आरएसएस प्रमुख भागवत ने धारा 377 को निरस्त करने पर कहां कि समय के साथ बदलना ज़रूरी है पर समाज में ‘अस्वस्था’ पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि वह अयोध्या में विवादित जगह पर जल्द ही राम मंदिर बनते देखना चाहते है. उन्होंने दावा किया कि यदि ऐसा किया जाता है, तो यह “हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के मनमुटाव के प्रमुख कारण” को ख़त्म कर देगा.
भागवत ने कहा कि “आरएसएस प्रमुख होने के नाते मेरा मत है कि राम मंदिर जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर बनना ही चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच के तनाव के एक प्रमुख कारण का निपटारा किया जा सकेगा.
देशहित विचार होता तो मंदिर बन चुका होता. यदि सर्वसम्मति से मंदिर बनाया गया,तो मुस्लिमों पर और अधिक उंगलिया नहीं उठेंगी”.
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भागवत संघ के तीन दिवसीय सम्मेलन ‘भविष्य का भारत:राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृष्टिकोण’ के समापन दिवस पर विस्तार से सभी सवालों का जवाब दे रहे थे.
यह पूछे जाने पर कि अल्पसंख्यक समुदाय को संघ का डर क्यों है, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि “अल्पसंख्यक” की परिभाषा स्वयं स्पष्ट नहीं है.
उन्होंने कहा कि “अल्पसंख्यक की परिभाषा स्पष्ट नहीं है. संघ इस शब्द के उपयोग से असहमत है. “ब्रिटिश शासन से पहले, हमने इस शब्द उपयोग कभी नहीं किया था. हम एक देश के नागरिक हैं और भाइयों की तरह रहना चाहिए और अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक समुदायों जैसे शब्दों का उपयोग से बचना चाहिए.
उन्होंने यह भी दावा किया कि “मुस्लिम जो आरएसएस शाखाओं के करीब हैं वह खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं” और कहा की संगठन से डरते है उनकों संगठन की कार्यप्रणाली को देखना चाहिए.
उन्होंने कहा कि,”हम सभी हिन्दू है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम मुसलमानों को अपना नहीं मानते हैं”.
भागवत ने कार्यक्रम के अंतिम दिन कई मुद्दों पर बात कि , अनुच्छेद 370 से लेकर 35 A, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) ,समलैंगिकता,गौ रक्षा तक.
समलैंगिकता के वैधीकरण पर धारा 377 को निरस्त करने पर सरसंघचालक ने सीधा मत नहीं रखा. इस धारा के तहत समलैंगिकता को अपराध माना गया था. उन्होंने कहा कि समय के साथ बदलना महत्वपूर्ण था, पर साथ ही उन्होंने समाज में ” अस्वस्थता ” को संबोधित करने की भी बात की.
भागवत ने कहा “हमें समय के साथ बदलना होगा. हर कोई समान रूप से समाज हिस्सा है, जैसा कि उन्होंने कहा कि स्वस्थ समाज में अस्वस्थता को संबोधित करने के लिए प्रावधान किए जाने चाहिए. ताकि लोगों को समस्या का सामना न करना पड़े.
हाल के दिनों में, आरएसएस यह बताने में सफल रही की समलैंगिकता को अपराध नहीं मानना चाहिए, लेकिन संघ सामाजिक रूप से इसे स्वीकार नहीं करता है.
गौ रक्षा , जनसांख्यिकीय परिवर्तन, यूसीसी के मुद्दे पर
भागवत ने कहा कि “गौ रक्षा” (गाय संरक्षण) ज़रुरी है, किसी भी बहाने से उस पर हिंसा गलत थी.
उन्होंने कहा की “किसी भी चीज़ के लिए कानून को हाथ में लेना लेना या हिंसा का सहारा लेना गलत है और उसे दंडित किया जाना चाहिए. लेकिन गौ रक्षा आवश्यक है। हमारे देश में कई मुस्लिम भी श्रद्धा के साथ गाय की रक्षा करते हैं.
भागवत ने यह भी कहा कि यदि गौ रक्षा के नाम पर हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई जाती है, तो उन्हें गाय तस्करी के खिलाफ भी आवाज़ उठानी चाहिए .उन्होंने कहा “हमें इन दोहरे मानकों को रोकना चाहिए”
यह प्रश्न पूछे जाने पर कि “मुसलमानों की बढ़ती आबादी के कारण जनसांख्यिकीय परिवर्तन” से क्या डर है.उन्होंने कहा, “जनसांख्यिकीय संतुलन को बनाए रखना महत्वपूर्ण है. इसे ध्यान में रखते हुए, जनसंख्या नियंत्रण नीति की ज़रुरत है और इसे सभी वर्गों के ऊपर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए … घुसपैठ की वजह से जनसांख्यिकीय असंतुलन भी होता है। ”
समान नागरिक संहिता पर, उन्होंने कहा कि यह एक मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए और देश एक आम कानून के तहत होना चाहिए.
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 ए पर
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35 A के मामलें में तीखी बहस के बीच,अभी मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है, भागवत ने धारा 370 और 35ए के बारे में बताया की हमारे विचार सबको पता हैं. हमारा मानना है कि ये नहीं होने चाहिए.
उन्होंने कहा “हम दोनों के साथ सहमत नहीं हैं. हमें लगता है कि दोनों को ख़त्म हो जाना चाहिए.
अनुच्छेद 370 और 35 ए के उन्मूलन, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष विशेषाधिकार देता हैं, लगातार भाजपा के एजेंडे पर रहे हैं.
जाति से संबंधित मुद्दों पर
सरसंघचालक ने संघ को ऐसे संगठन के रूप में दिखाने का प्रयत्न जोकि जाति भेदभाव में विश्वास नहीं करता है.
उन्होंने कहा कि “आरएसएस पूरी तरह से विभिन्न हिंदू समुदायों के बीच रोटी-बेटी संबंधों का समर्थन करता है. यदि आप भारत में अंतर जातिय विवाहों के प्रतिशत देखते हैं, तो सर्वोच्चतम स्वयंसेवक के बीच होगा.
आरक्षण के मुद्दे पर भागवत ने कहा कि संघ “सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए संविधान द्वारा दिए गए सभी आरक्षणों का पूरी तरह से समर्थन करता है. और ऐसा करना जारी रखेगा”.
उन्होंने कहा “आरक्षण समस्या नहीं है,आरक्षण की राजनीति समस्या हैे.
बीजेपी सरकार द्वारा अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम में संशोधन पर भागवत ने कहा कि इस अधिनियम को “सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए लेकिन दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए”.
संघ की राजनीतिक स्थिति
सम्मेलन के पहले दो दिनों की तरह भागवत रेखांकित करना चाहता थे कि संघ राजनीतिक संगठन नहीं है और सभी राजनीतिक दलों के लिए उसका दरवाज़ा खुला है.
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उन्होंने कहा “हमने आज तक किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं किया है. जहा तक संगठन सचिवों कि बात है जो मांगते है उनकों दे देते है.
जब उनसे पूछा गया कि यह केवल बीजेपी क्यों थी जिसमें आरएसएस से संगठन सचिव थे.उन्होंने कहा, “यदि अन्य पार्टियां भी हमसे आरएसएस संगठन के सचिवों के लिए पूछती हैं तो हम विचार करेंगे और यदि पार्टी का काम अच्छा होगा, तो हम दे देंगे,”
शिक्षा पर
भागवत ने ज़ोर देकर कहा कि संघ अंग्रेज़ी का विरोध नहीं कर रहा था, ऐसा उनका मानना है कि शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा “हमारा अंग्रेज़ी के साथ कोई झगड़ा नहीं है लेकिन शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए. अंग्रेज़ी हटाओ नहीं ,अंग्रेज़ी रखो पर यथास्थान रखो.
उन्होंने त्रिभाषा के फॉर्मूला के महत्व पर बल देने की मांग की, जिसमें कहा कि देश के गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोग हिंदी सीखते हैं. हिंदी बोलने वाले क्षेत्रों के लोगों को कम से कम एक अन्य क्षेत्रीय भाषा सीखनी चाहिए.
Read in English : Want Ram temple at Ayodhya very soon, will remove cause of Hindu-Muslim tension: Bhagwat