कोलकाता: इकसठ वर्षीय निमाई चंद्र साहा, पेशे से एक फेरीवाला, का जन्म भवानीपुर के हरीश चंद्र मुखर्जी गली में स्थित एक कमरे की छोटी सी झोंपड़ी में हुआ था. वह अपनी बस्ती, जैसा कि कोलकाता में मलिन झुग्गियों के समूह को कहा जाता है, के आसपास की गंदगी और कचड़े के बीच ही पले-बढ़े और बड़े हुए.
एक समय में मुश्किल से एक व्यक्ति के चलने लायक जगह वाली संकरी गलियों में स्थित इस बस्ती के निवासी ज्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं जैसे कि दिहाड़ी मजदूर, टैक्सी चालक, रसोइया, नौकरानियां और मजदूर – और पीढ़ियों से इस घनी आबादी में एक दूसरे से सट कर रहे हैं.
लेकिन साहा का कहना है कि तंग रहन-सहन की स्थितियों के बावजूद वह जिस बस्ती में पले-बढ़े और आज के दिन की बस्ती में ज़मीन-आसमान का अंतर है. उन्होंने कहा, ‘मैंने यहां होता बदलाव देखा है… यह सब दीदी (सीएम ममता बनर्जी) की वजह से ही है… उन्होंने हम जैसे गरीब लोगों को इज्जत दी है.’
अब बस्ती में एलईडी लाइटें लगी हुई हैं, बिजली की कटौती जैसे अतीत की बात हो गई है, राज्य सरकार की मिशन निर्मल बांग्ला योजना के तहत शौचालयों का निर्माण अथवा नवीनीकरण किया गया है, हर 2-4 घरों पर लोगों के नहाने-धोने के लिए स्नान स्थल बनाए गए हैं, तथा उन्हें स्वच्छ पेयजल और सीमेंटेड फुटपाथ की सुविधा भी उपलब्ध कराई गयी है.
साहा के घर के ठीक बगल में रहने वाली उनकी पड़ोसन 68- वर्षीय तारा सिंह, जो हाउसिंग सोसाइटियों में खाना बनाने वाली के रूप में काम करती हैं, भी उनकी बात से सहमत हैं. तारा, जो पिछले 38 वर्षों से यहां रह रही हैं, कहती हैं, ’ऐसा नहीं है कि पहले यहां किसी ने कोई काम नहीं करवाया था. लेकिन जब से दीदी यहां से विधायक बनीं, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हमारे रहने-सहने की स्थिति में सुधार हो.’
जैसे-जैसे हम भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र, जहां से ममता बनर्जी ने 2011 के बाद से दो बार चुनाव जीता है, में आसपास के अन्य जगहों में घूमते हैं, इन झुग्गी में रहने वालों के बीच यही बात सुनने को मिलती है. एक तरह से यहां उनकी एक ‘कल्ट इमेज’ (पूजनीय छवि) बन गई है. यह तथ्य कि वह स्वयं पास के कालीघाट मोहल्ले में रहती है, ने भी इसमें काफ़ी मदद की है.
चेतला की मिस्त्रीपुकुर बस्ती में रहने वाले मूर्ति निर्माता देबाशीष दास कहते हैं, ‘एक वे (बनर्जी) हीं हैं जो जब भी उनकी आवश्यकता पड़ती हैं, हमारे पास आती हैं और साथ खड़ी होती हैं. हम दीदी के अलावा किसी और को वोट क्यों दें?’
ऐसा नही है कि केवल भवानीपुर के गरीब तबके को ही इन कल्याणकारी उपायों से फ़ायदा हुआ है. पिछले कुछ वर्षों में, विकास, विशेष रूप से नागरिक बुनियादी ढांचे की बेहतरी, इस निर्वाचन क्षेत्र के अपेक्षाकृत संपन्न इलाक़ों तक भी पहुंचा है.
पिछले कुछ सालों में भवानीपुर पर विशेष ध्यान इसलिए दिया गया है क्योंकि यह निर्वाचन क्षेत्र 2011, जब उन्होंने पहली बार यहां से चुनाव लड़ा था, से ही ममता बनर्जी की पारंपरिक सीट रही है.
अब वह 30 सितंबर को इस सीट से उपचुनाव लड़ेंगी. इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनावों के दौरान तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया था मगर वहां उन्हे अपने प्रतिद्वंदी सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था.
इसी वजह से यह उपचुनाव कराना पड़ा है. कानून के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा मंत्री पद संभालने के छह महीने के भीतर उसे उपचुनाव जीतना होता है, तभी वह अपने पद पर बना रह सकता है.
कल्याणकारी योजनाएं, स्वास्थ्य सुविधाओं का बेहतर ढांचा
हालांकि, यह सिर्फ बस्तियों का विकास नहीं है जिसने भवानीपुर को ममता का गढ़ बनने में सहायता की है.
2011 में सत्ता में आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस सरकार अपने द्वारा शुरू की गई विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाने में भी सफल रही है. यह एक ऐसा तथ्य जिसे विपक्षी दलों ने भी स्वीकार किया है.
माकपा की कोलकाता जिला समिति के सचिव कल्लोल मजूमदार ने दिप्रिंट को बताया कि गरीबों के बीच वामपंथी दलों के जनाधार को तृणमूल कांग्रेस ने काफी हद तक अपनी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अपने कब्जे में कर लिया है.
उदाहरण के तौर पर ब्रिटिश काल में बने सेठ सुखलाल करनानी मेमोरियल (एसएसकेएम) अस्पताल को लें, जिसका 2011 में बनर्जी के पहली बार सत्ता में आने के बाद विस्तार किया गया था. अब एसएसकेएम अस्पताल में एक नया ट्रॉमा सेंटर भी बनाया गया है.
इसके अलावा एसएसकेएम अस्पताल के ठीक सामने एक नया अत्याधुनिक कैंसर अस्पताल भी प्रस्तावित है.
इसी निर्वाचन क्षेत्र के वार्ड संख्या 71 में एक दशक से भी अधिक समय से खाली पड़े रमरीकदास हरलालका अस्पताल को भी सुधार के बाद नये स्वरूप में चालू कर दिया गया है. इसके अलावा, कोलकाता पुलिस अस्पताल अब आम जनता के लिए भी खुला है.
गुरुद्वारा संत कुटिया के पास एक फार्मेसी (दवा दुकान) के मालिक प्रदीप सिंह ने कहा, ‘इस बेहतर स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे से न केवल भवानीपुर के लोगों को बल्कि राज्य भर के लोगों को मदद मिल रही है.’
मुस्लिम बहुल क्षेत्र खिदिरपुर, जो भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है, में एक प्रसूति गृह का निर्माण किया गया है.
पास के मोमिनपुर और अलीपुर में, जहां जलजमाव एक बारहमासी समस्या बनी हुई है, एक पंपिंग स्टेशन बनाया जा रहा है. बॉडीगार्ड लाइन्स में रहने वाले एक के 34 वर्षीय दुकानदार हिदायत रसूल ने कहा, ‘पहले बारिश के बाद पानी को निकालने में एक सप्ताह का समय लगता था. अब जमे हुए पानी को बाहर निकालने के लिए इस क्षेत्र में एक पंपिंग स्टेशन का निर्माण किया जा रहा है.’
नए बस स्टैंड्स के अलावा इस निर्वाचन क्षेत्र में कई नये सार्वजनिक पार्क भी बनाए गए हैं.
बस्तियों में रहने वाले लोगों की तरह, मुस्लिम इलाकों के निवासी भी तृणमूल के वफादार मतदाता माने जाते हैं और ममता बनर्जी भी 30 सितंबर को होने वाले चुनाव में उनके वोट पाने का भरोसा कर रही हैं.
लेकिन सब कुछ एकदम से चाक-चौबंद/ठीक- ठाक भी नहीं है
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में नयी सड़कें बनी हैं और पुरानी सड़कों का भी पुनर्निर्माण किया गया है, लेकिन इसके साथ ही यातायात के कारण लगने वाली भीड़ एक बड़ी समस्या बन गई है.
बारिश के बाद सड़कों पर भारी जलजमाव होना अब आम बात हो गई है. भवानीपुर में रहने वाले एक व्यवसायी कुलवंत सिंह कहते हैं, ‘हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने यहां बहुत काम किया है, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जो लोगों के दिन-प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित करते हैं जैसे कि जलभराव और ट्रॅफिक कंजेस्न (यातायात की भीड़) जो पहले की तरह बनी हुई है.’
गैर-बंगाली मतदाताओं पर टिकी है भाजपा की उम्मीदें
इस बीच, उपचुनाव से पहले तक भाजपा को उम्मीद है कि गैर-बंगाली समुदाय उसके उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल का समर्थन करेगा और उसे अपना 35 प्रतिशत वोट शेयर बरकरार रखने में मदद करेगा.
भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र के 40 प्रतिशत से अधिक निवासी गैर-बंगाली हैं. इनमें मारवाड़ी, सिख, गुजराती और जैन समुदाय के लोग शामिल हैं.
पश्चिम बंगाल भाजपा इकाई के एक नेता, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘बहुत कुछ मतदाताओं के मतदान हेतु बाहर निकलने पर भी निर्भर करेगा. भाजपा का समर्थन कर रहे मतदाताओं के एक वर्ग में आशंका है कि तृणमूल कांग्रेस उन्हें निशाना बना सकती है… उनमें से कई मतदान के दिन अनुपस्थित रह सकते हैं.’
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