नई दिल्ली: ट्विटर के ब्राहमणों को लगता है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है- मानो उतना ही जितना हिटलर के राज में यहूदियों के साथ होलोकॉस्ट के समय हुआ था.
जब से ट्विटर के सीईओ जैक डोरसी के हाथ में पोस्टर वाली तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आई है, जिसमें लिखा था स्मैश ब्राहमिणिकल पैट्रिआर्की यानी ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोड़ो, तबसे कई घटनाएं शुरू हो गईं.
सबसे पहले बड़ी संख्या में दक्षिणपंथियों ने शोर मचाया कि ये पोस्टर घृणा को बढ़ावा देता है और एक अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाता है और डोरसी के असली राजनीतिक गठबंधनों को उजागर करता है.
इसके तुरंत बाद ट्विटर इंडिया ने इस विवाद से स्वयं को अलग करते हुए कहा कि ये पोस्टर एक निजी तोहफा था जो एक दलित प्रतिनिधि ने ट्विटर के महिलाआ पत्रकारों के साथ हुए राउंडटेबल में डोरसी को भेंट किया था.
इस बीच इस बवाल के केंद्र में डोरसी को शायद ये भी नहीं पता कि ये बवाल इतना बड़ा हो गया है.
बज़फीड की रिपोर्ट है कि ट्विटर के सीईओ भारत से सीधे मयंमार में विपस्यना के लिए चले गए हैं, जहां से उनका बाहर की दुनिया से कोई संपर्क नहीं है. क्योंकि यहां घुसने के पहले ही सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ज़ब्त कर लिए गए थे.
हाल में इस पोस्टर के आलोचकों ने इसे डोरसी का ब्राहमणों पर हमले का समर्थन माना था जो उनके अनुसार सोशल मीडिया में होते रहते हैं. दूसरे विश्व युद्ध में होलोक़स्ट में जो नाज़ी जर्मनी में यहूदियों के साथ हो रहा था.
लेखिका अद्वैता काला का कहना है कि ‘अगर ट्विटर दावा करता है कि वह घृणा फैलाने का प्लैटफॉर्म नहीं है तो ट्विटर के सीईओ की माफी बनती है. जो मानक उन्होंने तय किये हैं उन्हें कम से कम उनपर खरा उतरना चाहिए और उस पर अटल रहना चाहिए. उस पोस्टर की भाषा उन मापदंडों के खिलाफ थी जिनपर ट्विटर कायम है. पोस्टर की भाषा नुकसान पहुंचा रही है.’
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं ब्राह्मणों को बार बार दुष्ट दिखाने के खिलाफ हूं. कल अगर एक आतंकवादी हमला किसी मुस्लिम समुदाय के युवक द्वारा किया जाता है और कोई मुस्लिम विरोधी पोस्ट लिख देता है – क्या हमें उससे फर्क नहीं पड़ेगा? ज़रूर फर्क पड़ेगा.’
‘हमारा अंतिम ध्येय सुलह सफाई है और ऐसी भाषा इसे और भी मुश्किल बनाती है. खासकर जब ये भाषा ऐतिहासिक बुराइयों जैसी जाति प्रथा की चर्चा करती है जिसे देश में ने रिज़र्वेशन आदि की नीतियों से ठीक करने की कोशिश की है.’
‘ये बार बार ब्राह्मणों पर हमला करना जो कि आबादी का बस 5 प्रतिशत हिस्सा है, की भर्त्सना की जानी चाहिए. आप नाज़ी और यहूदियों के रिश्ते से इसकी तुलना कर सकते हैं. यहूदी भी अलपसंख्यक थे और उन पर भी विशेष अधिकार होने का दावा किया जा रहा था. हम कई बार ट्विटर पर ब्राहमणों के साथ कैसा सलूक किया जाना चाहिए इसका हिंसक चित्रण देखते हैं.’
आपको याद दिला दें कि 6 मिलियन यहूदियों को नाज़ी शासन में मार डाला गया था.
आज कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अद्वैता काला के समर्थन में ट्वीट किया कि ट्विटर के निर्माता को क्यों दोष दिया जाए. ब्राह्मण विरोध भारतीय राजनीति का यथार्थ है. उत्तर भारत में भारतीय राजनीति के मंडल युग के बाद ये और भी उभर कर सामने आया है. हम भारत के नए यहूदी हैं और हमें इसके साथ जीना सीख लेना चाहिए.
मोहन दास पाई का जवाब था- ‘नए यहूदी? जीना सीख लें? तो क्या नया लेबल लगने के बाद घृणा स्वीकार कर लेनी चाहिए. तो क्या दुनियाभर में यहूदी विरोध (एंटी सेमिटिसम) के समान नहीं है. आपके अतार्किक और घृणित पक्षपातपूर्ण व्यवहार पूरी दुनिया के सामने आ गया है. शर्मनाक…’
पर ये पहली बार नहीं है कि भारत में हिटलर और नाज़ी युग को याद किया गया हो. जून में केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने आपातकाल को याद करते हुए इंदिरा गांधी की तुलना हिटलर से कर दी थी.
आनंद रंगनाथन ने लिखा, ‘क्या जैक डोरसी ने कभी ऐसा पोस्टर भी हाथ में लिया है जिसे उन्हें तीन तलाक या घरेलू हिंसा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के दिए हों और उस पर लिखा हो कि ‘मुस्लिम पितृसत्ता तोड़ो’. अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हीं में कोई एक उनके हाथ से इसे छीनकर चिल्लाएगी कि यह चुनिंदा अत्याचार बंद कीजिए. यह उनके लिए आंतरिक मामला है.’