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Wednesday, 20 November, 2024
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उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में नरम पड़ी शिवसेना क्यों अपने मूल आक्रामक तेवर की ओर जा रही है

शिवसेना की स्थापना 1966 में एक ‘मिट्टी के बेटे’ आंदोलन के तौर पर की गई थी. महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सड़क पर विरोध प्रदर्शन की इसकी खासियत गौण हो गई थी लेकिन अब ऐसा नहीं है.

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मुंबई: मंगलवार आधी रात 1 बजे के करीब कुछ लोगों के एक समूह ने कथित रूप से ‘शिवसेना ज़िंदाबाद’ के नारे लगाते हुए एक मंच को गिरा दिया, जो मुंबई के कांदीवली ईस्ट के उपनगर रेलवे स्टेशन के बाहर बीजेपी की एक रैली के लिए बनाया जा रहा था.

ये रैली बीजेपी द्वारा हाल ही में शुरू किए गए ‘पोल खोल’ प्रचार का हिस्सा थी, जहां विपक्षी दल ने मुंबई नगर निकाय में सत्ताधारी शिवसेना के कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने की योजना बनाई थी. निगम में 25 वर्षों से सेना का राज था, जब तक पिछले महीने एक प्रशासक ने कार्यभार नहीं संभाल लिया.

बीजेपी की ओर से कड़ी आलोचना, केंद्रीय एजेंसियों द्वारा इसके कई नेताओं के खिलाफ जांच और राज ठाकरे की अगुवाई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की नए सिरे से हिंदुत्व की पिच के बीच शिवसेना- जो एक सियासी पार्टी के तौर पर पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में नर्म पड़ गई नज़र आती थी- फिर से अपने मूल आक्रामक रूप की तरह दिख रही है.

पिछले तीन महीनों में शिवसेना काडर्स विरोध प्रदर्शन या शक्ति प्रदर्शन के लिए अक्सर सड़कों पर उतरे हैं.

एक पुराने शिवसैनिक और पार्टी पदाधिकारी रवींद्र मिरलेकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘यही असली शिवसेना है. शिवसेना का जन्म आक्रामकता और विरोध में हुआ था. पिछले कुछ सालों में थोड़ा सा कमी जास्ता झाला होता (आक्रामकता थोड़ी कम हो गई थी). उसके पीछे कई कारण थे. शिवसैनिक अब पहले से ज़्यादा विचारधारा-उन्मुख हो गए हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अब जो हो रहा है वो बिल्कुल सही है और उसकी ज़रूरत है. विरोध प्रदर्शन किसी सरकार के खिलाफ नहीं हैं. ये हर उस चीज़ के खिलाफ हैं जो हो रही है, किस तरह बीजेपी अपनी राजनीति का खेल खेल रही है’.


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आक्रामक शिवसेना

शिवसेना की स्थापना 1966 में एक आक्रामक ‘मिट्टी के बेटे’ आंदोलन के तौर पर की गई थी, जिसने उसके बाद से एक राजनीतिक संगठन का रूप ले लिया. 1980 और 1990 के दशकों में इसने अपनी आक्रामकता को और तेज़ किया और अपने प्रमुख राजनीतिक एजेंडा के तौर पर हिंदुत्व को गले लगा लिया.

लेकिन अब, उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे की अगुवाई में और सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के घटक के तौर पर, जिसे इसने अपने पुराने वैचारिक विरोधियों राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के साथ मिलकर बनाया, सेना को उस सांप्रदायिक राजनीतिक संगठन की छाया के रूप में देखा जाता है, जो ये 1990 के दशक में थी.

पार्टी की सियासत ने एक उदारवादी मोड़ 2014 के बाद लिया, जब बीजेपी ने महाराष्ट्र में आक्रामक रूप से अपना विस्तार शुरू किया, जिसमें उसने न केवल शिवसेना के मूल हिंदुत्व वोट बैंक, बल्कि किनारे बैठे और शहरी तथा महानगरीय मतदाताओं को भी लक्ष्य बनाया.

बीजेपी के इस रुख ने शिवसेना को अपनी सियासी रणनीति नए सिरे से बनाने पर मजबूर कर दिया और पूर्व के शिवसेना-स्टाइल ज़ोर-शोर के प्रदर्शन कम होने शुरू हो गए, सिवाय कुछ मौकों के, जिनमें से एक पिछले साल केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की टिप्पणी के खिलाफ पार्टी का प्रदर्शन था, जिसमें उन्होंने सीएम ठाकरे को ‘थप्पड़’ मारने की बात कही थी.

दिप्रिंट के साथ कई बार हुई बातचीत में शिवसैनिकों ने कहा है कि सड़कों पर होने वाले प्रदर्शनों को थोड़ा कम कर दिया गया है, चूंकि पार्टी सरकार में एक अग्रणी भूमिका में है. सड़कों पर उतरने की बजाय नेता लोग एक फोन कॉल से काम करा सकते हैं और कोई भी सीएम उद्धव के लिए कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी नहीं करना चाहता.

लेकिन, पिछले करीब तीन महीनों में पार्टी कार्यकर्ताओं को सड़कों पर ज्यादा देखा गया है.

शिवसेना पदाधिकारी विनोद घोसाल्कर ने इस बात को खारिज कर दिया कि पार्टी में कभी कोई बदलाव आया है: ‘शिवसैनिक हमेशा से सक्रिय रहा है. हम हमेशा से अच्छे उद्देश्यों के लिए विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं. हमने अपने प्रदर्शनों को कभी हल्का नहीं किया है’.

लेकिन राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने दिप्रिंट से कहा, ‘शिवसेना अब ममता बनर्जी वाला अंदाज अपनाते हुए पीड़ित कार्ड खेल रही है और शोर मचा रही है कि बीजेपी किस तरह पार्टी को निशाना बना रही है. ये आक्रामकता वहीं से आ रही है’.


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ज़ोर-शोर से स्ट्रीट आंदोलन

फरवरी में बड़ी संख्या में शिवसेना कार्यकर्ता दादर में पार्टी मुख्यालय शिवसेना भवन के बाहर जमा हो गए और ट्रैफिक को रोक दिया, जहां पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय राउत ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया. राउत ने बीजेपी नेताओं किरीट सोमैया और मोहित कंबोज पर भी निशाना साधा और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए.

इस प्रेस कांफ्रेंस से पहले ईडी ने प्रताप सरनायक, अनिल परब, आनंदराव अदसुल और संजय राउत के करीबी सहयोगी प्रवीण राउत जैसे बहुत से शिवसेना नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की थी. पार्टी दावा करती रही है कि बीजेपी अपने राजनीति विरोधियों को खामोश करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है, खासकर उन्हें जो नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार की सबसे अधिक आलोचना करते हैं.

फिर इसी महीने, ईडी द्वारा संजय राउत की करोड़ों की संपत्तियों की कुर्की करने के एक दिन बाद शिवसेना कार्यकर्ताओं ने मुंबई एयरपोर्ट के बाहर उस समय शक्ति प्रदर्शन किया, जब राज्य सभा सांसद दिल्ली से लौटकर आए.

इसी तरह शिवसेना ने बीजेपी के सोमैया के खिलाफ महाराष्ट्र के कई हिस्सों में प्रदर्शन किया, जब उनके खिलाफ सेवामुक्त आईएनएस विक्रांत को बचाने के लिए एकत्र किए गई राशि में कथित हेराफेरी के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया.

सोमैया लगातार उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के सदस्यों समेत, सत्ताधारी एमवीए गठबंधन के नेताओं पर रिश्वत के आरोप लगाते रहे हैं.

पिछले सप्ताह गुस्साए शिवसैनिकों ने उपनगर बांद्रा में ठाकरे आवास मातोश्री के बाहर इसी तरह का शक्ति प्रदर्शन किया, जब अमरावती से एक निर्दलीय सांसद नवनीत रवि राणा ने वहां जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने की धमकी दी.
उसके बाद मंगलवार को बीजेपी का मंच गिराए जाने की घटना हुई.

स्थानीय शिवसेना शाखा के प्रभारी सचिन पाटिल ने दिप्रिंट से कहा कि उनकी पार्टी ने मंच पर तोड़फोड़ नहीं की.

उन्होंने कहा, ‘बीजेपी जानबूझकर अपना कार्यक्रम हमारी शाखा के सामने करना चाहती थी. उनके पास रैली के लिए आवश्यक नागरिक अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं थे. हमने स्टेज पर तोड़फोड़ नहीं की. हमने पुलिस और नागरिक पदाधिकारियों को सूचित किया और उसे उतरवा दिया. अगर आपके दरवाजे के बाहर कोई अनाधिकृत सभा करता है, और धौंसियाने की कोशिश करता है, तो फिर हमें क्या करना चाहिए?’

लेकिन पाटिल ने इन दावों को खारिज कर दिया कि इसे किसी भी तरह से गत वर्षों की सड़कों पर पार्टी की सक्रियता से मिलाया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘आज की शिवसेना केवल काम और विकास पर फोकस करती है. हम ये सब तोड़-फोड़ नहीं करते. हम आदित्य ठाकरे के विज़न के लिए काम करना चाहते हैं’.


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हिंदुत्व प्रतिबद्धता को दिखाना

मनसे द्वारा राज ठाकरे को दिवंगत शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के ‘असली वारिस’ के रूप में आगे बढ़ाने की कोशिशों के बीच शिवसेना अपनी हिंदुत्व प्रतिबद्धता को भी आक्रामकता के साथ दिखाने में लगी है.

मनसे प्रमुख, जो उद्धव के चचेरे भाई हैं, मस्जिदों में लाउडस्पीकरों को लेकर आपत्तियां जताते रहे हैं, वो मुद्दा जो कभी बाल ठाकरे का हुआ करता था. राज ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के लिए 3 मई की अंतिम तारीख भी घोषित कर दी है और हिंदुओं से आग्रह किया है कि यदि वो ऐसा नहीं करते, तो लाउडस्पीकरों पर हनुमान चालीसा चलाया जाए.

तकरीबन जवाब के तौर पर, शिवसेना ने पिछले सप्ताह हनुमान जयंती के दौरान मुंबई के कई मंदिरों में महा आरतियों का आयोजन किया.

राज ठाकरे ने ऐलान किया कि वो मई में अयोध्या का दौरा करेंगे, जिसके बाद शिवसेना ने भी ऐलान किया कि राज्य मंत्री ठाकरे भी मई के पहले सप्ताह में अयोध्या जाएंगे.

राजनीतिक विश्लेषक देशपांडे ने कहा, ‘शिवसेना ने हमेशा ये दिखाने की कोशिश की है कि भले ही उसने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है लेकिन हिंदुत्व को नहीं छोड़ा है. अब ऐसे में जब मनसे शिवसेना की जगह पर दावा करने की कोशिश कर रही है, तो सेना अपने हिंदुत्ववादी चेहरे को और आक्रामकता के साथ आगे कर रही है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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