नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच होने वाले गठबंधन की संभावना अब खत्म हो चुकी है. आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और सपा के चीफ अखिलेश यादव के बीच पिछले महीने 24 नवंबर को मुलाताक हुई. जिसके बाद से दोनों पार्टियों के बीच होने वाले गठबंधन की अटकले तेज हो गई थी.
आप और सपा के बड़े नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले महीने अखिलेश यादव और संजय सिंह की कम से कम दो बार मुलाकात हुई जिसमें सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा हुई लेकिन दोनों पार्टियां इस मामले पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकीं.
संजय सिंह ने बुधवार को कहा, ‘गठबंधन का आईडिया काम नहीं कर रहा है. हम 403 सीटों पर अपने दम पर ही चुनाव लड़ेंगे.’
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने भी आप के साथ होने वाली गठबंधन की संभावना को खारिज कर दिया. उन्होंने बुधवार को कहा, ‘आप के साथ होने वाले गठबंधन को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका.’
वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधानसभा में अखिलेश यादव की 403 में से 56 सीटे हैं, वहीं आम आदमी पार्टी यूपी चुनावों में अपना डेब्यू करने जा रही है.
संजय सिंह और उदयवीर सिंह के समेत दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने गठबंधन की संभावना को खारिज कर दिया है. लेकिन गठबंधन क्यों नहीं हो सका, इस पर सपा के एक बड़े नेता अपना नाम न छापने की शर्त पर गुरुवार को बताते हैं, ‘आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर हुई हमारी बातचीत में हमें अहसास हुआ कि इससे हमें कोई फायदा नहीं हो रहा है. क्योंकि जैसा हम देखते है, उनके पास कोई सपोर्ट बेस नहीं है.’
वहीं एक बड़े आप नेता ने बताया, ‘हमारे एंजेंडे मुख्य रूप से सुशासन, कल्याण और भ्रष्टाचार विरोधी हैं. वो कहते हैं, ‘सपा या दूसरी छोटी पार्टियों के साथ हमने कोशिश की लेकिन हम कोई कॉमन ग्राउंड नहीं ढूंढ पाए. आने वाले चुनावों को लेकर वो अलग तरह सोचते हैं.’
अलग हैं एजेंडे
दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने दिप्रिंट को बताया, ‘आम आदमी पार्टी नेशनल कैपिटल रीजन यानी एनसीआर के आस-पास मौजूद और यूपी के सेंट्रल में मौजूद शहरी इलाकों पर फोकस कर रही है. लेकिन सपा के पास इन सीटों के लिए पहले से ही मजबूत उम्मीदवार मौजूद हैं. उम्मीदवार जो या तो उनके खुद के हैं या फिर पश्चिमी यूपी के राष्ट्रीय लोक दल पार्टियों जैसे सहयोगियों के हैं.’
दोनों पार्टियों के नेताओं ने बताया कि आप और सपा मूल एजेंडों के संदर्भ में भी गठबंधने करने पर विफल रहीं.
एक तरफ जहां सपा जाति समीकरण और जनसांख्यिकीय गणना को लेकर केंद्रित है, वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी सुशासन और कल्याण के मुद्दों के साथ चुनावों की तरफ बढ़ रही है. वह अपने दिल्ली मॉडल का इस्तेमाल कर रही है.
दिप्रिंट से बात करते हुए संजय सिंह ने कहा, ‘हम एक घोषणा पत्र तैयार कर रहे हैं जिसमें 300 यूनिट मुफ्त बिजली, बिल माफी, किसानों के लिए फ्री बिजली, मॉडल स्कूल, ज्यादा नौकरियां और इसके अलावा बेरोजगारों को हर महीने 5 हजार रुपये देने की बात है.’
सपा के बड़े नेता ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करके और साल 2017 में कांग्रेस के साथ गठबंधने करने के बाद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद अब समाजवादी पार्टी स्पेसिफिक बेस को लेकर सिर्फ छोटी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर ध्यान दे रही है.
सपा के सूत्रों ने कहा कि साल 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए सपा ने अब तक जिन सभी छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है, उनकी विशिष्ट समूहों के बीच पकड़ है.
उदाहरण के लिए, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में राष्ट्रीय लोक दल का मजबूत आधार है, जिसने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ हुए व्यापक विरोध को देखा था.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अब सपा की सहयोगी है. जिसके पास कई पिछले समुदायों का समर्थन है जैसेराजभर, चौहान, पाल, विश्वकर्मा, प्रजापति, बारी, बंजारा और कश्यप.
सपा की अन्य सहयोगी पार्टी महान दल के पास यूपी के पश्चिमी जिलों में शाक्य, सैनी, मौर्य और कुशवाहा जैसे समुदायों की पकड़ है जबकि जनवादी पार्टी (समाजवादी) का नोनिया समुदाय के बीच एक आधार है.
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