्चित तौर पर भारत पर असर डालेगी क्योंकि यह इंडो-पैसिफिक सेट-अप के तहत रणनीतिक रूप से अमेरिका के करीब आ रहा है और चीन की ओर से कड़ी चुनौती का सामना कर रहा है. हालांकि, नए प्रशासन के साथ बहुत सारे कार्यों में तालमेल बैठाना अभी बाकी है.

अब जब अमेरिका खुद को ‘एकजुट’ और ‘ठीक’ करने में लगा है, नई दिल्ली ने उम्मीदें लगा रखी हैं कि नया प्रशासन भारत और अमेरिका को ‘दुनिया के दो सबसे करीबी देश’ बनाने के बाइडन के 2020 के सपने को साकार करेगा.

15 अगस्त को भारतीय अमेरिकियों के समक्ष अपने संबोधन के दौरान, बाइडन ने स्पष्ट कर दिया था कि अगर वह सत्ता में आए तो प्रशासन भारत को ‘सबसे ज्यादा अहमियत’ देगा.

सितंबर 2019 में ‘अबकी बार, ट्रम्प सरकार’ की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार देर रात ट्वीट करके बाइडन को ‘शानदार जीत’ के लिए बधाई दी और कहा कि वह द्विपक्षीय संबंधों को ‘सर्वोच्च शिखर’ पर पहुंचाने के लिए नए अमेरिकी प्रशासन के साथ ‘निकटता के साथ काम करने को तत्पर’ हैं.

इस बीच, विशेषज्ञों का मानना है कि बाइडन के रूप में भारत को एक ‘दीर्घकालिक दोस्त’ मिलेगा, जो भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से ‘दीर्घकालिक रणनीतिक हितों’ को ध्यान में रखेगा.

अमेरिका और चीन में भारत की पहली महिला राजदूत रहीं पूर्व विदेश सचिव निरुपमा मेनन राव ने कहा, ‘भारत और अमेरिका के रिश्ते समान राजनीतिक और चारित्रिक विशेषताओं पर आधारित हैं. राष्ट्रपति निर्वाचित बाइडन को ‘दशकों पहले से’ हमारे द्विपक्षीय संबंधों को लेकर काफी महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण वाला माना जाता है, जैसा उनके सहयोगियों ने 2013 में तब कहा था जब वह उपराष्ट्रपति के रूप में भारत यात्र पर आए थे.’

राव ने कहा, ‘सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष के रूप में वह (बाइडन) हमेशा भारत के एक पक्के दोस्त, एक अहम सहयोगी के रूप देखे गए. मेरा मानना है कि एक इंस्टीट्यूशन बिल्डर के तौर पर वह रिश्तों के दीर्घकालिक रणनीतिक हित ध्यान में रखेंगे और वह इन हितों और हमारे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों को एक-दूसरे का पूरक होने की जरूरत को समझते हैं.’

वाशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया के उप निदेशक और वरिष्ठ सहयोगी माइकल कुगेलमैन ने कहा कि भारत को बाइडन के रूप में एक ‘दीर्घकालिक मित्र’ मिल रहा है.

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति बाइडन के आने से नई दिल्ली को भारत का एक दीर्घकालिक दोस्त मिल रहा है जो देश को अच्छी तरह से जानता है और अमेरिका-भारत के बीच मजबूत भागीदारी का समर्थक है. उनसे द्विपक्षीय रिश्ते ट्रंप शासन के समय से आगे ले जाने और इस दौरान उपेक्षित रहे जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में संबंधों को भी विस्तारित करने की अपेक्षा करें.’


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चीन, पाकिस्तान के मुद्दों पर प्रभाव

भारतीय राजनयिक सूत्रों ने कहा कि अब जबकि चीन के खिलाफ खड़े होने के दौरान भारत अमेरिका की ओर ज्यादा झुकाव वाला कदम उठा रहा है और ‘समान विचारों’ वाले देशों के साथ इंडो-पैसिफिक ढांचे के तहत रूल-बेस्ड ऑर्डर की ओर बढ़ रहा है तो उसके लिए बाइडन के साथ गहरी और सार्थक दोस्ती बढ़ाना और उसे मजबूत करना जरूरी होगा.

सूत्रों ने कहा कि जब बाइडन और उपराष्ट्रपति-निर्वाचित कमला हैरिस ‘आक्रामक और कठोर बयानबाजी’ वाले ट्रंप युग को पीछे छोड़ने का प्रयास करेंगे, भारत निश्चित रूप से चीन पर दबाव बढ़ना जारी रहने की उम्मीद कर सकता है जो रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी–हर स्तर पर इसके साथ प्रतिस्पर्धा करना जारी रखेगा.’

3 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव होने से ऐन पहले नई दिल्ली और अमेरिका ने 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता का तीसरा दौर पूरा किया था दोनों पक्षों ने चीन और पाकिस्तान को कड़े संकेत देते हुए एक प्रमुख रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे.

गेटवे हाउस में प्रतिष्ठित फेलो राजीव भाटिया कहते हैं, ‘बाइडन प्रशासन दक्षिण एशिया में भारत की महत्वपूर्ण स्थिति को मान्यता देगा, और पड़ोसियों को नई दिल्ली के साथ सौहार्द से रहने का संदेश भी देगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, पाकिस्तान पर उनकी रणनीति मिली-जुली हो सकती है जिसमें आतंकवाद के खिलाफ जंग को लेकर वह दबाव बढ़ाएं जबकि बीजिंग के साथ उसके रिश्तों को कमजोर करने के लिए इस्लामाबाद से नजदीकी संबंध बनाए रखें. बाइडन की चीन संबंधी नीति भी प्रासंगिक होगी, क्योंकि इसमें बाइडन शिविर में इस मुद्दे पर गंभीर विभाजन देखते हुए स्पष्टता नजर आने में महीनों लग सकते हैं.’

भारत और अमेरिका ने रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में अपने संबंधों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई है. बंदूक, युद्धक ड्रोन और लड़ाकू विमानों से लेकर अन्य हथियारों तक की खरीद में रूस पर भारत की दशकों पुरानी निर्भरता खत्म होने से जल्द ही इन दोनों देशों के बीच रक्षा व्यापार 20 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाने का अनुमान है.

पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा, ‘बाइडन के राष्ट्रपति बनने से भारत-अमेरिका संबंधों की सकारात्मक गति बनी रहेगी. वह विदेश नीति में अनुभवी हैं और भारत और दक्षिण एशिया को अच्छी तरह जानते हैं. रक्षा संबंधों का विस्तार जारी रहेगा. पाकिस्तान फैक्टर इसमें बाधा नहीं बनेगा. चीन फैक्टर भी साथ ही आगे चलता रहेगा. इंडो-पैसिफिक कॉन्सेप्ट और क्वाड को भी गति मिलेगी.’

भारत ने अक्टूबर में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ चार पक्षीय सुरक्षा वार्ता की अंतिम बैठक में हिस्सा लिया था, जिसे क्वाड के नाम से भी जाना जाता है. मौजूदा समय में एक-दूसरे के साथ नौसेना संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य के साथ चारो देश एक संयुक्त समुद्री अभ्यास मालाबार 2020 में भाग ले रहे हैं.

मालाबार का पहला चरण 6 नवंबर को समाप्त हुआ है, जबकि दूसरा चरण महीने के अंत में शुरू होने की उम्मीद है.

अमेरिका में पूर्व भारतीय राजदूत अरुण सिंह कहते हैं, ‘अमेरिका में आम धारणा है कि चीन सैन्य के साथ-साथ तकनीकी क्षेत्र में भी उसके एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरा है.’

उन्होंने कहा, ‘चीन के प्रति नीतियों अब उस जगह लौटने की गुंजाइश नहीं है जहां 2014-15 में होती थीं. ओबामा प्रशासन के आखिरी वाले समय में एशिया के पुनर्संतुलन या धुरी पर बात हुई थी, इसलिए ध्यान इस पर केंद्रित रहेगा.’

सिंह ने यह भी रेखांकित किया कि कैसे 2001 में बाइडन ने ही भारत पर प्रतिबंधों को खत्म करने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को एक पत्र लिखा था. इसके अलावा 2008 में अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति के रैंकिंग सदस्य के रूप में बाइडन ने सीनेट के माध्यम से भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु करार को आगे बढ़ाया था.

हालांकि, सिब्बल के अनुसार रूस के साथ रिश्तों को लेकर मुश्किल बनी रहेगी और एस-400 ट्राम्फ मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति को लेकर भारत के लिए परीक्षा की घड़ी होगी जिसमें नई दिल्ली की तरफ से काउंटरिंग अमेरिका’स एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट (सीएएटीएसए) के प्रतिबंधों से छूट की मांग की जा रही है.

अफगानिस्तान मुद्दे पर बाइडन की ओर से वहीं से शुरुआत किए जाने की उम्मीद है जहां से बराक ओबामा प्रशासन ने छोड़ा था और तालिबान से बातचीत जारी रखने के साथ अमेरिकी सेना की वापसी पर ध्यान केंद्रित होगा.

सिब्बल ने कहा, ‘अफगानिस्तान से सैन्य वापसी अब अपरिहार्य है लेकिन आतंकवादी हिंसा जारी रहने को देखते हुए तालिबान के साथ बातचीत के आधार पर इसे परखा जाएगा. पाकिस्तान के साथ उनके संबंध अच्छे रहे हैं लेकिन चीन की चुनौती और कट्टरता बढ़ने के मद्देनजर नीति में कोई खास परिवर्तन आने की संभावना नहीं है.’

इस बीच, कुगेलमैन ने आगाह किया है कि कश्मीर और भारत में अल्पसंख्यकों से संबंधित अन्य मुद्दों की स्थिति में बाइडन प्रशासन ‘मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर भारत के प्रति आलोचनात्मक’ हो सकता है.’

सिंह ने भी कहा, ‘मानवाधिकारों के मुद्दे या भारत की तरफ से पिछले साल कश्मीर पर उठाए गए विशिष्ट कदमों को लेकर कुछ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका की अपनी चुनौतियां भी हैं.’


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‘भारत-अमेरिका एफटीए की संभावना नहीं’

ट्रंप प्रशासन के तहत व्यापार भारत-अमेरिका संबंधों में एक प्रमुख बिंदु बन गया. जबकि अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार घाटे वाले देशों से खासा नाखुश था लेकिन यह भी पहली बार था जब अमेरिका ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने के लिए सार्वजनिक रूप से अपना इरादा जताया था.

ट्रंप शासन के दौरान ही भारत ने 1974 के बाद पहली बार जनरल सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (जीएसपी) के तहत 6 बिलियन डॉलर का व्यापारिक लाभ गंवाया था, और 1962 के अमेरिकी ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट की धारा 232 के तहत भारत की तरफ से स्टील और एल्यूमीनियम की आपूर्ति पर शुल्क लगाया गया जिससे इन्हें अमेरिका निर्यात करने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.

पिछले एक साल के दौरान भारत और अमेरिका ने अमेरिका के कृषि, आईसीटी और चिकित्सा उपकरण आदि से जुड़ी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए बाजार में पहुंच संबंधी तात्कालिक मुद्दों को लेकर तथाकथित छोटे व्यापार सौदे की कोशिश भी की.

सिंह ने कहा, ‘भारत-अमेरिका एफटीए फिलहाल तो मुश्किल ही होगा क्योंकि बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि वह नए व्यापारिक समझौतों पर विचार करने से पहले अमेरिकी अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे.’

सिब्बल के मुताबिक, बाइडन प्रशासन के तहत व्यापार घाटे का मुद्दे सर्वोपरि नहीं होगा, लेकिन बाजार तक अधिक पहुंच की मांग की जाएगी.

बाइडन प्रशासन की तरफ से ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के तहत मेगा-ट्रेड सौदे की समीक्षा किए जाने की उम्मीद भी है, जिससे ट्रम्प 2017 में पीछे हट गए थे.

सिब्बल ने आगे कहा, ‘यदि टीपीपी को आगे बढ़ाया गया तो क्या आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) को दरकिनार किया जाएगा? आर्थिक संबंध बढ़ेंगे लेकिन यह यूएसटीआर की ओर से सामान्य अमेरिकी दबावों के साथ होगा. घाटे का मुद्दा सर्वोपरि नहीं बनेगा लेकिन अधिक बाजार पहुंच की मांग की जाएगी.’

आरसीईपी एक अन्य मेगा-व्यापार समझौता है जिसे 15 देशों के बीच अंतिम रूप दिया जा रहा है, जिसमें 10 आसियान सदस्य- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. और उनके पांच व्यापार भागीदार ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड हैं. भारत नवंबर 2019 में आरसीईपी वार्ता से बाहर हो गया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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