श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस (एपीएचसी) से इस्तीफा देने का ऐलान किया.
सोमवार सुबह जारी किए गए एक ऑडियो संदेश में गिलानी ने कहा, ‘हुर्रियत कांफ्रेंस की मौजूदा स्थिति को देखते हुए, ‘मैं इस फोरम से अपने को अलग करने की घोषणा कर रहा हूं.’ ‘इस परिप्रेक्ष्य में मैंने इस फोरम से संबंधित सभी धड़ों को विस्तृत पत्र भेज दिया है.’
अपने पत्र में गिलानी ने पाकिस्तान स्थित अलगाववादी नेतृत्व पर कुनबा परस्ती और राजनीतिक भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. उन्होंने पाकिस्तान स्थित अलगाववादियों पर उनके भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश करने और उनकी जानकारी के बिना फैसले लेने का आरोप भी लगाया.
गिलानी ने 5 अगस्त को अनुच्छेद-370 और 35ए को हटाने के मोदी सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह कदम कश्मीर को एक और फिलिस्तीन बना देगा. उन्होंने अन्य अलगाववादी नेताओं पर 5 अगस्त के फैसले के खिलाफ प्रतिक्रिया न देने को लेकर निशाना साधा.
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि गिलानी का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण घटना है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं. गिलानी के इस्तीफे को हुर्रियत के कमजोर पड़ने के तौर पर भी देखा जा सकता है लेकिन ये अपने अहमियत बरकरार रखने के लिए नए नेतृत्व के अवसर भी खोलेगा जो बीते कुछ सालों तक रहे हुर्रियत से भी ज्यादा आक्रामक हो सकता है.
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हुर्रियत के दो धड़े
ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस दो धड़ों में बंट गया है. एक जिसका नेतृत्व गिलानी करते थे और दूसरे का मीरवाइज उमर फारूक.
2003 में पड़े दरार के बाद दोनों बंट गए जिसमें तब तक दो दर्जन से भी ज्यादा धड़े शामिल थे. गिलानी के नेतृत्व वाले धड़े को ज्यादा मुखर माना जाता रहा है जिसमें 16 और घटक शामिल थे. जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर प्रमुख चेहरे गिलानी के धड़े से संबंध रखते हैं जिसमें बंदी नेता शाबिर शाह, मसरत आलम और क़ासिम फ़क्तू शामिल है.
गिलानी ने उस समय जमात-ए-इस्लामी से बाहर निकलने के बाद तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया और 2018 तक संगठन का नेतृत्व किया जिसके बाद अशरफ सेहराई ने टीईएच के चेयरमैन का काम संभाला.
गिलानी के तहरीक-ए-हुर्रियत ने हुर्रियत धड़े का करीब दो दशकों तक नेतृत्व किया.
2018 में तहरीक-ए-हुर्रियत के चेयरमैन बनने के कुछ ही दिनों बाद सेहराई का बेटा हिजबुल मुजाहिद्दीन में शामिल हो गया जो कि पिछले महीने श्रीनगर में गन बैटल में मारा गया.
अभी तक ये स्पष्ट नहीं हुआ है कि मौजूदा तहरीक-ए-हुर्रियत के चेयरमैन सहराई, गिलानी के धड़े वाले हुर्रियत की भी कमान संभालेंगे या नहीं. हालांकि अलगवावादियों में गिलानी का कद इतना बड़ा था कि उनके जाने के बाद एक बड़ा पॉवर वैक्यूम पैदा हो गया है. कश्मीर स्थित एक विशेषज्ञ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर मुस्लिम लीग के चेयरमैन मसरत आलम शायद गिलानी की जगह ले सकते हैं.
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तहरीक-ए-हुर्रियत में भी फूट थी, जो सेहराई द्वारा पदभार संभालने के बाद बढ़ गई क्योंकि गिलानी अपने हुर्रियत गुट के अध्यक्ष बने रहे.
नाम न बताने की शर्त पर विशेषज्ञ ने कहा, ‘इस बात की भी कुछ संभावना है कि एपीएचसी की अध्यक्षता पाकिस्तान में बैठे लोग भी कर सकते हैं.’
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