नई दिल्ली: भारतीय निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को घोषणा की कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होंगे, जिससे सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच चुनावी टकराव का मंच तैयार हो गया है. भाजपा 1998 से राजधानी में सत्ता से बाहर है, इसे पहले कांग्रेस ने हराया था, जो खुद अब अपने पूर्व गढ़ में प्रासंगिकता के लिए संघर्ष कर रही है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतों की गिनती 8 फरवरी को होगी.
AAP के लिए — प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा अपने शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ जांच से घिरे हुए — अपने गृह क्षेत्र में सत्ता बरकरार रखना लगभग अस्तित्वगत ज़रूरत है. यह दिल्ली ही है जहां इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) आंदोलन ने आकार लिया और 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन हुआ.
AAP 2013 में दिल्ली में अपने पहले चुनावी अभियान में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आई, जब उसने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल की और 1998 से लगातार तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया. 1993 में — जब दिल्ली का वर्तमान प्रशासनिक ढांचा अस्तित्व में आया था तब से 1998 के बीच, भाजपा ने शहर पर शासन किया.
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में AAP ने दिल्ली में 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में क्रमशः 67 और 62 सीटों पर जीत दर्ज की. भाजपा मुश्किल से ही चुनाव जीत पाई, जबकि कांग्रेस शहर से गायब हो गई, अपने मतदाता आधार में कमी के कारण संगठनात्मक उपस्थिति बनाए रखने के लिए भी संघर्ष कर रही थी.
जबकि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और उसके द्वारा नियुक्त उपराज्यपालों के साथ उसका टकराव जारी रहा, AAP ने एक शासन मॉडल तैयार किया, जिसने उसे शिक्षा क्षेत्र में भारी निवेश, पानी और बिजली की खपत के लिए सब्सिडी और स्वास्थ्य सेवा में सुधार पर राजनीतिक सफलता हासिल करने में मदद की.
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में AAP का कईं स्तरों पर परीक्षण हुआ, जब इसके शीर्ष नेतृत्व — केजरीवाल से लेकर पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, राज्यसभा सांसद संजय सिंह और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन तक — भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार हुए. हालांकि, वह अब ज़मानत पर बाहर हैं, लेकिन अब उनके पास मंत्री पद नहीं है.
क्षेत्रफल के लिहाज़ से दिल्ली भले ही छोटी हो, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में इसका हमेशा से बहुत महत्व रहा है. 2025 में भी ऐसा ही होने वाला है. दिल्ली के अलावा इस साल सिर्फ बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं.
भाजपा के लिए दिल्ली प्रतिष्ठा की लड़ाई है क्योंकि 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश के बड़े हिस्से में दबदबे के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी इस पार्टी के लिए मायावी बना हुआ है.
2015 और 2020 में भाजपा दिल्ली में बुरी तरह हारी, जबकि 2014 और 2019 में राष्ट्रीय चुनावों में उसे बहुत बढ़त मिली थी. यह अलग बात है कि पिछले तीन आम चुनावों में भाजपा ने राजधानी की सभी सातों लोकसभा सीटें जीती हैं.
आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी एक बार फिर मोदी की अपील पर निर्भर है, जिन्होंने पिछले एक हफ्ते में भाषणों में भाजपा के अभियान की दिशा तय की है, जबकि शहर में शहरी गरीबों के लिए आवास सहित कई प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन किया है. उन्होंने कहा कि AAP अपनी “दूरदर्शिता की कमी” और “भ्रष्टाचार” के कारण दिल्ली के लिए “आप-दा” रही है.
हालांकि, भाजपा चुनावों में किसी भी मुख्यमंत्री पद के चेहरे को पेश नहीं कर रही है. AAP को इस मोर्चे पर बढ़त का अहसास है क्योंकि इसने यह स्पष्ट कर दिया है कि केजरीवाल, जिन्होंने कड़ी ज़मानत शर्तों के कारण पद छोड़ दिया और आतिशी को मुख्यमंत्री पद सौंपा जिससे उनके लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना लगभग असंभव हो गया, अगर AAP सत्ता में लौटती है तो बागडोर संभालेंगे.
सत्तारूढ़ पार्टी ने चुनाव आयोग द्वारा चुनावों की तारीखों की घोषणा से कुछ घंटे पहले मंगलवार को लॉन्च किए गए अपने अभियान गीत — फिर लाएंगे केजरीवाल में भी इस वादे को दोहराया. दिल्ली चुनावों में विपक्ष के इंडिया ब्लॉक को AAP और कांग्रेस — गठबंधन में भागीदार — के अलग-अलग चुनाव लड़ने के फैसले के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा.
ऐसा न केवल इस तथ्य के कारण है कि सहयोगी अकेले लड़ रहे हैं, बल्कि AAP को चुनौती देने में कांग्रेस की असामान्य आक्रामकता के कारण भी है. कांग्रेस, खासकर इसकी दिल्ली इकाई, अपने गढ़ में वापसी के लिए बेताब है और केजरीवाल पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है, यहां तक कि उन्हें “राष्ट्र-विरोधी” तक कह रही है.
कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली इकाई को केजरीवाल के खिलाफ बयानबाजी कम करने के लिए हस्तक्षेप किया, लेकिन उसने स्थानीय नेताओं को आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ने की भी अनुमति दे दी है.
चुनावों में अच्छा प्रदर्शन पार्टी के मनोबल को भी बढ़ाएगा, जो हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में हार के बाद गिरा था, जिससे भाजपा के लोकसभा चुनाव के बाद के प्रदर्शन में विश्वास बहाल होगा.
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