मुंबई: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ अपनी साझा ताकत बढ़ाने में जुटे महा विकास अघाडी (एमवीए) के तीनों घटक दल शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस भाजपा का गढ़ माने जाने वाले विदर्भ क्षेत्र में अपने-अपने विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पिछले साल के अंत में राज्य के सक्रिय कोविड-19 केसलोड में कमी आने के बाद अपने आधिकारिक टूर और विभिन्न क्षेत्रों के दौरे शुरू करने के दौरान विदर्भ पर खास ध्यान दिया है.
दिसंबर 2020 से अब तक मुख्यमंत्री ने मुंबई से बाहर 11 यात्राएं की हैं जिसमें से पांच विदर्भ के विभिन्न जिलों की थीं.
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा, ‘महाराष्ट्र में अगले दो सालों में कई स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं. सभी दल उसके लिए जमीनी समर्थन जुटाने में लगे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उद्धव ठाकरे भी देवेंद्र फड़नवीस के गढ़ जाकर और वहां विस्तार के जरिये कुछ साबित करना चाहते हैं. जहां तक एनसीपी की बात है तो विदर्भ उसके लिए हमेशा से ही एक कमजोर कड़ी रहा है.’
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उद्धव के दौरे
ठाकरे के विदर्भ क्षेत्र के पांच दौरों में से चार क्षेत्र में विकास कार्यों की समीक्षा से संबंधित थे. मुख्यमंत्री ने 5 दिसंबर को मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे की प्रगति की समीक्षा के लिए अमरावती जिले का दौरा किया. 8 जनवरी को उन्होंने भंडारा जिले में घोसीखुर्द बांध परियोजना की स्थिति का जायजा लिया. 26 जनवरी को ठाकरे ने नागपुर पहुंचकर गोरेवाड़ा चिड़ियाघर का उद्घाटन किया और 5 फरवरी को बुलढाणा जिले में लोनार क्रेटर झील का दौरा करने पहुंचे मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को वहां पर्यटक सुविधाएं बढ़ाने का निर्देश दिया.
26 जनवरी की नागपुर की यात्रा के दौरान तो ठाकरे ने यहां तक कहा कि विदर्भ उनकी रगों में बसा हुआ है.
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मेरी दादी, बालासाहेब की मां, अमरावती के परातवाड़ा से थीं. इसलिए हमारी रगों में तो विदर्भ का खून दौड़ता है. अच्छा होगा, कोई हमें विदर्भ के लिए प्रेम के बारे में सिखाने की कोशिश न करे. हमारा तो विदर्भ के साथ खून का रिश्ता है.’ उन्होंने अपने भाषण में इस क्षेत्र की लगातार यात्राओं का जिक्र करते कहा कि वह इस धारणा को दूर करना चाहते हैं कि विदर्भ को विकास से दूर रखा गया है.
अपना नाम न छापने की शर्त पर शिवसेना के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम सक्रिय तौर में विदर्भ में अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश करने में जुटे हैं और हर पखवाड़े समीक्षा बैठकें कर रहे हैं. उद्धव साहब द्वारा क्षेत्र के विभिन्न जिलों का दौरा करने से इसके प्रति शिवसेना की गंभीरता को उजागर करने में मदद मिली है.’
राज्य में जब शिवसेना और भाजपा सहयोगी दल होते थे तो गठबंधन के सीट बंटवारे के फॉर्मूले में अधिकांश सीटें भाजपा के कोटे में रहती थी, जिसके कारण क्षेत्र में शिवसेना हमेशा कमजोर में स्थिति में रही.
विदर्भ पर फोकस
सिर्फ शिवसेना ही नहीं, बल्कि एनसीपी और कांग्रेस भी इस क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश में लगी हैं.
एनसीपी के राज्य प्रमुख जयंत पाटिल ने महाराष्ट्र में पार्टी का जनाधार मजबूत करने के उद्देश्य से 28 जनवरी को विदर्भ के गढ़चिरौली जिले से ‘राष्ट्रवादी परिवार संवाद यात्रा’ निकाली.
अभियान के पहले चरण में विदर्भ के सभी 11 और उत्तर महाराष्ट्र के तीन जिले कवर किए गए.
इस बीच, कांग्रेस ने पार्टी के नए राज्य प्रमुख के रूप में विदर्भ का चेहरा माने जाने वाले नाना पटोले को चुना है, जो मुख्य रूप से क्षेत्र में भाजपा के हाथों गंवाई राजनीतिक जमीन को फिर से हासिल करने की कोशिश का एक हिस्सा है.
नाम न देने के इच्छुक एनसीपी नेता ने कहा, ‘विदर्भ में हमारी मौजूदगी ना के बराबर है क्योंकि हमने यहां हमेशा कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े हैं. अब हम विदर्भ में हर जगह बूथ-स्तर पर समितियां बनाने पर ध्यान दे रहे हैं और निकाय चुनाव लड़ने की योजना भी बना रहे हैं.’
कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र के पार्टी प्रमुख के तौर पर पटोले को चुनना, राज्य के किसी ओबीसी चेहरे को शीर्ष नेतृत्व में लाने के साथ ही विदर्भ में खोई राजनीतिक जमीन हासिल करने की इच्छा का एक स्पष्ट संकेत है.
कांग्रेस आलाकमान द्वारा इस माह के शुरू में पटोले को महाराष्ट्र का नया अध्यक्ष बनाए जाने के दौरान राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने दिप्रिंट को बताया था, ‘विदर्भ कांग्रेस का एक पारंपरिक गढ़ था. यह महाराष्ट्र का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां आपातकाल के बाद भी कांग्रेस मजबूती से उभरती रही थी, लेकिन अंततः उन्होंने वह जनाधार गंवा दिया. पटोले को पार्टी अध्यक्ष चुनना इस क्षेत्र में खोई जमीन हासिल करने का एक तरीका है.’
इस बीच, देसाई का कहना है, ‘विदर्भ में कांग्रेस की अच्छी-खासी मौजूदगी है और वह भाजपा को दरकिनार करके अपना गढ़ फिर से हासिल करना चाहती है. शिवसेना के पास भी एक अच्छा मौका है क्योंकि विदर्भ के मतदाताओं के लिए अलग राज्य का मुद्दा, जिसका वह हमेशा विरोध करती रही है, अब उतनी ज्यादा अहमियत नहीं रखता है.’
विदर्भ का सियासी समीकरण
विदर्भ में कुल 62 विधानसभा क्षेत्र हैं जो कि महाराष्ट्र की कुल विधानसभा सीटों का लगभग 22 प्रतिशत है.
अगले साल महाराष्ट्र में 10 प्रमुख नगर निगम चुनाव होने हैं. इनमें से तीन नागपुर, अकोला और अमरावती विदर्भ के हैं.
महाराष्ट्र के भाजपा के कुछ शीर्ष नेता, जैसे नितिन गडकरी, देवेंद्र फड़नवीस और सुधीर मुनगंटीवार विदर्भ क्षेत्र से ही आते हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 44 सीटों पर जीत हासिल करने के साथ इस क्षेत्र में अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को धराशायी कर दिया था.
हालांकि, बाद में विदर्भ में पार्टी की पकड़ ढीली पड़ने लगी. 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने इस क्षेत्र में 29 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने 2014 में 10 की तुलना में अपनी टैली बढ़ाते हुए 15 सीटें जीतीं.
एनसीपी ने भी यहां अपना प्रदर्शन सुधारा है. 2014 में एक के मुकाबले उसने छह सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना ने 2014 की तरह ही चार सीटों पर सफलता हासिल की.
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