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Sunday, 22 December, 2024
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गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर अपने पिता के गढ़ में हार की ओर अग्रसर

गोवा विधानसभा चुनाव इस साल का पहला ऐसा चुनाव था, जो बीजेपी 2019 में मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद लड़ रही थी.

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मुंबई: गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर, जिन्होंने अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ विद्रोह किया था, वे पणजी में हार की ओर अग्रसर हैं.

चुनाव आयोग (ईसी) के रुझानों के अनुसार, सुबह 11.30 बजे तक, नए उम्मीदवार उत्पल 713 मतों के अंतर से पीछे चल रहे थे। पणजी के मौजूदा विधायक अतानासियो मोनसेरेट आगे चल रहे हैं. जबकि चुनाव आयोग ने अभी तक परिणाम घोषित नहीं किया है, उत्पल सुबह करीब 11.30 बजे मतगणना स्थल से निकल गए.

पणजी से विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार उत्पल पर्रिकर ने कहा- मैं अपनी लड़ाई से संतुष्ट हूं लेकिन नतीजों से थोड़ा हताश हूं.

गोवा विधानसभा चुनाव इस साल का पहला ऐसा चुनाव था, जो बीजेपी 2019 में मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद लड़ रही थी.

उत्पल ने बीजेपी से उन्हें पार्टी के अधिकारिक उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करने का अनुरोध किया था और अपने पिता की विरासत पर दावेदारी करने की अनुमति मांगी थी.

लेकिन, पार्टी ने मौजूदा विधायक अतानासियो मोनसेराते को टेकट दे दिया, जो उन 10 कांग्रेस विधायकों में थे जो 2019 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिससे विधानसभा में पार्टी की स्थिति मज़बूत हुई थी.

मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद, मोनसेराते ने उप-चुनाव में पणजी सीट जीती थी, जिसे 25 वर्षों से बीजेपी का गढ़ माना जाता था.


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बीजेपी ने उत्पल को किसी वैकल्पिक सीट से चुनाव लड़ने की पेशकश की थी लेकिन 38 वर्षीय उत्पल अपने पिता की सीट से ही लड़ने पर अड़े थे और अप्रत्यक्ष रूप से मोनसेराते को अपना प्रमुख विरोधी मान रहे थे.

जिस दौरान उत्पल घर-घर जाकर अपना प्रचार कर रहे थे, उन्होंने पणजी के निवासियों के नाम एक सार्वजनिक बयान जारी किया जिसमें कहा गया, ‘…आज पणजी शहर खुद को मुर्झाया हुआ पाता है और उसके एक मनहूस शहर में बदल जाने का खतरा है’.

मुद्दों के तौर पर उन्होंने साफ-सफाई शुल्क में वृद्धि, अनियोजित विकास, अनुचित पार्किंग नियम और फ्लोर एरिया रेशो (एफएआर) आदि का हवाला दिया.

उन्होंने कहा कि एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला उन्होंने इसलिए किया है, ताकि भाई (सीनियर पर्रिकर) के अच्छे कार्यों को आगे बढ़ा सकें और सुनिश्चित कर सकें कि शहर अपने पुराने वैभव को फिर से हासिल कर ले, जो उनके ज़माने में था’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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