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Friday, 12 September, 2025
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लखनऊ में 9 अक्टूबर की ‘मेगा रैली’ से मायावती क्या हासिल करना चाहती हैं, 4 साल बाद होगी पहली बड़ी सभा

2022 विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट प्रतिशत घटकर 13% रह गया, जो 2017 में 22.23% था. 2027 में होने वाले यूपी चुनाव से पहले मायावती पार्टी को नई शुरुआत देना चाहती हैं.

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लखनऊ: करीब चार साल बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती अगले महीने लखनऊ में एक मेगा रैली करने की तैयारी कर रही हैं. इसे पार्टी की चुनावी मशीनरी और कार्यकर्ताओं को 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए समय से पहले, लगभग डेढ़ साल पहले ही तैयार करने की कोशिश माना जा रहा है.

यह रैली ऐसे समय में हो रही है जब बसपा की सियासी स्थिति लगातार गिरती नज़र आ रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत घटकर 13 प्रतिशत रह गया, जो 2017 में 22.23 प्रतिशत था. 2012 से ही बसपा का चुनावी ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है.

अब पार्टी को दोबारा खड़ा करने के लिए मायावती 9 अक्टूबर को ‘लखनऊ चलो’ मेगा रैली को संबोधित करेंगी. इस दौरान कार्यकर्ता अपने प्रतीकात्मक नीले गमछे पहनकर जुटेंगे. पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि यूपी के अलग-अलग हिस्सों से करीब दो लाख कार्यकर्ता कांशीराम स्मारक में जुटेंगे, जो बसपा शासनकाल में बने बहुजन एकता के महत्वपूर्ण प्रतीक स्थलों में से एक है.

पिछले कुछ हफ्तों में मायावती ने पार्टी ढांचे में बदलाव किया है और स्थानीय मुद्दों को भी जोर-शोर से उठाया है—चाहे वह हालिया बुद्धा पार्क विवाद हो या दलितों पर अत्याचार. पार्टी पुनर्गठन के दौरान उन्होंने मतभेद दूर कर आकाश आनंद और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को दोबारा बसपा में शामिल होने दिया. उनकी यह सक्रियता और मिलनसार रवैया 2027 के चुनाव में पार्टी को नई ताकत देने की कोशिश के संकेत देता है.

ग्राफिक: दिप्रिंट/मनाली घोष
ग्राफिक: दिप्रिंट/मनाली घोष

बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के शब्दों में: “बहनजी कांशीराम स्मारक से कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगी और 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी का आह्वान करेंगी. इससे कार्यकर्ता जोश में आएंगे.” पाल ने कहा कि कार्यकर्ताओं को समय से पहले प्रेरित करना ज़रूरी है, ताकि बाहर के लोग यह धारणा न बना पाएं कि बसपा ज़मीनी स्तर पर निष्क्रिय है.

‘हम खेल से बाहर नहीं हैं’

9 अक्टूबर के कार्यक्रम में बसपा औपचारिक रूप से 2027 यूपी विधानसभा चुनाव के लिए अपना मिशन शुरू करेगी. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, मायावती ने आखिरी बार इतने बड़े स्तर पर 9 अक्टूबर 2021 को सभा की थी, जब 2022 विधानसभा चुनाव होने वाले थे.

यूपी के एक वरिष्ठ बसपा पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “आने वाला चुनाव हमारे लिए बहुत अहम है क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में कुछ दलित वोटर समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन की ओर चले गए थे. अब हमें उन्हें वापस लाना है. हमें साबित करना है कि हम खेल से बाहर नहीं हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हमारा फोकस दलितों, मुस्लिमों और अतिपिछड़ों (EBCs) पर है. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर विश्वनाथ पाल को बनाए रखने का फैसला, बहनजी का अतिपिछड़ा आधार पर भरोसा दिखाता है. वह वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी देकर अंदरूनी एकजुटता मजबूत करने की दिशा में भी काम कर रही हैं.”

एक अन्य पदाधिकारी ने बताया कि मेगा रैली से एक दिन पहले ही कार्यकर्ता लखनऊ पहुंच जाएंगे. बसपा की स्थानीय इकाई ने पहले से ही लखनऊ के बाहरी इलाके में रामाबाई आंबेडकर मैदान बुक कर लिया है. पार्टी को उम्मीद है कि दो लाख से ज्यादा कार्यकर्ता जुटेंगे. फिलहाल योजना यह है कि लखनऊ से बाहर हर विधानसभा क्षेत्र से कार्यकर्ताओं को बसों के जरिए लखनऊ लाया जाएगा.

पदाधिकारी ने यह भी कहा कि कांशीराम स्मारक का चुनाव खास मायने रखता है क्योंकि रैली का दिन दिवंगत समाज सुधारक की पुण्यतिथि से मेल खाता है. उनके अनुसार, “मायावती के मुख्यमंत्री कार्यकाल में 60 एकड़ जमीन पर ‘मान्यवर श्री कांशीराम स्मारक स्थल’ बना था. इसके बीच वाले एट्रियम में मायावती और कांशीराम की 18 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमाएं बनी हैं. पार्टी अगले साल एक और बड़ी रैली रामाबाई आंबेडकर मैदान में करने की योजना बना रही है, जो मायावती के ही शासनकाल में बना था.”

लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज की सहायक प्राध्यापक और राजनीतिक विश्लेषक शिल्प शिखा सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “अगर बसपा को फिर से खड़ा होना है तो उसे नए तरीके से खुद को पेश करना होगा. राजनीति दरअसल बदलाव और नएपन का खेल है. पार्टी को एक मजबूत नैरेटिव बनाना होगा, क्योंकि चुनाव अब दोध्रुवीय मुकाबले में बदल रहे हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “पार्टी को स्थानीय स्तर पर दूसरी कतार की नेतृत्व टीम भी तैयार करनी चाहिए. अगर बसपा इन दो बातों पर काम करे तो उसके पास वापसी का मौका है.”

लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर काविराज के मुताबिक, “बसपा के पास अब भी करीब 10 प्रतिशत वोट हैं, जिनका असर प्रदेश की 20 प्रतिशत से ज्यादा आबादी पर पड़ता है. अगर पार्टी इन्हें एकजुट कर ले, तो वह कुछ हद तक इंडिया ब्लॉक और एनडीए दोनों को नुकसान पहुंचा सकती है.”

उन्होंने कहा, “इसके अलावा बसपा का कार्यकर्ता वर्ग लंबे समय से नेतृत्व के सक्रिय होने का इंतज़ार कर रहा है क्योंकि चुनावी मौसम में कई पार्टियां उन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश करती हैं.”


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बुद्धा पार्क विवाद और आरक्षण

पिछले कुछ हफ्तों में मायावती लगातार स्थानीय मुद्दे उठा रही हैं, खासकर बुद्धा पार्क परिसरों में हो रही निर्माण गतिविधियों को लेकर.

कानपुर के बुद्धा पार्क में शिवालय बनाने के प्रस्ताव का विरोध करने के बाद उन्होंने मुरादाबाद के बुद्धा पार्क में वृद्धजन सेवा केंद्र और अन्य सुविधाएं बनाने की प्रशासनिक योजना पर आपत्ति जताई. मायावती ने योगी आदित्यनाथ सरकार से तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की और इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने मुरादाबाद के गौतम बुद्धा पार्क को बौद्ध धर्मावलंबियों और बहुजन समाज पार्टी के लिए आस्था का केंद्र बताया और आरोप लगाया कि इस क्षेत्र में नगर निगम की इमारत बनने से जनता में असंतोष बढ़ रहा है. उन्होंने सरकार से अपील की कि परियोजना को रोका जाए ताकि शांति और सौहार्द कायम रहे.

मायावती ने यूपी सरकार से यह भी मांग की कि वह अदालत में सही तथ्य रखे ताकि प्रदेश के चार प्रमुख सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 79 प्रतिशत आरक्षण बहाल हो सके. इससे पहले भी वह दलितों पर हो रहे अत्याचार और बढ़ते अपराध जैसे स्थानीय मुद्दों पर मुखर रही हैं.

2017 विधानसभा चुनाव के बाद से मायावती ने ज्यादातर अपनी राजनीतिक गतिविधियां लखनऊ तक सीमित कर दी थीं और शायद ही कभी बड़ी रैली या जनसभा की. ऐसे में 9 अक्टूबर की रैली कई सालों बाद कैडर से सीधे संवाद का प्रतीकात्मक महत्व रखती है.

एक दशक में बसपा का पतन

कभी बहुजन आधार पर बने अपने सामाजिक इंजीनियरिंग मॉडल के दम पर यूपी की राजनीति की बड़ी खिलाड़ी रही बसपा पिछले एक दशक से लगातार गिरावट झेल रही है.

2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी को 403 में से सिर्फ एक सीट मिली और वोट प्रतिशत 13 से भी नीचे गिर गया. बसपा छोटे दलों—अपना दल (एस), निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से भी पीछे रह गई. उसे सिर्फ 12.9 प्रतिशत वोट मिले, जो 1993 के बाद से सबसे कम था. उस समय पार्टी का ब्राह्मण कार्ड भी काम नहीं आया—65 ब्राह्मण उम्मीदवारों में से आधे से ज्यादा अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए.

इससे पहले 2019 लोकसभा चुनाव में जब बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, तब 10 सीटें जीतकर कुछ हद तक वापसी की झलक दिखी थी, लेकिन गठबंधन टूट गया और 2024 के आम चुनाव में बसपा फिर से हाशिये पर चली गई.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज काका ने कहा कि इस वक्त बसपा के लिए वापसी आसान नहीं होगी.

उन्होंने कहा, “वे देर कर चुके हैं. सबसे पहले तो उन्हें साफ करना चाहिए कि वे भाजपा के खिलाफ हैं या विपक्ष के. राष्ट्रीय मुद्दों पर भी उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं है. इसलिए समाजवादी पार्टी उनकी हालिया गतिविधियों को लेकर चिंतित नहीं है.”

वहीं, यूपी भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, “हर पार्टी को रैली करने का अधिकार है और करना भी चाहिए, लेकिन फिलहाल हमें पूरा भरोसा है कि न तो सपा और न ही बसपा भाजपा को हरा सकती है. यहां तक कि जब ये दोनों पार्टियां 2019 में साथ आईं, तब भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था. इसलिए हमें कोई चिंता नहीं है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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