तिरुवनंतपुरम: कांग्रेस सांसद शशि थरूर द्वारा भारत की 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक को “पहली” करार देने पर कांग्रेस के भीतर ही तीखी आलोचना हो रही है, क्योंकि यह पार्टी के उस रुख के खिलाफ है कि ऐसी स्ट्राइक यूपीए के समय में भी हुई थीं. हालांकि, उनके निर्वाचन क्षेत्र तिरुवनंतपुरम में इस बयान ने अलग ही तरह की चर्चा को जन्म दिया है. मतदाता और स्थानीय कांग्रेस नेता थरूर की गतिविधियों को बारीकी से देख रहे हैं — कुछ लोग उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता की सराहना करते हैं, तो कुछ इसे उनके राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और राजनीतिक बदलाव का संकेत मान रहे हैं.
पनामा में पिछले सप्ताह दिए गए थरूर के बयान की कांग्रेस नेता उदित राज ने कड़ी आलोचना की. उन्होंने आरोप लगाया कि थरूर पार्टी के ‘स्वर्णिम इतिहास’ को नीचा दिखा रहे हैं और उकसाने वाले अंदाज़ में कहा कि उन्हें “बीजेपी के सुपर प्रवक्ता” बन जाना चाहिए.
जहां थरूर कांग्रेस और मोदी सरकार की राजनीतिक कूटनीति पर अपनी राय से हलचल मचाते रहते हैं, वहीं उनके तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र के मतदाता — जहां से वह लगातार चार बार जीत चुके हैं — अब भी उनकी स्वतंत्र आवाज़ को पसंद करते हैं. लेकिन स्थानीय कांग्रेस इकाई में कुछ नेता सतर्क हैं और उन्हें पार्टी लाइन से अलग बोलने पर चिंता है.
एक स्थानीय कांग्रेस पदाधिकारी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने कहा कि थरूर की “मोदी की लगातार तारीफ ने जनता के बीच पार्टी की स्थिति को मुश्किल में डाल दिया है.”
“वह लगातार मोदी की तारीफ नहीं कर सकते. इससे हमें यहां लोगों के सवालों का सामना करना पड़ता है कि हमारे नेता बीजेपी की तारीफ क्यों कर रहे हैं.”
इस पदाधिकारी ने यह भी जोड़ा कि पार्टी ने अपने सदस्यों को थरूर के खिलाफ सार्वजनिक रूप से न बोलने का निर्देश दिया है, लेकिन थरूर को भी सोच-समझकर बोलना चाहिए और किसी भी असहमति को पार्टी के अंदर उठाना चाहिए.
पिछले कुछ हफ्तों में पार्टी की आधिकारिक राय से सार्वजनिक रूप से अलग बोलने के कारण थरूर का कांग्रेस पार्टी से रिश्ता थोड़ा खट्टा हो गया है.
उन्होंने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है, हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद की गई सैन्य कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को “अच्छा किया” बताया.
हालांकि, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तुरंत स्पष्ट कर दिया कि थरूर के बयान “पार्टी की राय को नहीं दर्शाते.”
बाद में रमेश ने यह भी आरोप लगाया कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष पर भारत की स्थिति समझाने के लिए थरूर को ऑल पार्टी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए चुनकर केंद्र सरकार ने “सस्ती राजनीति” की है, जबकि कांग्रेस ने चार सांसदों के नाम दिए थे, और केंद्र ने थरूर को ही चुना जबकि उनका नाम सूची में नहीं था.
इससे पहले भी, अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से 2 दिन की मुलाकात को लेकर थरूर पार्टी नेताओं की आलोचना का शिकार हो चुके हैं. उन्होंने कहा था कि यह “भारत के लिए अच्छा” है, जबकि उनके सहयोगी अमेरिका से भारतीयों की वापसी को लेकर सरकार पर हमलावर थे.
हालांकि, कुछ स्थानीय नाराज़गी उनके लंबे समय तक क्षेत्र में अनुपस्थित रहने को लेकर है, लेकिन ऊपर बताए गए पदाधिकारी ने यह माना कि थरूर अभी भी जीतते हैं क्योंकि मतदाता अंततः चाहते हैं कि कांग्रेस सत्ता में बनी रहे.
बदलती धारणाएं, घटता मार्जिन
थरूर 2009 से तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से सांसद हैं, जो सात विधानसभा क्षेत्रों में फैली हुई है, लेकिन हाल के चुनावी रुझान उनके समर्थन आधार में स्पष्ट गिरावट दिखाते हैं.
2009 और 2019 में उनकी जीत का अंतर करीब एक लाख था, लेकिन 2014 में और फिर हाल में 2024 में यह गिरकर सिर्फ 16,077 वोट रह गया, जब उन्होंने बीजेपी के राजीव चंद्रशेखर को हराया.
दिप्रिंट ने तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्रों—कोवलम, नेय्याट्टिनकारा (जहां थरूर को 15,000 से ज़्यादा वोटों से बढ़त मिली) और तिरुवनंतपुरम विधानसभा क्षेत्र (जहां उन्हें 4,000 से ज़्यादा वोटों से बढ़त मिली)—का दौरा किया, ताकि स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं और वोटरों की राय जान सकें.
वोटरों ने थरूर के “गैर-पक्षपाती” विचारों की सराहना की, लेकिन यह भी कहा कि वे अक्सर अपने क्षेत्र से गायब रहते हैं और कांग्रेस के अंदर गुटबाज़ी भी है.
कोवलम के पारंपरिक कांग्रेस गढ़ में रहने वाले 51 साल के स्टेनली को लगता है कि थरूर “सच बोल रहे हैं” और उनके ज्ञान और शिक्षा की वजह से ही वे ऐसे बयान दे रहे हैं.
स्टेनली का मानना है कि पार्टी थरूर को पर्याप्त पहचान नहीं दे रही, इसलिए वह असहमति जता रहे हैं. वे इसे पार्टी के भीतर चल रही गुटबाज़ी का एक छोटा हिस्सा मानते हैं.
विझिंजम की ही निवासी 44 साल की शुभा वी. ने भी कहा कि थरूर की “अच्छी छवि और प्रतिष्ठा है, जिससे लोग मानते हैं कि वह सही हो सकते हैं.”
कोवलम के विझिंजम इलाके के 50 वर्षीय मछुआरे अबिलिस जॉर्ज को भी लगता है कि चल रहा विवाद “सिर्फ कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े का नतीजा” है.
उन्होंने कहा, “कांग्रेस बुरी तरह बंटी हुई है. उनके पास किसी बात पर एक राय नहीं है. इसमें थरूर की गलती नहीं है.”
हालांकि, कोवलम के 42 वर्षीय कांग्रेस समर्थक एंटनी एस., जो 2024 सहित पिछले चुनावों में थरूर के लिए प्रचार कर चुके हैं, ने उन्हें दोबारा वोट देने पर अफसोस जताया.
उन्होंने कहा, “उन्हें फिर से चुनना गलती थी. उन्होंने यहां कुछ नहीं किया.”
उन्होंने कहा कि उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी को जिताने के लिए थरूर को वोट दिया, लेकिन थरूर का बीजेपी की तारीफ करना उन्हें निराश करता है. उन्होंने ज़ोर दिया कि थरूर को मिले वोट ज़्यादातर “पार्टी के वोट” हैं और वह “बिना पार्टी के नहीं जीत सकते.”
नेय्याट्टिनकारा में 54 वर्षीय किराना दुकानदार नंदकुमार ने थरूर को “एक अच्छे इंसान और वैश्विक नागरिक” के रूप में सराहा, लेकिन उन्हें अपने वोटरों का ध्यान रखने की सलाह दी.
“ऐसा लग रहा है कि उन्हें बीजेपी में ज़्यादा ताकत और पद की उम्मीद है. लेकिन उन्हें पार्टी की नीतियों के साथ रहना चाहिए. कांग्रेस के बिना वे नहीं जीत सकते,” नंदकुमार ने कहा.
उन्होंने कहा कि थरूर को मिलने वाले वोट काफ़ी घट गए हैं क्योंकि सांसद के रूप में उनका प्रदर्शन ठीक नहीं रहा.
उसी इलाके के 53 वर्षीय ऑटो चालक सुधीर एम. को लगता है कि थरूर के साथ अन्याय हो रहा है. “ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस उन्हें बाहर कर रही है. वह तो बस सच बोल रहे हैं.”
नेय्याट्टिनकारा के ही 74 वर्षीय सोमशेखरन नायर ने कहा कि थरूर ने कभी भी पीएम की अंधी तारीफ नहीं की, वह सिर्फ “अन्य नेताओं के अच्छे कामों को स्वीकार कर रहे हैं.”
नायर ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि थरूर बीजेपी में जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा, “लगता है कि वे कांग्रेस में अपने पद से संतुष्ट नहीं हैं. लेकिन इसे खुलकर दिखाना सही नहीं है.”
39 वर्षीय श्यामजीत एम. और 24 वर्षीय सुधिन गोकुल एस. जैसे युवा वोटर थरूर को एक भले और राजनीतिक सीमाओं से परे सोचने वाले बुद्धिजीवी के रूप में देखते हैं, जबकि कांग्रेस की प्रतिक्रिया उन्हें “राजनीतिक” लगती है.
गोकुल ने कहा कि 2024 में थरूर के कुछ वोट चंद्रशेखर की ओर शिफ्ट हो गए, क्योंकि लोगों ने उन्हें “एक बराबर का विकल्प” माना.
तिरुवनंतपुरम शहर में भी मतदाताओं की राय मिली-जुली रही.
तिरुवनंतपुरम के बालारामापुरम के निवासी शाजी एच. ने कहा कि भले ही थरूर एक अच्छे सांसद हैं, लेकिन इस क्षेत्र से जीतने के लिए कांग्रेस का समर्थन ज़रूरी है. उन्होंने भी कहा कि थरूर की हाल की गतिविधियों से ऐसा लगता है कि वे बीजेपी में दिलचस्पी ले रहे हैं.
उन्होंने कहा, “यहां उनका व्यक्तिगत समर्थन घट रहा है. अगर वे बीजेपी में गए, तो वे नहीं जीत पाएंगे.”
कांग्रेस पदाधिकारी ‘धोखा’ महसूस कर रहे हैं
हालांकि जनता की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही, लेकिन स्थानीय कांग्रेस पदाधिकारी इस बात से काफी हद तक सहमत हैं कि थरूर की जीत उनकी छवि की वजह से नहीं, बल्कि पार्टी के प्रभाव के कारण हुई है.
विझिंजम और नेय्याट्टिनकारा के एक-एक कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा कि भले ही थरूर की अंतरराष्ट्रीय पहचान मददगार रही, लेकिन “वोट राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए आए.”
कोवलम में भी पदाधिकारियों का मानना है कि थरूर की जीत पार्टी पर निर्भर रही है.
कोवलम के मोक्कोला इलाके के एक पदाधिकारी ने कहा कि थरूर, अपने क्षेत्र में न रहने के बावजूद, इसलिए जीत पाए क्योंकि तटीय समुदाय का कांग्रेस को समर्थन है, और यह धारणा कि थरूर की जीत सिर्फ उनके वोटों की वजह से हुई, गलत है.
उन्होंने कहा, “पहले कार्यकाल में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था. लेकिन अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं से दूरी बन गई है. यहां लोग पार्टी के चिन्ह को वोट देते हैं, न कि उन्हें.”
इस नेता ने कहा कि बीजेपी की लगातार तारीफ करना थरूर की “बड़ी गलती” है.
“यहां के कांग्रेस पदाधिकारियों ने उनकी जीत के लिए मेहनत की. वह तो बस तालियां बटोरने के लिए पार्टी से बाहर जाकर एकल अभिनय कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि वह दिखाना चाहते हैं कि वह पार्टी के बिना भी बहुत कुछ कर सकते हैं.” उन्होंने कहा. “लेकिन यह सच नहीं है.”
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