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Friday, 22 November, 2024
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कोविड को लेकर अभिषेक बनर्जी ने बुआ ममता से उलट रखी राय तो TMC में बयानों का सिलसिला हुआ शुरू

अभिषेक बनर्जी की निजी राय की सभी धार्मिक-राजनीतिक इवेंट्स को बद कर देना चाहिए, ममता बनर्जी के विचारों के खिलाफ है. टीएमसी में आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं.

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कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राष्ट्रीय महासचिव व डायमंड हार्बर संसदीय सीट से सांसद अभिषेक बनर्जी की ओर से दी गई ‘व्यक्तिगत राय’ से पार्टी के भीतर एक वबंडर खड़ा हो गया है.

उनका कहना है कि कोविड तीसरी लहर के दौरान सभी धार्मिक और राजनीतिक कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया जाना चाहिए. यह बात उनकी बुआ ममता बनर्जी की इस मुद्दे पर राय से विरोधाभासी है. बता दें कि ममता बनर्जी के पास स्वास्थ्य पोर्टफोलियो भी है.

इस बयान से पार्टी के अंदर बढ़ती कलह और दरार उजागर हो गई है. इससे पार्टी नेतृत्व भी काफी असहज हो गया है और सदस्यों को अपनी असहमति निजी रखने की चेतावनी दी गई है.

ममता बनर्जी सरकार ने पिछले सप्ताह आयोजित होने वाले गंगा सागर मेले को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया था. इसके अलावा सरकार 22 जनवरी को होने वाले नगर पालिका चुनावों को भी करवाने पर अड़ी हुई थी, लेकिन बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप करके तारीख को 22 जनवरी से बढ़ाकर 12 फरवरी कर दिया. पिछले महीने भी सीएम ने कहा था कि जहां तक संभव होगा सरकार अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण प्रतिबंध लगाने से बचेगी.

हालांकि तीन बार के सांसद अभिषेक बनर्जी ने इस मामले में अपनी अलग ही राय व्यक्त की. 8 जनवरी को अपने लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर में प्रशासनिक बैठक का आयोजन करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि अगले दो महीने तक सभी धार्मिक और राजनीतिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी जानी चाहिए.’ हालांकि, साथ ही उन्होंने इसे अपनी निजी राय बताई.

अभिषेक ने भी कलकत्ता उच्च न्यायालय और राज्य चुनाव आयोग को नगर पालिका चुनाव को स्थगित करने के लिए धन्यवाद भी दिया. उन्होंने ट्वीट किया, ‘हमें एकजुट होकर काम करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अगले तीन हफ्तों में बंगाल में कोरोना पॉज़िटीविटी रेट को 3 प्रतिशत से भी कम पर लाया जा सके. 16 जनवरी तक पश्चिम बंगाल का कोविड पॉज़िटीविटी रेट 27.73 फीसदी था.’

अभिषेक की इस टिप्पणी से पार्टी के नेता दो धड़ों में बंटते हुए दिख रहे हैं. जहां, सांसद कल्याण बनर्जी जैसे कुछ नेताओं का कहना है कि सीएम की नीतियों के खिलाफ किसी को बोलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, वहीं टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष जैसे अन्य लोग ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी के समर्थन में सामने आए हैं.


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‘अपनी असहमति अपने तक सीमित रखें’

स्वास्थ्य विशेषज्ञों और पश्चिम बंगाल में टीएमसी के कुछ नेतओं ने जहां अभिषेक बनर्जी के विचार का स्वागत किया, वहीं अन्य नेता इस बात से काफी नाराज़ नज़र आए.

13 जनवरी को सेरामपोर के सांसद कल्याण बनर्जी ने संवाददाताओं से कहा कि ममता के अधिकार को चुनौती नहीं दी जानी चाहिए.

कल्याण बनर्जी ने कहा, ‘ममता बनर्जी सरकार चलाती हैं, और वह पार्टी भी चलाती हैं. लोगों ने ममता को वोट दिया है. वह राज्य के लिए नीतियां बनाती हैं और वह टीएमसी की आइडियॉलजी भी तय करती हैं. कल्याण बनर्जी ने कहा, किसी को भी इसके खिलाफ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नहीं बोलना चाहिए, यह ममता के खिलाफ जाता है.

इस टिप्पणी के कुछ ही घंटों बाद भोवानीपोर में टीएमसी के कुछ कार्यकर्ता अभिषेक बनर्जी की आलोचना करने के लिए कल्याण बनर्जी का पुतला जलाते देखे गए . टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने भी अभिषेक के पक्ष में बात की.

एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में घोष ने कहा, ‘अभिषेक बनर्जी ने जो कहा वह कोविड की स्थिति को देखते हुए बिल्कुल सामान्य था. मुझे नहीं पता कि दूसरे सांसद ने क्या कहा है, मुझे यह भी नहीं पता कि उन्होंने सूर्यास्त के बाद यह बात कही या नहीं.

घोष ने आगे कहा, ‘अभिषेक टीएमसी के एक सक्षम सिपाही हैं. ममता के बाद अगर कोई ऐसा नेता है जो आलोचना सह कर भी आगे बढ़ सकता है तो वह अभिषेक बनर्जी हैं.’

हालांकि, पश्चिम बंगाल टीएमसी के महासचिव पार्थ चटर्जी, जो पार्टी की अनुशासन समिति के प्रमुख भी हैं, ने स्पष्ट कर दिया कि पार्टी के सदस्यों को अपनी असहमतियों को अपने तक सीमित रखना चाहिए.

रविवार को एक न्यूज़ कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक रूप से दिए जा रहे बयान पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी हैं. मैं नेताओं से आग्रह करता हूं कि वे सोशल मीडिया पर बयान देना बंद करें और इसके बजाय पार्टी के भीतर बोलें. अगर हममें से कोई भी इन निर्देशों का पालन नहीं करता तो हमारे पास कार्रवाई करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा.

अभिषेक बनर्जी पार्टी लाइन से हट क्यों रहे हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अभिषेक बनर्जी टीएमसी में सिर्फ एक और कार्यकर्ता के रूप में देखे जाने के रूप में संतुष्ट नहीं हैं .

रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि अभिषेक बनर्जी अपनी छवि को मजबूत करने के साथ-साथ पार्टी में अपने प्रभाव को बढ़ाने की चाह से ये सब कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘अभिषेक बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पैठ बना रहे हैं. वह प्रो-पीपल, प्रो-गवर्नेंस के रूप में अपनी छवि को फिर से आकार देने की कोशिश कर रहे हैं और वह उस छवि को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही यह सरकार की कीमत पर आए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘उनका यह बयान न सिर्फ जनता का समर्थन हासिल करने के लिए है क्योंकि उन्होंने जनता के दिल की बात कहने की कोशिश की है. बल्कि, पार्टी में अपनी पकड़ को और ज्यादा मज़बूत करने की भी कोशिश है.

वहीं राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ ने दिप्रिंट को बताया कि अभिषेक अपने आपको एक स्वतंत्र नेता के रूप में भी प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘अभिषेक बनर्जी काफी शानदार तरीके से और तेज़ी से आगे बढ़े हैं. उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के अपवाद वाले परिणाम के बाद पार्टी के भीतर और बाहर अपने सभी आलोचकों को चुप करा दिया. जो कोई भी पारिवारिक संबंधों के कारण राजनीति में पदार्पण करता है, जो कि भारत में विशेष रूप से एक आम घटना है, अंततोगत्वा उसे खुद को जनता के सामने साबित ही करना पड़ता है.

जेरथ ने आगे कहा, ‘अगर आप देखें तो पाएंगे कि त्रिपुरा और अन्य राज्यों में अभिषेक टीएमसी के लिए राजनीतिक लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं, जो इंगित करता है कि अभी निभाने के लिए उनके पास काफी बड़ी भूमिकाएं हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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