नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने समाजवाद को आर्थिक मॉडल के रूप में जल्दी अपनाई और इंदिरा गांधी के समय इसे जारी रखा, लेकिन यह भारत के लिए फायदेमंद नहीं रहा.
उन्होंने कहा कि “केंद्रीय कमांड और नियंत्रण संरचना, लाइसेंस-कोटा राज” ये सब उस नकल किए गए “सोवियत” मॉडल का हिस्सा थे.
राज्यसभा में ‘भारत के संविधान के 75 वर्षों की गौरवमयी यात्रा’ पर चर्चा की शुरुआत करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस के ‘गरीबी हटाओ’ नारे पर हमला किया और कहा कि कांग्रेस द्वारा अपनाया गया आर्थिक ढांचा भारत को लगभग चार दशकों पीछे ले गया। “कांग्रेस पार्टी के प्रयासों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को केवल कमजोर किया है.”
मंत्री ने कहा कि हालांकि “विफल” आर्थिक मॉडल के कारण कांग्रेस ने 1990 के बाद एक अलग मॉडल अपनाया, लेकिन “नुकसान” पहले ही हो चुका था. “कांग्रेस द्वारा की गई गलतियों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है…”
“साम्यवाद मानवता के लिए घातक होता है और भारत में आर्थिक सुधार में देरी का मानव मूल्य अत्यधिक है,” उन्होंने एक पेपर का हवाला देते हुए कहा.
सीतारमण ने यह भी जिक्र किया कि जब नेहरू प्रधानमंत्री थे, तो कवि और गीतकार मज़रूह सुलतानपुरी और अभिनेता बलराज साहनी की गिरफ्तारी पर कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया.
वित्त मंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने “साफ तौर पर संविधान में संशोधन किए ताकि परिवार और वंश को मदद मिल सके.” उन्होंने कहा कि पार्टी के शासनकाल में किए गए संशोधन “लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए नहीं, बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की सुरक्षा के लिए थे.”
संविधान संशोधनों के आर्थिक प्रभाव पर बोलते हुए, उन्होंने कहा, “यह हम सभी के लिए एक परीक्षा है, चाहे आज एक संशोधन हो या कल दूसरा. क्या इसका बड़ा आर्थिक लाभ, सामाजिक उद्देश्य, प्रक्रिया और संवैधानिक भावना के लिए कोई आर्थिक उद्देश्य है?”
सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस अक्सर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से देश की स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में सवाल करती है, जिसका उन्होंने कई बार जवाब दिया है.
“आप (कांग्रेस) ने भारत की आर्थिक स्वतंत्रता और विकास में क्या भूमिका निभाई? 1980 के बाद, कांग्रेस ने लाइसेंस कोटा राज को क्यों खत्म करना चाहा? 1991 में उन्होंने सुधार क्यों किए और फिर इन सुधारों का श्रेय लिया? अगर वह इतना अच्छा था तो आपको सुधारने की आवश्यकता क्यों पड़ी?” उन्होंने तंज कसा.
अर्थशास्त्री अरविंद पनागरिया की किताब “दि नेहरू डेवलपमेंट मॉडल: हिस्ट्री एंड इट्स लास्टिंग इम्पैक्ट” का हवाला देते हुए सीतारमण ने कहा कि पनागरिया ने लिखा है कि कैसे कांग्रेस के 50 साल के शासनकाल का समाजवाद और लाइसेंस राज ने भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया.
“हालांकि देश ने अपनी गलती मानी और 1991 में दिशा बदली, लेकिन तब तक हमने पिछले चार दशकों को खो दिया था. इसके बाद भी, उन दशकों का असर आज भी हमारे विकास पर पड़ रहा है,” उन्होंने पनागरिया का हवाला देते हुए कहा.
वित्त मंत्री ने इंदिरा गांधी द्वारा 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, “हमारे देश की स्थिति यह मांग करती है कि बैंकिंग सेवाएं पिछड़े क्षेत्रों, कृषि और छोटे उद्योगों तक बढ़ाई जाएं, और बैंकिंग का उद्देश्य सामाजिक रूप से बड़ा हो.”
2011 तक, सीतारमण ने बताया कि जनगणना आंकड़ों के अनुसार, 60 प्रतिशत से कम भारतीय परिवारों के पास बैंकिंग सेवाएं थीं. “2012 तक सिर्फ 10.3 करोड़ जीरो बैलेंस खाते खोले गए थे. इसके मुकाबले, 2014 से अब तक 54 करोड़ से ज्यादा जन धन खाते खोले गए हैं, जिनमें से 56 प्रतिशत महिलाएं हैं.”
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 50 करोड़ से ज्यादा स्वीकृत खाते खोले गए हैं, जिनमें से 68 प्रतिशत महिलाएं हैं. स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत 30,000 करोड़ रुपये से अधिक 2.5 लाख लोगों को दिए गए, जिनमें से 76 प्रतिशत महिलाएं हैं. पीएम स्वनिधि योजना के तहत 67 लाख सड़क विक्रेताओं को 50,000 रुपये तक का ऋण दिया गया, जिनमें से 45 प्रतिशत महिलाएं और 42 प्रतिशत ओबीसी हैं.”
सीतारमण ने अंत में डॉ. बी.आर. अंबेडकर का उद्धरण देते हुए कहा, “हर सरकार को आर्थिक लोकतंत्र लाने की कोशिश करनी चाहिए… यही काम पीएम मोदी कर रहे हैं.”
विवाद के दौरान सीतारमण ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश से माफी की मांग की, जिन्होंने उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाया था. सीतारमण ने कहा, “मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगाना… अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह कांग्रेस के खून में है.”
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